#स्वप्न_का_वैज्ञानिक_आधार
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🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
यदि स्वप्न के वैज्ञानिक आधार पर दृष्टि तो सत्य वनों की क्षणिक अनुभूति का कारण यही है कि वह आत्मा के सुपना शीर्षक में गिरता है या है।जत अवस्था में मस्तिष्क के द्वारा ही शरीर और मन दोनों का होता है, जबकि सुप्तावस्था में सुषुम्ना का 'गेमेंटर' ही मस्तिष्क के समान कार्य करने लगता है। उस स्थिति में यह अपेक्षित नहीं कि सूचनाओं से अवगत रहे। इसे स्पष्ट समझने के लिए यह उदाहरण पर्याप्त होगा कि यदि किसी जागे हुए मनुष्य के शरीर पर बैठ जाएं तो मनुष्य तुरन्त हटा देगा. परन्तु निद्वावस्था में मस्तिष्क को उसका ज्ञान न रहने के कारण मक्खी को हटाने का कार्य सुषुम्ना द्वारा ही किया जाएगा।
मस्तिष्क का उभरा हुआ भाग 'गायराई' कहा जाता है। दो गायराइयों के मध्य एक दरार होती है, जिसे सलकस' कहते हैं। मस्तिष्क के मध्य भाग (फोरब्रेन) में जो एक गहरा 'सलकस' होता है, उस केन्द्रीय सलकर के समक्ष 'गायरस' में समूचे शरीर को आज्ञा देने वाले कोष होते हैं, जिनका शरीर की सभी क्रियाओं पर नियन्त्रण रहता है। आगत नसें, जिन्हें पाश्चात्य भाषा में 'अफरेन्ट नर्स' कहते हैं, सूचना लाती और इफरेंट नर्स' सूचना ले जाती हैं। इस प्रकार जटिल से जटिल समस्याओं को भी यह कोष सुलझाते हैं।
#मनुष्य_शरीर_में_विद्यमान_नाड़ियां
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प्राचीन आचार्यों के मत में मानव शरीर में बहत्तर हजार से भी अधिक नाड़ियों की विद्यमानता है, किन्तु इनमें तीन नाड़ियां अत्यन्त प्रमुख तथा प्रसिद्ध हैं। उनके नाम हैं-1. इड़ा 2. पिंगला 3. सुषुम्ना। इन तीनों में भी सुषुम्ना महत्त्व अधिक है। अध्यात्म विद्या में तो उसे सर्वोपरि प्रमुखता दी जाती है। सुषुम्ना की प्रमुखता को तो वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके हैं। का
#सुषुम्ना_का_रहस्य
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सुषुम्ना का महत्त्व जानने के लिए उसके स्वरूप को समझ लेना भी आवश्यक होगा। सुषुम्ना में आकाश के समान पोल होती है तथा यह प्रकाशमयी भी है। अतः इस प्रकाशमयी नाही को ही सूर्यात्मक आकाश और ब्रह्माण्ड के रहस्य से मन फल
सम्बन्ध जोड़ने तथा उसे व्यापक बनाने वाली माना गया है। उसी सुषुम्ना में मन के प्रवाहित होने से मनुष्य को दिव्य स्वप्न दिखाई देते हैं। उस समय मानव की चेतना विराट् क्षेत्र में तैरती है, इसलिए मनुष्य को स्वप्न में नदी, पर्वत, वन, उपवन, भवन, नगर, दुर्ग, खेत, पृथ्वी, अन्तरिक्ष तथा अन्यान्य दिव्य आकृतियाँ दिखाई देती हैं। इस प्रकार सुषुम्ना में मन का प्रवाह ही उन स्वप्नों का कारण होता है, जो दिव्य तथा स्वप्न होते हैं। यह एक तथ्य है कि मन जब मस्तिष्क का अनुवर्ती न रहकर सुषुम्ना का अनुवर्ती हो जाता है, तब उसकी स्थूलता नष्ट होकर सूक्ष्मता आ जाती है। इस प्रकार स्थूल से सूक्ष्म हुआ चेतन मन ही (सुक्ष्म होने पर) अवचेतन बन जाता है।
इस प्रकार मन के जो भेद चेतन और अवचेतन अथवा बहिर्मन और अन्तर्मन के नाम से कहे हैं, उनमें बहिर्मन जो कार्य नहीं कर सकता, उसे करने में अन्तर्मन सर्वथा समर्थ है। क्योंकि बहिर्मन स्थूल होने के कारण उतनी सामर्थ्य नहीं रखता जितनी कि सूक्ष्म होने के कारण अन्तर्मन रखता है। स्थूल बहिर्मन किसी भी कार्य में स्वतन्त्र नहीं होता, जबकि सूक्ष्म अन्तर्मन अपना कार्य करने में स्वतन्त्र हो जाता है।
पेज-18 ,किताब-स्वप्न ज्योतिष और शकुन विचार,
©प्रकाशकाधीन,प्रकाशक : डायमण्ड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.,X-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-2,नयी दिल्ली-110020,वितरक : पंजाबी पुस्तक भण्डार दरीबा कलां, दिल्ली-110006,प्रथम संस्करण: 1998
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(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
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