प्रेमी आत्मा का प्रतिशोध(एक सत्य घटना)
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आज पुरानी यादें जीवंत हो गयी आज मनोज भाई (बदला हुआ नाम) मिले करीब 12 साल बाद।मनोज भाई भिलाई की सब्जी मंडी में थोक व्यपारी थे वे बहुत अच्छे इंसान है।किंतु हमारी भेट बहुत कम होती है दोनो की व्यस्तता के कारण।एक समय था मनोज भाई बहुत परेशान थे,उनके घर मे अजब गजब के करतब हो रहे थे।कपड़ो में आग लग जाती थी,एक अलग सी बदबू घर मे फैले रहती थी,घर मे शांति नही थी,और सबसे बड़ी बात की उनकी माता बड़ा परेशान थी उनकी माता जब भी नई साड़ी पहने या मंगल सूत्र पहने तो वो अपने आप उतर जाते थे।सारा परिवार इन घटनाओं से परेशान था।मनोज भाई ने मुझसे संपर्क किया फिर उस दिन मैं मनोज भाई के घर पहुचा,घर के सारे सदस्यो को इखट्टा किया गया ।सब के मन को मैंने समझने का प्रयास की ,इस दौरान मुझे मनोज भाई के पिता की स्थिति थोड़ी संदिग्ध लगी।मैंने उनसे पूछा आपको क्या लगता है इस विषय मे,उन्होंने तपाक से उत्तर दिया कि सब बेकार बाते है इन सबका वहम है।खैर मैं ठहरा भगत आदमी भक्ति ही कर सकता था मैंने मनोज भाई की माता को जमीन पे बैठाया और माँ काली का स्मरण कर दो अगरबत्ती जला दी,फिर क्या था कुछ ही क्षण में मनोज की माता के भाव,वाणी,आंखे बदलने लगी और आवाज भी कर्कश हो गई,ये उस परिवार में पहली बार हुआ था।मैंने मनोज की माता से पूछा कौन है माँ आप?वो कहने लगी,मनोज की ओर इशारा करके,मैं तेरी माँ नही हूँ।मेरे बारे में जानना है तो जा अपने बाप से पूछ की मैं कौन हूँ?फिर वो उठी और असामान्य चाल में चलती हुई मनोज के पिता के पास पहुच कर ,उनको घुरते हुए कहा कि "यदि तुने सब को सत्य नही बताया तो पहले मैं तेरी पत्नी को मारूंगी फिर तेरी संतानो को,ये सब देख कर तू स्वयं ही मर जायेगा।अब मनोज के पिता की जो हालत थी देखने लायक थी।बहुत घबरा गए थे वो,आवाज जैसे कंठ पे फंस गई थी,अब वे मेरी तरफ करुणामय दृष्टि से देख रहे थे।मैंने उनकी स्थिति को समझते हुए मनोज की माता से विनती की "की माता आप थोड़ा सा समय दीजिये इन्हें,आप जैसे चाहती है वैसे ही होगा।अब स्त्री तो करुणा मय होती है ,जन्होने कहा कि ठीक है शुक्रवार को आऊँगी लेकिन इससे कह देना सत्य को स्वीकार करे।फिर उनके हाथ मे दो लौंग,और पानी दिया गया ,फिर वे चली गई।
अब सारे परिवार की नजरें पिता पर थी कि बात क्या है बताये?किन्तु उन्होंने कहा,की वो पहले मुझसे अकेले में बात करना चाहते है फिर वे बुधवार को मुझसे मिलने आये और फिर उन्होंने सच्चाई बताई।
सच्चाई ये थी कि मनोज के पिता बटवारा होने के पहले पाकिस्तान में रहते थे पहले तो हिंदुस्तान पाकिस्तान की कोई बात नही होती थी।वहाँ वे किसी मंडी में सब्जी-भाजियों के थोक विक्रेता थे,वही उनको एक कन्या से प्रेम हो गया और उन्होने विवाह कर लिया,समय अच्छा बीतता रहा फिर एक घड़ी आई जब बटवारा हो गया और लोग हिंदुस्तान से पाकिस्तान ,पाकिस्तान से हिंदुस्तान की तरफ आने लगे।इस वक्त किसी कारण से ये कन्या अपने पति के साथ हिंदुस्तान नही आ सकी,कारण थोड़ा गुप्त है इसी कारण मैं उसका उल्लेख यहां नही कर पा रहा हु।बस ये वादा हुआ था दोनो में की स्थिति सुधरने से वो कन्या को साथ ले जाएंगे फिर समय कितना भी क्यो ना लगे।ये जोड़ा अब बिछड़ चुका था बस अब इंतजार था वही जहां प्रेमिका इंतजार कर रही इधर उसके प्रेमी ने दूसरा विवाह कर लिया था।इस दुःख को जानकर प्रेमिका ने आत्म दाह कर लिया था।ये वही कन्या थी जो उस दिन मनोज की माता के शरीर मे आ गई थी।ये राज मनोज के पिता ने अपनी पत्नी और 4 संतानो सहित पूरे समाज से छुपा कर रखा था और अब वो प्रेमिका न्याय चाहती थी अपने पति से।
अब गड़े मुर्दे उखड़ चुके थे और अब मनोज के पिता उपचार की आशा मुझसे रख रहे थे।मैंने उनसे कहा कि सबसे पहले तो आप अपने परिवार को सम्पूर्ण सत्य बताये,फिर वे क्या सोचते है इसपे आप ध्यान ना दे,सब माता रानी सम्हालेगी।उन्होंने वैसे ही किया,परिवार को सत्य बता दिया,परिवार में इस विषय को ले के विवाद की स्थिति बनी किन्तु सब जल्दी सामान्य सा हो गया क्योंकि अब इंतजार था शुक्रवार का,सारा परिवार भयभीत था कि अब क्या होगा,वैसे भी परिवार वही है जो विपत्ति के समय साथ रहे।
फिर शुक्रवार आया और वो भी आई किन्तु इस बार मुझे उसका आह्वाहन करने की आवश्यकता नही पड़ी।इस बार वो क्रोधित नही थी बल्कि एक कटीली मुस्कान के साथ उसने परिवार के सभी सदस्यों को देखा और पिता से पूछा कैसे लगा,परिवार की नजर में जलील हो कर,मुझे भी लगा था जब उस समय मैं अपने परिवार के नजरो में जलील हुई थी तभी तो मैंने आत्म हत्या की।
मैंने उनको देखा और उनसे पूछा माता अब उपाय क्या है आपकी इच्छा पूरी हुई अब आप जहां से आये है वहा जाए।उन्होंने कहा इतनी जल्दी क्या ,अभी तो मुझे मेरे पहली पत्नी होने का भी सम्मान चाहिए,मैंने बहुत इन्जार किया है और इस परिवार को भी करना होगा।
मैंने कहा कि कुछ तो बताये की आपको मान सम्मान कैसे दिया जाए?
उन्होंने कहां की इनकी स्त्री को स्वीकार करना होगा कि वो दूसरी स्त्री है और मैं पहली,जो भी वो नया वस्त्र पहनेगी वो पहले मुझे दे कर ही धारण करेगी,मंगल सूत्र के पीछे मेरा नाम ऊपर अपना नाम नीचे लिखवाएगी,व्रत त्योहार में भी मुझे समान देगी तो मैं इस परिवार को परेशान नही करूँगी।
परिवार ने इस विषय मे आपस मे बात करी और उसकी सभी बातें स्वीकार की।आज मनोज का परिवार खुशहाल है।
इस पूरी घटना में आपने देखा होगा कि कही भी मैंने जादू-टोना,तंत्र-मंत्र का उपयोग नही किया गया था सामान्य सी मनोदशा को समझने का प्रयास कीया गया और समाधान मिल गया क्योंकि हर समस्या का समाधान उसके ही भीतर छुपा होता है।बस आप उस ईश्वर पे विश्वास रखे फिर कोई भी धर्म का वो हो या कोई भी उसका नाम।यहां मैंने विश्वास से माँ काली का नाम लिया था आप अपने धर्मानुसार नाम ले सकते है।
धन्यवाद
🚩जै श्री महाकाल🚩
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चेतावनी:-इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र,
व्याख्याए,एवं तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है जिसे मानने के लिए आप बाध्य नहीं है।यहां तांत्रिक-आध्यात्मिक ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर कुछ मंत्र-तंत्र सम्बंधित पोस्ट दी जाती है।तंत्र-मंत्रादि की जटिल एवं पूर्ण विश्वास से साधना-सिद्धि गुरु मार्गदर्शन में होती है अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे।विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत,©कॉपी राइट एक्ट 1957)
🚩JAISHRRE MAHAKAL OSGY🚩
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