धर्म
धर्म तो दस या सौ नहीं हो सकते,धर्म तो एकही हो सकता है हां सभी ने अपने धर्म अलग बना रखे है ऐसा हो सकता है।धर्म तो भीतर का भाव है और सब को एक दृष्टि से देखना ही इसके मूल में है जहां धर्म है वहां हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,इसाई जैन और फ़ारसी किसे हो सकता है हां साधारण भाषा में ये कहा जाता है कि मेरा धर्म हिन्दू है,सिक्ख है या अन्य।
मनु ने धर्म के दस लक्षण बताये हैं:
धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥
(धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरङ्ग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ; ये दस धर्म के लक्षण हैं।)
जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ न करना चाहिये - यह धर्म की कसौटी है।
श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्।
आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ॥
(धर्म का
स
र्वस्व
क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।)
ऊपर लिखी बाते तो सभी जीवों के ऊपर लाघु होती है इस एक विषय पे सभी धर्म गुरुओं के अलग अलग मत रहे है जिनका एकीकरण किये बिना सफलता मुश्किल ही होगी
ऊपर लिखे मनु सूत्र में हिन्दू मुस्लिम सिक्ख इसाई या किसी अन्य का नाम नहीं लिखा है और यही धर्म की सही परिभाषा लगति भी है
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार
राहुलनाथ
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