।। महानायक महागुरु शिव।।
"आपने सूना है कोई ऐसा वाहन होता है जिसका चालाक वाहन से बाहर रह कर वाहन चलाता हो।"
शिव ही सनातन है शिव से प्रथम कोई नहीं है राम ने भी शिव को ही भजा।सभी ऋषियो ने शिव को भजा किन्तु शिव शिव भजते जैसे ही साधक पे शिव की कृपा होती है तो सर्व प्रथम साधक में भस्मासुर ही पैदा हो जाता है।साधक पहले शिव को गुरु मानता है और सिद्धि के बाद वह स्वयं को गुरु मानने लगता है।फिर यात्रा प्रारम्भ होती है शिष्य बनाने की,शिष्य के मंदिर में अपनी छवि स्थापित करने की।ये कार्य यु ही चलता रहता है,बहुत से सिद्धात्मा आये और शिव के स्थान पे स्वयं को स्थापित करने के प्रयास में खो गए।आप सोचिये उस निराकार परमेश्वर को अपने एजेंट बनाने की क्या आवश्यकता?वो तो कण कण में उपस्थित है,वो तो क्षण भर में किसी के भी मन में विचार बन कर पैदा हो सकता है।आप अपनी साधना में प्रशस्त रहे किसी की ना सुने जब तक भीतर से आवाज ना आये।बहुत से लोग मिलेगे आपके मार्ग को बदलने के लिए,आपकी साधना को भटक देने के लिए किन्तु आप अडिग रहे स्वयं पे विशवास रखे।बहुत आयेगे गुरु बनने,या फिर उन गुरुओ के भी एजेंट आयेगे अपने गुरु का झूठा प्रचार करने ,वे कहेगे मेरा गुरु महान है तो कोई कहेगा की मेरा गुरु महान है किन्तु इन शिष्यो का गुरु कभी ये नहीं कहेगा की मैं महान नहीं ही,मैं शिव नहीं हु या अपने मंदिर से मेरी तस्वीर हटा दो।इंसान इंसान को क्या दे सकता है सिवाय प्रेम के ,मात्र यही पूंजी है मानव की।
गुरु तो वो जो मार्ग दिखाए वो नहीं जो मार्ग में छोड़ जाए।याद करे की वो कौन है जिसने गुरु तक आपको पहुचाया।वो गुरु कैसा जो आपको स्वयं से ना मिला पाया हो।
गुरु तो आपके साथ उस दिन भी थे जिस दिन आपने जन्म लिया होगा,गुरु उस दिन भी साथ ही होंगे जब आपने इस गर्भ में आने का विचार दिया होगा।
वो कौन है जो आपसे विचारो के माध्यम से रोज बात करता है?
वो कौन है भीतर जो आपकी गलती पे आपको शर्मिन्दा करता है और मार्ग दिखाता है?
गुरु तो वो जो ज्ञान दे और जताए भी नहीं ।और ज्ञान तो सूर्य से ,ग्रह नक्षत्रो से,जीव जंतु वनस्पतियो से भी प्राप्त होता है इसी कारण वष हिन्दू धर्म में इन सभी को देवताओ की संज्ञा दी गई है।भगवान दत्तात्रेय ने 24 गुरु को माना क्योकि उन्होंने 24 सो से ज्ञान की प्राप्ति की किन्तु उन 24 की फोटो बना कर गुरु दत्तात्रेय मंदिर में या गले में लटकाकर नहीं घूमते रहे।
सजग रहे अपने भीतर की गुरु गादी पे स्वयं को शिव स्वरूप समझ के स्थापित करे।।बाहर तलाश ना करे यदि बाहर पूछा तो बाहर का व्यक्ति समझ जाएगा की इसको अभी मिला नहीं और वो फिर एक नया भटकने का काम देगा।
अपनी आँखों को मूँद लीजिये ,अपनी भृकुटियों पे ध्यान दीजिये और सहस्त्रार की गुरु गादी पे स्वयं को स्थापित कीजिये उस मुद्रा में जिसमे महादेव ध्यानस्त रहते है।रोज गुरु गादी का पूजन करे।रोज ध्यान करे।नित्य जब आईने के सामने जाए तो अपने प्रतिबिम्ब में भी भगवान का अवलोकन कर नमन करे।
आपका मार्ग दर्शक आपके भीतर है बाहर नहीं क्या कभी आपने सूना है कोई ऐसा वाहन होता है जिसका चालाक वाहन से बाहर रह कर चलाता हो।
नहीं ऐसा नहीं होता...
आपका सारथि आपके भीतर है
बस आवश्यकता है उसे निर्देश देने और निर्देश लेने का...
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
******राहुलनाथ********
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।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
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