भक्ति मार्ग
ज्ञान को सर्वोत्तम वस्तु समझना चाहिए उसके पास तक किसी अन्य पदार्थ की गति नहीं है इस प्रकार वह परम अलभ्य कहा जाता है उसी को मेरा स्वरूप ब्रह्म जानना चाहिए जिस तपस्या तथा आराधना का आश्रय लेकर जीवधारी पवित्र हो जाते हैं उसे ज्ञान की पदवी समझना चाहिए भक्ति तथा ज्ञान में कोई अंतर नहीं है।
जो मनुष्य इन दोनों में अंतर देखते हैं उन्हें दुख उठाना पड़ता है जो लोग भक्ति के विरुद्ध वचन कह कर ज्ञान को प्रधानता देते हैं उन्हें महान कष्ट उठाना पड़ता है।
भक्ति को परम तत्व का ज्ञान प्रदान करने वाली समझना चाहिए वह मुझे अत्यंत प्रिय है।भक्ति के समान सीधा तथा भय हीन मार्ग अन्य कोई नहीं है क्योंकि उसके द्वारा परम तत्व की प्राप्ति होती है इस रीति को "पिपीलिका" कहा जाता है क्योंकि इसमें बिना किसी आधार के भी ब्रह्म पर चढ़कर फल प्राप्त किया जा सकता है।इसके विपरीत निर्गुण के मार्ग को "भीष्म" कहते हैं क्योंकि उसमें किसी वस्तु का आधार ना होने के कारण अत्यंत परिश्रम तथा कष्ट भोगने के पश्चात ही फल की प्राप्ति होती है भक्ति मन को प्रसन्नता प्रदान करने वाली है और मैं सदैव उसी के अधीन रहता हूं जो प्राणी ईह में भक्ति करता है उसे मैं लोक में आनंद तथा परलोक में मुक्ति प्रदान करता हूं ।मुझे कुल तथा जाति से कोई प्रयोजन नहीं है चारों युगों युगों में मुझे भक्त प्रिय है,परंतु कलयुग में तो अपने भक्तों को अत्यंत स्नेह करता हूं मैं अपने भक्तों की सदैव सहायता करता हूं और उनकी प्रसन्नता के निमित्त अनेक प्रकार के श्रेष्ठ चरित्र दिखाता हूं अतः हे देवी भक्ति की महिमा सबसे बड़ी जानकर तुम उसी को अपनाओ.....||शिव-उवाचः ||
श्री शिव महापुराण-६६
🚩🚩 JAISHREEJAI MAHAKAL OSGY🚩🚩
Rahulnath Osgy
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