।।श्रीबगला(वल्गा) मुखीस्तोत्रम्।।
चलत्कनककुण्डलोल्लसितचारुगण्डस्थलीं
लसत्कनकचम्पकद्युतिमदिन्दुबिम्बाननाम् ।
गदाहतविपक्षकां कलितलोलजिह्वाञ्चलां
स्मरामि बगलामुखीं विमुखवाङ्मनस्स्तम्भिनीम् ॥१॥
पीयूषोदधिमध्यचारुविलद्रक्तोत्पले मण्डपे
सत्सिंहासनमौलिपातितरिपुं प्रेतासनाध्यासिनीम् ।
स्वर्णाभां करपीडितारिरसनां भ्राम्यद्गदां विभ्रतीमित्थं
ध्यायति यान्ति तस्य सहसा सद्योऽथ सर्वापदः ॥२॥
देवि त्वच्चरणाम्बुजार्चनकृते यः पीतपुष्पाञ्जलीन्भक्त्या
वामकरे निधाय च मनुं मन्त्री मनोज्ञाक्षरम् ।
पीठध्यानपरोऽथ कुम्भकवशाद्बीजं स्मरेत्पार्थिवं
तस्यामित्रमुखस्य वाचि हृदये जाड्यं भवेत्तत्क्षणात् ॥३॥
वादी मूकति रङ्कति क्षितिपतिर्वैश्वानरः शीतति क्रोधी
शाम्यति दुर्जनः सुजनति क्षिप्रानुगः खञ्जति ।
गर्वी खर्वति सर्वविच्च जडति त्वन्मन्त्रिणा यन्त्रितः
श्रीर्नित्ये बगलामुखि प्रतिदिनं कल्याणि तुभ्यं नमः ॥४॥
मन्त्रस्तावदलं विपक्षदलने स्तोत्रं पवित्रं च ते
यन्त्रं वादिनियन्त्रणं त्रिजगतां जैत्रं च चित्रं च ते ।
मातः श्रीबगलेति नाम ललितं यस्यास्ति जन्तोर्मुखे
त्वन्नामग्रहणेन संसदि मुखे स्तम्भो भवेद्वादिनाम् ॥५॥
दुष्टस्तम्भनमुग्रविघ्नशमनं दारिद्र्यविद्रावणं
भूभृत्सन्दमनं चलन्मृगदृशां चेतःसमाकर्षणम् ।
सौभाग्यैकनिकेतनं समदृशः कारुण्यपूर्णेक्षणम्
मृत्योर्मारणमाविरस्तु पुरतो मातस्त्वदीयं वपुः ॥६॥
मातर्भञ्जय मद्विपक्षवदनं जिह्वां च सङ्कीलय
ब्राह्मीं मुद्रय दैत्यदेवधिषणामुग्रां गतिं स्तम्भय ।
शत्रूंश्चूर्णय देवि तीक्ष्णगदया गौराङ्गि पीताम्बरे
विघ्नौघं बगले हर प्रणमतां कारुण्यपूर्णेक्षणे ॥७॥
मातर्भैरवि भद्रकालि विजये वाराहि विश्वाश्रये
श्रीविद्ये समये महेशि बगले कामेशि वामे रमे ।
मातङ्गि त्रिपुरे परात्परतरे स्वर्गापवर्गप्रदे
दासोऽहं शरणागतः करुणया विश्वेश्वरि त्राहि माम् ॥८॥
संरम्भे चौरसङ्घे प्रहरणसमये बन्धने व्याधिमध्ये
विद्यावादे विवादे प्रकुपितनृपतौ दिव्यकाले निशायाम् ।
वश्ये वा स्तम्भने वा रिपुवधसमये निर्जने वा वने वा
गच्छंस्तिष्ठंस्त्रिकालं यदि पठति शिवं प्राप्नुयादाशु धीरः ॥९॥
त्वं विद्या परमा त्रिलोकजननी विघ्नौघसंछेदिनी
योषित्कर्षणकारिणी जनमनःसम्मोहसन्दायिनी ।
स्तम्भोत्सारणकारिणी पशुमनःसम्मोहसन्दायिनी
जिह्वाकीलनभैरवी विजयते ब्रह्मादिमन्त्रो यथा ॥१०॥
विद्या लक्ष्मीर्नित्यसौभाग्यमायुः
पुत्रैः पौत्रैः सर्वसाम्राज्यसिद्धिः ।
मानो भोगो वश्यमारोग्यसौख्यं
प्राप्तं तत्तद्भूतलेऽस्मिन्नरेण ॥११॥
त्वत्कृते जपसन्नाहं ,गदितं परमेश्वरि ।
दुष्टानां निग्रहार्थाय ,तद्गृहाण नमोऽस्तु ते ॥१२॥
पीताम्बरां च द्विभुजां ,त्रिनेत्रां गात्रकोमलाम् ।
शिलामुद्गरहस्तां च ,स्मरे तां बगलामुखीम् ॥१३॥
ब्रह्मास्त्रमिति विख्यातं ,त्रिषु लोकेषु विश्रुतम् ।
गुरुभक्ताय दातव्यं,न देयं यस्य कस्यचित् ॥१४॥
नित्यं स्तोत्रमिदं पवित्रमिह यो देव्याः पठत्यादराद्धृत्वा
यन्त्रमिदं तथैव समरे बाहौ करे वा गले ।
राजानोऽप्यरयो मदान्धकरिणः सर्पा मृगेन्द्रादिकास्ते
वै यान्ति विमोहिता रिपुगणा लक्ष्मीः स्थिरा सिद्धयः ॥१५॥
॥इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे श्रीबगलामुखीस्तोत्रं समाप्तम् ॥
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||बगलामुखी कवचम् ||
श्रुत्वा च बगलापूजां स्तोत्रं चापि महेश्वर ।
इदानी श्रोतुमिच्छामि कवचं वद मे प्रभो ॥ १ ॥
वैरिनाशकरं दिव्यं सर्वाSशुभविनाशनम् ।
शुभदं स्मरणात्पुण्यं त्राहि मां दु:खनाशनम् ॥२॥
श्रीभैरव उवाच :
कवचं शृणु वक्ष्यामि भैरवीप्राणवल्लभम् ।
पठित्वा धारयित्वा तु त्रैलोक्ये विजयी भवेत् ॥३॥
ॐ अस्य श्री बगलामुखीकवचस्य नारद ऋषि: ।
अनुष्टप्छन्द: । बगलामुखी देवता । लं बीजम् ।
ऐं कीलकम् पुरुषार्थचष्टयसिद्धये जपे विनियोग: ।
ॐ शिरो मे बगला पातु हृदयैकाक्षरी परा ।
ॐ ह्ली ॐ मे ललाटे च बगला वैरिनाशिनी ॥१॥
गदाहस्ता सदा पातु मुखं मे मोक्षदायिनी ।
वैरिजिह्वाधरा पातु कण्ठं मे वगलामुखी ॥२॥
उदरं नाभिदेशं च पातु नित्य परात्परा ।
परात्परतरा पातु मम गुह्यं सुरेश्वरी ॥३॥
हस्तौ चैव तथा पादौ पार्वती परिपातु मे ।
विवादे विषमे घोरे संग्रामे रिपुसङ्कटे ॥४॥
पीताम्बरधरा पातु सर्वाङ्गी शिवनर्तकी ।
श्रीविद्या समय पातु मातङ्गी पूरिता शिवा ॥५॥
पातु पुत्रं सुतांश्चैव कलत्रं कालिका मम ।
पातु नित्य भ्रातरं में पितरं शूलिनी सदा ॥६॥
रंध्र हि बगलादेव्या: कवचं मन्मुखोदितम् ।
न वै देयममुख्याय सर्वसिद्धिप्रदायकम् ॥ ७॥
पाठनाद्धारणादस्य पूजनाद्वाञ्छतं लभेत् ।
इदं कवचमज्ञात्वा यो जपेद् बगलामुखीम् ॥८॥
पिवन्ति शोणितं तस्य योगिन्य: प्राप्य सादरा: ।
वश्ये चाकर्षणो चैव मारणे मोहने तथा ॥९॥
महाभये विपत्तौ च पठेद्वा पाठयेत्तु य: ।
तस्य सर्वार्थसिद्धि: स्याद् भक्तियुक्तस्य पार्वति ॥१०॥
||इति श्रीरुद्रयामले बगलामुखी कवचं सम्पूर्णम्||
Shiro may Bagla patu hriday may kakch ri para.
Om hreem om may lalate ch Bagla vairi nashinee [1]
Gada hastaa sadaa paatu mukham may moksha daayinee.
Vairi jihwaadharam paatu kantham may Baglamukhi [2]
Udaram nabhidesham ch paatunityam paraatparaa.
paraat partaraa paatu mamguhayam sureshwaree [3]
Hastau chaiv tatha paadau Paarvatee paripaatumay.
Vivaaday vishmay ghoray sangramay ripu sankatay [4]
Peetambardharaa paatu sarvangay Shivnartakee.
Shrividya samayaa paatu maatangee puritashivaa [5]
Paatu putram sutam chaiv kalatram Kaalikaa mam.
Paatu nityam bhraatram may pitram shoolinee sadaa [6]
Randhrey hi baglaa devyaah kavacham manmukhoditam.
Naiv deyam mukhyaaya sarvasiddhi paradaayakam [7]
Pathnaadhaarnaa dasya poojana dwanchitah labhet.
Idam kavacham gyatvaa yo japed Baglamukhem [8]
Pibati shonitam tasya yoginayah praapya saadaraah.
Vashye chaakarshanay chaiv maarnay mohanay tathaa [9]
Mahaabhaye vipattau ch pathedwa paathyettu yah.
tasya sarvaarth siddhih syaad bhakti yuktasya Paarvati [10]
||Iti Shri Rudrayaamalay baglamukhee kavacham Sampoornam.||
🚩🚩🚩जयश्रीमहाँकाल 🚩🚩🚩
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।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
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चेतावनी-🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।
🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
जवाब देंहटाएंहमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझा जाएगा और उस पर (कॉपी राइट एक्ट 1957)के तहत दोषी पाये जाने की स्थिति में तिन वर्ष की सजा एवं ढ़ाई लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।अतः आपसे निवेदन है पोस्ट पसंद आने से शेयर करे ना की पोस्ट की चोरी।
चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।
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