रविवार, 11 दिसंबर 2016

शिव .. सुपर नैनो SUPER NANO

शिव .. सुपर नैनो SUPER NANO
एक बहुत ही सूक्षम अणु है जिसे आप अनु और परमाणु भी नहीं कह सकते है यह सभी स्थान में फैले हुए है ये हमारे चित्त के अणु भी नहीं है और ना ही मैं किसी विद्युत के अणु के विषय में लिख रहा हूँ।ये इनदोनो चित्तणुओँ एवं विद्युताणुओँ के बीच का स्तर है एवं पूर्णतः स्वतन्त्र सत्ता है।ये धनात्मक एवं ऋणात्मक भी,ये सकारात्मक है और नकारात्मक भी।ये पुरुष भी नहीं है और स्त्री भी।ये शब्दाणु भी नहीं है ये कंपन भी नहीं है।विज्ञान अभी तक "नैनो" कणों को ढूंढ पाया है किंतु मुझे ये "नैनो" से भी सूक्षम "सुपर नैनो" ही लगता है।इसे इसके गुणों के आधार पर आप "सकारात्मक सुपर नैनो"एवं नकारात्मक सुपर नैनो" कह सकते है। परंतु इसको मैंने "सुपर नैनो" ही मात्र कहा है।
इस सुपर नैनो के बिना हमारा जीवन कुछ भी नहीं है इसका आकर्षण मानव या अन्य जीवों के विचारों पे निर्भर करता है।आपके सकारात्म विचार "सकारात्मक सुपर नैनो" को आपके भीतर आकर्षित कर आपके जीवन में आपको सुन्दर,हष्ट-पुष्ट और चमकदार व्यक्तित्व प्रदान करते है।इसके ठीक विपरीत नकारात्म विचार "नकारात्मक सुपर नैनो" को आकर्षित कर आपके जीवन से हर्ष उल्लास एवं सुखों का हनन कर देते है।इसमें इन नैनो अणुओं का कोई दोष नहीं होता ये सुपर नैनो आपके विचार के अनुसार ही आपको विष या अमृत प्रदान करता है।
इसको सही मात्रा में आकर्षित करना ही तंत्र है जिससे सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों स्थितियों का निर्माण किया जा सकता है इनका आकर्षण करने की विधि ही "संकल्प" कहलाती है जैसा संकल्प होगा वैसे ही परिणाम हमें प्राप्त होते है।
यदि आप प्रातः जागते है और आपके माता-पिता या गुरु आशीर्वाद प्रदान करते है,कोई मित्र सुबह सुबह कोई उपहार देते है,कोई आपकी प्रशंसा करता है,कोई आपके कार्यो के प्रति आपको बधाई देता है तो इस के परिणाम स्वरूप आपके जीवन में "सकारात्मक सुपरनैनो" आपके जीवन में प्रस्तुत हो कर आपके मुख का तेज बड़ा देते है और ठीक इसके विपरीत आप प्रातः काल जागते है और आपके गृह द्वार पे कोई,निम्बू,नारियल,पुतला,राख,
विष्ठा,मांस,रक्त इत्यादि रखा दीखता है तो ये सब कर्म आपके जीवन में "नकारात्मक सुपरनैनो"को आकर्षित करते है।यहां मैंने जाना की जो "सुपर नैनो "है उसके सारे गुण वेद-पुराणों के अनुसार" शिव" से मेल खाते है।इसी कारण सारा तंत्र यंत्र मंत्र शिव के मुख से निकला है ऐसा बताया जाता रहा है।यहां शिव या "सुपरनैनो"एक साधारण होते हुए भी महत्वपूर्णी सत्ता है क्योकि जो विष एवं अमृत दोनों का निर्माण करता है वो इनके भेदो को भी जानता है।
सही तंत्र "सकारात्मक सुपर नैनो" को आकर्षित कर जीवन यापन करना सिखाता है जैसे सुबह जल्दी उठना,रात्रि को जल्दी सोना,व्यायाम करना,समय पे भोजन योग करना इत्यादि।
शिव मुख तंत्र की दोनों धाराएं ऐसी का घोतक है वाम मार्गी या दक्षिण मार्गी।
एक तरफ पूर्ण सकारात्मक सत्ता है शिव(+),एक तरफ पूर्ण रूप से नकारात्मक सत्ता है शिवा(-) है किंतु यह साधको को भी समझना होगा की साधक क्या होता है? साधक वो जो इच्छानुसार सकारात्मक एवं नकारात्मक चिंतन द्वारा समाज का कल्याण कर सके ।साधक वो जो (+/ -) दोनों को साध सके।साधक ही विष्णु का अवतार है जो सकारात्मक /नकारात्मक को समयानुसार साधने का प्रयास करता है।अब इसमें समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा नकारात्मक चिंतन या नकारात्मक तंत्र को नकारता है या शायद वो भयभीत हो जाता है इस विद्या से।लेकिन देवी के रूप में इस नकारात्मक सत्ता की पूजा अर्चना अवश्य करता है इसी लिए देवी के साधको को तांत्रिक कहा जाता है एवं शिव साधक अघोरी कहलाता है किंतु ये दोनों नाम शिव के नहीं है क्योंकि शिव में ही अघोर एवं तंत्र समया है।
हमारा शरीर और मंत्र सकारात्मक एवं नकारात्मक विचारों की क्रिया-प्रतिक्रिया से लगातार प्रभावित होता है इन विचारों द्वारा ही हमारे स्वास्थ्य का संरक्षण होता रहता है।इन सकारात्मक से नकारात्मक विचारों की यदि एक रेखा खिंची जाए तो,प्रारम्भ से अंत तक के मध्य में एक बिंदु का जन्म होता है जिससे इनकी कुल संख्या 3 हो जाती है और इसी प्रकार पहले बिंदु से तीसरे बिंदु के बीच एक,और तीसरे बिंदु से अंतिम बिंदु के बीच एक अन्य बिंदु का जन्म होता है इन बिंदुओं को चक्रो की संज्ञा दी गई है जो मुख्य रूप से सात माने गए है ।यही कुण्डलिनी शक्ति के मूल चक्र होते है।विज्ञान के अनुसार इन स्थानों में अलग ग्लैंड(ग्रंथियां) होती है जिसमे से अलग अलग रसों(हार्मोन्स)का रिसाव होता है।
विषय अनुसार यह ये समझे की ये 7 हार्मोन्स या रस सकारात्मक से नकारात्मक तक 7 भावनाओ को प्रभावित करते है।
जैसे विचार होंगे वैसे रस रक्त में समाहित हो कर वैसी ही भावना उत्पन्न करते है।इस लेख के प्रारम्भ में मैंने यही समझाने का प्रयास किया था कि मूल सकारात्मक या नकारात्मक विचार ही है जिसपे सारा तंत्र समाया हुआ है।आप अच्छा पूरा जैसे सोचे,भीड़ में सोचे या वैराग में ,आप इस "सुपर नैनो" के प्रभाव से बच नहीं पाएंगे।
यहां पहुच कर सिद्ध ,बुद्ध,महावीर,साईं,कृष्ण सब एक ही परमात्का की और संकेत कर मौन को धारण करने कहते है किंतु यह हमारी बात बाहरी मौन से नहीं भीतर के मौन से है।निर्लिप्त,निर्विकार होने से।"सकारात्मक सुपर नैनो" या "नकारात्मक सुपर नैनो" बनने से नहीं है बल्कि उस मात्र "सुपर नैनो" में स्वयं को खो जाने से है ।इस अवस्था में आपने भगवान शिव की,बुद्ध की और महावीर की फोटो या प्रतिमाओं को देखा होगा।
मित्रो ऊपर मैंने जिन नामो का चयन की ,वे मात्र समजाने के लिए है आप नाम कुछ भी रख सकते नाम से कुछ नहीं होता।नाम या सबद तो कंपन पैदा करते है औऱ कम्पन्न "सुपर नैनो" तक पहुचने नहीं देते क्योकि "सुपर नैनो" एक अवस्था है कोई नाम या दैविक या मानवीय करण नहीं है।

*****जयश्री महाकाल****
******राहुलनाथ********
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
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शनिवार, 10 दिसंबर 2016

बारह राशियों के अक्षर एवं वैदिक-शाबर मंत्र संग्रह


बारह राशियों के अक्षर एवं वैदिक-शाबर मंत्र संग्रह

राशि अक्षर |
मेष राशि - चू,चे,चो, ला, ली, लू, ले, लो, अ. 
वृष राशि-  ई, उ,ए, ओ, वा,वी, वू,वे, वो. 
मिथुन राशि - का, की, कू,घ,ड,छ,के, को, ह. 
कर्क राशि - ही, हू, हे, हो, डा, डी, डू,डे,डो. 
सिंह राशि- मा, मी,मू,मे,मो,टा,टी, टू, टे. 
कन्या राशि- टो,प,पी, पू,ष,ण,ठ,पे, पो. 
तुला राशि - रा, री, रू,रे, रो, ता,ती, तू, ते. 
वृश्चिक राशि -  तो, ना, नी,नू,ने, नो, या, यी,यू.  
धनु राशि - ये, यो, भ,भी, भू, ध,फ,ढ,भे. 
मकर राशि-  भो,जा, जी, खी,खू,खे, खो, ग,गी. 
कुंभ राशि - गू, गे,गो, सा, सी, सू,से, सो, द.   
मीन राशि - दी, दू,थ,झ,ञ,दे, दो, चा,ची अक्षर आते हैं.

01*मेष राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ ह्रीं श्रीं लक्ष्मी नारायणाय नमः ||

**साबर मंगल मंत्र**
ll ओम गुरूजी मंगलवार मन कर बन्दा,जन्ममरण का कट जावे फन्दा।जन्म मरण का भागे कार।तो गुरू पावूं मंगलवार। मंगलवार भारद्वाज गोत्र,रक्त वर्ण दस हजार जाप अवन्तिदेश।दक्षिण स्थान त्रिकोण मंडल तीन अंगुल,वृश्चिक मेष राशि के गुरू को नमस्कार।सत फिरे तो वाचा फिरे।पान फूल वासना सिंहासन धरै।तो इतरो काम मंगलवार जी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll

02*वृष राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ गोपालाय उत्तर ध्वजाय नमः ||

**साबर शुक्र मंत्र**
ओम गुरू जी शुक्रवार शुक्राचार।मन धरो धीर। कोई नर नारी वीर।नौ नाड़ी बहत्तर कोठा की रक्षा करे।शुक्रवार भार्गव गोत्र, श्वेत वर्ण सोलह हजार जाप,भोजकट देशपूर्व स्थान,
पंचकोण मंडल ९ अंगुल वृष तुला राशि के गुरू को नमस्कार।
सत फिरे तो वाचा फिरे।पान फूल वासना सिंहासन धरे।
तो इतरो काम शुक्रवार जी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll

03*मिथुन राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ क्लीं कृष्णाय नमः ||

**साबर बुद्ध मंत्र**
ll ओम गुरूजीबुधवार बुध लेकर जूंझे।पॉंच पचीस ले घट में चढ़े। निसाण घुरावे।आवागमन मेंकदे नआवे।।बुध करो शुद्ध,घर सगत पाणी भरे,। बुधवार अत्रि गोत्र,पीत वरण चार हजार जाप मगहद देश,ईशान कोण स्थान।बाणाकारमंडल ४
अंगुल।कन्या मिथुन राशि के गुरूको नमस्कार।।सत फिरे तो वाचाफिरे।। पान फूल वासना सिंहासन धरै।तो इतरो काम बुधवार जी महाराज करे।। ओम फट् स्वाहा ll

04*कर्क राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ हिरण्य गर्भाय अवयक्त रुपिणे नमः ||

**साबर चंद्र मंत्र**
ll ओम गुरूजी सोमवार मनलागी सेन।निरमल काया,पाप न पुण्य अमर बरसाया।जस नजर सोमवार करे।सोमवारअत्रि गोत्र श्वेत वर्ण ग्यारह हजार जाप। जमुना तट देश अग्नि स्थान,चतुर्थ मंडल ४ अंगुल।कर्क राशि के गुरू को नमस्कार।सत फिरे तो वाचा फिरे,पानफूल वासना सिंहासन धरे।तो इतरो काम सोमवार जी महाराज करे।ओम फट् स्वाहा l

05*सिंह राशी का वैदिक  मन्त्र-
।।ॐ क्लीं बह्मणे जगदा धाराय नमः ||

**साबर सूर्य मंत्र**
ll ओम गुरूजी दीत दीत महादीत।दूत सिमरू दसो द्वार।
घट मे राखे घेघट पार तो गुरू पावूं दीतवार।दीतवार कश्यप
गोत्र,रक्त वर्ण जाप सात हजार कलिंग देश मध्य स्थान वर्तुलाकार मंडल १२ अंगुल सिंह राशि के गुरू को नमस्कार।सत फिरे तो वाचा फिरे,पीन फूल वासना सिंहासन
धरे, तो इतरो काम दीतवार जी महाराज करेओम फट् स्वाहा

06*कन्या राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ नमो प्रीं पीताम्बराय नमः ||

**साबर बुद्ध मंत्र**
ll ओम गुरूजीबुधवार बुध लेकर जूंझे।पॉंच पचीस ले घट में चढ़े। निसाण घुरावे।आवागमन मेंकदे नआवे।।बुध करो शुद्ध,घर सगत पाणी भरे,। बुधवार अत्रि गोत्र,पीत वरण चार हजार जाप मगहद देश,ईशान कोण स्थान।बाणाकारमंडल ४
अंगुल।कन्या मिथुन राशि के गुरूको नमस्कार।।सत फिरे तो वाचाफिरे।। पान फूल वासना सिंहासन धरै।तो इतरो काम बुधवार जी महाराज करे।। ओम फट् स्वाहा ll

07*तुला राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ तत्व निरंजनाय तारकरामाय नमः ||

**साबर शुक्र मंत्र**
ओम गुरू जी शुक्रवार शुक्राचार।मन धरो धीर। कोई नर नारी वीर।नौ नाड़ी बहत्तर कोठा की रक्षा करे।शुक्रवार भार्गव गोत्र, श्वेत वर्ण सोलह हजार जाप,भोजकट देशपूर्व स्थान,
पंचकोण मंडल ९ अंगुल वृष तुला राशि के गुरू को नमस्कार।
सत फिरे तो वाचा फिरे।पान फूल वासना सिंहासन धरे।
तो इतरो काम शुक्रवार जी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll

08*वृश्चिक राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ नारायणाय सुरसिंहाय नमः ||

**साबर मंगल मंत्र**
ll ओम गुरूजी मंगलवार मन कर बन्दा,जन्ममरण का कट जावे फन्दा।जन्म मरण का भागे कार।तो गुरू पावूं मंगलवार। मंगलवार भारद्वाज गोत्र,रक्त वर्ण दस हजार जाप अवन्तिदेश।दक्षिण स्थान त्रिकोण मंडल तीन अंगुल,वृश्चिक मेष राशि के गुरू को नमस्कार।सत फिरे तो वाचा फिरे।पान फूल वासना सिंहासन धरै।तो इतरो काम मंगलवार जी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll

09*धनु राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ श्रीं देवकृष्णाय ऊर्ध्वषंताय नमः ||

**साबर गुरु मंत्र**
ll ओम गुरूजी बृहस्पतिवार मनमें बसे।पांचो इन्द्रिय बस मे करे।सो निशि घर उग्या भाण। ध्यावो बृहस्पतिवार गंगाका है
सिनान।बृहस्पतिवार अंगिरा गोत्र,पीत वरण उन्नीस हजार जाप सिन्धुदेश उत्तरस्थान, चतुर्थ मंडल ६ अंगुल।धनु मीन राशि केगुरू को नमस्कार।सत फिरे तो वाचा फिरे।पान फूल वासना सिहासन धरे तो इतरो काम बृहस्पतिवारजी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll

10*मकर राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ श्रीं वत्सलाय नमः ||

**साबर शनि मंत्र**
llओम गुरूजी थावर वार।थावर आसन थरहरो। पॉंच तत्व
की विद्या करो पॉंच तत्व का साधो करो विचार।तो गुरू पावूं थावर वार शनिवार कश्यप गोत्र कृष्ण वर्ण तेईस हजार जाप सोरठ देश पश्चिम स्थान धनुषाकार मंडल,तीन अंगुल़,मकर कुम्भ राशि के गुरू को नमस्कार।सत फिरे तो वाचा फिरे,पान फूल वासना सिंहासन धरे।तो इतरो काम थावर जी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll

11*कुम्भ राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ श्रीं उपेन्द्राय अच्युताय नमः ||

**साबर शनि मंत्र**
llओम गुरूजी थावर वार।थावर आसन थरहरो। पॉंच तत्व
की विद्या करो पॉंच तत्व का साधो करो विचार।तो गुरू पावूं थावर वार शनिवार कश्यप गोत्र कृष्ण वर्ण तेईस हजार जाप सोरठ देश पश्चिम स्थान धनुषाकार मंडल,तीन अंगुल़,मकर कुम्भ राशि के गुरू को नमस्कार।सत फिरे तो वाचा फिरे,पान फूल वासना सिंहासन धरे।तो इतरो काम थावर जी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll

12*मीन राशि का वैदिक मन्त्र-
।।ॐ क्लीं उद् धृताय उद्धारिणे नमः ||

**साबर गुरु मंत्र**
ll ओम गुरूजी बृहस्पतिवार मनमें बसे।पांचो इन्द्रिय बस मे करे।सो निशि घर उग्या भाण। ध्यावो बृहस्पतिवार गंगाका है
सिनान।बृहस्पतिवार अंगिरा गोत्र,पीत वरण उन्नीस हजार जाप सिन्धुदेश उत्तर स्थान, चतुर्थ मंडल ६ अंगुल।धनु मीन राशि केगुरू को नमस्कार।सत फिरे तो वाचा फिरे।पान फूल वासना सिहासन धरे तो इतरो काम बृहस्पतिवारजी महाराज करे। ओम फट् स्वाहा ll

ग्रहों और राशि के अनुरुप यदि कोई भी व्यक्ति अपनी राशि के अनुसार उससे मंत्रों का जाप किया जाए तो व्यक्ति को अपनी अनेक समस्याओं और परेशानियों से काफी हद तक तक मुक्ति मिल सकती है. मंत्र पाठ से व्यक्ति हर प्रकार के संकट से मुक्त और आर्थिक संपन्नता को पाता है. राशि-मंत्र का नित्य 108बार जप करने से मंत्र सिद्धि में सहायता मिलती है. इसकी ऊर्जा द्वारा विकास का मार्ग प्रशस्त होता है.साबर मंत्रो में जाप की संख्या लिखी हुई है

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(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

गुरुवार, 8 दिसंबर 2016

धर्म


धर्म
धर्म तो दस या सौ नहीं हो सकते,धर्म तो एकही हो सकता है हां सभी ने अपने धर्म अलग बना रखे है ऐसा हो सकता है।धर्म तो भीतर का भाव है और सब को एक दृष्टि से देखना ही इसके मूल में है जहां धर्म है वहां हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई जैन और फ़ारसी किसे हो सकता है हां साधारण भाषा में ये कहा जाता है कि मेरा धर्म हिन्दू है,सिक्ख है या अन्य।
मनु ने धर्म के दस लक्षण बताये हैं:

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥

(धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरङ्ग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ; ये दस धर्म के लक्षण हैं।)
जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ न करना चाहिये - यह धर्म की कसौटी है।

श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ॥

(धर्म का

र्वस्व

क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।)
ऊपर लिखी बाते तो सभी जीवों के ऊपर लाघु होती है इस एक विषय पे सभी धर्म गुरुओं के अलग अलग मत रहे है जिनका एकीकरण किये बिना सफलता मुश्किल ही होगी
ऊपर लिखे मनु सूत्र में हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई या किसी अन्य का नाम नहीं लिखा है और यही धर्म की सही परिभाषा लगति भी है
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
राहुलनाथ

प्रेत बाधा का उपाय

प्रेत बाधा का उपाय
मंगलवार या शनिवार के दिन लौंग, रक्त-चंदन, धूप, लोहबान, गौरोचन, केसर, बंसलोचन, समुद्र-सोख, अरवा चावल, कस्तूरी, नागकेसर, जई, भालू के बाल व सुई को भोजपत्र के साथ अपने शरीर व लग्न के अनुकूल धातु के ताबीज में भरकर गले में धारण करें। शरीर पर प्रेतादि जैसे नकारात्मक तत्वों का कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ सकता।
+919827374074
(तंत्र शास्त्रानुसार)

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                   ।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
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चेतावनी-हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।

मंगलवार, 6 दिसंबर 2016

भैरव साधना मंत्र संग्रह

भैरव साधना मंत्र संग्रह

।। पूर्व-पीठिका ।।
मेरु-पृष्ठ पर सुखासीन, वरदा देवाधिदेव शंकर से –
पूछा देवी पार्वती ने, अखिल विश्व-गुरु परमेश्वर से ।
जन-जन के कल्याण हेतु, वह सर्व-सिद्धिदा मन्त्र बताएँ –
जिससे सभी आपदाओं से साधक की रक्षा हो, वह सुख पाए ।
शिव बोले, आपद्-उद्धारक मन्त्र, स्तोत्र हूं मैं बतलाता,
देवि ! पाठ जप कर जिसका, है मानव सदा शान्ति-सुख पाता ।
।। ध्यान ।।
सात्विकः-
बाल-स्वरुप वटुक भैरव-स्फटिकोज्जवल-स्वरुप है जिनका,
घुँघराले केशों से सज्जित-गरिमा-युक्त रुप है जिनका,
दिव्य कलात्मक मणि-मय किंकिणि नूपुर से वे जो शोभित हैं,
भव्य-स्वरुप त्रिलोचन-धारी जिनसे पूर्ण-सृष्टि सुरभित है ।
कर-कमलों में शूल-दण्ड-धारी का ध्यान-यजन करता हूँ,
रात्रि-दिवस उन ईश वटुक-भैरव का मैं वन्दन करता हूँ ।
राजसः-
नवल उदीयमान-सविता-सम, भैरव का शरीर शोभित है,
रक्त-अंग-रागी, त्रैलोचन हैं जो, जिनका मुख हर्षित है ।
नील-वर्ण-ग्रीवा में भूषण, रक्त-माल धारण करते हैं,
शूल, कपाल, अभय, वर-मुद्रा ले साधक का भय हरते हैं ।
रक्त-वस्त्र बन्धूक-पुष्प-सा जिनका, जिनसे है जग सुरभित,
ध्यान करुँ उन भैरव का, जिनके केशों पर चन्द्र सुशोभित ।
तामसः-
तन की कान्ति नील-पर्वत-सी, मुक्ता-माल, चन्द्र धारण कर,
पिंगल-वर्ण-नेत्रवाले वे ईश दिगम्बर, रुप भयंकर ।
डमरु, खड्ग, अभय-मुद्रा, नर-मुण्ड, शुल वे धारण करते,
अंकुश, घण्टा, सर्प हस्त में लेकर साधक का भय हरते ।
दिव्य-मणि-जटित किंकिणि, नूपुर आदि भूषणों से जो शोभित,
भीषण सन्त-पंक्ति-धारी भैरव हों मुझसे पूजित, अर्चित ।

।।तांत्रोक्त भैरव कवच।।
ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ||
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ||
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ||

भैरव वशीकरण मन्त्र
*“ॐनमो रुद्राय, कपिलाय, भैरवाय, त्रिलोक-नाथाय, ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।”
*“ॐ भ्रां भ्रां भूँ भैरवाय स्वाहा। ॐ भं भं भं अमुक-मोहनाय स्वाहा।”
* “ॐ नमो काला गोरा भैरुं वीर, पर-नारी सूँ देही सीर। गुड़ परिदीयी गोरख जाणी, गुद्दी पकड़ दे भैंरु आणी, गुड़, रक्त का धरि ग्रास, कदे न छोड़े मेरा पाश। जीवत सवै देवरो, मूआ सेवै मसाण। पकड़ पलना ल्यावे। काला भैंरु न लावै, तो अक्षर देवी कालिका की आण। फुरो मन्त्र, ईश्वरी वाचा।”
*ॐ भैरवाय नम:।।
*ॐ हं षं नं गं कं सं खंमहाकालभैरवायनम:।
*ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाचतु य कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ॐ।।
*ॐ ह्रीं वां बटुकाये क्षौं क्षौं आपदुद्धाराणाये कुरु कुरु बटुकाये ह्रीं बटुकाये स्वाहा

||श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्||
विनियोग -

।। ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरव महामंत्रस्य श्री महाभैरव ब्रह्मा ऋषिः , त्रिष्टुप्छन्दः , त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षणभैरवो देवता, ह्रीं बीजं , सः शक्तिः, वं कीलकं मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः।

अब बाए हाथ मे जल लेकर दहिने हाथ के उंगलियों को जल से स्पर्श करके मंत्र मे दिये हुए शरिर के स्थानो पर स्पर्श करे।

ऋष्यादिन्यासः

श्री महाभैरव ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि।
त्रिष्टुप छ्न्दसे नमः मुखे।
श्री त्रिमूर्तिरूपी भगवान
स्वर्णाकर्षण भैरव देवतायै नमः ह्रदिः।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये।
सः शक्तये नमः पादयोः।
वं कीलकाय नमः नाभौ।
मम्‍ दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं
स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः
सर्वांगे।

मंत्र बोलते हुए दोनो हाथ के उंगलियों को आग्या चक्र पर स्पर्श करे। अंगुष्ठ का मंत्र बोलते समय दोनो अंगुष्ठ से आग्या चक्र पर स्पर्श करना है।

करन्यासः

ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ऐं तर्जनीभ्यां नमः।
क्लां ह्रां मध्याभ्यां नमः।
क्लीं ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः।
क्लूं ह्रूं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
सं वं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

अब मंत्र बोलते हुए दाहिने हाथ से मंत्र मे कहे गये शरिर के भाग पर स्पर्श करना है।

हृदयादि न्यासः

आपदुद्धारणाय हृदयाय नमः।
अजामल वधाय शिरसे स्वाहा।
लोकेश्वराय शिखायै वषट्।
स्वर्णाकर्षण भैरवाय कवचाय हुम्।
मम् दारिद्र्य विद्वेषणाय नेत्रत्रयाय वौषट्।
श्रीमहाभैरवाय नमः अस्त्राय फट्।
रं रं रं ज्वलत्प्रकाशाय नमः इति दिग्बन्धः।

अब दोनो हाथ जोड़कर ध्यान करे।

(ध्यान मंत्र का  उच्चारण करें। जिसका हिन्दी में सरलार्थ नीचे दिया गया है। वैसा ही आप भाव करें।)

ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम्।
अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित-पूरितपात्रकम्॥
अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम्।
सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम्॥
मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने, संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः।
भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं, स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति : सर्वदा॥

हिन्दी भावार्थ: श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार(सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं। उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं। उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं। उनके तीन नेत्र हैं। चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण — माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है। वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं उनकी शरण ग्रहण करता हूं। आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा वृष्टि करें।

मानसोपचार पुजन के मंत्रो को मन मे बोलना है।

मानसोपचार पूजन:

लं पृथिव्यात्मने गंधतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं गंधं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

हं आकाशात्मने शब्दतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं पुष्पं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

यं वायव्यात्मने स्पर्शतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं धूपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

रं वह्न्यात्मने रूपतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं दीपं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

वं अमृतात्मने रसतन्मात्र प्रकृत्यात्मकं अमृतमहानैवेद्यं श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

सं सर्वात्मने ताम्बूलादि सर्वोपचारान् पूजां श्रीस्वर्णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

मंत्र :-

ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं स: वं आपदुद्धारणाय अजामलवधाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय ॐ ह्रीं महाभैरवाय नम:।

मंत्र जाप के बाद स्तोत्र का एक पाठ अवश्य करे। 
श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र

।। श्री मार्कण्डेय उवाच ।।

भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !
पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं ।
तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् ।।
तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !।।

।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।

इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !
स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये ।।
सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् ।
दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् ।।
अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् ।
महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् ।।
महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।
न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा ।।
शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने ।
महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च ।।
निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् ।
स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः ।।
श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् ।।

विनियोगः- ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

ध्यानः-

मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते ।
दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः ।।
भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् ।
स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः ।।

।। स्तोत्र-पाठ ।।

ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने,
नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने ।।
रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने ।
नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः ।
नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः ।।
नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः ।
नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे ।।
अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने ।
अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवाय ते नमः ।।
नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने ।
श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः ।।
दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः ।
नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः ।।
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे ।
अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः ।।
नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः ।
नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः ।।
नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः ।
नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः ।।
नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने ।
गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे ।।
नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः ।
नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः ।।
दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः ।
सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने ।।
रुद्र-लोकेश-पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च ।
नमोऽजामल-बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते ।।
नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने ।
उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः ।।
नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते ।
नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने ।।
नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः ।
धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः ।।
नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः ।
नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे ।।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः ।
नमः सुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्याय ते नमः ।।
नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे ।
नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः ।।
नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने ।
नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने ।।
नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः ।
नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः ।।
द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने ।
नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः ।।
पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने ।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने ।।
नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः ।
नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे ।।
स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः ।
नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने ।।
नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने ।
नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे ।।
चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने ।
कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने ।।
भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने ।
नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः ।।
स्तवेनानेन सन्तुष्टो, भव लोकेश-भैरव !
पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल !
श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम् ।
प्रसीद सकलान् कामान्, प्रयच्छ मम सर्वदा ।।

।। फल-श्रुति ।।

श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् ।
मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् ।।
यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते ।
लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् ।।
चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् ।
स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः ।।
संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः ।
स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः ।
स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ।
सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् ।
न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।
म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ।
अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।।
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।
य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा ।
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं ।।

श्री भैरव चालीसा
। दोहा ।।
श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ ।
चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ ।।
श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल।
श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल ।।
जय जय श्री काली के लाला । जयति जयति काशी-कुतवाला ।।
जयति बटुक भैरव जय हारी । जयति काल भैरव बलकारी ।।
जयति सर्व भैरव विख्याता । जयति नाथ भैरव सुखदाता ।।
भैरव रुप कियो शिव धारण । भव के भार उतारण कारण ।।
भैरव रव सुन है भय दूरी । सब विधि होय कामना पूरी ।।
शेष महेश आदि गुण गायो । काशी-कोतवाल कहलायो ।।
जटाजूट सिर चन्द्र विराजत । बाला, मुकुट, बिजायठ साजत ।।
कटि करधनी घुंघरु बाजत । दर्शन करत सकल भय भाजत ।।
जीवन दान दास को दीन्हो । कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो ।।
वसि रसना बनि सारद-काली । दीन्यो वर राख्यो मम लाली ।।
धन्य धन्य भैरव भय भंजन । जय मनरंजन खल दल भंजन ।।
कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा । कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा ।।
जो भैरव निर्भय गुण गावत । अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत ।।
रुप विशाल कठिन दुख मोचन । क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन ।।
अगणित भूत प्रेत संग डोलत । बं बं बं शिव बं बं बोतल ।।
रुद्रकाय काली के लाला । महा कालहू के हो काला ।।
बटुक नाथ हो काल गंभीरा । श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा ।।
करत तीनहू रुप प्रकाशा । भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा ।।
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन । व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ।।
तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं । विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं ।।
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । जय उन्नत हर उमानन्द जय ।।
भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय । बैजनाथ श्री जगतनाथ जय ।।
महाभीम भीषण शरीर जय । रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय ।।
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय ।।
निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय । गहत अनाथन नाथ हाथ जय ।।
त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय । क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ।।
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ।।
रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर । चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ।।
करि मद पान शम्भु गुणगावत । चौंसठ योगिन संग नचावत ।
करत कृपा जन पर बहु ढंगा । काशी कोतवाल अड़बंगा ।।
देयं काल भैरव जब सोटा । नसै पाप मोटा से मोटा ।।
जाकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा ।।
श्री भैरव भूतों के राजा । बाधा हरत करत शुभ काजा ।।
ऐलादी के दुःख निवारयो । सदा कृपा करि काज सम्हारयो ।।
सुन्दरदास सहित अनुरागा । श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ।।
श्री भैरव जी की जय लेख्यो । सकल कामना पूरण देख्यो ।।
।। दोहा ।।
जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार ।।
जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार ।
उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार ।।
आरती श्री भैरव जी की
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।
जय काली और गौरा देवी कृत सेवा ।। जय ।।
तुम्हीं पाप उद्घारक दुःख सिन्धु तारक ।
भक्तों के सुख कारक भीषण वपु धारक ।। जय ।।
वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ।। जय ।।
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे ।
चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे ।। जय ।।
तेल चटकि दधि मिश्रित भाषावलि तेरी ।
कृपा करिये भैरव करिए नहीं देरी ।। जय ।।
पांव घुंघरु बाजत अरु डमरु जमकावत ।
बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत ।। जय ।।
बटकुनाथ की आरती जो कोई नर गावे ।
कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे ।। जय ।।

साधना यंत्र

श्री बटुक भैरव का यंत्र लाकर उसे साधना के स्थान पर भैरवजी के चित्र के समीप रखें। दोनों को लाल वस्त्र बिछाकर उसके ऊपर यथास्थिति में रखें। चित्र या यंत्र के सामने हाल, फूल, थोड़े काले उड़द चढ़ाकर उनकी विधिवत पूजा करके लड्डू का भोग लगाएं।

साधना का समय : इस साधना को किसी भी मंगलवार या मंगल विशेष अष्टमी के दिन करना चाहिए शाम 7 से 10 बजे के बीच।

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साधना की चेतावनी : साधना के दौरान खान-पान शुद्ध रखें। सहवास से दूर रहें। वाणी की शुद्धता रखें और किसी भी कीमत पर क्रोध न करें। यह साधना किसी गुरु से अच्छे से जानकर ही करें।

साधना नियम व सावधानी

1. यदि आप भैरव साधना किसी मनोकामना के लिए कर रहे हैं तो अपनी मनोकामना का संकल्प बोलें और फिर साधना शुरू करें।

2. यह साधना दक्षिण दिशा में मुख करके की जाती है।

3. रुद्राक्ष या हकीक की माला से मंत्र जप किया जाता है।

4. भैरव की साधना रात्रिकाल में ही करें।

5. भैरव पूजा में केवल तेल के दीपक का ही उपयोग करना चाहिए।

6. साधक लाल या काले वस्त्र धारण करें।

7. हर मंगलवार को लड्डू के भोग को पूजन-साधना के बाद कुत्तों को खिला दें और नया भोग रख दें।