मंगलवार, 18 अप्रैल 2017

भैरव भाई ,काली के पूत,सदा सहाई।।

भैरव भाई ,काली के पूत,सदा सहाई।।
भैरव शब्द चार अक्षरों के मेल से बना हैं; भा, ऐ, र और व; भा का अर्थ ‘प्रकाश’, ऐ क्रिया-शक्ति, रव विमर्श हैं। इस प्रकार जो अपनी क्रिया-शक्ति से मिल कर अपने स्वभाव से सम्पूर्ण जगत को विमर्श करता हैं वह भैरव हैं। जो समस्त विश्व को अपने ही समान तथा अभिन्न समझकर अपने भक्तों को सर्व प्रकार से भय मुक्त करते हैं वे भैरव कहलाते हैं।

भैरव! भगवान शिव के अनन्य सेवक के रूप में विख्यात हैं तथा स्वयं उनके ही प्रतिरूप माने जाते हैं। भगवान शिव के अन्य अनुचर जैसे भूत-प्रेत, पिशाच आदि के वे स्वामी या अधिपति हैं। इनकी उत्पत्ति भगवती महामाया की कृपा से हुई हैं परिणामस्वरूप वे स्वयं भी शिव तथा शक्ति के अनुसार ही शक्तिशाली तथा सामर्थ्य-वान हैं एवं भय-भाव स्वरूप में इनका अस्तित्व हैं। भैरव दो संप्रदाय! प्रथम काल भैरव तथा द्वितीय बटुक भैरव से सम्बंधित हैं, तथा क्रमशः काशी या वाराणसी और उज्जैन के द्वारपाल हैं। 
मुख्य रूप से भैरव आठ स्वरूप वाले जाने जाते हैं; 
१. असितांग भैरव, २. रुद्र भैरव, ३. चंद्र भैरव, 
४. क्रोध भैरव, ५. उन्मत्त भैरव, ६. कपाली भैरव, 
७. भीषण भैरव, ८. संहार भैरव, यह आठों मिलकर अष्ट-भैरव समूह का निर्माण करते हैं। मुख्यतः भैरव! श्मशान के द्वारपाल तथा रक्षक होते हैं। तंत्र ग्रंथो तथा नाथ संप्रदाय के अनुसार, भैरव तथा भैरवी इस चराचर जगत की उत्पत्ति, स्थिति तथा प्रलय के कारक हैं। भिन्न-भिन्न भैरवो की आराधना कर, अपनी अभिलाषित दिव्य वस्तुओं तथा शक्तिओं को प्राप्त करने की प्रथा आदि काल से ही हिन्दू धर्म में प्रचलित हैं, विशेषकर किसी प्रकार के भय-निवारण हेतु। भैरव सामान्यतः घनघोर डरावने स्वरुप तथा उग्र स्वभाव वाले होते हैं, काले शारीरिक वर्ण एवं विशाल आकर के शरीर वाले, हाथ में भयानक दंड धारण किये हुए, काले कुत्ते की सवारी करते हुए दिखते हैं। दक्षिण भारत में भैरव! 'शास्ता' के नाम से तथा माहाराष्ट्र राज्य में 'खंडोबा' के नाम से जाने जाते हैं। तामसिक स्वभाव वाले सभी भैरव तथा भैरवी मृत्यु या विनाश के कारक देवता हैं, काल के प्रतीक स्वरूप, रोग-व्याधि इत्यादि के रूप में प्रकट होकर विनाश या मृत्यु की ओर ले जाते हैं।

शिव पुराण के अनुसार अंधकासुर नामक दैत्य के संहार हेतु भगवान शिव के रुधिर से भैरव की उत्पत्ति हुई थी। अन्य एक कथा के अनुसार एक बार जगत के सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी ने शिव तथा उनके गाणो की रूप-सज्जा को देखकर अपमान-जनक वचन कहे थे। भगवान शिव ने उस वाचन पर कोई ध्यान नहीं दिया, परन्तु उस समय उनके शरीर से एक प्रचंड काया का प्राकट्य हुआ तथा वह ब्रह्मा जी को मरने हेतु उद्धत हो आगे बड़ा, जिसके कारण वे अत्यंत भयभीत हो गए। अंततः शिव जी द्वारा मध्यस्थता करने के कारण क्रोध तथा विकराल रूप वाला गण शांत हुआ। तदनंतर, भगवान शिव ने उस गण को अपने आराधना स्थल काशी का द्वारपाल नियुक्त कर दिया; काल भैरव जी का भव्य मंदिर काशी में विद्यमान हैं। मार्गशीर्ष मास की कृष्ण अष्टमी के दिन इनका प्राकट्य हुआ था, परिणामस्वरूप यह तिथि काल-भैरवाष्टमी के नाम से भी जानी जाती है। विशेषकर मृत्यु-भय से मुक्ति पाने हेतु इनकी आराधना की जाती हैं, परन्तु वे सर्व प्रकार के कामनाओं को पूर्ण करने में समर्थ हैं। समस्त प्रकार के अभिलाषित भोग तथा अलौकिक शक्तियां प्रदान करने में समर्थ हैं। भारत के भैरव मंदिरों में काशी के काल-भैरव मंदिर तथा उज्जैन के बटुक-भैरव मंदिर मुख्य माने जाते हैं। इनके अतिरिक्त कुमाऊ मंडल में नैनीताल के निकट घोडाखाल में बटुक-भैरव, जिन्हें गोलू देवता के नाम से जाना जाता हैं तथा विख्यात हैं।

क्यों लिया था शिव ने ‘भैरव’ अवतार?
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हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं के विभिन्न अवतारों का जिक्र किया गया है, जिनमें से ज्यादातर अवतार भगवान विष्णु और शक्ति के रहे हैं। वैसे भगवान शिव के भी विभिन्न अवतारों का उल्लेख कहीं-कहीं मिलता है। आज हम आपको भोलेनाथ के भीषण अवतार, भैरव से अवगत करवाएंगे जिन्हें उनके भक्त अपना रक्षक मानते हैं।

भैरव या भैरो को तांत्रिक और योगियों का इष्ट देव कहते हैं। तंत्र साधक विभिन्न प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करने के लिए भैरो की उपासना करते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भैरव, छाया ग्रह राहु के देवता हैं। इसलिए वे लोग जो राहु से मनोवांछित लाभ पाने के इच्छुक होते हैं वे भैरो की उपासना कर उन्हें प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं। पौराणिक धार्मिक दस्तावेजों में भैरो को देवी महाविद्या, जिन्हें भैरवी कहा जाता है, के साथ जोड़ा गया है। भैरवी अपने अनुयायियों की शुद्धि करती है, जिससे व्यक्ति के चरित्र, उसके विचार, शरीर, व्यक्तित्व आदि को शुद्धता मिलती है। शिव महापुराण में वर्णित ब्रह्माजी और भगवान विष्णु के बीच हुए संवाद में भैरव की उत्पत्ति से जुड़ा उल्लेख मिलता है। एक बार भगवान विष्णु ने ब्रह्माजी से पूछा कि इस ब्रह्माण्ड का श्रेष्ठतम रचनाकर कौन है? इस सवाल के जवाब में ब्रह्माजी ने स्वयं को सबसे श्रेष्ठ बताया। ब्रह्माजी का उत्तर सुनने के बाद भगवान विष्णु उनके शब्दों में समाहित अहंकार और अति आत्मविश्वास से क्रोधित हो गए और दोनों मिलकर चारों वेदों के पास अपने सवाल का जवाब हासिल करने के लिए गए। सबसे पहले वे ऋग्वेद के पास पहुंचे। ऋग्वेद ने जब उनका जवाब सुना तो कहा “शिव ही सबसे श्रेष्ठ हैं, वो सर्वशक्तिमान हैं और सभी जीव-जंतु उन्हीं में समाहित हैं”। जब ये सवाल यजुर्वेद से पूछा गया तो उन्होंने उत्तर दिया “यज्ञों के द्वारा हम जिसे पूजते हैं, वही सबसे श्रेष्ठ है और वो शिव के अलावा और कोई नहीं हो सकता”। सामवेद ने उत्तर दिया “विभिन्न साधक और योगी जिसकी आराधना करते हैं वही सबसे श्रेष्ठ है और जो इस पूरे विश्व को नियंत्रित करता है, वो त्र्यंबकम यानि शिव है”। अथर्ववेद ने कहा “भक्ति मार्ग पर चलकर जिसे पाया जा सकता है, जो इंसानी जीवन को पाप मुक्त करता है, मनुष्य की सारी चिंताएं हरता है, वह शंकर ही सबसे श्रेष्ठ है”। चारों वेदों के उत्तर सुनने के बाद भी भगवान विष्णु और ब्रह्माजी का अहंकार शांत नहीं हुआ और वे उनके जवाबों पर जोर-जोर से हंसने लगे। इतने में ही वहां दिव्य प्रकाश के रूप में महादेव आ पहुंचे। शिव को देखकर ब्रह्मा का पांचवां सिर क्रोध की अग्नि में जलने लगा। उसी वक्त भगवान शिव ने अपने अवतार की रचना की और उसे ‘काल’ नाम देकर कहा कि ये काल यानि मृत्यु का राजा है। वह काल या मृत्यु का राजा कोई और नहीं शिव का अवतार भैरव था। ब्रह्मा के क्रोध से जलते सिर को भैरव ने उनके धड़ से अलग कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भैरव से सभी तीर्थ स्थानों पर जाने के लिए कहा ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिल सके। ब्रह्मा का कटा सिर अपने हाथ में लेकर भैरव विभिन्न तीर्थ स्थानों में गए, पवित्र नदियों में स्नान किया ताकि उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति मिल सके। परंतु उन्होंने देखा कि ब्रह्म हत्या का पाप हर जगह उनका पीछा कर रहा है। लेकिन जैसे ही भैरव काशी पहुंचे, वैसे ही उनका पाप मिट गया। भैरव के हाथ से ब्रह्मा का सिर गिर गया। काशी में जिस स्थान पर ब्रह्मा का कटा सिर गिरा था उसे कपाल मोचन तीर्थ कहा जाता है। उस दिन से लेकर अब तक काल भैरव स्थायी रूप से काशी में ही निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है जो भी व्यक्ति काशी यात्रा के लिए जाता है या वहां रहता है उसे कपाल मोचन तीर्थ अवश्य जाना चाहिए। भैरव की उत्पत्ति से जुड़ी एक अन्य कथा मौजूद है, जिसका संबंध शिव और शक्ति से है। राजा दक्ष की पुत्री शक्ति मन ही मन शिव को अपना पति स्वीकार कर चुकी थीं। लेकिन उनके पिता किसी भी रूप में शिव के साथ अपनी पुत्री का विवाह करने के लिए राजी नहीं थे। परंतु शक्ति ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध जाकर शिव से विवाह किया, जिससे राजा दक्ष अत्यंत क्रोधित हो उठे। शिव का अपमान करने के उद्देश्य से राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसमें शिव और शक्ति को आमंत्रित नहीं किया। बिना निमंत्रण के शक्ति यज्ञ में पहुंची जहां राजा दक्ष ने शिव का अपमान किया। इस अपमान से शक्ति बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी। शक्ति के मृत शरीर को देखकर भगवान शिव क्रोध की अग्नि में जल उठे और इसी आवेग में उन्होंने दक्ष का सिर काट डाला। भगवान शिव, शक्ति के शव को अपने कांधे पर डालकर पूरे ब्रहमाण्ड का चक्कर लगाने लगे। निराशा और क्रोध के बीच वह अनियंत्रित हो उठे थे। ऐसे में भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से शक्ति के शव को टुकड़ों में विभाजित कर दिया। जहां-जहां शक्ति के धड़ के टुकड़े गिरे, वे शक्तिपीठ बन गए। कहा जाता है आज भी भगवान शिव, भैरव के अवतार में उन शक्तिपीठों की रक्षा करते हैं। अपने शत्रु पर विजय पाने, भौतिक सुख-सुविधाएं हासिल करने और हर क्षेत्र में सफलता पाने की कामना करने वाले लोग भैरव की उपासना करते हैं। ऐसा माना जाता है भैरव को प्रसन्न करना बहुत आसान है, वह अपने भक्तों की आराधना से बहुत जल्दी संतुष्ट हो जाते हैं। नारियल, काले तिल, फूल, सिंदूर सरसो का तेल भैरव पर अर्पण करना शुभ माना जाता है। काल भैरव की 8 परिक्रमा करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में किए गए सभी पापों से मुक्त हो जाता है। इसके अलावा जो व्यक्ति लगातार 6 महीने तक काल भैरव की उपासना करता है वह विभिन्न सिद्धियों का स्वामी बन जाता है। मार्गशीर्ष माह की अष्टमी पर काल भैरव की उपासना फलदायी मानी जाती है, इसके अलावा रविवार, मंगलवार, अष्टमी और चतुर्दशी को भी भैरव की आराधना करने का प्रावधान है।

भैरव को खुश करने के लिए जरूर आजमाएं
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स्मृति आदित्य| 
यूं तो भगवान भैरवनाथ को खुश करना बेहद आसान है लेकिन अगर वे रूठ जाएं तो मनाना बेहद मुश्किल। पेश है काल भैरव अष्टमी पर कुछ खास सरल उपाय... 
1. रविवार, बुधवार या गुरुवार के दिन एक रोटी लें। इस रोटी पर अपनी तर्जनी और मध्यमा अंगुली से तेल में डुबोकर लाइन खींचें। यह रोटी किसी भी दो रंग वाले कुत्ते को खाने को दीजिए। अगर कुत्ता यह रोटी खा लें तो समझिए आपको भैरव नाथ का आशीर्वाद मिल गया। अगर कुत्ता रोटी सूंघ कर आगे बढ़ जाए तो इस क्रम को जारी रखें लेकिन सिर्फ हफ्ते के इन्हीं तीन दिनों में (रविवार, बुधवार या गुरुवार)। यही तीन दिन भैरव नाथ के माने गए है।

2. उड़द के पकौड़े शनिवार की रात को कड़वे तेल में बनाएं और रात भर उन्हें ढंककर रखें। सुबह जल्दी उठकर प्रात: 6 से 7 के बीच बिना किसी से कुछ बोलें घर से निकले और रास्ते में मिलने वाले पहले कुत्ते को खिलाएं। याद रखें पकौड़े डालने के बाद कुत्ते को पलट कर ना देखें। यह प्रयोग सिर्फ रविवार के लिए हैं।

3. शनिवार के दिन शहर के किसी भी ऐसे भैरव नाथ जी का मंदिर खोजें जिन्हें लोगों ने पूजना लगभग छोड़ दिया हो। रविवार की सुबह सिंदूर, तेल, नारियल, पुए और जलेबी लेकर पहुंच जाएं। मन लगाकर उनकी पूजन करें। बाद में 5 से लेकर 7 साल तक के बटुकों यानी लड़कों को चने-चिरौंजी का प्रसाद बांट दें। साथ लाए जलेबी,नारियल, पुए आदि भी उन्हें बांटे। याद रखिए कि अपूज्य भैरव की पूजा से भैरवनाथ विशेष प्रसन्न होते हैं। 

4. प्रति गुरुवार कुत्ते को गुड़ खिलाएं। 

5. रेलवे स्टेशन पर जाकर किसी कोढ़ी, भिखारी को मदिरा की बोतल दान करें। 

6. सवा किलो जलेबी बुधवार के दिन भैरव नाथ को चढ़ाएं और कुत्तों को खिलाएं। 

7. शनिवार के दिन कड़वे तेल में पापड़, पकौड़े, पुए जैसे विविध पकवान तलें और रविवार को गरीब बस्ती में जाकर बांट दें। 

8. रविवार या शुक्रवार को किसी भी भैरव मं‍दिर में गुलाब, चंदन और गुगल की खुशबूदार 33 अगरबत्ती जलाएं। 

9. पांच नींबू, पांच गुरुवार तक भैरव जी को चढ़ाएं। 
10. सवा सौ ग्राम काले तिल, सवा सौ ग्राम काले उड़द, सवा 11 रुपए, सवा मीटर काले कपड़े में पोटली बनाकर भैरव नाथ के मंदिर में बुधवार के दिन चढ़ाएं।

साधना नियम व सावधानी 
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1. यदि आप भैरव साधना किसी मनोकामना के लिए कर रहे हैं तो अपनी मनोकामना का संकल्प बोलें और फिर साधना शुरू करें।
2. यह साधना दक्षिण दिशा में मुख करके की जाती है।
3. रुद्राक्ष या हकीक की माला से मंत्र जप किया जाता है।
4. भैरव की साधना रात्रिकाल में ही करें।
5. भैरव पूजा में केवल तेल के दीपक का ही उपयोग करना चाहिए।
6. साधक लाल या काले वस्त्र धारण करें।
7. हर मंगलवार को लड्डू के भोग को पूजन-साधना के बाद कुत्तों को खिला दें और नया भोग रख दें।
8. भैरव को अर्पित नैवेद्य को पूजा के बाद उसी स्थान पर ग्रहण करना चाहिए।
9. भैरव की पूजा में दैनिक नैवेद्य दिनों के अनुसार किया जाता है, जैसे रविवार को चावल-दूध की खीर, सोमवार को मोतीचूर के लड्डू, मंगलवार को घी-गुड़ अथवा गुड़ से बनी लापसी या लड्डू, बुधवार को दही-बूरा, गुरुवार को बेसन के लड्डू, शुक्रवार को भुने हुए चने, शनिवार को तले हुए पापड़, उड़द के पकौड़े या जलेबी का भोग लगाया जाता है।

भगवान् भैरव का ध्यान तिन प्रकार से किया जाता है।
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।।ध्यान।।
सात्विक
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बाल-स्वरुप वटुक भैरव-स्फटिकोज्जवल-स्वरुप है जिनका,घुँघराले केशों से सज्जित-गरिमा-युक्त रुप है जिनका,दिव्य कलात्मक मणि-मय किंकिणि नूपुर से वे जो शोभित हैं,भव्य-स्वरुप त्रिलोचन-धारी जिनसे पूर्ण-सृष्टि सुरभित है ।कर-कमलों में शूल-दण्ड-धारी का ध्यान-यजन करता हूँ,रात्रि-दिवस उन ईश वटुक-भैरव का मैं वन्दन करता हूँ ।
राजस
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नवल उदीयमान-सविता-सम, भैरव का शरीर शोभित है,रक्त-अंग-रागी, त्रैलोचन हैं जो, जिनका मुख हर्षित है ।नील-वर्ण-ग्रीवा में भूषण, रक्त-माल धारण करते हैं,
शूल, कपाल, अभय, वर-मुद्रा ले साधक का भय हरते हैं ।रक्त-वस्त्र बन्धूक-पुष्प-सा जिनका, जिनसे है जग सुरभित,ध्यान करुँ उन भैरव का, जिनके केशों पर चन्द्र सुशोभित ।
तामस 
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तन की कान्ति नील-पर्वत-सी, मुक्ता-माल, चन्द्र धारण कर,पिंगल-वर्ण-नेत्रवाले वे ईश दिगम्बर, रुप भयंकर ।
डमरु, खड्ग, अभय-मुद्रा, नर-मुण्ड, शुल वे धारण करते,अंकुश, घण्टा, सर्प हस्त में लेकर साधक का भय हरते ।दिव्य-मणि-जटित किंकिणि, नूपुर आदि भूषणों से जो शोभित,भीषण सन्त-पंक्ति-धारी भैरव हों मुझसे पूजित, अर्चित ।

तांत्रोक्त भैरव कवच
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ॐ सहस्त्रारे महाचक्रे कर्पूरधवले गुरुः |
पातु मां बटुको देवो भैरवः सर्वकर्मसु ||
पूर्वस्यामसितांगो मां दिशि रक्षतु सर्वदा |
आग्नेयां च रुरुः पातु दक्षिणे चण्ड भैरवः ||
नैॠत्यां क्रोधनः पातु उन्मत्तः पातु पश्चिमे |
वायव्यां मां कपाली च नित्यं पायात् सुरेश्वरः ||
भीषणो भैरवः पातु उत्तरास्यां तु सर्वदा |
संहार भैरवः पायादीशान्यां च महेश्वरः ||
ऊर्ध्वं पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः |
सद्योजातस्तु मां पायात् सर्वतो देवसेवितः ||
रामदेवो वनान्ते च वने घोरस्तथावतु |
जले तत्पुरुषः पातु स्थले ईशान एव च ||
डाकिनी पुत्रकः पातु पुत्रान् में सर्वतः प्रभुः |
हाकिनी पुत्रकः पातु दारास्तु लाकिनी सुतः ||
पातु शाकिनिका पुत्रः सैन्यं वै कालभैरवः |
मालिनी पुत्रकः पातु पशूनश्वान् गंजास्तथा ||
महाकालोऽवतु क्षेत्रं श्रियं मे सर्वतो गिरा |
वाद्यम् वाद्यप्रियः पातु भैरवो नित्यसम्पदा ||

भैरव की प्रसन्नता के लिए महाकाल भैरव स्तोत्र
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 ॐ महाकाल भैरवाय नम:

जलद् पटलनीलं दीप्यमानोग्रकेशं, 
त्रिशिख डमरूहस्तं चन्द्रलेखावतंसं!

विमल वृष निरुढं चित्रशार्दूळवास:, 
विजयमनिशमीडे विक्रमोद्दण्डचण्डम्!!

सबल बल विघातं क्षेपाळैक पालम्, 
बिकट कटि कराळं ह्यट्टहासं विशाळम्!

करगतकरबाळं नागयज्ञोपवीतं, 
भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम्!!

भैरव स्तोत्र

यं यं यं यक्ष रूपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं।
सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम्।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।1।।

रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम्।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम्।।
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।1।।

रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम्।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम्।।
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।2।।

लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वकरालं।
धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम्।।
रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम्।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।3।।

वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम्।
खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम्।। 
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम्।
मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।4।।
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालांधकारम्।
क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन नेत्र संदिप्यमानम्।।
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहनगर्जित भूमिकम्पं।
बं बं बं बाललील प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।5।।

ॐ तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पांत दहन प्रभो!
भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातु महर्षि!!

।। १०८ नामावली श्रीबटुक-भैरव ।।
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भैरव, भूतात्मा, भूतनाथ को है मेरा शत-शत प्रणाम ।
क्षेत्रज्ञ, क्षेत्रदः, क्षेत्रपाल, क्षत्रियः भूत-भावन जो हैं,
जो हैं विराट्, जो मांसाशी, रक्तपः, श्मशान-वासी जो हैं,
स्मरान्तक, पानप, सिद्ध, सिद्धिदः वही खर्पराशी जो हैं,
वह सिद्धि-सेवितः, काल-शमन, कंकाल, काल-काष्ठा-तनु हैं ।
उन कवि-स्वरुपः, पिंगल-लोचन, बहु-नेत्रः भैरव को प्रणाम ।
वह देव त्रि-नेत्रः, शूल-पाणि, कंकाली, खड्ग-पाणि जो हैं,
भूतपः, योगिनी-पति, अभीरु, भैरवी-नाथ भैरव जो हैं,
धनवान, धूम्र-लोचन जो हैं, धनदा, अधन-हारी जो हैं,
जो कपाल-भृत हैं, व्योम-केश, प्रतिभानवान भैरव जो हैं,
उन नाग-केश को, नाग-हार को, है मेरा शत-शत प्रणाम ।
कालः कपाल-माली त्रि-शिखी कमनीय त्रि-लोचन कला-निधि
वे ज्वलक्षेत्र, त्रैनेत्र-तनय, त्रैलोकप, डिम्भ, शान्त जो हैं,
जो शान्त-जन-प्रिय, चटु-वेष, खट्वांग-धारकः वटुकः हैं,
जो भूताध्यक्षः, परिचारक, पशु-पतिः, भिक्षुकः, धूर्तः हैं,
उन शुर, दिगम्बर, हरिणः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो पाण्डु-लोचनः, शुद्ध, शान्तिदः, वे जो हैं भैरव प्रशान्त,
शंकर-प्रिय-बान्धव, अष्ट-मूर्ति हैं, ज्ञान-चक्षु-धारक जो हैं,
हैं वहि तपोमय, हैं निधीश, हैं षडाधार, अष्टाधारः,
जो सर्प-युक्त हैं, शिखी-सखः, भू-पतिः, भूधरात्मज जो हैं,
भूधराधीश उन भूधर को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
नीलाञ्जन-प्रख्य देह-धारी, सर्वापत्तारण, मारण हैं,
जो नाग-यज्ञोपवीत-धारी, स्तम्भी, मोहन, जृम्भण हैं,
वह शुद्धक, मुण्ड-विभूषित हैं, जो हैं कंकाल धारण करते,
मुण्डी, बलिभुक्, बलिभुङ्-नाथ, वे बालः हैं, वे क्षोभण हैं ।
उन बाल-पराक्रम, दुर्गः को है मेरा शत-शत-शत प्रणाम ।
जो कान्तः, कामी, कला-निधिः, जो दुष्ट-भूत-निषेवित हैं,
जो कामिनि-वश-कृत, सर्व-सिद्धि-प्रद भैरव जगद्-रक्षाकर हैं,
जो वशी, अनन्तः हैं भैरव, वे माया-मन्त्रौषधि-मय हैं,
जो वैद्य, विष्णु, प्रभु सर्व-गुणी, मेरे आपद्-उद्धारक हैं ।
उन सर्व-शक्ति-मय भैरव-चरणों में मेरा शत-शत प्रणाम ।
।। फल-श्रुति ।।
इन अष्टोत्तर-शत नामों को-भैरव के जो पढ़ता है,
शिव बोले – सुख पाता, दुख से दूर सदा वह रहता है ।
उत्पातों, दुःस्वप्नों, चोरों का भय पास न आता है,
शत्रु नष्ट होते, प्रेतों-रोगों से रक्षित रहता है ।
रहता बन्धन-मुक्त, राज-भय उसको नहीं सताता है,
कुपित ग्रहों से रक्षा होती, पाप नष्ट हो जाता है ।
अधिकाधिक पुनुरुक्ति पाठ की, जो श्रद्धा-पूर्वक करते हैं,
उनके हित कुछ नहीं असम्भव, वे निधि-सिद्धि प्राप्त करते हैं ।

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्र
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।। श्री मार्कण्डेय उवाच ।। 
भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम ! 
पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः ।। 
इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं । 
तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् ।। 
तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !।।
।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।
इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !
स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये ।।
सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् ।
दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् ।। 
अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् । 
महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् ।। 
महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।
न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा ।।
शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने । 
महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च ।। 
निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् ।
स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः ।। 
श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् ।।

विनियोगः- 
ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

ध्यानः- मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते । दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः ।। 
भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् ।
स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः ।।
।। स्तोत्र-पाठ ।। 
ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने, नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने ।। 
रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने ।
नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः ।
नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः ।।
नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः ।
नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे ।। 
अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने ।
अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवाय ते नमः ।।
नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने ।
श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः ।। 
दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः ।
नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः ।। 
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे ।
अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः ।।
नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः । 
नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः ।।
नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः ।
नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः ।। 
नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने । 
गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे ।। 
नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः ।
नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः ।।
दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः ।
सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने ।। 
रुद्र-लोकेश-पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च ।
नमोऽजामल-बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते ।। 
नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने ।
उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः ।। 
नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते ।
नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने ।। 
नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः ।
धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः ।।
नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः ।
नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे ।। 
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः ।
नमः सुवर्ण-वर्णाय, महा-पुण्याय ते नमः ।।
नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे ।
नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः ।।
नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने ।
नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने ।। 
नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः । 
नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः ।।
द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने ।
नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः ।।
पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने ।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने ।। 
नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः ।
नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे ।। 
स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः ।
नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने ।।
नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने ।
नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे ।। 
चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने । 
कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने ।।
भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने ।
नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः ।।
स्तवेनानेन सन्तुष्टो, भव लोकेश-भैरव !
पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल ! 
श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम् ।
प्रसीद सकलान् कामान्, प्रयच्छ मम सर्वदा ।। 
।। फल-श्रुति ।। 
श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् । 
मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् ।। 
यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते ।
लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् ।।
चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् । 
स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः ।। 
संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः ।
स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः ।
स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ।
सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।। 
लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् ।
न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।
म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ।
अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।। 
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।
य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा ।
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं ।।

मूल-मन्त्रः- 
“ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं सः वं आपदुद्धारणाय अजामल-बद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण-भैरवाय मम दारिद्र्य-विद्वेषणाय श्रीं महा-भैरवाय नमः ।”

श्री भैरव चालीसा 
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॥ दोहा ॥

श्री गणपति, गुरु गौरि पद, प्रेम सहित धरि माथ ।
चालीसा वन्दन करों, श्री शिव भैरवनाथ ॥

श्री भैरव संकट हरण, मंगल करण कृपाल ।
श्याम वरण विकराल वपु, लोचन लाल विशाल ॥

|| चौपाई ||

जय जय श्री काली के लाला । 
जयति जयति काशी-कुतवाला ॥

जयति बटुक भैरव जय हारी । 
जयति काल भैरव बलकारी ॥

जयति सर्व भैरव विख्याता । 
जयति नाथ भैरव सुखदाता ॥

भैरव रुप कियो शिव धारण । 
भव के भार उतारण कारण ॥

भैरव रव सुन है भय दूरी । 
सब विधि होय कामना पूरी ॥

शेष महेश आदि गुण गायो । 
काशी-कोतवाल कहलायो ॥

जटाजूट सिर चन्द्र विराजत । 
बाला, मुकुट, बिजायठ साजत ॥

कटि करधनी घुंघरु बाजत । 
दर्शन करत सकल भय भाजत ॥

जीवन दान दास को दीन्हो । 
कीन्हो कृपा नाथ तब चीन्हो ॥

वसि रसना बनि सारद-काली । 
दीन्यो वर राख्यो मम लाली ॥

धन्य धन्य भैरव भय भंजन । 
जय मनरंजन खल दल भंजन ॥

कर त्रिशूल डमरु शुचि कोड़ा । 
कृपा कटाक्ष सुयश नहिं थोड़ा ॥

जो भैरव निर्भय गुण गावत । 
अष्टसिद्घि नवनिधि फल पावत ॥

रुप विशाल कठिन दुख मोचन । 
क्रोध कराल लाल दुहुं लोचन ॥

अगणित भूत प्रेत संग डोलत । 
बं बं बं शिव बं बं बोतल ॥

रुद्रकाय काली के लाला । 
महा कालहू के हो काला ॥

बटुक नाथ हो काल गंभीरा । 
श्वेत, रक्त अरु श्याम शरीरा ॥

करत तीनहू रुप प्रकाशा । 
भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा ॥

त्न जड़ित कंचन सिंहासन । 
व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन ॥

तुमहि जाई काशिहिं जन ध्यावहिं । 
विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं ॥

जय प्रभु संहारक सुनन्द जय । 
जय उन्नत हर उमानन्द जय ॥

भीम त्रिलोकन स्वान साथ जय । 
बैजनाथ श्री जगतनाथ जय ॥

महाभीम भीषण शरीर जय । 
रुद्र त्र्यम्बक धीर वीर जय ॥

अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय । 
श्वानारुढ़ सयचन्द्र नाथ जय ॥

निमिष दिगम्बर चक्रनाथ जय । 
गहत अनाथन नाथ हाथ जय ॥

त्रेशलेश भूतेश चन्द्र जय । 
क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय ॥

श्री वामन नकुलेश चण्ड जय । 
कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय ॥

रुद्र बटुक क्रोधेश काल धर । 
चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर ॥

करि मद पान शम्भु गुणगावत । 
चौंसठ योगिन संग नचावत ।

करत कृपा जन पर बहु ढंगा । 
काशी कोतवाल अड़बंगा ॥

देयं काल भैरव जब सोटा । 
नसै पाप मोटा से मोटा ॥

जाकर निर्मल होय शरीरा। 
मिटै सकल संकट भव पीरा ॥

श्री भैरव भूतों के राजा । 
बाधा हरत करत शुभ काजा ॥

ऐलादी के दुःख निवारयो । 
सदा कृपा करि काज सम्हारयो ॥

सुन्दरदास सहित अनुरागा । 
श्री दुर्वासा निकट प्रयागा ॥

श्री भैरव जी की जय लेख्यो । 
सकल कामना पूरण देख्यो ॥

॥ दोहा ॥

जय जय जय भैरव बटुक, स्वामी संकट टार ।
कृपा दास पर कीजिये, शंकर के अवतार ॥

जो यह चालीसा पढ़े, प्रेम सहित सत बार ।
उस घर सर्वानन्द हों, वैभव बड़े अपार ॥

|| इति श्री भैरव चालीसा समाप्त ||

श्री काल भैरव बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मंत्र
**********************************
।।विनियोगः।।
ॐ अस्य श्री बटुक भैरव शाबर स्तोत्र मन्त्रस्य सप्त ऋषिः ऋषयः,
मातृका छंदः, श्री बटुक भैरव देवता, ममेप्सित कामना सिध्यर्थे विनियोगः.

ॐ काल भैरु बटुक भैरु ! भूत भैरु ! महा भैरव
महा भी विनाशनम देवता सर्व सिद्दिर्भवेत .
शोक दुःख क्षय करं निरंजनम, निराकरम
नारायणं, भक्ति पूर्णं त्वं महेशं. सर्व
कामना सिद्दिर्भवेत. काल भैरव, भूषण वाहनं
काल हन्ता रूपम च, भैरव गुनी.
महात्मनः योगिनाम महा देव स्वरूपं. सर्व
सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु ! महा भैरव
महा भय विनाशनम देवता. सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ त्वं ज्ञानं, त्वं ध्यानं, त्वं योगं, त्वं तत्त्वं, त्वं
बीजम, महात्मानम, त्वं शक्तिः, शक्ति धारणं
त्वं महा देव स्वरूपं. सर्व सिद्धिर्भवेत. ॐ काल भैरु,
बटुक भैरु, भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता. सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ कालभैरव ! त्वं नागेश्वरम नाग हारम च त्वं वन्दे
परमेश्वरम, ब्रह्म ज्ञानं, ब्रह्म ध्यानं, ब्रह्म योगं,
ब्रह्म तत्त्वं, ब्रह्म बीजम महात्मनः, ॐ काल भैरु,
बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
त्रिशूल चक्र, गदा पानी पिनाक धृक ! ॐ काल
भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं विना गन्धं, विना धूपम,
विना दीपं, सर्व शत्रु विनाशनम सर्व
सिद्दिर्भवेत विभूति भूति नाशाय, दुष्ट क्षय
कारकम, महाभैवे नमः. सर्व दुष्ट विनाशनम सेवकम
सर्व सिद्धि कुरु. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं महा-ज्ञानी , त्वं महा-
ध्यानी, महा-योगी, महा-बलि, तपेश्वर !
देही में सर्व सिद्धि . त्वं भैरवं भीम नादम च
नादनम. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव
महा भय विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं ! अमुकम मारय मारय,
उच्चचाटय उच्चचाटय, मोहय मोहय, वशं कुरु कुरु.
सर्वार्थ्कस्य सिद्धि रूपम, त्वं महा कालम ! काल
भक्षणं, महा देव स्वरूपं त्वं. सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल
भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं गोविन्दं गोकुलानंदम !
गोपालं गो वर्धनम धारणं त्वं! वन्दे परमेश्वरम.
नारायणं नमस्कृत्य, त्वं धाम शिव रूपं च. साधकं
सर्व सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं राम लक्ष्मणं, त्वं श्रीपतिम
सुन्दरम, त्वं गरुड़ वाहनं, त्वं शत्रु हन्ता च, त्वं यमस्य
रूपं, सर्व कार्य सिद्धि कुरु कुरु. ॐ काल भैरु, बटुक
भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता!
सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं ब्रह्म विष्णु महेश्वरम, त्वं जगत
कारणं, सृस्ती स्तिथि संहार कारकम रक्त बीज
महा सेन्यम, महा विद्या, महा भय विनाशनम .
ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु, महा भैरव महा भय
विनाशनम देवता! सर्व सिद्दिर्भवेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं आहार मध्य, मांसं च, सर्व दुष्ट
विनाशनम, साधकं सर्व सिद्धि प्रदा.
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं अघोर अघोर, महा अघोर,
सर्व अघोर, भैरव काल ! ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत
भैरु, महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ आं ह्रीं ह्रीं ह्रीं, ॐ आं क्लीं क्लीं क्लीं, ॐ आं
क्रीं क्रीं क्रीं, ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं, रूं रूं रूं, क्रूम क्रूम
क्रूम, मोहन ! सर्व सिद्धि कुरु कुरु. ॐ आं
ह्रीं ह्रीं ह्रीं अमुकम उच्चचाटय उच्चचाटय, मारय
मारय, प्रूम् प्रूम्, प्रें प्रें , खं खं, दुष्टें, हन हन अमुकम
फट स्वाहा, ॐ काल भैरु, बटुक भैरु, भूत भैरु,
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता! सर्व
सिद्दिर्भवेत.
ॐ बटुक बटुक योगं च बटुक नाथ महेश्वरः. बटुके वट
वृक्षे वटुकअं प्रत्यक्ष सिद्ध्येत. ॐ काल भैरु बटुक भैरु
भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्दयेत.
ॐ कालभैरव, शमशान भैरव, काल रूप कालभैरव !
मेरो वैरी तेरो आहार रे ! काडी कलेजा चखन
करो कट कट. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव
महा भय विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ नमो हँकारी वीर ज्वाला मुखी ! तू दुष्टें बंध
करो बिना अपराध जो मोही सतावे, तेकर
करेजा चिधि परे, मुख वाट लोहू आवे. को जाने?
चन्द्र सूर्य जाने की आदि पुरुष जाने. काम रूप
कामाक्षा देवी. त्रिवाचा सत्य फुरे,
ईश्वरो वाचा . ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्दयेत.
ॐ कालभैरव त्वं डाकिनी शाकिनी भूत
पिसाचा सर्व दुष्ट निवारनम कुरु कुरु साधका-
नाम रक्ष रक्ष. देही में ह्रदये सर्व सिद्धिम. त्वं
भैरव भैरवीभयो, त्वं महा भय विनाशनम कुरु . ॐ
काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय
विनाशनम देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. पश्चिम दिशा में सोने का मठ, सोने
का किवार, सोने का ताला, सोने की कुंजी,
सोने का घंटा, सोने की संकुली.
पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.
दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. उत्तर दिशा में रूपे का मठ, रूपे
का किवार, रूपे का ताला,रूपे की कुंजी, रूपे
का घंटा, रूपे की संकुली. पहली संकुली अष्ट
कुली नाग को बांधो. दूसरी संकुली अट्ठारह
कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. पूरब दिशा में तामे का मठ, तामे
का किवार, तामे का ताला,तामे की कुंजी,
तामे का घंटा, तामे की संकुली.
पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.
दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ आं ह्रीं. दक्षिण दिशा में अस्थि का मठ,
तामे का किवार,
अस्थि का ताला,अस्थि की कुंजी,
अस्थि का घंटा, अस्थि की संकुली.
पहली संकुली अष्ट कुली नाग को बांधो.
दूसरी संकुली अट्ठारह कुली जाती को बांधो.
तीसरी संकुली वैरी दुष्ट्तन को बांधो,
चौथी संकुली शाकिनी डाकिनी को बांधो,
पांचवी संकुली भूत प्रेतों को बांधो,
जरती अग्नि बांधो, जरता मसान बांधो, जल
बांधो थल बांधो, बांधो अम्मरताई,
जहाँ जहाँ जाई,जेहि बाँधी मंगावू,
तेहि का बाँधी लावो. वाचा चुके, उमा सूखे,
श्री बावन वीर ले जाये, सात समुंदर तीर.
त्रिवाचा फुरो मंत्र , ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्दयेत.
ॐ काल भैरव ! त्वं आकाशं, त्वं पातालं, त्वं
मृत्युलोकं, चतुर भुजम, चतुर मुखं, चतुर बाहुम, शत्रु
हन्ता त्वं भैरव ! भक्ति पूर्ण कलेवरम. ॐ काल भैरु
बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! तुम जहाँ जहाँ जाहू, जहाँ दुश्मन
बेठो होए, तो बैठे को मारो, चालत होए
तो चलते को मारो, सोवत होए तो सोते
को मरो, पूजा करत होए तो पूजा में मारो,
जहाँ होए तहां मरो वयाग्रह ले भैरव दुष्ट
को भक्शो. सर्प ले भैरव दुष्ट को दसो. खडग ले
भैरव दुष्ट को शिर गिरेवान से मारो. दुष्तन
करेजा फटे. त्रिशूल ले भैरव शत्रु चिधि परे. मुख
वाट लोहू आवे. को जाने? चन्द्र सूरज जाने
की आदि पुरुष जाने. कामरूप कामाक्षा देवी.
त्रिवाचा सत्य फुरे मंत्र ईश्वरी वाचा. ॐ काल
भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय विनाशनम
देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं. वाचा चुके उमा सूखे, दुश्मन मरे
अपने घर में. दुहाई भैरव की. जो मूर वचन झूठा होए
तो ब्रह्म का कपाल टूटे, शिवजी के तीनो नेत्र
फूटें. मेरे भक्ति, गुरु की शक्ति फुरे मंत्र
ईश्वरी वाचा. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं.भूतस्य भूत नाथासचा,भूतात्म
ा भूत भावनः, त्वं भैरव सर्व सिद्धि कुरु कुरु. ॐ
काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु ! महा भैरव महा भय
विनाशनम देवता सर्व सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं ज्ञानी, त्वं ध्यानी, त्वं
योगी, त्वं जंगम स्थावरम त्वं सेवित सर्व काम
सिद्धिर भवेत्. ॐ काल भैरु बटुक भैरु भूत भैरु !
महा भैरव महा भय विनाशनम देवता सर्व
सिद्धिर भवेत् .
ॐ काल भैरव ! त्वं वन्दे परमेश्वरम, ब्रह्म रूपम,
प्रसन्नो भव. गुनी महात्मानं महादेव स्वरूपं सर्व
सिद्दिर भवेत्.

।। रूद्र-भैरव कृपा प्रसाद ।।
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।।विनियोग ।।
अस्य श्रीरूद्र-भैरव मंत्रस्य महामाया सहितं श्रीमन्नारायण ऋषि:, सदाशिव महेश्वर-मृत्युंजय-रुद्रो-देवता,विराट छन्द:,श्रीं ह्रीं क्ली महा महेश्वर बीजं,ह्रीं गौरी शक्ति:,रं ॐकारस्य दुर्गा कीलकं,
मम रूद्र-भैरव कृपा प्रसाद प्राप्तत्यर्थे मंत्र जपे विनियोग: !!!

।। ऋषि आदि न्यास ।।

ॐ महामाया सहितं श्रीमन्नारायण ऋषये नम: शिरसि !

सदाशिव -महेश्वर -मृत्युंजयरुद्रो देवताये नम: हृदये !

विराट छन्दसे नम: मुखे !

श्रीं ह्रीं कलीम महा महेश्वर बीजाय नम: नाभयो !

रं ॐकारस्य कीलकाय नम:गुह्ये !

मम रूद्र-भैरव कृपा प्रसाद प्राप्तत्यर्थे मंत्र जपे विनियोगाय नम: सर्वांगे !!!

।।करन्यास।।

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने
ॐ ह्रीं रां सर्व-शक्ति धाम्ने ईशानात्मने अंगुष्ठाभ्यां नम: !

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने
नं रीं नित्य -तृप्ति धाम्ने तत्पुरुषात्मने तर्जिनीभ्यां स्वाहा !

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने
ॐ मं रुं अनादि शक्ति धाम्ने अघोरात्मने मध्यमाभ्यां वषट !

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने
ॐ शिं रैं स्वतंत्र -शक्ति धाम्ने वामदेवात्मने अनामिकाभ्यां हुम् !

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने
ॐ वां रौं अलुप्त शक्ति धाम्ने सद्योजात्मने कनिष्ठिकाभ्यां वोषट !

ॐ नमो भगवते ज्वल ज्ज्वालामालिने
ॐ यं र: अनादि शक्ति धाम्ने सर्वात्मने करतल कर पृष्ठाभ्यां फट !!!

।।निर्देश।।
इसी भांति हृदयादि षड अंग न्यास करे …..!
न्यास के पश्चात् ”श्री रूद्र-भैरव” का ध्यान करे !

।। ध्यान ।।
वज्र दंष्ट्रम त्रिनयनं काल कंठमरिन्दम !
सहस्रकरमप्युग्रम वन्दे शम्भु उमा पतिम !!!

निर्देश:ध्यान के पश्चात् मानस-पूजन करे ! पश्चात् मंत्र जप करे !

।।मंत्र ।।
ॐ नमो भगवते रुद्राय आगच्छ आगच्छ प्रवेश्य प्रवेश्य सर्व-शत्रुंनाशय-नाशय धनु: धनु: पर मंत्रान आकर्षय-आकर्षय स्वाहा !!
उपरोक्त पोस्टो को व्हाट्सऐप के माध्यम,पिछले कुछ दिनों में अलग अलग लेखो द्वारा संकलित किया गया है।भैरव साधना की मेरी अनुभूतियों द्वारा समझने के लिए आप मुझसे प्रसनल बात कर सकते है।इस साधना में जो भी मंत्र कवच दिए गए है वे सभ भगवान शिव द्वारा प्रदान किये गए है।इस संकलन से किसी मित्र के ह्रदय को दुःख हो तो क्षमा कर संपर्क करे।

चेतावनी:-हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे। अन्यथा मानसिक हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
+919827374074
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9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर संकलन किया है आपने

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  3. इससे अच्छा भैरव श्रोत कोई हो हि नही सकता,, आपका बहुत बहुत धन्यबाद

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  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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