नाथ शक्ति आह्वान एवं अस्त्र शस्त्र
सामान्यतः साधारण भाषा में अस्त्र शस्त्र दोनों शब्द को एक ही रूप में लिया जाता है या यु कहे की इन दोनों के भेद को सभी नहीं समझ पाते । अस्त्र उसे कहते है जो मंत्रो की शक्ति से दूर तक पहुचाये जा सकते है ये अस्त्र आवश्यक नहीं की किसी धातु के बने हो ,इन अस्त्रों को भभूत के ऊपर,स्मशान की भस्म के ऊपर अभिमंत्रित कर के भी प्रक्षेपण किये जा सकते है।कुछ शस्त्र ऐसे भी होते है जिनपे मंत्रो का उपयोग कर अस्त्रों में परिवर्तित किया जा सकता है।प्रत्येक शस्त्र पर भिन्न-भिन्न देव या देवी का अधिकार होता है,और जब इन शस्त्रो को अभिमंत्रित किया जाता है तब ये अस्त्रों में परिवर्तित हो जाते है।वस्तुत: इन्हें दिव्य तथा मान्त्रिक-अस्त्र कहते हैं। वैदिक काल के बहुत से शास्त्रो एवं महाभारत,रामायण एवं अन्य युद्धों में बहुत से अस्त्रों उल्लेख किया गया है।
जैसे:-नारायणास्त्र,नागास्त्र,वायवास्त्र,आग्नेयास्त्र,पन्नग,गरुडास्त्र,पाशुपास्त्र,
वरुनास्त्र,ब्रह्मशिरा,एकागिन्न,अमोघास्त्र
इसके विपरीत शस्त्र सामान्य हथियारो को कहा जाता हैं, जिनके प्रहार से चोट पहुँचती है और मृत्यु भी होती है। सामान्यतः इन हथियारो का अधिक उपयोग किया जाता रहा हैं।प्राचीन काल के युद्धों में सामान्य सैनिको की पहुच अस्त्रों तक नहीं होती थी वे मात्र शस्त्रो द्वारा ही युद्ध किया करते थे।
जैसे:-तलवार,चंद्रहास,खंजर,खड्ग,भाला,मुद्गर,चक्र,भुशुण्डि,गदा,वज्र कुलिश,त्रिशूल इत्यादि
श्रीनाथ सिद्धो में एवं नाथ संप्रदाय में अस्त्रों को पूर्ण रूप से स्वीकार किया है एवं श्री नाथजी ने स्वयं बहुत से अस्त्रों का निर्माण कर बहुत से चमत्कार किये है पहले अस्त्रों को शस्त्रो पे ही अभिमंत्रित कर प्रक्षेपण किया जाता रहा था किंतु श्री नाथजी ने मात्र भस्म द्वारा ही सभी अस्त्रों को चलाने की विद्या का अविष्कार किया ।श्रीनाथ साहित्यों में मुख्य रूप से एक मंत्र प्रचलन में रहा है जिसके अनुसार ,गोरख कहे गोरख फटकार,हनुमंत का विरास्त्र, काली चलाएं कलास्त्र, भैरव भया अघोरास्त्र ।।इस पंक्ति के अनुसार फटकार अस्त्र के गोरखनाथजी,विरास्त्र के हनुमानजी,कालास्त्र के कालीजी एवं अघोरास्त्र के भैरवजी देवता है।इसमें से जो फटकारास्त्र है ये अपने नाम के अनुरूप किसी भी शत्रु को फटकार लगाने में एवं घर से बेघर करने में सक्षम है एक विशेष विधि द्वारा इस अस्त्र को बना कर यदि शत्रु पे प्रक्षेपित कर दिया जाए तो वो शत्रु के बचाव की शायद ही कोई काट हो,इस अस्त्र को सिद्ध कर प्रेत ग्रस्त या भूत बाधा से ग्रसित व्यक्ति को झाड़ा जाए तो उसे तत्काल लाभ होता है इस अस्त्र से सिद्ध कवच को यदि मोर के पंख के जाड़े में मंगलवार को बांध कर रोगी को झाड़ा जाए तो ,शीघ्र लाभ प्राप्त होता है किंतु इस अस्त्र को सिद्ध करना सामान्य व्यक्ति के सक्षमता के बाहर का विषय है।गुरुदेव ने मुझे इन अस्त्रों की सिद्ध विधि पूर्ण रूप से बताई है।किन्तु इसके विध्वंसक प्रभाव को देखते हुए इन अस्त्र मंत्र को मैंने जल में प्रवाहित कर दिया किन्तु समयानुसार इसका पुनः निर्माण किया जा सकता है।इन अस्त्रों को "गुप्त मंत्र" के नाम से भी जाना जाता है।इन चारों अस्त्रों में विरास्त्र को छोड़ कर बाकी तीन अस्त्रों का निर्माण स्मशान में ही संभव होता है एवं विरास्त्र का निर्माण गाँव या शहर के बाहर के हनुमान मंदिर में एकांत में किया जाता है।।श्री नाथजी द्वारा रचयित इन अस्त्र मंत्रो में दोगुनी शक्तियां समाहित होती है जहां ये शत्रु पे मारक् प्रभाव डालते वही ये अस्त्र मंत्र प्रक्षेपण करने वाले की रक्षा भी करते है।
इन मुख्य अस्त्रों के अलावा भी श्री नाथ साहित्यों में अन्य अस्त्रों का उल्लेख प्राप्त होता है जैसे:-वज्र पंजर अस्त्र,वासव अस्त्र,मोहनी अस्त्र,गौरव अस्त्र,,माया अस्त्र,वाताकर्षण अस्त्र,वायु अस्त्र,स्पर्शास्त्र,दानवास्त्र,कालिकास्त्र,सूर्यासत्र,एकादश सहयंत्रआस्त्र,धुमास्त्र,नागास्त्र,खगेन्द्रास्त्र,चक्रास्त्र,त्रिशूलास्त्र,अग्नि अस्त्र,विभक्तास्त्र,भरमास्त्र,ज्ञानास्त्र,उद्कास्त्र,प्रेरकास्त्र,अघोरास्त्र,कालास्त्रा,विरास्त्र,फटकारास्त्र इत्यादि ।।
ईन अस्त्रों की सिद्धि विधि गुरु गम्य है एवं जन साधारण के लिए ये सुलभ नहीं है ।कही कही इन अस्त्र मंत्रो को कुछ किताबो में बिना चेतावनी के लिखा पाया गया है जो की मानव के साथ खिलवाड़ मात्र है जब तक कोई इसका सही धारण करने की योग्यता का साधक ना मिले इन्हें नहीं देना चाहिए।इन अस्त्रों की अपनी एक निजी काट अस्त्र मन्त्र होते है यदि आपको इनकी काट नहीं पता तो आपके लिए यह मंत्र शेर के मुख में हाथ डालने के बराबर ही होंगे।समाज के कल्याणार्थ एवं गुरु कृपा से ही इन अस्त्रों का ज्ञान होना संभव होता है।श्री गोरख पुराण एवम अन्य नाथ साहित्यों में इन अस्त्रों का उल्लेख किया गया है।
*****जयश्री महाकाल****
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Shree nath ji ko aadesh
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