मैं वही तुझे मिलूंगा जहां,अभी तक तूने मुझे तलाशा नहीं।।
ज्ञान की प्राप्ति होगी आत्म मंथन से और आत्म मंथन होगा एकांकी पन मे,और एकान्त घटता है भीतर की,बाहर कुछ भी नहीं होता,यदि मैं सोचता हूं कि मैं घर छोड़ दू,रिश्ते-नाते छोड़ दू,एकांत की तलाश में किसी आश्रम में चले जाऊ किसी जंगल में चले जाऊ तो ,शायद एकांत मिलेगा।किन्तु हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता,हर तरफ सिर्फ कोलाहल है आश्रम में गुरु भाइयो का,गुरुओ का ,नियमो का,तो जंगल में पशु-पक्षियों का,पेड़ पौधों का।
नहीं मिलेगा कुछ बाहर ,बाहर कुछ हो तो मिले?
एकांत में मिलेगा अवश्य मिलेगा जहां आप है वही सब का त्याग करने से ।सबके बीच रहके अलग होने से।और मैं तो कहता हूं सब कार्य करके जो समय बचे उसमे एकांत प्राप्त होगा।रात्रि में निद्रा मैया की गोद में पनाह लेने के पहले एकांत प्राप्त होगा।दिन भर माता-पिता,भाई-बहन और पति-पत्नी जैसे सभी रिश्तो में बंधे रहो,भेष बदलते रहो और जब इन सब का मन बहला लो ,अपने कर्त्तव्य निभा लो तब एक क्षण के लिए स्वयं के लिए जी लो ,ये एक क्षण का स्वयं के लिए जीना ही एकान्त है।
बहुत साधू बन गए संत बन गए इस एकान्त की आकांक्षा में ,और वे स्वयं ,स्वयं भी ना रहे ,मात्र एक दिखावटी अभिनय को ही गुरु मान साधने लगे।बहुत एकान्त की खोज में घर से चले गए ,मित्र-बंधुओ का त्याग कर चले गए और जब वे एकान्त में पहुचे तो उन्हें माता-पिता,भाई-बंधू को तो छोड़ो वो अपने पाले पशुओं को भी ना भूल पाये।वापस भी ना आ पाए आते भी कैसे अहंकार से सब कुछ छोड़ने का संकल्प ले के जो वो निकले थे।घर छोड़ साधू बनना आसान किन्तु साधू से साधुत्व छोड़ गृहस्त बनना बहुत मुश्किल जो है।
नहीं मिलेगा,नहीं मिलेगा,कभी नहीं मिलेगा ये एकान्त कभी नहीं मिलेगा।जब तक स्वयं में एकान्त ना पैदा हो ये कभी नहीं मिलेगा और जब तक एकान्त नहीं मिलेगा तब तक आत्म मंथन नहीं होगा और जब तक आत्म मंथन नहीं होगा तब तक ज्ञान नहीं मिलेगा।
टी.वी.देखो,मोबाइल चलाओ,फेसटीबुक चलाओ,लोगो से बहुत सारी बाते करे ,लड़ाई करे-झगड़ा करे,जो भी करे एकान्त को पास भटकने भी ना दे।किन्तु उसे घटना होगा ना,तो वो घट जाएगा।कही भीतर के अँधेरे में,कही भीतर की तन्हाइयो में और कही भीतर के प्रश्न करने वाले मन में।कभी सुना है फूलो को भीड़ में दिन में खिलते हुए,कभी देखा है फलो को दिन की रौशनी या भीड़ में पनपते हुए ,नहीं कभी ।प्रकृति जीती है तन्हाई में एकान्त में ,बहुत शर्म है छुई-मुई जैसी इसमें ,भीड़ से ये शर्माती और अँधेरे में एकान्त में ये अपनी छठा बिखेरती है।
इस एकांकी से सब डरते है आज के युग में इसे बोर होना कहते है और सिद्धो और सच्चे भक्तो को इस बोर और पकाऊ मार्ग में चल कर ही शिव मिलते है।
जयश्री महाकाल
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,36गढ़,भारत
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