शक्ति(नारी) उपासना एवं तंत्र****भाग -01
शक्ति उपासना का अस्तित्व भारत वर्ष में प्राचीन काल से रहा है इसके बहुत से साक्ष्य धरती पे उपलब्ध है।मोहनजोदड़ो की खुदाई के समय धरती के भीतर सात तहे खोजी गई ,जिसके अनुसार इस बात के प्रमाण प्राप्त होते है कि वहां क्रमश एक एक करके सात अलग-अलग नगर बसे थे एवं कालान्तर में वह शहर काल के उदर में समा गए।इतिहास की खोज करने वाले वैज्ञानिकों एवं पुरातत्व विदों के अनुसार इसमें सबसे नीचे बसने वाले नगर का अनुमानित समय ईसा से पूर्व चार हजार वर्ष बताया गया है।इन नगरो की खुदाई एवं सर्वेक्षणानुसार इस स्थान पे बहुत सी वस्तुओं के साथ साथ बहुत से देवताओं की मूर्तियां भी प्राप्त हुई जिसमें शिवलिंग,नंदी एवं स्वास्तिक इत्यादि की मूर्तियां मुख्य है।इन सूत्रों के अनुसार ये बाते सिद्ध होती है कि भारत में शक्ति उपासना ,तंत्र का अस्तित्व ईसा से चार हजार पूर्व भी क्रिया में था।
भारत में स्त्री को शक्ति एवं देवी का स्थान प्राप्त है।भारतीय तंत्र एवं पूजन में स्त्रियों को पूर्ण सम्मान का स्थान प्राप्त है।वेदों में यदि आप दृष्टि डाले तो आप देखेंगे कि वहां भी जैसे उच्च स्थान मंत्रज्ञ पुरुष ऋषियों को प्राप्त है वही वहां उच्चकोटि की ऋषिकाओं का भी योगदान रहा है।मेरे कथन का आशय ये है कि ऋषि केवल पुरुष ही नहीं हुए बल्कि अनेक नारिया भी रही है।ऐसे अनेक प्रमाण उपलब्ध है जिससे स्पस्ट होता है कि पुरुषों के समान स्त्रियां भी यज्ञ करती एवं कराती थी,वे स्त्रियां भी मंत्र विद्या,यज्ञविद्या एवं ब्रह्मविद्या में पारंगत रही थी।
*ऋग्वेदानुसार ब्रह्म देवता के 24 वे अध्याय अनुसार घोषा,गाधा,विश्व्हारा,अपाला,उपनिषद,जुहू,अदिति,इंद्राणी,रोमशा,उवर्शी,लोपामुद्रा,यमी,सूर्या आदि दीव्य एवं उच्च कोटि की साधिकाएं मंत्र दृष्टा रही है।ये स्त्रियां अपने पति एवं पिता का भी मार्ग दर्शन करने में सक्षम।रही है।वैदिक देवताओ के साथ साथ उनकी पत्नियों के नाम का सह उच्चारण स्त्री की माहन्ता को पूर्ण रूप से दर्शाता रहा है।वेद का देवी सूक्त इसका प्रमाण रहा है।वेदों में अदिति को देवमाता कहा गया है इनके अलावा दिति,सरस्वती,वाणी,ईला,राका,इड़ा,इंद्राणी,वरुणानि,रुद्राणी,
अश्विनी इत्यादि की देवी उपासना वैदिक काल में की जाती रही है।
पुराणों की रचना एवं उनके प्रचार से शक्ति उपासना को उस समय बहुत सफलता प्राप्त हुई जिससे शक्ति उपासना के लिए हर घर के द्वार स्वतः ही खुल गए थे।देवी भागवत,कालिका पुराण मार्कण्डेय पुराण में देवी का माहात्म्य वर्णित है इसके अलावा ब्रह्मवैवर्त में भी भगवती राधा को उच्च स्थान प्राप्त है।वैदिक काल में जो स्थान इंद्र को प्राप्त था वही स्थान पौराणिक युग में देवी दुर्गा को प्राप्त हो गया था।अधिकाँश शक्ति उपासना का मुख्य कारण भय का निवारण एवं शत्रु के संहार ही रहा है।देवी द्वारा चंड मुंड ,रक्त विज एवं शुभ निशुम्भ को मारना ही देवी को इंद्र का स्थान देने में सहायक रहा है।दुर्गा के भीतर समस्त देवताओं का तेज समाहित होने के कारण मात्र दुर्गा उपासना करने मात्र से सभी देवताओं का आशीष स्वतः ही प्राप्त हो जाता है।
*रुद्रयामल तंत्र’ के अनुसार दस शक्तियाँ महाविद्याएं और सम्बन्धित भैरव के नाम इस प्रकार हैं-
1. कालिका – महाकाल भैरव 2. त्रिपुर सुन्दरी – ललितेश्वर भैरव
3. तारा – अक्षभ्य भैरव 4. छिन्नमस्ता – विकराल भैरव
5. भुवनेश्वरी – महादेव भैरव 6. धूमावती – काल भैरव 7. कमला – नारायण भैरव 8. भैरवी – बटुक भैरव 9. मातंगी – मतंग भैरव
10. बगलामुखी – मृत्युंजय भैरव
*बौद्ध धर्म:- इसमें भी शक्ति उपासना देखने को मिलती हैबौद्ध साहित्यों में शाक्त से प्रभावित देवियो का वर्णन प्राप्त होता है।सेवकोद्देश टिका में वाराही,ब्राह्मी,नारायणी,रौद्री,तारा,लक्ष्मी,परमेश्वरी,हारिति,वागीश्वरी,वसुधारा आदि देवियो का उल्लेख किया गया है।हिन्दू धर्म में जिसे शक्ति के नाम से जाना जाता है वही बौद्ध मान्यता के अनुसार इसे शून्य कहा गया है ,ब्राह्मण एवं बौद्ध में "ओंकार"साधना को "तार"कहा जाता है इस देवता की पत्नी का नाम ही तारा है।जहां महायान संप्रदाय में देवी को तारा कहा गया है वही हीनयान में इसका नाम मानिमेखका हो जाता है।श्रीलंका में इसका समुद्र देवी हो जाता है।हिन्दू धर्म में जैसा जोड़ शिव-शक्ति का वैसा ही जोड़ यहाँ तार-तारा का है।इनके गुण धर्म एक सामान ही होते है।
सिद्ध सिद्धांत पद्धति में पांच शिव एवं उनकी पांच शक्तियों का उल्लेख किया गया है इनका क्रमशः नाम अपर शिव,परम शिव,शून्य शिव,निरंजन शिव एवं परमात्मा शिव आदि है इनकी क्रमशः शक्तियों का नाम वीजा शक्ति,पराशक्ति,अपराशक्ति,सुक्षमाशक्ति एवं कुंडलिनी शक्ति है।
*नाथ संप्रदाय:-बुद्ध पुराणानुसार शिव ने ही मत्स्येन्द्र का रूप धारण किया था।मत्स्येन्द्र नाथ जी का सीधा संबंध कौल मत से रहा है।ये नाथ संप्रदाय के प्रथम प्राचार्य रहे है इनके मुख्या शिष्यो में गुरु गोरखनाथ जी का मुख्य स्थान रहा है।मत्स्येन्द्र नाथ जी द्वारा कौल ज्ञान-निर्णय "ग्रन्थ की रचना की गई थी।कौल ज्ञान में नारी के स्थान को समझा जा सकता है।
श्री गोरक्ष सिद्धांत संग्रहानुसार सृष्टि रचना से पहले शिव को शक्ति से परे की मान्यता दी गई है किंतु यही सृष्टि की रचना के लिए शिव अपने आपको शक्ति से युक्त करते है।यही शक्ति अपनी माया के अनुसार अपने आवरण में ब्रह्म को ढ़के रहती है।यही माया जब अपने तप से संयुक्त होती है तो दुर्गा बन जाती है एवं यही देवी सात्विक होने पे लक्ष्मी का रूप धारण करती है।नाथ पंथ में इसी देवी को कुंडलिनी की संज्ञा दी गई है एवं इनकी विशेष रूप में पूजा की जाती है।
नाथ पंथ आज भी कापालिक,औघड़,कनफटे और योगाचारी उपासको के रूप में उपस्थित है किंतु 9वी शती का मध्य काल ही नाथ संप्रदाय का आरम्भ रहा है।एक समय ऐसा था जब नाथ संप्रदाय उत्तरी भारत पे पूर्ण रूप से छाया हुआ था।
*जैन धर्म:-जैन धर्म के मूल सिद्धांतो के विपरीत होने के बाद भी जैन धर्म में भी शक्ति साधना का मूल स्थान है शक्ति साधना का सरल व सीधा मार्ग देखकर जैन धर्म भी इस भक्ति,भावना,मारण,मोहान ,उच्चाटन जैसे तंत्र की और आकर्षित हुआ और कालान्तर में जैन धर्म में भी शक्ति उपासना होने लगी थी।जैन धर्म के 24 तीर्थकर माने जाते है इनके बाए और एक यक्षिणी का निवास होता है जिसे जैन धर्म मे शासन देवी कहा जाता है।इन देवियो की संख्या भी 24 मानी गई है।इनहे
पद्मावती,चक्रेश्वरी,अम्बिका,सिद्धाविका,त्रिपुर भैरवी,त्रिपुरा,तोतला
,नित्या,कामसाधनी,त्वरिता ,अम्बिका,अपराजिता,कामचंडालिनीआदि नामो से पुकारा जाता है।जैन धर्म के दोनों संप्रदाय में शक्ति की उपासना का प्रचलन रहा है।जैन मान्यता के अनुसार धरती के ऊपर और नीचे देवी-देवता का स्थान होता है एवं इनकी साधना से वरदान की प्राप्ति होती है।
शक्ति उपासना का आरम्भ वैदिक काल में हुआ पौराणिक काल में यह पूर्ण रूप से फैली फूली एवं जैन बौद्ध धर्मो ने इसे अपनाया ।आज भी उत्तर से दक्षिण तक इसका व्यापक प्रभाव रहा है।
क्रमशः
*****जयश्री महाकाल****
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।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
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