महाकालसंहिता(तंत्र)गुह्यकालीखंड:
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महाकालसंहिता मे उल्लेखित 'पंचशत-साहस्त्रयां महाकालसंहितायाम' से ज्ञात होता है कि यह ग्रंथ पांच लाख में लिखा गया था।इस ग्रंथ का इतना बड़ा आकार होना कोई आश्चर्य की बात नही, क्योकि 'मालिनीविजयतंत्र' के-वचन से 'सिद्धयोगेश्वरीतंत्र' जिसे 'वागकेश्वरतंत्र' भी कहते है।इसका प्रणयन नव करोड़ श्लोको से हुआ था।
काली अध्य शक्ति है रखता श्यामा भेद से ही त्रिपुर सुंदरी त्रिपुरा त्रिपुरभैरवी भैरवी आदि तथा दक्षिणकाली भद्रकाली आदि रूप धारण करती है काली की अनेक अवांतर रूप है इनकी संख्या ८,९,१०,१२ तक बताई गई है इनके अतिरिक्त तारा आदि 9 महाविद्याऐं भी मूलतः इसी का रुप-विस्तार है महाकाल संहिता बहुत संभव है आद्या के महाविद्या नामक सभी दशरूपो तथा अन्य विग्रहों के वर्णन से उपनिबद्ध रही हो;क्योंकि 500000 अथवा 50000 श्लोक केवल आद्यशक्ति काली एवं उसके रूपांतरण तारा आदि की चर्चा नहीं करेंगे तो फिर किसकी करेंगे इसके अतिरिक्त गुह्यकाली और कामकला काली नामक दो खंडों में विभक्त इस ग्रंथ के दोनों खंडो के बीच के बहुत सारे पटल अनुपलब्ध है।गुह्यकाली खंड का प्रारंभ पटल संख्या १८१तथा कामकलाकाली खंड का पटलसँख्या २४१ से होता है ।इससे सिद्ध होता है कि यह संहिता अधिक बृहदाकार ही रही होगी ।
महाकालसंहिता शक्ति की वाम मार्गी साधना-उपासना का उच्चकोटिक ग्रंथ है।इस उपासना में पञ्चमकार (मांस,मद्य,मत्स्य,मैथुन और मुद्रा) का प्रयोग किया जाता है।यद्यपि लौकिक तथा स्मार्त दृष्टि से इसकी वैधता नही है तथापि यदि ये कार्य तंत्रशास्त्रोक्त विधि से देवि के लिये समर्पण भाव से किया जाता है तो इसमें दोष नही होता।इस विषय मे 'ताराभक्तिसुधारणव' 'तंत्रालोक' आदी ग्रंथ प्रमाण है।महाकालसंहिता उदारवादी शास्त्र है।यह पंचमकार के अनुकल्पो की भी चर्चा करता है।यह ग्रंथ वैदिक एवं कौलिक दो अतिमार्गी के मध्य सामंजस्य की भूमिका प्रस्तुत करता है।तंत्रशास्त्र विषय एवं प्रक्रिया या यों कहिये सिद्धांत एवं व्यवहार दोनो दृष्टि से दुरूह है।यहाँ पद-पद पर स्खलन की संभावना रहती है अतः इस ग्रंथ की व्याख्या अत्यंत सावधानी से की गई है।
महाकाल संहिता मूलतः तंत्रोक्त ग्रंथ है आगमशास्त्र मुख्यतः शिवपार्वती संवाद रूप में है इसका प्रमाण-
श्लोक-
आगतं शिवक्त्रेभ्यो गतं च गिरिजश्रुतौ।
मतं च वासुदेवन तस्मादाग़म उच्यते।।
इसका दूसरा नाम तंत्र भी है।
तन्यते=विस्तारयते आत्मा येन तत तन्त्रम
सिद्धांत ,व्यवहार,प्रतीति का सर्वोत्तम एवं अदभुत सामन्जस्य यदि कही है तो वह तंत्र में है।संस्कृति भाषा के अनुस्वार अर्थात बिंदु को सृष्टी का मूल मानने का सिद्धांत तंत्र का है।मंत्र का जप शरीरस्थ कोषों का विकास करता हैं किंतु जप की विधि उसके बीजाक्षर,जप की पुर्णता के लिए होम,हवनीय द्रव्य,आसन स्थान काल दिशा आदि का निर्धारण तंत्र का ही विषय है किस समय किस स्थान में किन पदार्थों का किस रूप में संयोग एवं मिश्रण कर किस लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है-यह ज्ञान तंत्र से ही मिलता है यह है तंत्र शास्त्र का वैशिष्ट्य।
रुद्रयामल तंत्र के-
कृते श्रुतयुक्तमार्ग: स्यात्त्रेतायां स्मृति भाषितः।
द्वापरे वै पुराणोक्त: कलावागमसम्भवः।।
श्लोक तथा 'कलौ चंडी महेश्वरौ' अथवा 'कलौ चंडी कपीश्वरौ' वचनों से भी तंत्र की महत्ता एवं आवश्यकता सिद्ध होती है।आध्यात्मिक तथा आधिभौतिक जगत की आश्चर्यमयी तथा मनुष्य की बुद्धि के परे की घटनाओं का विश्लेषण,समस्याओ का समाधान करने की शक्ति केवल और केवल तंत्र में है।
निम्लिखित पोस्ट को लिखने के लिए "महाकालसंहिता" का सहयोग लिया गया है।यदि ये तंत्रोक्त जानकारी जिसका उद्गम भगवान शिव के मुखारबिंद से है यदि आप भक्तो को पसंद आती है तो भविष्य में इस पे लगातार मेरी कलम चलते रहेगी।
क्रमशः
🚩जै श्री महाकाल🚩
।। राहुलनाथ।।™
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**** #मेरी_भक्ति_अघोर_महाकाल_की_शक्ति ****
चेतावनी:-यहां तांत्रिक-आध्यात्मिक ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर कुछ मंत्र-तंत्र सम्बंधित पोस्ट मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।तंत्र-मंत्रादि की जटिल एवं पूर्ण विश्वास से साधना-सिद्धि गुरु मार्गदर्शन में होती है अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे।विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत,
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