।।महाकालभैरवाष्टकम्॥
ॐ यं यं यं यक्षरूपं दशदिशिविदितं भूमिकम्पायमानं सं सं संहारमूर्तिं शिरमुकुटजटा शेखरञ्चन्द्रबिम्बम् ।
दं दं दं दीर्घकायं विक्रितनख मुखंग चोर्ध्वरोमं करालं पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ १॥
रं रं रं रक्तवर्णं, कटिकटिततनुं तीक्ष्णदंष्ट्राकरालं घं घं घं घोष घोषं घ घ घ घ घटितं घर्झरं घूर नादम् ।
कं कं कं कालपाशं द्रुक् द्रुक् दृढितं ज्वालितं कामदाहं तं तं तं दिव्यदेहं, प्रणामत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ २॥
लं लं लं लं वदनाथं ल ल ल ल ललितं दीर्घ जिह्वा करालं धूं धूं धूं धूम्रवर्णं स्फुट विकटमुखं भास्करं भीमरूपम् ।
रुं रुं रुं रूण्डमालं, रविथ महिगतं ताम्रनेत्रं करालम् नं नं नं नग्नभूषं , प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ३॥
वं वं वायुवेहं नतजन सदयं ब्रह्मसारं परमतं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवनविलयं भास्करं भीमरूपम् ।
चं चं चलित्वाऽचल चल चलित चालितं भूमिचक्रं मं मं मायि रूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्र पालम् ॥ ४॥
शं शं शं शङ्खहस्तं, शशिकरधवलं, मुख सम्पूर्ण तेजं मं मं मं मं महान्तं, कुलमचुल कुलं मन्त्र गुप्तं सुनित्यम् ।
यं यं यं भूतनाथं, किलि किलि कलितं बालकेलि प्रदहानं आं आं आं आन्तरिक्षं , प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ५॥
खं खं खं खड्गभेदं, विषममृतमयं काल कालं करालं क्षं क्षं क्षं क्षेप्रवेगं, दह दह दहनं, तप्त सन्दीप्य मानम् ।
हौं हौं हौङ्कारनादं, प्रकटित गहनं गर्जितै भूमिकम्पं वं वं वं वाललीलं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ६॥
सं सं सं सिद्धियोगं, सकलगुणमखं, देवदेवं प्रसन्नं पं पं पं पद्मनाभं, हरिहरमयनं चन्द्रसूर्याग्नि नेत्रम् ।
ऐं ऐं ऐं ऐश्वर्यनाथं, सततभयहरं, पूर्वदेवस्वरूपं रौं रौं रौं रौद्ररूपं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ७॥
हं हं हं हंसयानं, हसितकलहकं, मुक्तयोगात्त हासं, ? धं धं धं नेत्ररूपं, शिरमुकुट जटाबन्ध बन्धाग्र हस्तम् ।
तं तं तङ्कानादं, त्रिदलसतलतं, कामगर्वापहारं, ?? भ्रुं भ्रुं भ्रुं भूतनाथं, प्रणमत सततं, भैरवं क्षेत्रपालम् ॥ ८॥
इति महाकालभैरवाष्टकं सम्पूर्णम् ।
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।।राहुलनाथ ।।
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||जयश्री महाकाल ।।
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