रविवार, 5 मार्च 2017

स्त्रीगमन और इच्छानुसार संतान की प्राप्ति

स्त्रीगमन और इच्छानुसार संतान की प्राप्ति
स्त्रीगमन आज के युग में लालसा पूर्ण करने के लिए ही सामान्य रूप से किया जाता है और संतान की इच्छा से भी किया जाए तो बालक की कामना अवचेतन में रहती है।प्राचीन काल में स्थिति ऐसी नहीं थी प्राचीन काल में स्त्री गमन का मुख्य उद्देश्य संतान की प्राप्ति हुआ करती थी जिसके लिए वे गमन के नियमो का पालन सुंदर व स्वस्थ सन्तान की प्राप्ति के लिए किया करते थे।प्राचीन काल में वे संतान उत्पन्न करने को अपना धर्म एवं कर्तव्य समझा करते थे।आज स्थिति ठीक इसके विपरीत है।आयुर्वेद के अनुसार 21 दिनों में वीर्य परिपक्व हो जाता है और एक सफल एवम सुन्दर संतान को उतपन्न करने की क्षमता रखता है ।
शास्त्रो के अनुसार ऋतुकाल के समय की रात्रियों में स्त्री प्रसंग करने से गर्भ ठहरने की संभावना बनी रहती है एवं वीर्य नष्ट नहीं होता।वीर्य समस्त शरीरस्थ धातुओं का सार है वीर्य का नष्ट होना पुरुषार्थ के नष्ट होने के समान है।
मनु संहिता के अनुसार अमावस,चौदस की रात्रि को प्रसंग नहीं करना चाहिए।स्त्रियों का ऋतुकाल सामान्यतः 16 रात्रियों का होता है जिसमे से प्रथम चार रात्रियों एवं ग्यारहवीं,तेरहवीं रात्रि को प्रसंग करना ,पुरुष के लिए हानिकारक होता है और पुरुष भयंकर रोगों से ग्रस्त हो सकत है।रजस्वला स्त्री के साथ प्रसंग करने दृष्टि आयु,तेज एवं पराक्रम की हानि होती है रजस्वला काल में प्रथम चार दिनों में रज की मात्रा,गति एवं उष्णता तीव्र होती है जिससे वीर्य स्थिर नहीं हो पाता ,इस समय रज की उष्णता अत्यधिक होने से,ये उष्णता पुरुष के रक्त में मिल कर,रक्त को गर्म कर देती है इसके बाद ये गर्मी मस्तिष्क तक पहुच कर बुद्धि को नष्ट कर देती है।शेष दस रात्रि में आवश्यकतानुसार प्रसंग किया जा सकता है।
शास्त्रो के अनुसार ऋतुकाल के उपरान्त चौथी,छठी,आठवी,दसवीं और बारहवीं रात्रि में संयम से रति करने से पुत्र प्राप्ति की संभावना होती है।
यहाँ समझने की बात ये है कि ये रात्रियाँ क्रमशः एक के बाद एक सर्वश्रेष्ठ है जैसे चौथे से छठी,छठी से आठवीं ,आठवी से ,दसवीं, और दसवीं से बारहवीं सर्वश्रेष्ठ होती है।पाँचवी,सातवी,नवी और ग्यारवी रात्रि कन्या के जन्म के लिए क्रमशः सर्वोत्तम होते जाती है।इसके विपरीत तेरहवीं,चौदहवी,सोलहवीं रात्रि गर्भधान के लिए उचित नहीं होती।
।।क्रमशः।।
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व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,36गढ़
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