संन्यास या पलायनवाद
जब तक दायित्व पुरे ना हो जाए,जब तक माता-पत्नी स्वेच्छा से भिक्षा ना प्रदान करे,तब तक संन्यास लेना मात्र एक मृगतृष्णा है।संन्यास लिया और सोचते है बीवी क्या कर रही होगी।संन्यास लिया और सोचते है बच्ची अब बड़ी हो गई होगी,संन्यास लिया और सोचते है परिवार का भरण पोषण कैसे हो रहा होगा,संन्यास लिया और सोचते है गुरु नाराज तो नही होंगे।संन्यास लिया और सोचते है मेरी अपनी भूमि में अब हल कौन जोत रहा होगा।
संन्यास का मतलब ही स्वयं का न्यास है स्वयं का श्राद्ध है जब मृत्यु ही ही गई ,श्राद्ध ही ही गया तो फिर और कुछ लेने को बचता है।संन्यास एक एकाँकी विषय है ।यह एक भीतर का विषय है खोने का नहीं मात्र उस मालिक को पाने का विषय है।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,36गढ़,भारत
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