अकेली यात्रा
आप जो भी है जैसे भी है जहां कही भी है आप अपनी साधना के मार्ग में तत्पर है और अपने आपको हमेशा तैयार रखते है तो समय आने पर मैं आपको साधना के अगले स्तर पर ले जाऊंगा।बस किसी के समान ना बने ,किसी की कॉपी ना करे ,ना राम बने ना रहीम बने ,ना गुरु बने ,ना शिष्य,मात्र जीव बने ।एक निर्मल एक कोमल जीव,जो सबसे प्रेम करता हो किसी में भेद ना करता हो,मानव तो दूर जो जीवो में भी भेद ना करे।ना काले को अपनी पसंद बनाये ,ना भगवे ,नीले,पिले,हरे को ।सब को समान रुप से देखे।जो लाल है काला,पिला,नीला,हरा,भगवा है सब एक मात्र तुममे है जो ये ना समझा वो अवश्य हिस्सो हिस्सो में बटेगा,क्योकि वो स्वयं बटने को तैयार है।प्रवेश द्वार खुला हो तो,पशु अवश्य घर में प्रवेश करेंगे,इसमें पशुओं का दोष नहीं,सभी मार्ग बंद कर दो कोई प्रवेश ना कर पाए,कोई भटका ना पाये।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
जिसे मानने के लिए आप बाध्य नहीं।
"नाथ भक्त"
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,36 गढ़
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