!!आशीर्वाद ।।
जो जैसा करता हैं वैसा ही भरता हैं ???????
यदि हम किसी का भाग्य बदलने का प्रयास करते है तो,
हम प्रकृति के नियमो को तोड़ते हैं। हम कौन होते है किसी के भाग्य को बदलने वाले।।
जो जैसा करता हैं वैसा ही भरता हैं जो जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है।
बहुत से लोग ये दावा करते हैं की वे भाग्य की लेखनी को बदल सकते हैं ।और ऐसा होता भी हैं ।जब वह आप पूजन प्रार्थना को पूर्ण कर संकल्प शक्ति द्वारा उस पूजन का फल शरणार्थी को समर्पित कर दे तो।
किन्तु ऐसा होता कहा हैं।
प्रकृति का नियम हैं समानता का,प्रकृति हिसाब बराबर कर देती हैं।यदि आपने किसी शरणार्थी,मित्र बन्धु या अन्य लोगो को कोई भी भाग्य बदलने का उपाय बताते है या आशीर्वाद प्रदान करते हैं तो इसका मतलब साफ़ हैं की आप के कहने से,या उपाय,आशीर्वाद से तो शरणार्थी का कष्ट निश्चित रूप से टल जाएगा ।किन्तु आपके उपाय-आशीर्वाद से ये कार्य हुआ हैं।आपके आदेश से कार्य सफल हुआ हैं इसीलिए आपको शरणार्थी के कष्टों को भुगतना होगा।।क्योकि उनको कष्ट उनके अपने कर्मो के कारण भुगतना पड़ रहा था ।और आपने प्रकृति के न्याय के नियम के विरुद्ध कार्य किया हैं। ई श्वर बनने का प्रयास किया हैं कर्ता बनने का प्रयास किया हैं। उपाय करना ही पूजा पाठ है।
इस संसार में कुछ भी नष्ट नहीं होता मात्र रूप बदलता हैं।
100 ग्राम पानी को जलाने से उतनी ही 100 ग्राम भाप बन जायेगी मात्र रूप बदलेगा अस्तित्व नहीं।।।
किसी भी प्रकार की तान्त्रिक प्रक्रिया, कुदरत के नियमो के खिलाफ है। सब पूर्वार्ध से निश्चित हैं किन्तु अपने कष्टों से मुक्ति के लिए प्रार्थनाओ का सहारा लिया जा सकता हैं क्योकि ,प्रार्थना मात्र एक याचना होती हैं ईश्वर से। ईश्वर ने ही सब रचा हैं और वही उस लेखनी को मिटा भी सकते हैं।। यदि हम स्वयं सच्चे मन से प्रार्थना करते हैं तो वो ईश्वर तक पहुचती भी हैं ।
किन्तु प्रार्थना में भावनाओं की आवश्यकता होती हैं ।और भावनाए हमारे लिए किसी और में कैसे जगाये?? आप अपने पेट के दर्द को कैसे किसी को बता सकते हैं की कितना दर्द हो रहा हैं ।या तो कहोगे बहुत हो रहा हैं या थोड़ा हो रहा है इसमे भी सामने वाला नहीं समझ सकता ।।।दर्द का कोई माप नहीं हैं,पैमाना नहीं होता।
एक व्यवसायीक व्यक्ति प्रार्थना तो कर सकता हैं किन्तु प्रार्थनाओ को प्रेषित नहीं कर सकता।।क्योकि प्रेषित करने के लिए भावनाओं का होना आवश्यक होता हैं। और सच्ची भावनाए तब ही पैदा होती हैं जब खुद पे बीतती हैं।। दुसरे का दुख सूना जा सकता हैं समझा जा सकता हैं किन्तु अनुमान तो वही लगा सकता हैं जिसपे स्वयं बिति हो।
पूजा का मतलब पूरा ले और जा होता हैं
जितने भी वचन आपने औरो को दिए हैं उन्हें सही तरीके से निभाना ही सच्ची पूजा हैं। जब सब वचनो से मुक्त हो जाओ तो वहि "सच्ची मुक्ति "हैं।।।
यदि आप किसी को "आशीर्वाद" देते हैं तो वो फलीभूत तो होगा ही ये निश्चित हैं किन्तु जिसको दिया हैं उसके कष्टों को आशीर्वाद देने वालो को भुगतना होगा ।क्योकि आशिर्वाद देने के लिए एक ऊर्जा की आवश्यकता होती हैं और ये ऊर्जा हर मानव में चाहे वो स्त्री हो या पुरुष दोनों में सामान्य रूप से बनती रहती हैं चाहे वो अच्छे कर्म करने वाला हो या बुरे।
इस ऊर्जा का निर्माण हमारे अच्छे कर्मो से पैदा होती है ।जैसे की बचपन से अभी तक यदि किसी को गिफ्ट दिया हो,दान दिया हो,भूखे पशुओ को भोजन दिया हो, या पूर्वार्ध के कर्म फलो के अनुसार ।या जिन कर्मो को करने आत्मा को प्रसन्ता मिले । सकुन मिले ।
इस ऊर्जा का आजीवन हमारे भीतर संग्रह होता रहता हैं ।।आशीर्वाद देने,वचन न निभाने की अवस्था में इस ऊर्जा का ह्रास तेजी से हो जाता हैं।यही सत्य हैं।
तंत्र मंत्र यंत्रो द्वारा कष्टों को दूर तों किया जा सकता हैं भगवान ने ये सब के लिए निजी रूप से बनाए हैं। व्यवसाई करण हेतु नहीं बनाए। इसे खुद ही करना होता हैं।किसी के पास इतना समाया नहीं की वो किसी और के लिए इश्वर से मांगे और यदि ई श्वर उसके सामने प्रकट भी हो जाए तो वो अपने लिए मांगेगा आप के लिए नहीं।बहुत कम लोग हैं जो संकल्प शक्ति से प्रत्यारोपण की क्रिया जानते हैं।।
मंत्रो में दो विभाग होते है एक याचना मंत्र जो प्रभु से झोली फैला कर की जाती हैं और दूसरा हैं मजबूर करके माँग पूरी करना जैसे मन्नत,डोर बांधना,कसम देना,भूखा रहना इत्यादि।
प्रथम विभाग सर्वोत्तम हैं जिसमे प्रकृति के नियम नहीं टुटते।
और इसके दुष परिणाम नहीं होते ।।।
दुसरे विभाग से भी कार्य होते हैं किन्तु एक कार्य होता हैं और सौ बिगड जाते हैं।।।
भोलेनाथ महादेव तो स्रष्टि के रचयिता है ।वे तो एक ऐसे निर्माण करता हैं जो जीवन भी देते है और मृत्यु भी,वे विष भी बनाते हैं और अमृत भी ।।।आप जो मांगोगे वे वही देंगे।।। आपकी इच्छा आप जो मांगो।
कोई किसी के कष्ट को नहीं हरता यदि हरता तो हर माता अपने संतानों के कष्टों को स्वयं ही हर लेती किन्तु ऐसा होता कहा हैं।
सब "ठगनी विद्या "है सब "महामाया का जाल" हैं। सब गड़बड़ घोटाला हैं।
गलती किसकी हैं ।उन लोगो की जो थोड़ा सा धुँआ और लोभान की खुशबू कही से उड़ता देखते हैं तो बाबा जी ,बाबा जी कहते हुए पहुच जाते हैं।।। और बाबा जी तो तैयार ही बैठे हैं कष्टों को हरने के लिए ।।
कुछ दिनों पहले मै दिल्ली गया था मैंने अक्षर धाम की कलाकृतियो की बहुत तारिफ़ सुनी थी मै देखने चले गया बहुत सुन्दर निर्माण हुआ है "अक्षरधाम" का।
वहाँ की कलाकृतियों को देखते देखते एक कलाकृति के सामने मै स्तंभित हो गया ।जो मैंने देखा ,मैंने समझा! जो मेरा नजरिया हैं।
हो सकता है जिसने उसे बनाया हो उसकी कुछ और सोच हो। मैंने देखा उस कलाकृति में एक व्यक्ति दाड़ी बडाये एक पैर पे खडा हो कर साधना कर रहा है । मुझे लगा वो साधु महात्मा है ।और एक चुहा दोनों हाथ जोड़ कर साधू की अराधना कर रहा हैं। थोड़े देर देख कर मै आगे बड गया ।किन्तु मन को चैन कहा था। मै सोचता रहा चुहे को साधु से क्या कार्य?
चुहा साधू की भक्ति क्यों करता हैं ?
किन्तु जवाब न मिलने की दशा में मैंने वापसी में फिर से उस स्थान पे जाने का निर्णय किया। और जब दूसरी बार मैंने ध्यान से देखा, उस कलाकृति में दाड़ी बढाया हुआ साधु ,साधु नहीं था वो बिल्ला था !
जो अपने भोजन के लिए अजगर के समान भेष बना कर खडा था की चुहा उसके पास आये और वो उस पे झपट पड़े।।।
शायद अजगर को ही उसने गुरु धारण किया था क्योंकी शिष्य कभी भी गुरु के कार्यो को जीवन में ढालने का प्रयास करता हैं।यही सत्य दिखा मुझे।।।
मै ये नहीं कहता की सारे साधु ऐसे ही हैं ।किन्तु भगत को बेवकूफ बनाना आसान होता है उसके विश्वास से खेलना आसान होता हैं ये देखते हुए बहुत से लोगो ने अपना रूप बदल लिया हैं।। किन्तु उन्हें साधु नहीं "बहुरुपिया "कहते है ।
सिद्ध साधुओ से भी मैंने भेट की है वे दिन दुनिया से परे होते हैं और उनके पास कुछ नहीं होता देने के लिए सिवाय पवित्र भस्म और आशीर्वाद के । ना रुद्राक्ष,ना कोई पत्थर.......
उनके पास अपनी साधना की शक्ति होती हैं जो उनहोने सब सुखो का त्याग करके,अच्छे कर्मो द्वारा प्राप्त की होती हैं।और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने का मार्ग उनके हृदय के भीतर से हो कर गुजरता हैं। यदि वे प्रसन्न हो गए तो उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता हैं।
कोई भी कार्य बिना ईश्वर की मर्जी के नहीं होते।। यदि आप दुखी हैं तो वो भी ईश्वर की मर्जी से और कोई सुखी हैं तो वो भी ईशवर की मर्जी से।।।।।
कुछ भी ना करे मात्र ईश्वर की शरण में रहे। अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेगे।।।
बस समर्पण करे,अपने आपको करता ना समझे यही सर्वोत्तम उपाय है।। यही सच्ची भक्ति हैं।।।।
मेरा उद्देश्य किसी भी प्रकार से किसी भी व्यक्ति धर्मं का अपमान करना नहीं हैं।।। मै तो मात्र ये कहता हु की चेतन रहे,सजग रहे और सावाधान रहे ।कही किसी मोड़ पे आपकी मुलाक़ात किसी बहुरूपिये बिल्ला साधू से ना हो जाए।।। स्वयं अपने लिए प्रार्थना करे। और मित्रो-बन्धुओ को भी प्रार्थना करने का निवेदन करे।
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझा जाएगा और उस पर (कॉपी राइट एक्ट 1957)के तहत दोषी पाये जाने की स्थिति में तिन वर्ष की सजा एवं ढ़ाई लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।अतः आपसे निवेदन है पोस्ट पसंद आने से शेयर करे ना की पोस्ट की चोरी।
चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।
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