कार्य वही सफ़ल होता है जो पुरे मन से किया गया हो !!
अत: जो भी करे पुर्ण मन से करे !! संबंघ वही सफल होते है जिनमे प्रेम हो !और मन उसमे रमता है जिससे प्रेम हो .....
ये प्रेम एक समय मे मात्र एक से ही हो सकता !!
या ईश्वर से या स्वयं से......जहा स्वयं से प्रेम होता है वहाँ ईश्वर जुदा होता है!!ईश्वर तक पहुचने का मार्ग मात्र अपनी ही चिता जलाने से प्राप्त होता है !!जब मै होता है तो वो नही होता और जब वो होता है तो मै जुदा होता हुँ !! आदेश अलख निरंजन
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©
राहुलनाथ,भिलाई
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सोमवार, 17 अप्रैल 2017
अकेला
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