||शिवासन,गुरु तक पहुचने का सरल मार्ग||
इस संसार में जो कुछ भी ब्रह्मांड में उपस्थित है वह सब हमारे शरीर में भी विद्यमान है ब्रह्मांड में उपस्थित सूर्य चंद्रमा तारे यह सारे हमारे शरीर के भीतर ही उपलब्ध हैं जो ब्रह्मांडीय उर्जा ब्रह्मांड में उपलब्ध है ब्रह्मांड में जिस ऊर्जा का चारों ओर फैलाव है उसी उर्जा का हमारे शरीर के भीतर भी फैलाव है वह ऊर्जा हमारे भीतर भी संचरण करती रहती हैं और मूलाधार में उपस्थित कुंड के अंदर यह उर्जा एक छोटे से तालाब के भारतीय जमा रहती है जैसे ही इस कुण्ड में तालाब में ऊर्जा की अधिकता होती है यह ऊर्जा अपने गंतव्य सहस्त्रार की ओर बहने लगती है या काम भाव का रूप ले कर इसका अंत हो जाता है
आसन !
आसन के विषय में आपने सुना होगा की किसी भी प्रकार की पूजा अनुष्ठान करने के पूर्व आसान का होना आवश्यक है किंतु क्या इस आसन का होना सभी प्रकार की पूजा पाठ में आवश्यक है? यह अपने आप में एक प्रश्न है ब्रह्मांडीय उर्जा जो कि ब्रह्मांड में पहले से उपलब्ध है एवं आपके मस्तक से सहस्त्रार चक्र से होते हुए वह आपके शरीर के भीतर प्रवेश कर जाती है एवम आपके दोनों पैरों से गुजरते हुए वह धरती मैया की गोद में समा जाती हैं ।
यह प्रकृति का नियम है जहां सकारात्मक पॉजिटिव होगा वहां पर निगेटिव भी होगा और जहां पर भी सकारात्मक पॉजिटिव एवं नकारात्मक निगेटिव होगा वहां पर इन दोनों बिंदुओं के बीच में सूर्य का ताप अवश्य होगा ।सूर्य का जलन अवश्य होगा। जिस प्रकार के निवास स्थान में बल्ब का प्रयोग किया जाता है लाइट का उपयोग किया जाता है ।उसी प्रकार जैसे ही हम किसी स्विच में दोनों तारों का प्रवेश करते हैं वैसे बल्प जल उठता है उसी प्रकार जब तक यह दोनों उर्जा जुड़ी रहेगी तब तक आप जीवित रहेंगे या सम्पूर्ण ऊर्जा प्राप्त होती रहेगी ।
आसन का मूल सिद्धांत इसी के ऊपर निर्भर करता है आसन एक प्रकार का विद्युत का कुचालक होता है आसन के सिद्धासन की अवस्था में ब्रह्मांडीय उर्जा आपके मस्तक से होते हुए नीचे की ओर जाती है किंतु आसन लगे होने के कारण वह आपकी रीढ़ की हड्डी से नीचे उतर नहीं पाती ऐसी अवस्था में ऊर्जा का प्रभाव बढ़ता रहता है और ऊर्जा अपने गंतव्य की ओर अर्थात मस्तक की ओर पुन्हा प्रभावित होने लगती है आसन के विषय में खास करके ये समझना है जैसे सिद्धासन पद्मासन वज्रासन शवासन इनको शास्त्रों में आसन कहा गया है ।बहुत सी भ्रांतियां आसन के विषय में समाज में फैली हुई है आप ही सोचिए इस धरती से दूर होकर धरती से विरक्त होकर आप कैसे जीवन जी सकते हैं ।आप को संसार में जो कुछ भी लाभ चाहिए धन का हो नाम मान-सम्मान शोहरत गाड़ी घोड़ा बंगला जो कुछ भी हो वह आपको धरती मैया की शरण में ही रहकर मिल सकता है आकाश में ज्ञान के अलावा कुछ नहीं है और ज्ञान कहता है कि माया तुच्छ है ।किन्तु ठीक इसके विपरीत ये ज्ञान धारी गुरु कहलाने वाले अधिकतर महात्मा पूर्ण रूप से माया की चपेट में है ।इन धर्म गुरुओ के पास करोड़ो की संपत्ति है ,ये उच्चस्तर के वाहनों का उपयोग करते है और इनके बड़े बड़े ऐसी युक्त आश्रम है जो की माया नहीं तो और क्या है?ज्ञान बताने का अलग सा हो गया है एवं स्वयं उपयोग करने के लिए अलग सा।।।
आध्यात्मिक मार्ग,दो प्रकार का मार्ग है या तो आप सकारात्मक सकारात्मकता की ओर विचरण करें या आप नकारात्मकता की और विचरण करें ।नकारात्मक को ही काली शक्ति का नाम दिया गया है जिसकी अधिष्ठात्री देवी महाकाली है और सकारात्मक को गुरु का स्थान दिया गया है शिव शम्भू महादेव का नाम दिया गया है। इस कलिकाल में इस कलयुग में सर्वप्रथम तो आप यह निश्चय कर लें कि आप क्या चाहते हैं ?
क्या आप सुखपूर्वक जीवन चाहते हैं? क्या आप धन की इच्छा रखते हैं ?
या ज्ञान की इच्छा रखते हैं ?ज्ञान और धन दोनों एक साथ प्राप्त नहीं हो सकता दोनों विपरीत विचारधारा है |सर्वप्रथम आपको समझना होगा और यदि आप चाहते हैं कि आपके पास यह दोनों एक साथ विद्यमान हो जाएं ,एक साथ एकत्रित हो जाए तब आपको विद्युत के समान, बल्प के समान जलना होगा,दीपक की तरह जालना होगा ।एक ऐसा दीपक जो जल कर दूसरे को रोशनी देता है किंतु स्वयं जलता रहता है ।अर्थात आपको इस धन और ऋण ऊर्जा का न्यूटल बिंदु बनना होगा, इस बिंदु को शास्त्रों में विष्णु का स्थान दिया गया है जिसके अंदर सात्विक तामसिक राजसिक इत्यादि तीनों ही गुण विद्यमान है गुरु की पूजा करने के लिए आसन की आवश्यकता पड़ती हैं आसान किसी भी प्रकार का हो ।कम्बल का आसान हो या व्याघ्र चर्म का हो या फिर किसी प्रकार हो ,इससे आपकी उर्जा का धरती में समावेश नहीं होगा। इसके विपरीत जो लोग भजन करते हैं पूजन करते हैं आपने देखा होगा कि वह खड़े होकर भजन करते हैं ऐसी अवस्था में उनकी उर्जा मस्तक से पैरो के द्वारा धरती की ओर बहती है एवं उनके गुण दोषो को एकत्रित करते हुए,उनके गुण दोषो को लेते हुए धरती में समाविष्ट हो जाती है। सामान्य सी विधि है जिसके अंदर सकारात्मक ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है एवं नकारात्मक ऊर्जा ,नकारात्मक स्थानों से धरती में प्रवेश कर जाती है |आसान की अवस्था में आपके शरीर की ऊर्जा धरती मैया तक नहीं पहुंच पाती अवशोषित नहीं हो पाती ऐसी अवस्था में वह ऊर्जा वापस अपने गंतव्य से ऊपर की ओर मुड़ने लगती है और सहस्त्रार की और जाने लगती है किंतु यह गुरु का मार्ग है ज्ञान का मार्ग है ।
ठीक इसके विपरीत मूलाधार की साधना है देवी की साधना है जो कि मूलाधार से प्रारंभ होकर सहस्त्रार की और इसका गंतव्य होता है किंतु इस अवस्था में यदि आसन लगाया जाए तो मूलाधार का संबंध धरती की ऊर्जा से नहीं हो पाता है अतः दैविक शक्ति, देवियों की शक्तियों को प्राप्त करने के लिए, धरती मैया की शक्ति को प्राप्त करने के लिए ,आपको अपने आपको धरती से जोड़कर ही साधना करना होगा| यह बात अलग है कि जो उर्जा धरती से प्राप्त होती है उसे आप सहस्रार तक ले जा सकते हैं किंतु कुंडलनी की साधना में धरती से उठने वाली उर्जा को अलग अलग से चक्रो पर व्यवस्थित करना होता है और आवश्यकता के अनुसार ही अलग अलग से चक्रों पर इनको प्रेषित करना होता है ।जिससे ये चक्र अपने स्थान में गति में घूमने लगते हैं और एक प्रकार की ऊर्जा का संचारण होता रहता है ।
।।क्रमश:।।
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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