प्रकृति के रहस्यो को उजागर करने की गुरुओ द्वारा मनाई है इन रहस्यो को उतना ही खोला जाना चाहिए,जिससे कि दूसरे में रहस्यो को ढूंढने की कामना पैदा की जा सके।क्योकि जो प्रकृति के रहस्यो की तलाश करता है उसे प्रकृति स्वयं सब बताने लगती है किंतु आप ही सोचिये की कितने प्रतिशत लोग इन रहस्यो की तलाश करते है?
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©
राहुलनाथ,भिलाई
ब्लॉग साइड पे दिए गए गुरुतुल्य साधु-संतो,साधको, भक्तों,प्राचीन ग्रंथो,प्राचीन साहित्यों द्वारा संकलित किये गए है जो हमारे सनातन धर्म की धरोहर है इन सभी मंत्र एवं पुजन विधि में हमारा कोई योगदान नहीं है हमारा कार्य मात्र इनका संकलन कर ,इन प्राचीन साहित्य एवं विद्या को भविष्य के लिए सुरक्षित कारना और इनका प्रचार करना है इस अवस्था में यदि किसी सज्जन के ©कॉपी राइट अधिकार का गलती से उलंघन होने से कृपया वे संपर्क करे जिससे उनका या उनकी किताब का नाम साभार पोस्ट में जोड़ा जा सके।
गुरुवार, 13 जुलाई 2017
प्रकृति के रहस्य
बुधवार, 12 जुलाई 2017
जयमाला तंत्र रहस्य
जयमाला तंत्र रहस्य
जयमाला पे तंत्र द्वारा आपका अहित एवं उससे बचाव।।आज हम बात करते हैं माला तंत्र के बारे में,क्या आपने कभी सुना है माला तंत्र क्या होता है माला तंत्र से आशय है वह माला जो आपको धारण कराई जाती है किसी शुभ अवसर पर, सम्मान के अवसर पर,विवाह के अवसर पर । यह माला अपने अंदर बहुत से गुणों को समाहित किए हुए होती है क्योंकि माला धारण करते समय आपका अवचेतन जागृत हो जाता है एवं आपका शीश झुका हुआ होता है।शीश का झुकना मतलब समर्पण एवं स्वीकार करने का भाव।इसी कारण इस माला में स्वीकार करने की शक्ति होती है जो भविष्य में आपको और अधिक मान-सम्मान प्रदान करती है।इस माला को धारण करने के बाद इसे जहां रखा जाता है उसका असर धारण करने वाले पे पड़ता है
इस माला के ऊपर तंत्र करना बहुत ही आसान होता है बहुत से जानकार लो जिस विद्या को जानते हैं वह इस माला को या तो इस स्मशान में गाड़ देते हैं या गड्ढे में गाड़कर उस पर लघुशंका करते हैं या फिर मल-मूत्र में विसर्जन कर देते है कुछ लोग इस माला के अंश को स्वमूत्र के साथ ग्रहण करते है डाकिनिया-शाकिनियाँ एवं तंत्र की जानकार स्त्रियां सामान्य रूप से रोज रोज इसका सेवन करती है। इन सभी विधियों को मंत्रों द्वारा या किसी विशेष प्रार्थना द्वारा किया जाता है
जिससे माला धारण करने वाले का मन कही नहीं लगता है उसका मन उचट जाता है,भीड़ से भय लगने लगता है वैवाहिक जीवन सुख रहित एवं क्लेश युक्त हो जाता है।
क्या कारण है की वे ऐसा करते हैं? कुंठा की दृष्टि से वह नाराज होते हैं वह आपसे चिढ़ते हैं क्योकि वे भी सम्मान चाहते है किंतु गलत सोच एवं कर्मो के कारण वे इस सम्मान से वंचित रहते है इसी कारण वह इस तंत्र को सिद्ध करते हैं इस तंत्र को करने के बाद धीरे धीरे माला धारी का जीवन से घृणा होने लगता है उसका वैवाहिक जीवन खराब होने लगता है।
भगवान शिव ने इस तंत्र का उपयोग समाज के कल्याण के लिए किया है किंतु हो यह सब रहा है क्योकि सिक्के के दो पहलू होते है इसी प्रकार सकारात्मक तंत्र का दूसरा पक्ष नाकारात्मक होता है जिसकी विधि सात्विक से विपरीत होती है।
आपने देखा होगा मेरी हर पोस्ट आपको इस विषय से बचाव का मार्ग दिखाती है इसी कड़ी में आज आप देखेंगे कि माला तंत्र से कैसे बचा जाए,इसका उपाय बहुत ही सामान्य है ऐसी जो भी माला आपको धारण कराई जाए सम्मान की दृष्टि से या फिर विवाह के समय,बस आप इस माला को किसी के हाथ न पड़ने दें जैसे ही आप माला उतारते हैं उसको एक लंबी सांस के साथ में सूंघ ले,उसकी खुशबू को सारे शरीर मे साँस के माध्यम से,भीतर ले जाए ,ऐसा तीन बार करे ,इसके बाद उस माला को बहते पानी मे,जलाशय में या फिर किसी सकारात्मक वृक्ष जैसे बरगद,पीपल,गुड़हल, आदि के वृक्ष पे डाल दे।बस आपकी इतनी सी क्रिया से वो माला अब किसी के काम की नही रहेगी।उसपे अब कोई तंत्र-मंत्र नही हो पायेगा। हमारी छोटी सी गलती हम को भविष्य में पीड़ा दे सकती है वह लोग जिनको कोई सम्मान नहीं मिलता,वे लोग जिनका विवाह नही होता, वह अक्सर सम्मानित लोगों से एवं वैवाहिक लोगो से कुंठा का भाव रखते हैं ऐसे में हमें इस विषय पर थोड़ा सा ध्यान रखना आवश्यक होता है तो ठीक है आगे फिर मिलते हैं नहीं किसी विधि के साथ,जन कल्याण के भावना के साथ,जीव कल्याण के साथ
जागरूक रहें सजग रहे अपना सम्मान करें
एवं समाज कल्याण करें
व्यक्तिगत अनुभूति एवं।विचार©₂₀₁₇
।। राहुलनाथ।।™भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए,एवं तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है अतः हमारी मौलिक संपत्ति है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये इस रूप में उपलब्ध नहीं है।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़(©कॉपी राइट एक्ट 1957)
चेतावनी-
हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है।यहां वैदिक-साबर-तांत्रिक ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर कुछ मंत्र-तंत्र संभंधित पोस्ट दी जाती है जो हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों की धरोहर है इसे ज्ञानार्थ ही ले ।लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की तंत्र-मंत्रादि की जटिल एवं पूर्ण विश्वास से साधना सिद्धि गुरु मार्गदर्शन में होती है अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे।
मृत्यु के बाद -भाग 2
मृत्यु के बाद -भाग 2
पूर्ण मृत्यु के बाद भी,चाहे उनको जला दिया जाए,गाढ़ दिया जाए या फिर पंछियो को खिला दिया जाए फिर भी उनका कुछ अंश जैसे उनका नाम और सूरत शेष रह जाते है इनके द्वारा उन्हें पुनः बुला के संपर्क किया जा सकता है ।
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राहुलनाथ,भिलाई
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क्रमशः
मृत्यु के बाद भाग -०१
मरा व्यक्ति किसी का सगा-संबंधी नही होता है वो मरने के बाद मरे लोगो को पसंद करने लगता है और मानवो का 90%शत्रु हो जाता है हा यदि आप किसी विधि द्वारा प्रसन्न कर सके तो,अपनी योनि की शक्ति के अनुसार वह आपकी सहायता कर सकता है।
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राहुलनाथ,भिलाई
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.क्रमशः
मंगलवार, 11 जुलाई 2017
श्रीयंत्र रहस्य
श्रीयंत्र रहस्य
आप चाहे जितना इसे हल्दी कुंकु चंदन लगा के पूजन कर लो या घीस लो ,गले मे लटका लो,तिजोरी में रख लो,ये अल्लादीन का चिराग नही है जो सब दे देगा।जब तक इसमे दिए गए दोनों त्रिकोण जो ,ऊपर और नीचे से आगे बढते है इनको मिलाने की विधि नही जान पाओगे कुछ प्राप्त नही होगा।स्मरण रहे ये दोनों त्रिकोण धन(+)एवं (-) के एवं पुरुष एवं स्त्री के प्रतीक है।
300 से 3000 तक मिलने वाले यंत्र से व्यक्ति धनपति या श्री पति बन जाता तो फिर हमारे देश मे गरीबी क्यो है ऐसे में तो रिक्शा वाला भी 2 या 3 दिन की रोजी बचाये तो वह इसे स्थापित कर ,धनपति बन सकता है क्या ऐसा हो रहा है?
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उच्चिस्ट गणपति साधना
उच्चिस्ट गणपति साधन ।।
व्यवसाय एवं नौकरी के लिए अमोघ प्रयोग
मित्रों भगवान शिव एवं गौरी पुत्र भगवान गणपति समस्त विघ्नों का नाश करने वाले,सभी कार्यों में सिद्धि देने वाले, तथा जीवन में सभी प्रकार से सुख सम्पदा देने वाले हैं।शास्त्रो में “कलौ चंडी विनायको” इस वचन के द्वारा कहा है कि कलियुग में दुर्गा और गणेश ही पूर्ण सफलता देने वाले भगवान हैं……
तुलसीदासजी ने राम चरित मानस में कहा है कि—-
“जो सुमिरत सिद्धि होय, गण नायक करिवर वदन |
करउ अनुग्रह सोई, बुद्धि राशि शुभ गुण सदन ||”
भारत के ही नहीं वरन विश्व के सभी साधक अपने कार्यों और समस्त साधना में सिद्धि हेतु गणपति की साधना करते ही हैं…..
भक्तों एवं साधको को जीवन में एक बार ये साधना अवश्य करनी चाहिए।
।।।साधना विधि ।।
यह प्रयोग शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी से प्रारम्भ करे. यह प्रयोग दिन या रात्रि के समय कर सकते है.इस साधना में आपको रक्तवर्णी लाल वस्त्र,आसान,पुष्प,फल एवं मिष्ठान का उपयोग करना चाहिए।साधना काल में उत्तर की ओर मुख कर,अपनी इच्छानुसार वस्तु का सेवन करे
जैसे:-
***किसी विशेष मनोकामना की पूर्णता के लिए सुपारी का प्रयोग करे।
***अन्न एवं धन-सम्पदा एवं नौकरी की प्राप्ति के लिए गुड़ का प्रयोग करे।
***सर्वसिद्धि के लिए मीठा पान(ताम्बूल)का प्रयोग करे।
***वशिकरण के लिए लौंग का प्रयोग करे।
एवं बिना पानी पिए या मुख शुद्धि के इस प्रयोग को प्रारम्भ करे।किन्तु मेरे गुरुदेव के कथनानुसार पूरी साधना में अपनी मनोकामना के अनुसार ,जो सामग्री बताई गई है वह मुख में लगातार रहनी चाहिए।
साधक सर्वप्रथम अपने समक्ष लकड़ी के तख्ते,चौरंग या बाजोट पर लाल रेशमी या साटन का वस्त्र बिछा दे।उस पर सवा मिट्ठी चावल को कुमकुम एवं गंगाजल मिलाकर रंगने के उपरान्त चौरंग पे एक ढेरी बनाए।उस चावल की ढ़ेरी के ऊपर सिद्ध प्राण प्रतिष्ठित नीम,सफ़ेद आक या रक्त चन्दन के अंगूठे के गणपति की स्थापना करे।नीम ,सफ़ेद आक या रक्त चन्दन के गणपति उपलब्ध ना होने की अवस्था में आप सिद्ध व प्राण-प्रतिष्ठित पारद गणपति विग्रह को स्थापित कर पूजन प्रारम्भ करना चाहिए।
।।गुरु पूजन।।
अब सर्वप्रथम सहस्त्रार स्थित श्री गुरुदेव के चरणों के विग्रह का ध्यान कर ,गुरु द्वारा प्रदत्त गुरु मंत्र का 108 बार जाप करना चाहिए।
गुरु मंत्र न होने की स्थिति में
गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।
कह कर "श्री गुरुभ्यो नमः"इस मंत्र का जाप करना चाहिए।गुरु को प्रसाद स्वरूप केसर युक्त खीर का भोग निवेदन करना चाहिए।
।।गणपति पूजन विधि ।।
।।करन्यास।।
**क्षां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः
**क्षीं तर्जनीभ्यां नमः
**ह्रीं सर्वानन्दमयि मध्यमाभ्यां नमः
**हूं अनामिकाभ्यां नमः
**कों कनिष्टकाभ्यां नमः
**कैं करतल करपृष्ठाभ्यां नमः
।।हृदयादिन्यास।।
**क्षां हृदयाय नमः
**क्षीं शिरसे स्वाहा
**ह्रीं शिखायै वषट्
**हूं कवचाय हूं
**कों नेत्रत्रयाय वौषट्
**कैं अस्त्राय फट्
।।श्री गणपति ध्यान तथा आवाहन।।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय,
लम्बोदराय सकलाय जगत् हिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञभूषिताय,
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते ॥
ॐ भूर्भुवः स्वः गणपते !
इहागच्छ इहातिष्ठ सुप्रतिष्ठो भव
मम पूजा गृहाण !
ॐ
गणानान्त्वा गणपति (गुँ) हवामहे
प्रियाणान्त्वा प्रियपति (गुँ) हवामहे
निधिनान्त्वा निधिपति (गुँ) हवामहे
वसो मम ।
आहमजानि गर्भधमात्वमजासि गर्भधम् ॥
देवों के प्रिय विघ्ननियन्ता, लम्बोदर भव-भय हारी ।
गिरिजानन्दन देव गजानन, यज्ञ-विभूषित श्रुतिधारी ॥
मंगलकारी दुःख-विदारी, तेजोमय जय वरदायक ।
बार-बार जय नमस्कार, स्वीकार करो हे गणनायक ॥
देव आइये यहाँ बैठिये, पूजा को करिये स्वीकार ।
भूर्भुवः स्वः सुख समृद्धि के, खोल दीजिये मंगल द्वार ॥
गणनायक वर बुद्धि विधायक, सदा सहायक भय-भंजन ।
प्रियपति, अति प्रिय वस्तु प्रदायक, जगत्राता जन-मन-रंजन ॥
निधिपति, नव-निधियों के दाता, भाग्य-विधाता भव-भावन ।
श्रद्धा से हम करते सादर, देव! आपका आवाहन ॥
विश्व उदर में टिका आपके, विश्वरूप गणराज महान ।
सर्व शक्ति संचारक तारक, दो अपने स्वरूप का ज्ञान ॥
न्यास ,ध्यान एवं आह्वाहन के बाद साधक निम्न मन्त्र की २१ माला जाप करे. यह जाप साधक रक्त चन्दन की माला से या मूंगा की माला से करे.
।।मंत्र ।।
01. ॐ क्षां क्षीं ह्रीं हूं कों कैं फट् स्वाहा
02. ॐ ऐम् ह्रीं क्लीं हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा।।
(दोनों मंत्र में से किसी एक का ही प्रयोग करे)
जाप पूर्ण होने पर साधक इसी मन्त्र के द्वारा आम की लकड़ी से अग्नि प्रज्वलित कर 227 आहुति लाल चन्दन के बुरादे से प्रदान करे.इस प्रकार ये एक दिन का प्रयोग हुआ,ऐसा 21 दिन लगातार करे।रोज हवन नहीं होने की स्थिति में 21 वे दिन 4647 आहुतिया दे कर प्रयोग संपन्न करे।
यह प्रयोग मेरे गुरुदेव द्वारा मुझे 2003 में बताया गया था।धन,नाम ,सम्मान,व्यावसायिक एवं नौकरी की समस्या में यह प्रयोग अमोघ है।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©2015
।। राहुलनाथ।।™
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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