शिव .. सुपर नैनो SUPER NANO
एक बहुत ही सूक्षम अणु है जिसे आप अनु और परमाणु भी नहीं कह सकते है यह सभी स्थान में फैले हुए है ये हमारे चित्त के अणु भी नहीं है और ना ही मैं किसी विद्युत के अणु के विषय में लिख रहा हूँ।ये इनदोनो चित्तणुओँ एवं विद्युताणुओँ के बीच का स्तर है एवं पूर्णतः स्वतन्त्र सत्ता है।ये धनात्मक एवं ऋणात्मक भी,ये सकारात्मक है और नकारात्मक भी।ये पुरुष भी नहीं है और स्त्री भी।ये शब्दाणु भी नहीं है ये कंपन भी नहीं है।विज्ञान अभी तक "नैनो" कणों को ढूंढ पाया है किंतु मुझे ये "नैनो" से भी सूक्षम "सुपर नैनो" ही लगता है।इसे इसके गुणों के आधार पर आप "सकारात्मक सुपर नैनो"एवं नकारात्मक सुपर नैनो" कह सकते है। परंतु इसको मैंने "सुपर नैनो" ही मात्र कहा है।
इस सुपर नैनो के बिना हमारा जीवन कुछ भी नहीं है इसका आकर्षण मानव या अन्य जीवों के विचारों पे निर्भर करता है।आपके सकारात्म विचार "सकारात्मक सुपर नैनो" को आपके भीतर आकर्षित कर आपके जीवन में आपको सुन्दर,हष्ट-पुष्ट और चमकदार व्यक्तित्व प्रदान करते है।इसके ठीक विपरीत नकारात्म विचार "नकारात्मक सुपर नैनो" को आकर्षित कर आपके जीवन से हर्ष उल्लास एवं सुखों का हनन कर देते है।इसमें इन नैनो अणुओं का कोई दोष नहीं होता ये सुपर नैनो आपके विचार के अनुसार ही आपको विष या अमृत प्रदान करता है।
इसको सही मात्रा में आकर्षित करना ही तंत्र है जिससे सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों स्थितियों का निर्माण किया जा सकता है इनका आकर्षण करने की विधि ही "संकल्प" कहलाती है जैसा संकल्प होगा वैसे ही परिणाम हमें प्राप्त होते है।
यदि आप प्रातः जागते है और आपके माता-पिता या गुरु आशीर्वाद प्रदान करते है,कोई मित्र सुबह सुबह कोई उपहार देते है,कोई आपकी प्रशंसा करता है,कोई आपके कार्यो के प्रति आपको बधाई देता है तो इस के परिणाम स्वरूप आपके जीवन में "सकारात्मक सुपरनैनो" आपके जीवन में प्रस्तुत हो कर आपके मुख का तेज बड़ा देते है और ठीक इसके विपरीत आप प्रातः काल जागते है और आपके गृह द्वार पे कोई,निम्बू,नारियल,पुतला,राख,
विष्ठा,मांस,रक्त इत्यादि रखा दीखता है तो ये सब कर्म आपके जीवन में "नकारात्मक सुपरनैनो"को आकर्षित करते है।यहां मैंने जाना की जो "सुपर नैनो "है उसके सारे गुण वेद-पुराणों के अनुसार" शिव" से मेल खाते है।इसी कारण सारा तंत्र यंत्र मंत्र शिव के मुख से निकला है ऐसा बताया जाता रहा है।यहां शिव या "सुपरनैनो"एक साधारण होते हुए भी महत्वपूर्णी सत्ता है क्योकि जो विष एवं अमृत दोनों का निर्माण करता है वो इनके भेदो को भी जानता है।
सही तंत्र "सकारात्मक सुपर नैनो" को आकर्षित कर जीवन यापन करना सिखाता है जैसे सुबह जल्दी उठना,रात्रि को जल्दी सोना,व्यायाम करना,समय पे भोजन योग करना इत्यादि।
शिव मुख तंत्र की दोनों धाराएं ऐसी का घोतक है वाम मार्गी या दक्षिण मार्गी।
एक तरफ पूर्ण सकारात्मक सत्ता है शिव(+),एक तरफ पूर्ण रूप से नकारात्मक सत्ता है शिवा(-) है किंतु यह साधको को भी समझना होगा की साधक क्या होता है? साधक वो जो इच्छानुसार सकारात्मक एवं नकारात्मक चिंतन द्वारा समाज का कल्याण कर सके ।साधक वो जो (+/ -) दोनों को साध सके।साधक ही विष्णु का अवतार है जो सकारात्मक /नकारात्मक को समयानुसार साधने का प्रयास करता है।अब इसमें समाज का एक बहुत बड़ा हिस्सा नकारात्मक चिंतन या नकारात्मक तंत्र को नकारता है या शायद वो भयभीत हो जाता है इस विद्या से।लेकिन देवी के रूप में इस नकारात्मक सत्ता की पूजा अर्चना अवश्य करता है इसी लिए देवी के साधको को तांत्रिक कहा जाता है एवं शिव साधक अघोरी कहलाता है किंतु ये दोनों नाम शिव के नहीं है क्योंकि शिव में ही अघोर एवं तंत्र समया है।
हमारा शरीर और मंत्र सकारात्मक एवं नकारात्मक विचारों की क्रिया-प्रतिक्रिया से लगातार प्रभावित होता है इन विचारों द्वारा ही हमारे स्वास्थ्य का संरक्षण होता रहता है।इन सकारात्मक से नकारात्मक विचारों की यदि एक रेखा खिंची जाए तो,प्रारम्भ से अंत तक के मध्य में एक बिंदु का जन्म होता है जिससे इनकी कुल संख्या 3 हो जाती है और इसी प्रकार पहले बिंदु से तीसरे बिंदु के बीच एक,और तीसरे बिंदु से अंतिम बिंदु के बीच एक अन्य बिंदु का जन्म होता है इन बिंदुओं को चक्रो की संज्ञा दी गई है जो मुख्य रूप से सात माने गए है ।यही कुण्डलिनी शक्ति के मूल चक्र होते है।विज्ञान के अनुसार इन स्थानों में अलग ग्लैंड(ग्रंथियां) होती है जिसमे से अलग अलग रसों(हार्मोन्स)का रिसाव होता है।
विषय अनुसार यह ये समझे की ये 7 हार्मोन्स या रस सकारात्मक से नकारात्मक तक 7 भावनाओ को प्रभावित करते है।
जैसे विचार होंगे वैसे रस रक्त में समाहित हो कर वैसी ही भावना उत्पन्न करते है।इस लेख के प्रारम्भ में मैंने यही समझाने का प्रयास किया था कि मूल सकारात्मक या नकारात्मक विचार ही है जिसपे सारा तंत्र समाया हुआ है।आप अच्छा पूरा जैसे सोचे,भीड़ में सोचे या वैराग में ,आप इस "सुपर नैनो" के प्रभाव से बच नहीं पाएंगे।
यहां पहुच कर सिद्ध ,बुद्ध,महावीर,साईं,कृष्ण सब एक ही परमात्का की और संकेत कर मौन को धारण करने कहते है किंतु यह हमारी बात बाहरी मौन से नहीं भीतर के मौन से है।निर्लिप्त,निर्विकार होने से।"सकारात्मक सुपर नैनो" या "नकारात्मक सुपर नैनो" बनने से नहीं है बल्कि उस मात्र "सुपर नैनो" में स्वयं को खो जाने से है ।इस अवस्था में आपने भगवान शिव की,बुद्ध की और महावीर की फोटो या प्रतिमाओं को देखा होगा।
मित्रो ऊपर मैंने जिन नामो का चयन की ,वे मात्र समजाने के लिए है आप नाम कुछ भी रख सकते नाम से कुछ नहीं होता।नाम या सबद तो कंपन पैदा करते है औऱ कम्पन्न "सुपर नैनो" तक पहुचने नहीं देते क्योकि "सुपर नैनो" एक अवस्था है कोई नाम या दैविक या मानवीय करण नहीं है।
*****जयश्री महाकाल****
******राहुलनाथ********
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