ब्लॉग साइड पे दिए गए गुरुतुल्य साधु-संतो,साधको, भक्तों,प्राचीन ग्रंथो,प्राचीन साहित्यों द्वारा संकलित किये गए है जो हमारे सनातन धर्म की धरोहर है इन सभी मंत्र एवं पुजन विधि में हमारा कोई योगदान नहीं है हमारा कार्य मात्र इनका संकलन कर ,इन प्राचीन साहित्य एवं विद्या को भविष्य के लिए सुरक्षित कारना और इनका प्रचार करना है इस अवस्था में यदि किसी सज्जन के ©कॉपी राइट अधिकार का गलती से उलंघन होने से कृपया वे संपर्क करे जिससे उनका या उनकी किताब का नाम साभार पोस्ट में जोड़ा जा सके।
मंगलवार, 8 नवंबर 2022
श्रीविष्णुसहस्रनाम_स्तोत्रम् [भाग-१]°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
रविवार, 30 अक्तूबर 2022
महिलाओं_को_नहीं_करने_चाहिए_ये_काम
#महिलाओं_को_नहीं_करने_चाहिए_ये_काम?
🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
#हवन_करना
°°°°°°°°°°°°°°̺
स्त्री हवनकर सकती हैं. लेकिन स्त्री कभी भी अकेले हवन नहीं कर सकती हैं. हवन के दौरान स्त्री को मुख्य यजमान के रूप में अपने पति को साथ में रखना होता हैं. कोई भी स्त्री हवन के लिए मुख्य यजमान नहीं बन सकती हैं. सनातन धर्म के पुराने शास्त्रों में इसकी मनाई हैं।
#हनुमानजी_को_स्पर्श_करना
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
ये सभी जानते हैं कि हनुमान जी ब्रह्मचारी हैं. मान्यता है कि हनुमान बाबा महिलाओं को माता समान मानते थे. इसलिए शास्त्रों में महिलाओं द्वारा उन्हें स्पर्श न करने की बात कही गई है. हालांकि वे दूर रहकर हनुमान जी की पूजा कर सकती हैं।
#नारियल_फोड़ना
°°°°°°°°°°°°°°°°°°
आपने अपने घर और मंदिरों में अगर गौर किया हो तो देखा होगा किन पूजा पाठ या किसी अन्य शुभ कार्य के दौरान नारियल फोड़ने का काम पुरूष ही करते हैं. महिलाओं के लिए इसे वर्जित माना गया है. दरअसल नारियल को मां लक्ष्मी और उर्वरा का प्रतीक माना जाता है. हालांकि महिलाएं भगवान के समक्ष नारियल का भोग खुद सकती हैं।
#जनेऊ_धारण_करना
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
हिंदू धर्म में जनेऊ भी पुरुष ही धारण करते हैं महिलाएं नहीं. दरअसल जनेऊ को लेकर शास्त्रों में काफी नियम बनाए गए हैं, साथ ही इसकी शुद्धता का भी विशेष ख्याल रखने की बात कही गई है. मासिक धर्म के समय महिलाओं को शुद्ध नहीं माना जाता, इस दौरान उन्हें पूजा पाठ करने या भगवान को छूने की इजाजत भी नहीं होती. ऐसे में महिलाएं जनेऊ को पहनकर उसके नियमों का पूरी तरह पालन नहीं कर पाएंगी. इसीलिए उनके लिए इसे पहनने की मनाही है. हालांकि शुद्ध रहते हुए वे जनेऊ बना जरूर सकती हैं।
#बलि_देना
°°°°°°°°°°̺°̺°̺
जब भी किसी देवी या देवता को बलि दी जाती है तो ये काम हमेशा पुरुष ही करते हैं क्यों कि महिलाओं के लिए इस काम की भी शास्त्रों में मनाही कि।
द्वारा सोशल मीडिया चित्र एवम् लेख
👉 #आपका
#राहुलनाथ_राहुलनाथ™
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱+९८२७३७४०७४(w)
🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶
☠️ #चेतावनी_डिसक्लेमर:- ☠️
हमारे लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथनानुसार्,ज्योतिष/वास्तु/वैदिक/तांत्रिक/आध्यात्मिक/साबरी ग्रंथो/लोक मान्यताओं/सोशल मीडिया की जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या
#धन्यवाद 🙏🏻
शनिवार, 29 अक्तूबर 2022
स्त्रियों को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए?
क्या होता है अध्यात्म?(भाग-1)
🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷🔷
अध्य +आत्म =अध्याय आत्मा का कहा से शुरू करे ??
मै कौन हूँ ।यही पहला अध्याय है आत्मा का!
मै कौन हु ?पूछो अपने आप से,आपका नाम तो माँ बाप ने अपनी पहचान के लिए नाम रखा!समाज के पहचान के लिए दिया है।
तो तुम कौन ???? पता तो करो ।यही साधना है ।।
साधना ये शव्द बड़ा विचित्र है साफ साफ़ कहा है साध ना
जिसे साधना मना है फिर भी प्रयास तो करना ही होगा
पुछो क्या जानना है साधना के विषय में ।।
किसकी साधाना।।।
किसको साधना है ?
खुद को या खुदा को?
वो जो खुद ही आ सकता है किसी के पुकारने से जो नहीं आता वही खुदा है।
जिसको भी साधना है पहले उसका नाम रखो माता बनके पिता बन के जैसे राम कुष्ण दुर्गा भवानी काली तारा या अन्य कोई भी नाम।
बचपन में जब मुझे डर लगता था तो मै मेरे दोस्त का नाम लेता था
दीपक बचा ले,और मै भय मुक्त हो जाता था।
मन को स्थिर करने के लिए मन से दूर होना पडेगा।
शत्रु जैसा व्यवहार करना पडेगा। जैसे पिता के मना करने पर पुत्र पिता को शत्रु समझने लगता है।
किसी कर्म काण्ड की आवश्यकता नहीं है इसमें ।।
कर्म काण्ड मतलब देवताओं को प्रसन्न करने के अलग अलग उपाय।
अध्यात्म का कर्म काण्ड से कोई लेना देना नहीं है।
वो तो लक्ष्मी के पुजारियो का कार्य है।
रोज मन की एक इच्छा पूरी करो।
इससे संकल्प शक्ति का निर्माण होता है।
इसे ही "संकल्प साधना" कहते है।
मन को एक नाम दो।
राम कुष्ण दुर्गा भवानी काली तारा या गुरुदेव कोई भी नाम।
और सब कुछ उस नाम को समर्पित कर दो।।
किन्तु दिमाग का क्षेत्र गुरु का है। और गुरु को ज्ञान महागुरु ही दे सकते है कोई सद्गुरु ही दे सकते है।।। पढ़ा तो जा सकता है किन्तु उसे समझाना गुरु का ही कार्य होता है।
तंत्र कहता है बच्चे की बलि दो शिशु की बलि दो
और तांत्रिक मानव शिशु पशु को बलि दे देते हैं जो की गलत है।। शास्त्रों में मन को ही पशु कहा गया है। इस पशु के ऊपर नियंत्रण करने वाला ही पशुपति नाथ कहलाता है। पहले किसी एक विषय का चुनाव करो अन्याथा सब भटक जायेगे।
तो पहले क्या? विषय होना चाहिये ।।शान्ख्या,ध्यान,आत्मा,पूजा, इत्यादि।।
तो प्रारम्भ करते है ध्यान से।
ध्यान?
ध नाम का यान।ध+यान=ध्यान
ध=धड़कन +यान
धडकनों का यान
ध्यान ?
धडकनों के यान का नियन्त्र।
इस यान की ऊर्जा क निर्माण श्वास एव भोजन से होता है
जीतनी श्वास बढाओगे उतनी गति इस यान की बड़ जायेगी।
और जितना घटा ओगे गति कम हो जायेगी।
किन्तु ध्यान मोक्ष का मार्ग है।
ध्यान के बिंदु का चयन करना होगा की
ध्यान लगाना कहाँ है
बाहर या भीतर।।।
किन्तु श्वासों को मात्र बढ़ाना या घटाना प्राणायाम नहीं होता।
प्राणायाम तो मात्र एक आयाम है
प्राणायाम से मंत्र सिद्धि नहीं मिलती।सिद्धि में सहायता मिलती ।।
एकाग्रता मिलती है।
जीतनी श्वासों की गति बढाओगे उतने नीचे के चक्रो पे पहुचोगे ।
और जितना श्वासों को घटाने से ऊपर के चक्रो पर पहुचोगे।।
सबसे निचे मूलाधार चक्र उ[ व्यक्तिगत अनुभूति एवं।विचार©²⁰¹⁷ ]पस्थित होता है।
इस चक्र में श्वासों के गति की आवश्यकता होती है और श्वास के प्रहारों से काम क्षेत्र में स्पंदन होने लगता है।जिससे काम ऊर्जा का जन्म होता है ।
जो वशीकरण में काम आती है
ऊपर सहस्त्रार जहा श्वासों की आवश्यकता ही नहीं होती।वहा शान्ति है मौन है ।एकान्त है यही महादेव का वास है।।
बिना रुके माता के पहाड़ पे चढ़ जाने से भी श्वास बड जायेगी।।
एक जगह बैठे रहो कम हो जायेगी।।
ऊपर के चक्रो में धन नहीं है
ह्रदय चक्र तक ही धन धान्य या।
और जब खुद ही सभी भावो पे नियंत्रण कर लोगे।
तो शिव हो जाओगे।गोरख हो जाओगे।
क्रमशः
👉 आपका
#राहुलनाथ _राहुलनाथ™
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱+९८२७३७४०७४(w)
🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶
#निष्कर्ष:-
हम उम्मीद करते है की,आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा अगर उपयोगी साबित हुआ हैं तो,आगे इसे अपने दोस्तों और परिचितों को शेयर करे एवं लाइक अवश्य करे।जिससे अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके।जिससे वह भी इसके बारे में जान सके और इसका लाभ उठा सके।
#धन्यवाद 🙏🏻
☠️ #चेतावनी_डिसक्लेमर:- ☠️
हमारे लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथनानुसार्,ज्योतिष/वास्तु/वैदिक/तांत्रिक/आध्यात्मिक/साबरी ग्रंथो/लोक मान्यताओं एवं जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की हमारी गारंटी नहीं है। इसे सामान्य जनरुची को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किये जाते है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु या विशेषज्ञ के निर्देशन के बिना साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति मे न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत,©कॉपी राइट एक्ट 1957)
स्वप्न_का_वैज्ञानिक_आधार
#स्वप्न_का_वैज्ञानिक_आधार
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
यदि स्वप्न के वैज्ञानिक आधार पर दृष्टि तो सत्य वनों की क्षणिक अनुभूति का कारण यही है कि वह आत्मा के सुपना शीर्षक में गिरता है या है।जत अवस्था में मस्तिष्क के द्वारा ही शरीर और मन दोनों का होता है, जबकि सुप्तावस्था में सुषुम्ना का 'गेमेंटर' ही मस्तिष्क के समान कार्य करने लगता है। उस स्थिति में यह अपेक्षित नहीं कि सूचनाओं से अवगत रहे। इसे स्पष्ट समझने के लिए यह उदाहरण पर्याप्त होगा कि यदि किसी जागे हुए मनुष्य के शरीर पर बैठ जाएं तो मनुष्य तुरन्त हटा देगा. परन्तु निद्वावस्था में मस्तिष्क को उसका ज्ञान न रहने के कारण मक्खी को हटाने का कार्य सुषुम्ना द्वारा ही किया जाएगा।
मस्तिष्क का उभरा हुआ भाग 'गायराई' कहा जाता है। दो गायराइयों के मध्य एक दरार होती है, जिसे सलकस' कहते हैं। मस्तिष्क के मध्य भाग (फोरब्रेन) में जो एक गहरा 'सलकस' होता है, उस केन्द्रीय सलकर के समक्ष 'गायरस' में समूचे शरीर को आज्ञा देने वाले कोष होते हैं, जिनका शरीर की सभी क्रियाओं पर नियन्त्रण रहता है। आगत नसें, जिन्हें पाश्चात्य भाषा में 'अफरेन्ट नर्स' कहते हैं, सूचना लाती और इफरेंट नर्स' सूचना ले जाती हैं। इस प्रकार जटिल से जटिल समस्याओं को भी यह कोष सुलझाते हैं।
#मनुष्य_शरीर_में_विद्यमान_नाड़ियां
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
प्राचीन आचार्यों के मत में मानव शरीर में बहत्तर हजार से भी अधिक नाड़ियों की विद्यमानता है, किन्तु इनमें तीन नाड़ियां अत्यन्त प्रमुख तथा प्रसिद्ध हैं। उनके नाम हैं-1. इड़ा 2. पिंगला 3. सुषुम्ना। इन तीनों में भी सुषुम्ना महत्त्व अधिक है। अध्यात्म विद्या में तो उसे सर्वोपरि प्रमुखता दी जाती है। सुषुम्ना की प्रमुखता को तो वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके हैं। का
#सुषुम्ना_का_रहस्य
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
सुषुम्ना का महत्त्व जानने के लिए उसके स्वरूप को समझ लेना भी आवश्यक होगा। सुषुम्ना में आकाश के समान पोल होती है तथा यह प्रकाशमयी भी है। अतः इस प्रकाशमयी नाही को ही सूर्यात्मक आकाश और ब्रह्माण्ड के रहस्य से मन फल
सम्बन्ध जोड़ने तथा उसे व्यापक बनाने वाली माना गया है। उसी सुषुम्ना में मन के प्रवाहित होने से मनुष्य को दिव्य स्वप्न दिखाई देते हैं। उस समय मानव की चेतना विराट् क्षेत्र में तैरती है, इसलिए मनुष्य को स्वप्न में नदी, पर्वत, वन, उपवन, भवन, नगर, दुर्ग, खेत, पृथ्वी, अन्तरिक्ष तथा अन्यान्य दिव्य आकृतियाँ दिखाई देती हैं। इस प्रकार सुषुम्ना में मन का प्रवाह ही उन स्वप्नों का कारण होता है, जो दिव्य तथा स्वप्न होते हैं। यह एक तथ्य है कि मन जब मस्तिष्क का अनुवर्ती न रहकर सुषुम्ना का अनुवर्ती हो जाता है, तब उसकी स्थूलता नष्ट होकर सूक्ष्मता आ जाती है। इस प्रकार स्थूल से सूक्ष्म हुआ चेतन मन ही (सुक्ष्म होने पर) अवचेतन बन जाता है।
इस प्रकार मन के जो भेद चेतन और अवचेतन अथवा बहिर्मन और अन्तर्मन के नाम से कहे हैं, उनमें बहिर्मन जो कार्य नहीं कर सकता, उसे करने में अन्तर्मन सर्वथा समर्थ है। क्योंकि बहिर्मन स्थूल होने के कारण उतनी सामर्थ्य नहीं रखता जितनी कि सूक्ष्म होने के कारण अन्तर्मन रखता है। स्थूल बहिर्मन किसी भी कार्य में स्वतन्त्र नहीं होता, जबकि सूक्ष्म अन्तर्मन अपना कार्य करने में स्वतन्त्र हो जाता है।
पेज-18 ,किताब-स्वप्न ज्योतिष और शकुन विचार,
©प्रकाशकाधीन,प्रकाशक : डायमण्ड पॉकेट बुक्स (प्रा.) लि.,X-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-2,नयी दिल्ली-110020,वितरक : पंजाबी पुस्तक भण्डार दरीबा कलां, दिल्ली-110006,प्रथम संस्करण: 1998
👉 आपका
#राहुलनाथ _राहुलनाथ™
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱+९८२७३७४०७४(w)
🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶🔶
#निष्कर्ष:-
हम उम्मीद करते है की,आज का हमारा यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित हुआ होगा अगर उपयोगी साबित हुआ हैं तो,आगे इसे अपने दोस्तों और परिचितों को शेयर करे एवं लाइक अवश्य करे।जिससे अन्य लोगो तक भी यह महत्वपूर्ण जानकारी पहुंच सके।जिससे वह भी इसके बारे में जान सके और इसका लाभ उठा सके।
#धन्यवाद 🙏🏻
☠️ #चेतावनी_डिसक्लेमर:- ☠️
हमारे लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथनानुसार्,ज्योतिष/वास्तु/वैदिक/तांत्रिक/आध्यात्मिक/साबरी ग्रंथो/लोक मान्यताओं एवं जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है।किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की हमारी गारंटी नहीं है। इसे सामान्य जनरुची को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किये जाते है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु या विशेषज्ञ के निर्देशन के बिना साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति मे न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।
सोमवार, 10 अक्तूबर 2022
झाड़ा_मंत्र_शरीर_रक्षा_हेतु_प्रचण्ड_मंत्र
सोमवार, 19 सितंबर 2022
चमत्कारी प्रयोग
तंत्र_के_क्षेत्र_में_दस_महाविद्याएं(भाग-2)
तंत्र के क्षेत्र में दस महाविद्याएं(भाग-1)
शनिवार, 10 सितंबर 2022
संतोषी_माँ_की_व्रत_कथा_संतोषी_माता_की_व्रत_कथा_और_आरती
#संतोषी_माँ_की_व्रत_कथा_संतोषी_माता_की_व्रत_कथा_और_आरती
🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵
शुक्रवार के दिन माँ संतोषी का व्रत पूजन किया जाता है| पूजा के दौरान संतोषी माता की आरती,पूजन और माता की कथा सुनाई जाती है |
संतोषी माता को सुख और वैभव की देवी माना जाता है| यह व्रत शुकल पक्ष के पहले शुक्रवार से शुरू किया जाता है |संतोषी माता श्री गणेश जिकी पुत्री है |
संतोषी माता की पूजा करने से मनुष्य के जीवन में सुख समृद्धि बढ़ती है और संतोषी माता के व्रत और पूजन करने से संतोषी माता प्रसन होकर मनुष्य की हर मनोकामना पूर्ण करती है|
संतोषी माता के 16 शुक्रवार का व्रत रखने का विधान है शुक्रवार के दिन कोईभी खट्टी चीज़ न तो घर में लानी चाहिए और न ही खानी चाहिए
संतोषी माता की व्रत कथा
एक बुढ़िया थी उसके सात बेटे थे,6 कमाने वाले थे और एक कुछ नहीं कमाता था| बुढ़िया 6 की रसोई बनाती ,भोजन कराती और उनसे जो कुछ जूठन बचती वो सातवे को दे देती |
एक दिन वह पत्नी से बोला-देखो मेरी माँ को मुझसे कितना प्रेम है | वह बोली क्यों नहीं होगा प्रेम वो आपको सबका जूठा जो खिलाती है|वो बोला ऐसा नहीं हो सकता जब तक मैं अपनी आँखों से न देख लू मैं नहीं मान सकता |
कुछ दिन बाद त्यौहार आया घर में सात प्रकार का भोजन और लडू बने| वह जांचने को सर दर्द का बहाना कर पतला वस्त्र सर पर ओढ़े रसोई घर में सो गया वह कपडे में से सब देखता रहा सब भाई भोजन करने आये उसने देखा माँ ने उनके लिए सुन्दर आसन बिछाया हर प्रकार का भोजन रखा और उन्हें बुलाया |वह देखता रहा |
जब छेहो भाई भोजन करके उठे तो माँ ने उनकी जूठी थालियों से लडू के टुकड़े उठाकर एक लडू बनाया | झूठन साफ़ करके बुढ़िया माँ ने उसे पुकारा बेटा छेहो भाई भोजन कर गए तू कब खायेगा |वो कहने लगा माँ मुझे भोजन नहीं करना मैं प्रदेश जा रहा हु |
माँ ने बोला कल जाता हुआ आज ही चला जा वो बोला आज ही जा रहा हु |यह कह कर वह घर से निकल गया |
चलते समय पत्नी की याद आ गयी |वह गोशाला में कंडे(उपले )थाप रही थी |
वह जाकर बोला –
हम जावे प्रदेश आवेंगे कुछ काल,
तुम रहियो संतोष से धरम अपनों पाल |
वह बोली –
जाओ पिया आनंद से हमारो सोच हटाए,
राम भरोसे हम रहे ईश्वर तुम्हे सहाय|
दो निशानी आपन देख धरु मैं धीर,
सुधि मति हमारी बिसारियो रखियो मन गंभीर|
वह बोला मेरे पास तो कुछ नहीं ,यह अंगूठी है सो ले और अपनी कुछ निशानी मुझे दे |
वह बोली मेरे पास क्या है ,यह गोबर भरा हाथ है | यह कह कर उसकी पीठ पर गोबर के हाथ की थप मार दी |वह चल दिया,चलते चलते दूर देश पहुंचा | वह एक साहूकार की दुकान थी |
वह जाकर कहने लगा -भाई मुझे नौकरी पर रख लो |साहूकार को जरुरत थी बोला रह जा |लड़के ने पूछा तन्खा क्या दोगे| साहूकार ने कहा काम देख कर दाम मिलेंगे |अब वह सुबह ७ बजे से १० तक नौकरी करने लगा |कुछ दिनों में वो सारा काम अच्छे से करने लगा |
सेठ ने काम देखकर उसे आधे मुनाफे का हिसेदार बना दिया |वह कुछ वर्षो में बहुत बड़ा सेठ बन गया और मालिक सारा कारोबार उसपर छोड़कर चला गया |
उधर उसकी पत्नी को सास ससुर दुःख देने लगे सारा घर का काम करवा कर उसको लकड़िया लेकर जंगल में
भेजते| घर में आटे से जो भी भूसी निकलती उसकी रोटी बनाकर रख दी जाती और फूटे नारियल की नारेली में पानी | एक दिन वह लकड़ी लेने जा रही थी ,रस्ते में बहुत सी महिलाये संतोषी माता का व्रत करती दिखाई देती है |
वह वहां खड़ी होकर कथा सुन ने लगी और उनसे पूछने लगी बहनो तुम किस देवता का व्रत करती हो और उसके करने से क्या फल मिलता है यदि तुम मुझे इस व्रत का महत्व समजाओगे तो मैं तुम्हारी बहुत आभारी होंगी | तब एक महिला बोली सुनो-यह संतोषी माता का व्रत है इसे करने से दरिदरता का नाश होता है और जो कुछ मैं में कामना हो सब संतोषी माता की कृपा से पूरी होती है
वह महिला बोली -सवा आने का गुड़ चना लेना ,प्रतेक शुक्रवॉर को निरहार रह कर कथा सुन्ना और मनोकामना पूर्ण होने पर उद्यापन करना शुक्रवार के दिन घर में कहते नहीं आनी चाहिए यह सुन बुढ़िया की बहु चल दी |
रास्ते में लकड़ी के बोझ को बेच दिया और उन पैसो से गुड़ चना लेकर माता के व्रत की तैयारी कर आगे चली और सामने मंदिर देखकर पूछने लगी – यह मंदिर किसका है सब कहने लगे संतोषी माता का मंदिर है यह सुनकर माता के मंदिर में जाकर माता के चरणों से लिपट गयी और विनती करने लगी माँ मैं अनजान हु व्रत का कोई नियम नहीं जानती हु,मैं दुखी हु | हे माता | जगत जननी मेरा दुःख दूर करो मैं आपकी शरण में हु |
माता को बड़ी दया आयी एक शुक्रवार बिता की दूसरे शुक्रवार उसके पति का पत्र आया और तीसरे शुक्र उसके पति ने उसको पैसे भेज दिए यह देख जेठ – जेठानी का मुँह बन गया और उसको ताने देने लगे की अब तोह इसके पास पैसा आ गया अब यह बहुत इतरायेगी| बेचारी आँखों में आंसू भरकर संतोषी माता के मंदिर चली गयी और माता के चरणों में बैठकर रोने लगी और रट रट बोली माँ मैंने पैसा कब माँगा |
मुझे पैसे से क्या काम मुझे तो अपना सुहाग चाहिए |मैं तो अपने स्वामी के दर्शन करना चाहती हु |तब माता ने प्रसन होकर कहा -जा बेटी तेरा स्वामी आएगा |
यह सुन कर ख़ुशी ख़ुशी घर जाकर काम करने लगी अब संतोषी माँ विचार करने लगी इस भोली पुत्री को मैंने कह तो दिया तेरा पति आएगा लेकिन कैसे ? वह तो इसे स्वपन में भी याद नहीं करता |
उसे याद दिलाने को मुझे ही जाना पड़ेगा इस तरह माता उस बुढ़िया के बेटे के स्वपन में जाकर कहने लगी साहूकार के बेटे सो रहा है या जगता है | वो कहने लगा माँ सोता भी नहीं जागता भी नहीं कहो क्या आज्ञा है ? माँ कहने लगी -तेरा घर बार कुछ है के नहीं |वह बोला -मेरे पास सब कुछ है माँ -बाप है बहु है क्या कमी है |
माँ बोली -भोले तेरी पत्नी घोर कष्ट उठा रही है तेरे माँ बाप उसे परेशानी दे रहे है |वह तेरे लिए तरस रही है तू उसकी सुध ले |वह बोला हां माँ मुझे पता है पर मैं वहां जाऊ कैसे ?
माँ कहने लगी -मेरी बात मान सवेरे नाहा धो कर संतोषी माता का नाम ले ,घी का दीपक जला कर दुकान पर चला जा |देखते देखते सारा लेंन देंन उतर जायेगा सारा माल बिक जायेगा सांझ तक धन का भरी ढेर लग जायेगा |थोड़ी देर में देने वाले रूपया लेन लगे सरे सामान का ग्राहक सौदा करने लगे |
शाम तक धन का भरी ढेर इकठा हो गया और संतोषी माता का यह चमत्कार देख कर खुश होने लगा और धन इकठा कर घर ले जाने के लिए वस्त्र,गहने खरीदने लगा और घर को निकल गया | उधर उसकी पत्नी जंगल में लकड़ी लेने जाती है |लौटते वक़्त माता जी के मंदिर में आराम करती है |
प्रतिदिन वह वही विश्राम करती थी अचकन से धूल उड़ने लगी धूल उड़ती देख वह माता से पूछने लगी -हे माता यह धूल कैसी उड़ रही है |
हे पुत्री तेरा पति आ रहा है अब तू ऐसा कर लकड़ी के तीन ढेर तैयार कर एक एक नदी के किनारे रख और दूसरा मेरे मंदिर में रख और तीसरा अपने सर पर |
तेरे पति को लकड़ियों का गठर देख तेरे लिए मोह पैदा होगा वह यहाँ रुकेगा ,नाश्ता पानी खाकर माँ से मिलने जायेगा |तब तू लकड़ियों का बोझ उठाकर चौक पर जाना और गठर निचे रख कर जोर से आवाज़ लगाना |लो सासुजी |
लकड़ियों का गठर लो,भूसी की रोटी दो ,नारियल के खेपड़े में पानी दो ,आज मेहमान कौन आया है ?
माता जी से अच्छा कह कर जैसा माँ ने कहा वैसा करने लगी |
इतने में मुसाफिर आ गए | सूखी लकड़ी देख उनकी इच्छा हुई कि हम यही आराम करें और भोजन बनाकर खा-पीकर गांव जाएं। आराम करके गांव को चले गए । उसी समय सिर पर लकड़ी का गट्ठर लिए वह आती है। लकड़ियों का बोझ आंगन में उतारकर जोर से आवाज लगाती है- लो सासूजी, लकड़ियों का गट्ठर लो, भूसी की रोटी दो। आज मेहमान कौन आया है।
यह सुनकर उसकी सास बाहर आकर अपने दिए हुए कष्टों को भुलाने के लिए कहती है- बहु ऐसे क्यों कह रही है ? तेरा मालिक आया है। आ बैठ भोजन कर, कपड़े-गहने पहिन। उसकी आवाज सुन उसका पति बाहर आता है।
अंगूठी देख व्याकुल हो जाता है। मां से पूछता है- मां यह कौन है? मां बोली- बेटा यह तेरी बहु है। जब से तू गया है तब से सारे गांव में भटकती फिरती है। घर का काम-काज कुछ करती नहीं, चार पहर आकर खा जाती है। वह बोला- ठीक है मां मैंने इसे भी देखा और तुम्हें भी, अब दूसरे घर की चाबी दो, उसमें रहूंगा।
मां बोली- ठीक है,तब वह दूसरे मकान की तीसरी मंजिल का कमरा खोल सारा सामान जमाया। एक दिन में राजा के महल जैसा ठाट-बाट बन गया। अब क्या था? बहु सुख भोगने लगी। इतने में शुक्रवार आया।
पति से कहा- मुझे संतोषी माता के व्रत का उद्यापन करना है। पति बोला- खुशी से कर लो। वह उद्यापन की तैयारी करने लगी। जेठानी के लड़कों को भोजन के लिए गई। उन्होंने कहा ठीक है पर पीछे से जेठानी ने अपने बच्चों से कहा , भोजन के वक़्त खटाई मांगना, जिससे उसका उद्यापन न हो।
लड़के गए खीर खाकर पेट भर गया , लेकिन खाते ही कहने लगे- हमें खटाई दो, हमने खीर नहीं खानी है। वह कहने लगी खटाई नहीं दी जाएगी। यह तो संतोषी माता का प्रसाद है।
लड़के उठ खड़े हुए, बोले- पैसा लाओ, भोली बहु कुछ जानती नहीं थी, उन्हें पैसे दे दिए। लड़के उसी समय इमली लेकर खाने लगे। यह देखकर बहु पर माताजी ने गुस्सा किया। राजा के दूत उसके पति को पकड़ कर ले गए। जेठ जेठानी कहने लगे। लूट-लूट कर धन लाया था , अबपता लगेगा जब जेल की मार खाएगा। बहु से यह सहन नहीं हुए।
रोती हुई मंदिर गई, कहने लगी- हे माता, यह क्या किया, हंसा कर अब भक्तों को रुलाने लगी। माता बोली- बेटी तूने उद्यापन करके मेरा व्रत भंग किया है। वह कहने लगी- माता मैंने क्या अपराध किया है, मैंने भूल से लड़कों को पैसे दिए थे, मुझे क्षमा करो। मैं फिर तुम्हारा उद्यापन करूंगी। मां बोली- अब भूल मत करना।
वह कहती है- अब भूल नहीं होगी,अब वो कैसे आएंगे ? मां बोली- जा तेरा पति तुझे रास्ते में आता मिलेगा। वह निकली, राह में पति मिला।उसने पूछा – कहां गए थे?
वह कहने लगा- इतना धन जो कमाया है उसका टैक्स राजा ने मांगा था, वह भरने गया था। वह खुश होकर बोली अब घर को चलो। कुछ दिन बाद फिर शुक्रवार आया|
वह बोली- मुझे दोबारा माता का उद्यापन करना है। पति ने कहा- करो। बहु फिर जेठ के लड़कों को भोजन को कहने गई। जेठानी ने एक दो बातें सुनाई और तुम सब लोग पहले ही खटाई मांगना।
लड़के भोजन से पहले कहने लगे- हमें खीर नहीं खानी, हमारा जी बिगड़ता है, कुछ खटाई खाने को दो। वह बोली- खटाई किसी को नहीं मिलेगी, आना हो तो आओ, वह ब्राह्मण के लड़के लाकर भोजन कराने लगी, दक्षिणा की जगह उनको एक-एक फल दिया। संतोषी माता प्रसन्न हुई।
माता की कृपा हुई नवमें मास में उसे सुन्दर पुत्र प्राप्त हुआ। पुत्र को पाकर प्रतिदिन माता जी के मंदिर को जाने लगी। मां ने सोचा- यह रोज आती है, आज क्यों न इसके घर चलूं। यह विचार कर माता ने भयानक रूप बनाया, गुड़-चने से सना मुख, ऊपर सूंड के समान होठ, उस पर मक्खियां भिन-भिन कर रही थी।
देहली पर पैर रखते ही उसकी सास चिल्लाई- देखो रे, कोई चुड़ैल चली आ रही है, लड़कों इसे निकालो , नहीं तो किसी को खा जाएगी। लड़के भगाने लगे, चिल्लाकर खिड़की बंद करने लगे। बहु रौशनदान में से देख रही थी, ख़ुशी से चिल्लाने लगी- आज मेरी माता जी मेरे घर आई है। वह बच्चे को दूध पीने से हटाती है।
इतने में सास को क्रोध आ गया | वह बोली- क्या हुआ है है? बच्चे को पटक दिया। इतने में मां के प्रताप से लड़के ही लड़के नजर आने लगे।
वह बोली- मां मैं जिसका व्रत करती हूं यह संतोषी माता है। सबने माता जी के चरण पकड़ लिए और विनती कर कहने लगे- हे माता, हम नादान हैं , तुम्हारा व्रत भंग कर हमने बड़ा अपराध किया है, माता आप हमारा अपराध क्षमा करो। इस प्रकार माता प्रसन्न हुई। बहू को प्रसन्न हो जैसा फल दिया, वैसा माता सबको दे, जो पढ़े उसका मनोरथ पूर्ण हो। बोलो संतोषी माता की जय।
#संतोषी_माता_की_आरती
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
जय संतोषी माता,मैया जय संतोषी माता ।
अपने सेवक जन को,सुख संपति दाता ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
सुंदर चीर सुनहरी,मां धारण कीन्हों ।
हीरा पन्ना दमके,तन श्रृंगार लीन्हों ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
गेरू लाल छटा छवि,बदन कमल सोहे ।
मंदर हंसत करूणामयी,त्रिभुवन मन मोहे ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
स्वर्ण सिंहासन बैठी,चंवर ढुरे प्यारे ।
धूप, दीप,नैवैद्य,मधुमेवा,भोग धरें न्यारे ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
गुड़ अरु चना परमप्रिय,तामें संतोष कियो।
संतोषी कहलाई,भक्तन वैभव दियो ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
शुक्रवार प्रिय मानत,आज दिवस सोही ।
भक्त मण्डली छाई,कथा सुनत मोही ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
मंदिर जगमग ज्योति,मंगल ध्वनि छाई ।
विनय करें हम बालक,चरनन सिर नाई ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
भक्ति भावमय पूजा,अंगीकृत कीजै ।
जो मन बसे हमारे,इच्छा फल दीजै ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
दुखी,दरिद्री ,रोगी ,संकटमुक्त किए ।
बहु धनधान्य भरे घर,सुख सौभाग्य दिए ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
ध्यान धर्यो जिस जन ने,मनवांछित फल पायो ।
पूजा कथा श्रवण कर,घर आनंद आयो ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
शरण गहे की लज्जा,राखियो जगदंबे ।
संकट तू ही निवारे,दयामयी अंबे ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
संतोषी मां की आरती,जो कोई नर गावे ।
ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति,जी भरकर पावे ॥
॥ ॐ जय संतोषी माता ॥
संतोषी माता व्रत विधि
◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
◆सुख की कामना से संतोषी माता के 16 शुक्रवार व्रत किये जाते है
◆घर में सुन्दर पवित्र जगह पर संतोषी माता की प्रतिमा लगाए।
◆संतोषी माता के सामने एक कलश भर के रखे कलश के ऊपर एक बर्तन में चना गुड़ भरकर रखे।
◆संतोषी माता के सामने घी का दीपक जलाये।
◆संतोषी माता को फूल,नारियल ,लाल वस्त्र या चुनरी चढ़ाये।
◆माता संतोषी को गुड़ और चने का भोग लगाए।
◆संतोषी माता का नाम लेकर कथा शुरू करनी चाहिए।
🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵
🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈
🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल
*राहुलनाथ™* 🖋️....
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱 +𝟵𝟭𝟵𝟴𝟮𝟳𝟯𝟳𝟰𝟬𝟳𝟰(𝘄)
#आपके_हितार्थ_नोट:- पोस्ट ज्ञानार्थ एवं शैक्षणिक उद्देश्य हेतु ग्रहण करे।बिना गुरु या मार्गदर्शक के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।
☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️
शुक्रवार, 9 सितंबर 2022
चमत्कारी_मंत्र_सभी_खतरों_से_सुरक्षित_रखता_है
गुरुवार, 18 अगस्त 2022
मेरी मृत्यु
बुधवार, 17 अगस्त 2022
तन्त्र एवं नाजायज संबंधो के परिणाम !! !! प्रेम-त्रिकोण !!
गणेशजी_के_संस्कृत_श्लोक
साधना_में_ब्रह्मचर्य_का_महत्व
#साधना_में_ब्रह्मचर्य_का_महत्व
🔱☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️☀️🔱
गुरुओ ने,ऋषि-मुनियों ने ब्रह्मचर्य की साधना के लिए चिंतन करने को कहा है। कोई दूसरा आपको ब्रह्मचर्य की ओर नहीं ले जा सकता,ये काम स्वयं करना होता है। कामवासना को प्रबल इच्छाशक्ति से रोका जा सकता है। कामवासनाओं को नष्ट करने में सक्षम व्यक्ति अखंड ब्रह्मचर्य का पालन कर सकता है। प्राण शक्ति, स्फूर्ति, बुद्धि यह सब वीर्य के ऊर्ध्वगामी होने से प्राप्त होती है। अस्तु, वीर्य की रक्षा प्राणपण से की जानी चाहिए। विवाहित हों, तो केवल संतानोत्पादन के लिए वीर्य-दान की प्रक्रिया अपनाई जाय अथवा कठोरतापूर्वक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया जाय। इससे प्रत्येक साधना सधती है।
कैसा भी योगाभ्यास करने वाला साधक हो,धारणा,ध्यान,त्राटक आदि करता हो लेकिन यदि वह ब्रह्मचर्य का आदर नहीं करता,संयम नहीं करता तो उसका योग सिद्ध नहीं होगा। साधना से लाभ तो होता ही है लेकिन ब्रह्मचर्य के बिना उसमें पूर्ण सफलता नहीं मिलती।
राम के सुख के बाद संसार में यदि अधिक-से-अधिक आकर्षण का केन्द्र है तो वह काम का सुख है। शब्द,स्पर्श,रूप,रस और गन्ध इन पाँचों विषयों में स्पर्श का आकर्षण बहुत खतरनाक है। व्यक्ति को कामसुख बहुत जल्दी नीचे ले आता है।जहॉ भगवती काली का स्थान है।यही कुंडलिनी योग में मूलाधार का स्थान है।
बड़े-बड़े राजा-महाराजा-सत्ता धारी उस काम-विकार के आगे तुच्छ हो जाते हैं। यहाँ तक स्वयं महादेव शव स्वरुओ हो जाते है।काम-सुख के लिये लोग अन्य सब सुख,धन,वैभव,पद-प्रतिष्ठा कुर्बान करने के लिये तैयार हो जाते हैं। इतना आकर्षण है काम-सुख का। राम के सुख को प्राप्त करने के लिए साधक को इस आकर्षण से अपने चित्त को दृढ़ पुरुषार्थ करके बचाना चाहिये।
जिस व्यक्ति में थोड़ा-बहुत भी संयम है, ब्रह्मचर्य का पालन करता है वह धारणा-ध्यान के मार्ग में जल्दी आगे बढ़ जायेगा। लेकिन जिसके ब्रह्मचर्य का कोई ठिकाना नहीं ऐसे व्यक्ति के आगे साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण आ जायें,भगवान विष्णु आ जायें,ब्रह्माजी आ जायें,माँ अम्बाजी आ जायें,तैतीस करोड़ देवता आ जाये ये सब मिलकर भी उपदेश करें फिर भी उसके विक्षिप्त चित्त में आत्मज्ञान का अमृत ठहरेगा नहीं। जैसे धन कमाने के लिए भी धन चाहिये,शांति पाने के लिये भी शांति चाहिये,अक्ल बढ़ाने के लिये भी अक्ल चाहिये,वैसे ही आत्म-खजाना पाने के लिये भी आत्मसंयम चाहिये। ब्रह्मचर्य पूरे साधना-भवन की नींव है। नींव कच्ची तो भवन टिकेगा कैसे?
क्रमशः....
🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈
🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🔱
☯️।।राहुलनाथ।।™🖋️।....२०२२
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱 +𝟵𝟭𝟵𝟴𝟮𝟳𝟯𝟳𝟰𝟬𝟳𝟰(𝘄)
पेज लिंक:-https//www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
मंगलवार, 9 अगस्त 2022
दस महाविद्या स्तोत्र | *******************दुर्ल्लभं मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्।।श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।क्रियासाधनमं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्।।तव प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः।।शिव ने कहा- तारिणी की उपासना मार्ग अत्यन्त दुर्लभ है। उनके पद की प्राप्ति भी अति कठिन है। इनके मंत्रार्थ ज्ञान, मंत्र चैतन्य, शव साधन, श्मशान साधन, योनि साधन, ब्रह्म साधन, क्रिया साधन, भक्ति साधन और मुक्ति साधन, यह सब भी दुर्लभ हैं। किन्तु हे देवेशि! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उनको सब विषय में सिद्धि प्राप्त होती है।नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी।।हे चण्डिके! तुम प्रचण्ड स्वरूपिणी हो। तुमने ही चण्ड-मुण्ड का विनाश किया है। तुम्हीं काल का नाश करने वाली हो। तुमको नमस्कार है।शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे। प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्।।हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।हे शिवे जगद्धात्रि हरवल्लभे! मेरी संसार से रक्षा करो। तुम्हीं जगत की माता हो और तुम्हीं अनन्त जगत की रक्षा करती हो। तुम्हीं जगत का संहार करने वाली हो और तुम्हीं जगत को उत्पन्न करने वाली हो। तुम्हारी मूर्ति महाभयंकर है।तुम मुण्डमाला से अलंकृत हो। तुम हर से सेवित हो। हर से पूजित हो और तुम ही हरिप्रिया हो। तुम्हारा वर्ण गौर है। तुम्हीं गुरुप्रिया हो और श्वेत आभूषणों से अलंकृत रहती हो। तुम्हीं विष्णु प्रिया हो। तुम ही महामाया हो। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तुम्हारी पूजा करते हैं। तुमको नमस्कार है।सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।।प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।।तुम्हीं सिद्ध और सिद्धेश्वरी हो। तुम्हीं सिद्ध एवं विद्याधरों से युक्त हो। तुम मंत्र सिद्धि दायिनी हो। तुम योनि सिद्धि देने वाली हो। तुम ही लिंगशोभिता महामाया हो। दुर्गा और दुर्गति नाशिनी हो। तुमको बारम्बार नमस्कार है।उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्।।तुम्हीं उग्रमूर्ति हो, उग्रगणों से युक्त हो, उग्रतारा हो, नीलमूर्ति हो, नीले मेघ के समान श्यामवर्णा हो और नील सुन्दरी हो। तुमको नमस्कार है।श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्।।तुम्हीं श्याम अंग वाली हो एवं तुम श्याम वर्ण से सुशोभित जगद्धात्री हो, सब कार्य का साधन करने वाली हो, तुम्हीं गौरी हो। तुमको नमस्कार है।विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्।।श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, महाभीमाकार हो, विकट मूर्ति हो। तुम्हारा शब्द उच्चारण महाभयंकर है। तुम्हीं सबकी आद्या हो, आदि गुरु महेश्वर की भी आदि माता हो। आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते रहते हैं।तुम्हीं धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मस्वरूपीणी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो, जगत की माता हो, हरवल्लभा हो। तुमको नमस्कार है।त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्।।हे देवी! तुम्हीं त्रिपुरसुंदरी हो। बाला हो। अबला गणों से मंडित हो। तुम शिव दूती हो, शिव आराध्या हो, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी हो, सुन्दरी तारिणी हो, शिवा गणों से अलंकृत हो, नारायणी हो, विष्णु से पूजनीय हो। तुम ही केवल ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो।सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्।।दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।।तुम्हीं सब सिद्धियों की दायिनी हो, तुम नित्या हो, तुम अनित्य गुणों से रहित हो। तुम सगुणा हो, ध्यान के योग्य हो, पूजिता हो, सर्व सिद्धियां देने वाली हो, दिव्या हो, सिद्धिदाता हो, विद्या हो, महाविद्या हो, महेश्वरी हो, महेश की परम भक्ति वाली माहेशी हो, महाकाल से पूजित जगद्धात्री हो और शुम्भासुर की नाशिनी हो। तुमको नमस्कार है।रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्।।चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।।अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसंदरीम्।।षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्।।प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये।।तुम्हीं रक्त से प्रेम करने वाली रक्तवर्णा हो। रक्त बीज का विनाश करने वाली, भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभ वाली, सुरेश्वरी हो। तुम चतुर्भजा हो, कभी दश भुजा हो, कभी अठ्ठारह भुजा हो, त्रिपुरेशी हो, विश्वनाथ की प्रिया हो, ब्रह्मांड की ईश्वरी हो, कल्याणमयी हो, अट्टहास से युक्त हो, ऊँचे हास्य से प्रिति करने वाली हो, धूम्रासुर की नाशिनी हो, कमला हो, छिन्नमस्ता हो, मातंगी हो, त्रिपुर सुन्दरी हो, षोडशी हो, विजया हो, भीमा हो, धूम्रा हो, बगलामुखी हो, सर्व सिद्धिदायिनी हो, सर्वविद्या और सब मंत्रों की विशुद्धि करने वाली हो। तुम सारभूता और जगत्तारिणी हो। मैं मंत्र सिद्धि के लिए तुमको नमस्कार करता हूं।इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।हे वरारोहे! यह स्तव परम सिद्धि देने वाला है। इसका पाठ करने से सत्य ही मोक्ष प्राप्त होता है।कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि।।मंगलवार की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में यह स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि! तीन पक्ष तक इस स्तव के पढ़ने से मंत्र सिद्धि होती है। इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए।चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्।।चौदश की रात में तथा शनि और मंगलवार की संध्या के समय इस स्तव का पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है।केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी।।जो पुरुष केवल इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह अनुत्तमा सिद्धि को प्राप्त करता है। इस स्तव के फल से चण्डिका कुल-कुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।(संकलितं पोस्ट)🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🔱*🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈*#राहुलनाथ ™ भिलाई 🖋️📱➕9⃣1⃣9⃣8⃣2⃣7⃣3⃣7⃣4⃣0⃣7⃣4⃣(w)#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।
बुधवार, 3 अगस्त 2022
घोड़े_की_नाल
शनिवार, 30 जुलाई 2022
शिवजी को प्रिय हैं ये फूल
शिवजी को प्रिय हैं ये फूल
*********************
मदार, चमेली, बेला, हरसिंगार, गुलाब, अलसी, जूही और धतूरे जैसे फूल भगवान शिव को अतिप्रिय होते हैं. सभी फूलों से अलग-अलग मनोकामनाएं जुड़ी होती हैं. आप अपनी मनोकामना व इच्छानुसार शिवजी को सावन में ये फूल जरूर चढ़ाएं.
जानें किस मनोकामना के लिए चढ़ाएं कौन सा फूल
*****************************************
चमेली-
सावन में शिवजी को चमेली का फूल चढ़ाने से व्यक्ति की मनोकामना पूरी होती है.
बेला-
शिवजी की विशेष पूजा में बेला फूल चढ़ाना चाहिए. इससे भगवान प्रसन्न होते हैं और आपको मनचाहे जीवनसाथी का वरदान देते हैं.
हरसिंगार-
सावन में शिवजी की पूजा करते समय हरसिंगार का फूल चढ़ाना अत्यंत शुभ माना जाता है. इस फूल को चढ़ाने से सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.
मदार-
शिवजी की पूजा करते समय मदार के फूल जरूर चढ़ाएं. इसे आक और आंकड़े जैसे नामों से भी जाना जाता है. शिवजी को मदार के फूल चढ़ाने से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
धतूरा-
शिवजी को धतूरा अत्यंत प्रिय होता है. धतूरे के बिना शिवजी की पूजा अधूरी मानी जाती है. सावन में शिवजी की पूजा करते समय धतूरे के फल के साथ ही फूल भी चढ़ाना चाहिए. इससे संतान की प्राप्ति होती है.
गुलाब-
धन-समृद्धि के लिए सावन में शिवजी को गुलाब के फूल चढ़ाएं.
जूही- जूही के फूल से पूजा करने पर नौकरी-व्यापार में तरक्की होती है और धन संबंधी परेशानियां दूर होती है.
अलसी-
सावन में अलसी के फूल से शिवजी की पूजा करने से व्यक्ति के सभी पाप दूर होते हैं.संकलित पोस्ट
*🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈*
#राहुलनाथ ™ भिलाई 🖋️
📱➕9⃣1⃣9⃣8⃣2⃣7⃣3⃣7⃣4⃣0⃣7⃣4⃣(w)
#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,
मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।
शनिवार, 23 जुलाई 2022
#सर्वसिद्धिप्रद_बगलामुखी_मंत्र_एवं_श्री_बगलाष्टोत्तर_शतनामस्तोत्रम
#सर्वसिद्धिप्रद_बगलामुखी_मंत्र_एवं_श्री_बगलाष्टोत्तर_शतनामस्तोत्रम
माँ भगवती श्री बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है।
माँ बगलामुखी यंत्र मुकदमों में सफलता तथा सभी प्रकार की उन्नति के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। कहते हैं इस यंत्र में इतनी क्षमता है कि यह भयंकर तूफान से भी टक्कर लेने में समर्थ है।
माहात्म्य- सतयुग में एक समय भीषण तूफान उठा। इसके परिणामों से चिंतित हो भगवान विष्णु ने तप करने की ठानी। उन्होंने सौराष्ट्र प्रदेश में हरिद्रा नामक सरोवर के किनारे कठोर तप किया। इसी तप के फलस्वरूप सरोवर में से भगवती बगलामुखी का अवतरण हुआ। हरिद्रा यानी हल्दी होता है। अत: माँ बगलामुखी के वस्त्र एवं पूजन सामग्री सभी पीले रंग के होते हैं। बगलामुखी मंत्र के जप के लिए भी हल्दी की माला का प्रयोग होता है।
प्रभावशाली मंत्र माँ बगलामुखी
#विनियोग -
अस्य : श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।
#आवाहन
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा ।
#ध्यान
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
#मंत्र
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।
इन छत्तीस अक्षरों वाले मंत्र में अद्भुत प्रभाव है। इसको एक लाख जाप द्वारा सिद्ध किया जाता है। अधिक सिद्धि हेतु पाँच लाख जप भी किए जा सकते हैं। जप की संपूर्णता के पश्चात् दशांश यज्ञ एवं दशांश तर्पण भी आवश्यक है।
मां पीताम्बरा कि अमोघ और अभेद्य कृपा से परिवार सुरक्षित रहे इस हेतु श्रीबगलामुखी शतनाम स्तोत्र के रोजाना १५ पाठ करे किसी विशिष्ट कार्य हेतु दस दिन मे एक हजार पाठ करे |यदि आप नित्य पाठ करने में सक्षम नही तो इनका पाठ विधि अनुसार योग्य साधक या भक्त से करवाये।
|| जय मां पीताम्बरा ||
#सर्वसिद्धिप्रद_श्री_बगलाष्टोत्तर_शतनामस्तोत्रम_॥
***************************************
#श्रीर्जयति ||
#ध्यानम्
गंभीरां च मदोन्मत्तां स्वर्णकांतिसमप्रभाम् ।
चतुर्भुजां त्रिनयनां कमलासनसंस्थिताम् ॥
मुद्गरं दक्षिणे पाशं वामे जिह्वां च बिभ्रतीं |
पीतांबरधरां देवीं दृढपीनपयोधराम् ||
ओम् ब्रह्मास्त्र-रूपिणी देवी माता श्रीबगलामुखी । चिच्छक्तिर्ज्ञान-रूपा च ब्रह्मानन्दप्रदायिनी ॥१॥
महाविद्या महालक्ष्मी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।
भुवनेशी जगन्माता पार्वती सर्वमङ्गला ॥२॥
ललिता भैरवी शान्ता अन्नपूर्णा कुलेश्वरी ।
वाराही छिन्नमस्ता च तारा काली सरस्वती ॥३॥
जगत्पूज्या महामाया कामेशी भगमालिनी ।
दक्षपुत्री शिवाङ्कस्था शिवरूपा शिवप्रिया ॥४॥
सर्वसम्पत्करी देवी सर्वलोक-वशङ्करी ।
वेदविद्या महापूज्या भक्ताद्वेषी भयङ्करी ॥५॥
स्तम्भरूपा स्तम्भिनी च दुष्टस्तम्भनकारिणी ।
भक्तप्रिया महाभोगा श्रीविद्या ललिताम्बिका ॥६॥
मेनापुत्री शिवानन्दा मातङ्गी भुवनेश्वरी ।
नारसिंही नरेन्द्रा च नृपाराध्या नरोत्तमा ॥७॥
नागिनी नागपुत्री च नगराजसुता उमा ।
पीताम्बरा पीतपुष्पा च पीतवस्त्रप्रिया शुभा ॥८॥
पीतगन्धप्रिया रामा पीतरत्नार्चिता शिवा ।
अर्द्धचन्द्रधरी देवी गदामुद्गरधारिणी ॥९॥
सावित्री त्रिपदा शुद्धा सद्योरागविवर्द्धिनी ।
विष्णुरूपा जगन्मोहा ब्रह्मरूपा हरिप्रिया ॥१०॥
रुद्ररूपा रुद्रशक्तिश्चिन्मयी भक्तवत्सला ।
लोकमाता शिवा सन्ध्या शिवपूजनतत्परा ॥११॥
धनाध्यक्षा धनेशी च धर्मदा धनदा धना ।
चण्डदर्पहरी देवी शुम्भासुरनिबर्हिणी ॥१२॥
राजराजेश्वरी देवी महिषासुरमर्दिनी ।
मधुकैटभहन्त्री च रक्तबीजविनाशिनी ॥१३॥
धूम्राक्षदैत्यहन्त्री च भण्डासुरविनाशिनी ।
रेणुपुत्री महामाया भ्रामरी भ्रमराम्बिका ॥१४॥
ज्वालामुखी भद्रकाली बगला शत्रुनाशिनी ।
इन्द्राणी इन्द्रपूज्या च गुहमाता गुणेश्वरी ॥१५॥
वज्रपाशधरा देवी जिह्वामुद्गरधारिणी ।
भक्तानन्दकरी देवी बगला परमेश्वरी ॥१६॥
#फलश्रुती
अष्टोत्तरशतं नाम्नां बगलायास्तु य: पठेत् । रिपुबाधाविनिर्मुक्त: लक्ष्मीस्थैर्यमवाप्नुयात् ॥
भूतप्रेतपिशाचाश्च ग्रहपीडानिवारणम् ।
राजानो वशमायान्ति सर्वैश्वर्यं च विन्दति ॥
नानाविद्यां च लभते राज्यं प्राप्नोति निश्चितम् । भुक्तिमुक्तिमवाप्नोति साक्षात् शिवसमो भवेत् ॥
॥ इतिश्री रुद्रयामले सर्वसिद्धिप्रद-श्री-बगलाष्टोत्तर-शतनामस्तोत्रम् ॥
*🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈*
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️
#राहुलनाथ™ भिलाई 🖋️
📞➕9⃣1⃣9⃣8⃣2⃣7⃣3⃣7⃣4⃣0⃣7⃣4⃣(w)
#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,
मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।