शुक्रवार, 16 दिसंबर 2016

शिव और गोरख

शिव और गोरख
प्रारम्भ में शिव ही शिव थे ,शिव की ही सब पूजा करते रहे ।श्रीदादा गुरु मछिन्द्रनाथ जी ने भी शिव साधना ही करी।किन्तु अलग पन्थ या संप्रदाय नहीं बनाया।सब शिव की सेवा में ही रहे ।किन्तु गुरु गोरख के आने के बाद ये सब बदल गया।कारण सामान्यतः गुरु मछिन्दर के कामपुर त्रिया राज में प्रवेश करना ही रहा होगा।
शिव गृहस्ती है उनके छः पुत्र हुए गणेश,कार्तिकेय,सुकेश,जलंधर,अयप्पा और भूमा ।इन पुत्रो के अलावा पुत्री भी थी उनकी अशोक सुंदरी जिसका विवाह नहुषा से हुआ।दोनों ने विवाह किया और दो पुत्र  (यति और  ययाति ) और 100 पुत्रियों के वे माता पिता बने।
गुरु मच्चिन्द्र कौल शास्त्र के रचयिता रहे और कौल स्त्री(शक्ति)के बिना अधूरा ही होता है वैसे भी संसार की रचना स्त्री के बिना हो सके ये मुमकिन नहीं है यहां स्त्री सबद का उपयोग संसार की समस्त मादाओं के लिये किया गया है।यदि वृक्ष जन्म लेता है तो माता धरती होती है।इसी प्रकार समस्त चल अचल सभी की जननी माता ही कहलाती है।
गुरु मछिन्दर के बहुत से शिष्यो में गुरु गोरख भी रहे जिन्होंने भविष्य में नाथ संप्रदाय के प्रचार प्रसार के लिए पूर्ण रूप से समर्पण के साथ कार्य किया।श्री शम्भुजती गुरु गोरखनाथ जी ने अपने कार्य काल में सिद्ध योग अर्थात हट योग मार्ग से शिव स्वरुप परमात्मा को सिद्ध किया।

किन्तु वे गृहस्ती नहीं रहे।स्त्री से परे रहे ।स्त्री से परे होने के कारण मुझे लगता है कि निश्चित रूप से स्त्री तत्व तो उनमें नहीं रहा होगा।स्त्री हर पुरुष में एवं पुरुष हर स्त्री में विद्यामान होता है यदि आप साधू है संत है ब्रह्मचारी है इसके बावजूद भी ,इनके भीतर स्त्री विद्यमान होती है।जो ब्रह्मचारी है उनके भीतर यह माता के रूप में और जो वैवाहिक है उनमे माता एवम् पत्नी के रूप में यह विद्यमान होती है।इसी प्रकार यह प्रक्रिया स्त्रियों में भी होती है पुरुष में स्त्री तत्व माता के गर्भ में रहने के कारण होता है इसके विपरीत देखा जाए तो गुरु गोरख का जन्म स्त्री गर्भ से नहीं बताया गया बल्कि एक ऐसे कुँए से बताया गया है जहां गोबर इकहट्टा किया जाता रहा था।इसी कारण गुरु गोरख में स्त्रितत्व के प्रति नकारात्मकता सही भी लगती है।
जितना भी ज्ञान मैंने पाया वहां मैंने दादा गुरु एवं गुरुदेव की बुद्धि में बहुत अंतर देखा।समयानुसार दो अलग अलग समूहों का निर्माण हुआ ।एक वो जो गृहस्त रहे और एक वो जो गृहस्त हिन् रहे।किन्तु थे सब शिव भक्त ही।किन्तु बुद्धि के फेर से कहे या माता की लीला से भेद तो हो ही गया था।समयानुसार जैसा की होता है दो दलों का निर्माण हुआ प्रथम शिव को मानने वाले और दूसरा गोरख को मानने वाले ।मतलब जो गोरख को मान रहे थे वे प्रथम शिव भक्त ही रहे होंगे।आप इतिहास देखिये,मोहन जोदड़ो के अवशेष देखिये,जिसे प्राचीन माना जाता है वहां भी शिव लिंग पाये गए है जो इस बात को प्रमाणित करते है कि आदिनाथ शिव को मानने वाले प्रारम्भ से रहे।मछिन्दर नाथ जी का गोरखनाथ जी को दीक्षा देना और 12 वर्ष तक तपस्या का आदेश देना ,ये 12 वर्ष ही परिवर्तन का समय रहा होगा ।इन 12 वर्षों में एक स्वर्ण तप रहा था और तप के कुंदन बन रहा था ।12 वर्षो के कठिन तपस्या के बाद जब उस चेले को गुरु के दर्शन नहीं हुए तब गुरु की उन्होंने खोज प्रारम्भ की।और जब उन्हें अपने गुरु के त्रिया राज में होने का समाचार प्राप्त हुआ तो उन्होंने अपने गुरु को अपनी शक्ति एवं युक्ति से मुक्त कराया,किन्तु तब तक मीननाथ का जन्म हो चुका था।यही है जाग मछेन्दर गोरख आया।
कालान्तर में गुरु गोरख के चमत्कारों से एवं उनकी कार्य प्रणालियों को देखते हुए बहुत से भक्त गुरु गोरख की शरण लेने लगे ,जिसने आगे जाके गोरख पंथियों का एक पूरा समुदाय बना दिया ।इस गोरख संप्रदाय में 12 पंथो का निर्माण हुआ ।
इस पुरे कार्यकाल के पहले से भगवान शिव के 18 पंथ धरती पे विराजमान थे मतलब ये की श्री नाथ पंथ शिव के समय से ही चमकते हुए सूर्य के समान प्रतिष्ठित हो समाज की सेवा में तत्पर रहा था। और कालान्तर में गुरु गोरख के भी 12 पंथो का निर्माण हो चुका था।ये एक ऐसा समय रहा होगा जहां शिव एवं गोरख के मिलाकर कुल 30 पंथ अस्तित्व में आये होगे।इसे ही नाथ संप्रदाय में 18/12 के नाम से जाना जाता है जिसमे शिव के 18 एवं गोरख के 12 पंथ होते है।जिसे 18 भार वनस्पति और 12 भार कहा जाता है।इन दोनों समूहों में समय समय पे एक विचार धारा नहीं होने के कारण ,आपसी मदभेद एवं विवाद होते रहते थे जो मदभेद से बढ़कर युद्ध का रूप ले लिया करते थे।
और ये युद्ध अपना विनाशकारी रूप ले लेते थे कारण अमृतमय काल (कुम्भ मेला)में स्नान कौन पहले करेगा इस विषय को लेके युद्ध प्रारम्भ हो जाता था इस काल को आप सभी सिंहस्थ कुंभ के नाम से जानते है।इसे नाथ पंथ में त्र्यम्बक क्षेत्र अनुपान शिला कहा जाता है।
इन बार बार के युद्ध को समाप्त करने एवं सबमे एकता बनाये रखने हेतु एक सभा का आयोजन किया गया जो बाद में योगी महासभा अवधूत भेष बारह पंथ के नाम से जाना गया।इस त्र्यम्बक अनुपान शिला में आदिनाथजी शिव जी ,गुरु गोरखनाथ जी,9नाथजी एवं 84 सिद्धो सहित अन्त कोटि सिद्धो ने एकत्रित हो कर ,इस महासभा में भगवान शिव के 6 पंथो को एवं गुरु गोरख के 6 पंथो को बराबर स्थान दिया गया ।इस प्रकार भेष 12 का जन्म हुआ इसमें समझने की एक बात और है इन 12 पंथो के अलावा भी गृहस्त जोगियों का मान आधा माना गया ।कुल मिला कर 6 शिव के पंथ 6 गोरख के एवं 1/2 गृहस्तो को ।सभी मिलाकर साढ़े 12 पंथ ही सम्पूर्ण हुए।
आज जो भी देश के एवं समाज के हित में धार्मिक रूप से ,सकारात्मक परिवर्तन होते है इसमें मुख्य स्थान योगी महासभा का ही होता है।
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*****जयश्री महाकाल****
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