शनिवार, 29 अक्तूबर 2022

क्या होता है अध्यात्म?(भाग-1)

 क्या होता है अध्यात्म?(भाग-1)

🚩जयश्री माहाँकाल दोस्तो 🙏🏻
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अध्य +आत्म =अध्याय आत्मा का कहा से शुरू करे ??
मै कौन हूँ ।यही पहला अध्याय है आत्मा का!
मै कौन हु ?पूछो अपने आप से,आपका नाम तो माँ बाप ने अपनी पहचान के लिए नाम रखा!समाज के पहचान के लिए दिया है।
तो तुम कौन ???? पता तो करो ।यही साधना है ।।
साधना ये शव्द बड़ा विचित्र है साफ साफ़ कहा है साध ना
जिसे साधना मना है फिर भी प्रयास तो करना ही होगा
पुछो क्या जानना है साधना के विषय में ।।
किसकी साधाना।।।
किसको साधना है ?
खुद को या खुदा को?
वो जो खुद ही आ सकता है किसी के पुकारने से जो नहीं आता वही खुदा है।
जिसको भी साधना है पहले उसका नाम रखो माता बनके पिता बन के जैसे राम कुष्ण दुर्गा भवानी काली तारा या अन्य कोई भी नाम।
बचपन में जब मुझे डर लगता था तो मै मेरे दोस्त का नाम लेता था
दीपक बचा ले,और मै भय मुक्त हो जाता था।
मन को स्थिर करने के लिए मन से दूर होना पडेगा।
शत्रु जैसा व्यवहार करना पडेगा। जैसे पिता के मना करने पर पुत्र पिता को शत्रु समझने लगता है।
किसी कर्म काण्ड की आवश्यकता नहीं है इसमें ।।
कर्म काण्ड मतलब देवताओं को प्रसन्न करने के अलग अलग उपाय।
अध्यात्म का कर्म काण्ड से कोई लेना देना नहीं है।
वो तो लक्ष्मी के पुजारियो का कार्य है।
रोज मन की एक इच्छा पूरी करो।
इससे संकल्प शक्ति का निर्माण होता है।
इसे ही "संकल्प साधना" कहते है।
मन को एक नाम दो।
राम कुष्ण दुर्गा भवानी काली तारा या गुरुदेव कोई भी नाम।
और सब कुछ उस नाम को समर्पित कर दो।।
किन्तु दिमाग का क्षेत्र गुरु का है। और गुरु को ज्ञान महागुरु ही दे सकते है कोई सद्गुरु ही दे सकते है।।। पढ़ा तो जा सकता है किन्तु उसे समझाना गुरु का ही कार्य होता है।
तंत्र कहता है बच्चे की बलि दो शिशु की बलि दो
और तांत्रिक मानव शिशु पशु को बलि दे देते हैं जो की गलत है।। शास्त्रों में मन को ही पशु कहा गया है। इस पशु के ऊपर नियंत्रण करने वाला ही पशुपति नाथ कहलाता है। पहले किसी एक विषय का चुनाव करो अन्याथा सब भटक जायेगे।
तो पहले क्या? विषय होना चाहिये ।।शान्ख्या,ध्यान,आत्मा,पूजा, इत्यादि।।
तो प्रारम्भ करते है ध्यान से।
ध्यान?
ध नाम का यान।ध+यान=ध्यान
ध=धड़कन +यान
धडकनों का यान
ध्यान ?
धडकनों के यान का नियन्त्र।
इस यान की ऊर्जा क निर्माण श्वास एव भोजन से होता है
जीतनी श्वास  बढाओगे उतनी गति  इस यान की बड़ जायेगी।
और जितना घटा ओगे गति कम हो जायेगी।
किन्तु ध्यान मोक्ष का मार्ग है।
ध्यान के बिंदु का चयन करना होगा की
ध्यान लगाना कहाँ है
बाहर या भीतर।।।
किन्तु श्वासों को मात्र बढ़ाना या घटाना प्राणायाम नहीं होता।
प्राणायाम तो मात्र एक आयाम है
प्राणायाम से मंत्र सिद्धि नहीं मिलती।सिद्धि में सहायता मिलती ।।
एकाग्रता मिलती है।
जीतनी श्वासों की गति  बढाओगे उतने नीचे के चक्रो पे पहुचोगे ।
और जितना श्वासों को घटाने से ऊपर के चक्रो पर पहुचोगे।।
सबसे निचे मूलाधार चक्र उ[ व्यक्तिगत अनुभूति एवं।विचार©²⁰¹⁷ ]पस्थित होता है।
इस चक्र में श्वासों के गति की आवश्यकता होती है और श्वास के प्रहारों से काम क्षेत्र में स्पंदन होने लगता है।जिससे काम ऊर्जा का जन्म होता है ।
जो वशीकरण में काम आती है
ऊपर सहस्त्रार जहा श्वासों की आवश्यकता ही नहीं होती।वहा शान्ति है मौन है ।एकान्त है यही महादेव का वास है।।
बिना रुके माता के पहाड़ पे चढ़ जाने से भी श्वास बड जायेगी।।
एक जगह बैठे रहो कम हो जायेगी।।
ऊपर के चक्रो में धन नहीं है
ह्रदय चक्र तक ही धन धान्य या।
और जब खुद ही सभी भावो पे नियंत्रण कर लोगे।
तो शिव हो जाओगे।गोरख हो जाओगे।
क्रमशः

👉 आपका
#राहुलनाथ _राहुलनाथ™
(ज्योतिष-तंत्र-वास्तु एवं अन्य अनुष्ठान-जीवन प्रशिक्षक)
महाकाल आश्रम,भिलाई,३६गढ़,भारत,📱+९८२७३७४०७४(w)
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#निष्कर्ष:-
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