शनिवार, 15 दिसंबर 2018

महाकालसंहिता(तंत्र)गुह्यकालीखंड:(भाग-२)

#महाकालसंहिता(तंत्र)गुह्यकालीखंड:(भाग-२)
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परा, पश्यन्ति,मध्यमा,वैखरी रूप शब्दब्रह्म की उपासना तंत्रशास्त्र की देन है।वर्ण, मंत्र,पद, कला,तत्व और भुवन रूप षडद्धवा के द्वारा जगत की सृष्टि एवं प्रलय का सिद्धांत तांत्रिक दृष्टि की विशेषता है।'अकारो वै सर्वावाक (ऐ. आ.२/३/६)वाचीमा विश्वा भुवनान्यर्पिता (तै.ब्रा.२/८/८/४) इत्यादि वचन केवल संकेत मात्र है।'स्त्री शूद्रो न यजेताम नाधियाताम' अर्थात स्त्री और शूद्र को न यज्ञ करना चाहिए,न वेद पढ़ना चाहिए-ये वैदिक मत है।किंतु तंत्र के अनुसार अध्यन तथा उसके अनुष्ठान में सबका बराबर अधिकार है फिर वो स्त्री हो,शुद्र हो,ब्राह्मण हो या कोई अन्य।
प्रमाण-
अस्यां च पूजायां सर्वजातानामाधिकारः(सौ.भा.)
उत्तमाः पंचरात्रस्था मध्यमास्तु त्रयीमयाः।(ल.तंत्र)
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि आज के अल्पज्ञ,अल्पशक्तिमान,आलस्य आदि दोषो से परिपूर्ण, शिश्नोदरपरायण,बहिर्मुखी वृति वाले,तप-कठोर-व्रत-आचरण आदि से हीन किसी भी वर्ण,जाति, देश के लोगो के लिए अभ्युदय निःश्रेयस लाभ का यदि कोई उपाय है तो वह तंत्रशास्त्र है।
#तंत्रो_के_प्रकार_और_भेद-
तंत्रशास्त्र का क्षेत्र विशाल है।इसमें अनेक वर्ग है।यद्यपि इस समय शैव,शाक्त और गाणपत्य तीन का ही प्रचलन है तथापि तांत्रिक ग्रंथो में अन्य तंत्रो के नाम भी आते है।इनमे से तो कई लुप्तप्राय है जैसे शाक्त,गणपत्य, शैव सिद्धांत, चान्द्र, वैष्णव,बौद्ध, जैन,पाशुपत, गारुड़,भूतड़ामर,पाँचरात्र, कापालिक,नाकुल,दुर्गा,कौल, वाममार्ग, दक्षिणमार्ग,त्रिक आदि अनेक तंत्रो के नाम लिए गए है।
#तंत्र_शास्त्र_का_वर्गीकरण-
तंत्र शास्त्र का वर्गीकरण तीन रूपों में किया गया है स्रोत,पीठ एवं आम्नाय।यहां क्रमशः उनका संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है
#स्तोत्र-शिव तंत्र शास्त्र का तीन, चार एवं पाँच स्रोत्र के रूप में भी विभाजन मिलता है। वाम,दक्षिण और सिद्धांत, यह तीन शुद्ध शैव तंत्र है इनमें शक्तिप्रधान वाम है भैरव प्रधान दक्षिण है कामिक आदि सिद्धांत है। मिश्र के नाम से एक चौथा तंत्र है जो सप्तमातृपरक है।पंचस्त्रोतस तंत्र शिव के पांच मुख से उद्भूत माना गया है।
#पहला-"उर्ध्वमुख"-"सिद्धांततंत्र",इसका उद्देश्य "मुक्ति" है।
#दूसरा-"पूर्वमुख"-"गारूड़तंत्र"-इसका उद्देश्य सभी विषो को हरने का है।
#तीसरा-"उत्तरमुख"-"वामतंत्र"-इसका उद्देशय सर्ववशिकरन का है।
#चौथा-"पश्चिममुख"-"भूततंत्र"-इसका उद्देश्य भूतग्रह निवारण का है।
#पांचवा-"दक्षिणमुख"-"भैरवतंत्र"-इसका उद्देश्य शत्रुनाश का है।
स्रोतों के अतिरिक्त अनुस्त्रोत्रो का भी वर्णन मृगेंद्रगम के चर्यापाद में मिलता है।उनकी संख्या आठ है ये है-शैव मान्तरेश्वर गाण दिव्य आर्ष गौह्यक योगिनी कौल और सिद्धांत।

निम्लिखित पोस्ट को लिखने के लिए "महाकालसंहिता" का सहयोग लिया गया है।यदि ये तंत्रोक्त जानकारी जिसका उद्गम भगवान शिव के मुखारबिंद से है यदि आप भक्तो को पसंद आती है तो भविष्य में इस पे लगातार मेरी कलम चलते रहेगी।
क्रमशः

🚩जै श्री महाकाल🚩
।। राहुलनाथ।।™
📞 +919827374074(W),+917999870013
**** #मेरी_भक्ति_अघोर_महाकाल_की_शक्ति ****
चेतावनी:-यहां तांत्रिक-आध्यात्मिक ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर कुछ मंत्र-तंत्र सम्बंधित पोस्ट मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।तंत्र-मंत्रादि की जटिल एवं पूर्ण विश्वास से  साधना-सिद्धि गुरु मार्गदर्शन में होती है अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे।विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत,

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