||अघोरी ||साधना का सच्चा मार्ग
"ॐ गुरूजी शिवगोरख सरकार"
अघोरी को समझने के पूर्व घोर को समझना होगा।घोर घनघोर तो महादेव है जो शुन्य है ।उनका शिष्य या भगत ही अघोरी कहलाता है।एवं देवी आदिशक्ति का शिष्य या भगत "तांत्रिक"कहलाता है ये सामान्य से परिभाषा है।बहुत सी किताबो में ,बहुत सी पोस्टो में अघोर एवं अघोरियों के घृणित एवम् भयकर मानसिकता के व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जो की गलत है।
उदाहरण स्वरूप समझे जिनका विवाह नहीं होता उन्हें "कुँवारा" कहा जाता है।इसका मतलब ये तो नहीं की उसके सर पे अलग से सिंग निकल आया हो।।कुँवारा एक सबद मात्र है जो उस व्यक्ति की वर्तमान अवस्था को दर्शाता है।उसी प्रकार "अघोरी"एक वर्त्तमान अवस्था होती है।
अघोरी के पद के बाद ,अन्य अवस्थाये भी होती है।अघोरियों की साधना के विषय में,उनकी दिनचर्या में ,उनका शव साधन करना,शव भक्षण करना,शवो के साथ सहवास करना,मदिरा का सेवन करना इत्यादि पढ़ने को मिलता है।किन्तु ऐसा नहीं होता।
अपने जीवन काल में अघोरी रोज शव साधन नहीं करते,दिन रात मुर्दे पे बैठे नहीं
रहते,दिन भर शराब पि कर नहीं विचरण करते,दिन भर मल-मूत्र नहीं खाते रहते।
किन्तु प्रारम्भिक स्तर में तो भय ,घृणा,ममता इत्यादि भावो को दूर करने हेतु इस कृत्रिम अवस्था एवं स्मशान की और अग्रसर अवश्य होते है।शव भक्षण इसी के अंतर्गत है एक बार शव भक्षण करने से भय दूर हो जाता है आवश्यकता अनुसार एक या दो बार और भक्षण भी किया जा सकता है।इस भय को दूर करने हेतु चिता भस्म का उपयोग भी किया जाता है।बार बार इस क्रिया को नहीं किया जाता।
जिस प्रकार सरिताओं को पार करने हेतु उसमे उतरना ही पढता है उसी प्रकार पंचमकार की साधना में इन मकारों को साधना ही होता है।
इसके विपरीत अघिक गहराई में उतर कर देखा जाए तो आप अघोरी के सही मायने को समझ पायेगे।अघोरी वो जिसका स्वयं का शरिर ही शव रूप हो जाता है।और अघोरी वो,जो अपने ही शव के साथ सह वास करता रहता है।एक तो अघोरी स्वयं।होता है और वो अपने ही शरीर के साथ वास करता रहता है।
अघोरी वो जो साधना के अंतर्गत अपने ही शरिर के मांस का भक्षण करता रहता है।क्योकि साधना के अंतर्गत जब वो महान ऊर्जा जागती है तब वह सर्वप्रथम अपने ही शरीर के मांस का भक्षण करती है।इस अवस्था में अघोरी मल-मूत्र से भी दूर हो जाता है।वो अपने मल-मूत्र को भी आंतरिक भोग कर ऊर्जा में परिवर्तित कर लेता है।इसे ही मल-मूत्र का एवं मांस भक्षण कहा जाता है।साधना काल में जब भीतर मंथन होता है तब उसमे से "मद"का निर्माण भी होता है किन्तु इसे शराब नहीं कहा जा सकता है।यह एक दिव्य रस(हार्मोन्स) होता है जो सहस्त्रार(ग्लैंड)से इसका रिसाव होता रहता है जो आनंद दायक एवं मदहोश करने वाला होता है।इसी प्रकार अन्य क्रियाएँ भी वे करते है ।खेचरी भी इस की एक विशेष मुद्रा है।
किन्तु सिर्फ अघोरी ही इन क्रियाओ को करे ये आवश्यक नहीं।सामान्य व्यक्ति भी जब साधना के मार्ग में गुरु आशीर्वाद से प्रशस्त होता है तो वो भी इस "अघोर अवस्था"में पहुच ही जाता है।
साधक अघोर रूपी अवस्था को पार कर ही शिव बन पाता है शिव स्वरूप बन पाता है।यहाँ समझने का विषय यह है की शिव भी एक अवस्था ही है।एक ऐसी अवस्था जहा नाम-सम्मान,मोह माया,या अन्य 9 भावो का कोई अस्तित्व नहीं होता है।शिव हो जाना मतलब शव हो जाना है।भावनाओ से विहीन एक ऐसा व्यक्तित्व जो क्षण में आवश्यकता नुसार भाव बदल सकता हो।कभी क्रोधी,कभी भोला,कभी भोगी तो कभी योगी की अवस्था ।बस इस अवस्था में सामान्य व्यक्ति में एक अंतर है।की सामान्य व्यक्ति के भीतर ये अवस्थाएँ बिना अंकुश एवम् ज्ञान के होती है वही महादेव में उनके स्वयं के निर्देश पे ,स्वयं के भीतर ,पूर्ण होश में।।।मतलब पूर्ण यांत्रिक अवस्था जैसे रोबोट होते है।भावना विहीन !वे मात्र निर्देशो का पालन करते है उनपे विचार नहीं करते।।
इस पोस्ट को पढ़ने के बाद इसमें कुछ त्रुटि होने से,सही मार्ग दर्शन का प्रयास करे।इस पोस्ट को पढ़ने के बाद यदि यहाँ उपलब्ध अघोरी भाइयो को कोई कष्ट पहुचा हो तो क्षमा करे।पोस्ट को लिखने का उद्देश् किसी का अपमान करना नहीं है।
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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