शक्ति(नारी) उपासना एवं तंत्र भाग-02
तंत्र में नारी शक्ति का विशेष योगदानका भारतीय साहित्य को मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया गया है इन दोनों भागो का नाम है निगम एवं आगम ।निगम से आशय है वो ज्ञान जो वेदों में संग्रहित किया गया है और आगम से आशय है वो ज्ञान जो तंत्रोक्त है एवं जिसे तंत्र कहा जाता है।इसमें विचारणीय विषय यह है कि निगम के प्रति सारे विश्व ने सम्मान का प्रदर्शन किया निगम के लिए उच्च कोटि के विद्वानों एवं दार्शनिको ने अपने बहुमूल्य जीवनका अधिकाँश समय निगम के सूत्रों को समझने,समझाने एवं प्रचार -प्रसार में पूर्ण किया एवं उसे मूल रूप से ग्रहण भी किया ।और ठीक इसके विपरीत आगम को पूर्ण रूप से सफलता नहीं मिल पाई ,जिसके बहुत से कारणों में से एक है भक्ति भाव का होना या शक्ति भाव का।आप एक समय में किसी एक भाव पे ही कार्य कर सकते है ।आगम अपने आप में पूर्ण रूपेण शक्ति मार्ग रहा है।आगम तंत्र का मार्ग है यहां इच्छाओं को पूर्ण करने हेतु भक्ति का नहीं शक्ति का उपयोग किया जाता है फिर वो मारण हो मोहन हो या फिर उच्चाटन।वही निगम मात्र एक भक्ति का मार्ग है स्वयं को विसर्जित करने का मार्ग है,प्रभु या गुरु के चरणों में समर्पण का मार्ग है ।इस समाज में एक बहुत बड़ा झुण्ड है जो हमेशा भयभीत रहता है ना कुछ करता है और ना किसी को कुछ करने देता है।इस समाज में 50% लोग इस झुण्ड से जुड़े हुए है इनका आशय है कि वो परमात्मा सब को उसकी आवश्यकता के अनुसार फल देता है।इसी समाज में 20%लोग ऐसे भी है जो ना आगम को मानते है ना निगम को ,वे मात्र कर्म प्रधान ही है जितना वे काम करेंगे उतना उनको वेतन मिलेगा और वे उस वेतन में स्वयं प्रसन्न रहते है और प्रयास करते है कि उनका परिवार भी प्रसन्न रहे।वे ना भक्ति करते है ना शक्ति की व्याख्या करते है जो जैसा है उसे स्वीकार कर लेते है।इसी समाज में 10%लोग ऐसे भी होते है जो आवश्यकता अनुसार आगम एवं निगम में भटकते रहते है अपना रूप कभी आगमनी एवं निगमी बनाते रहते है ये किसी के नहीं होते ये बहुरूपिये मात्रा होते,इनका नारा होता है"जहां फटे बम ,वहां बसे हम,ये पूर्णतः बिन पेंदी के लोटे के समान होते है।अब बजे 20%लोग ,ये आगम होते है तामसिक होते है शक्तिशाली होते है ये अपनी इच्छानुसार तंत्र का उपयोग कर हर परिस्थिति को अपने बस में करने में सक्षम होते है।तंत्र के शक्ति संप्रदाय की प्रमुख साधना "मातृका-साधना"है।किन्तु वेदों में भी इस मातृका साधना को खोजा जा सकता है वेदों में दिति,अदिति,सरस्वतीं,मही,ईला,सरमा जैसी देवियो का वर्णन मिलता है।मातृका साधना का वर्णन उपनिषदों में भी प्राप्त होता है।शक्ति साधना का बीज देखा जाए तो वेदों से ही है किंतु उस काल में पूर्ण रूप से इसपे कार्य या प्रचार नहीं हो सका,कारण इसका सामान्य से ही रहा होगा। समाज में का एक बहुत बड़ा हिस्सा कल भी सात्विक था और आज भी सामान्य ही है और ये हिस्सा संस्कारो के अनुसार ही प्रतिक्रिया करता रहा है ऐसे में जब एक जैसी बुद्धि वालो का जमावड़ा हुआ तब उन्होंने महसूस किया कि तंत्र उचित नहीं होगा समाज के लिए और अधिक लोगो की तंत्र को सहानुभूति उस काल में नहीं मिल पाई होगी।इसके विपरीत फिर भी इस संसार में मातृका साधना हर धर्म संप्रदाय में अपनी पकड़ बनाये हुए है और भविष्य को देखते हुए ऐसा मेरा अनुमान है कि सारा जगत तंत्र मय अवश्य होगा ,ऐसा कहने का आशय मात्रा है कुछ रूढ़िवादी परमपरा,जैसे गुरु शिष्य के बीच का विवाद या एक निष्ट नहीं होना ।शाक्त शक्ति पूजा में एक ही आराध्य होता है वो है शक्ति एवं गुरु पद मात्र यहाँ शिव को ही प्राप्त होता है,हां ये बात अलग है कि आप जिससे विद्या का ज्ञान प्राप्त करते है वे भी गुरु तुल्य ही होते है किंतु भीतर से देखा जाए तो गुरु एक मात्र शिव ही दिखते है,ये शिव ही अलग अलग मानव के रूप में प्रतिभिम्बित हो रहे है मूल में ये एक ही है।
सभी सभ्यताएं इस वचन पे एकमत है कि सृष्टि के आरम्भ में मात्र मातृका का ही अस्तित्व रहा है।इसी मातृका से सृष्टि का जन्म हुआ है।ये मातृका नाम माता शब्द का ही पर्यायवाची रहा है ये मातृका साधक की सहायता मातृस्वरूपा बन कर ही करती है।और यह सभी जानते है कि माता का प्रमुख गुण,दया एवं ममता ही है ऐसे में ये मातृका ही कामधेनु बन सब का पोषण करती है।भौतिक जगत की सभी कामनो की पूर्णता की पूर्ण रूपेश शक्ति होने के कारण ,जन समूह का ध्यान इस तरफ आकर्षित होना एक सामान्य सी घटना ही प्रतीत होती है।
प्राचीन काल से ही बेबिलोनिया में "अमा",मिस्र में आकाश की देवी"नूट",चीन में जल देवी "नुची",ग्रीक में बुद्धि की देवी "एथेंस",रोम में देवी "ओट्स",काबुल में "मिलाता" देवी,नेपाल में "मंजुश्वरी देवी",उत्तरी अफ्रीका तियामत,मलिता,इश्तर,इनिन्ना,सुमेर देश में "निन्नी" नन्ना या "इनिंन्ना,एवं सीरिया में इष्टरदेवी ये सब मातृका देवी की ही प्रतिमूर्ति है।
क्रमशः....
*****जयश्री महाकाल****
******राहुलनाथ********
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
फेसबुक पेज:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
***********************************************
।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
***********************************************
चेतावनी-हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)
ब्लॉग साइड पे दिए गए गुरुतुल्य साधु-संतो,साधको, भक्तों,प्राचीन ग्रंथो,प्राचीन साहित्यों द्वारा संकलित किये गए है जो हमारे सनातन धर्म की धरोहर है इन सभी मंत्र एवं पुजन विधि में हमारा कोई योगदान नहीं है हमारा कार्य मात्र इनका संकलन कर ,इन प्राचीन साहित्य एवं विद्या को भविष्य के लिए सुरक्षित कारना और इनका प्रचार करना है इस अवस्था में यदि किसी सज्जन के ©कॉपी राइट अधिकार का गलती से उलंघन होने से कृपया वे संपर्क करे जिससे उनका या उनकी किताब का नाम साभार पोस्ट में जोड़ा जा सके।
मंगलवार, 15 नवंबर 2016
शक्ति(नारी) उपासना एवं तंत्र भाग-02
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें