शनिवार, 19 मार्च 2022

गुरु-शिष्य के लिए उपयोगी मार्गदर्शन

गुरु-शिष्य के लिए उपयोगी मार्गदर्शन
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१.गुरु को चाहिए कि वह शिष्य को पुत्र की तरह मांनता हुआ और उसकी उन्नति की इच्छा करता हुआ सभी धर्मों में कुछ भी गुप्त न रखते हुए उसे विद्या प्रदान करें ।

२.गुरु आपत्तिकाल के सिवाय अन्य समय में शिष्य के शिक्षा अध्ययन में पहुंचा कर उसे अपने किसी कार्य में ना लगाएं।

३.गुरु को बहुत विचार करके ही किसी को शिष्य बनाना चाहिए अन्यथा शिष्य के दोष के कारण गुरु नरक में जा सकता है।

४.जिस प्रकार मंत्री का पाप राजा को और स्त्री का पति को प्राप्त होता है उसी प्रकार निश्चय ही शिष्य का पाप गुरु को प्राप्त होता है।

५.भ्रूण हत्या करने वाला,अपना अन्न खाने वाले को,व्यभिचारीणी स्त्री पति को,शिष्य गुरु को, यजमान गुरु को और चोर राजा को अपना अपना पाप दे देते हैं

६.एकमात्र पति ही स्त्रियों का गुरु है अतः स्त्री को पति के सिवाय किसी को भी गुरु नहीं बनाना चाहिए।

७.शिष्य को गुरु के साथ एक आसन पर नहीं बैठना चाहिए परंतु वह
बैलगाड़ी,घोड़ागाड़ी,ऊंठगाड़ी,महल की छत, कुशकी, चटाई, शिलाखंड और नाव पर गुरुके साथ बैठ सकता है।

८.शिष्य को चाहिए कि जिस आसन पर गुरु बैठते हो उस पर वह न बैठे और  जिस शैय्या पर वे सोते हो उस पर न सोये।

९.गुरु के सामने किसी वस्तु का सहारा लगाकर अथवा पैरों को फैलाकर नहीं बैठना चाहिए।

१०.शिष्य को चाहिए कि वह गुरु को अपेक्षा अपने अन्न, वस्त्र तथा वेश को हीन(कम) रखे।वह गुरु के सो कर उठने से पहले उठे और उनके सोने के बाद सोए।
११.क्रुद्ध  गुरु के मुख पर दृष्टि नहीं डालनी चाहिए।

१२. शिष्य को चाहिए कि वह परोक्ष में भी गुरु के नाम का उच्चारण न करें और गुरु के गति भाषण आदि की नकल न करें ।

१३.जो मनुष्य उदासीन एवं दुराचारी गुरु की मंत्र दीक्षा ग्रहण करता है वह निश्चय ही धनहीन हो जाता है।

१४.जो दृष्ट संकल्प वाले निषिद्ध( दुराचारी) गुरु का शिष्य बनता है,उसे महाप्रलयपर्यन तक उसे पुनः मनुष्य शरीर नहीं मिलता 

१५.यदि गुरु भी घमंड में आकर कर्तव्य और अकर्त्तव्य का ज्ञान  खो बैठे और गलत रास्ते पर चलने लगे तो उसका तो त्याग कर देना चाहिए।

१६.ज्ञानरहित और मिथ्यावादी और भ्रम पैदा करने वाले ग़ुरूका त्याग कर देना चाहिए क्योंकि जो खुद शांति नहीं प्राप्त कर  सका वह दूसरों को शांति कैसे देगा।

१७. जिसके पास एक वर्ष तक रहने पर भी शिष्य को थोड़ा से भी आनंद और प्रबोध की उपलब्धि न हो तो शिष्य उसे छोड़कर दूसरे गुरु का आश्रय ले।
भविष्य में इसी विषय पे जानकारी प्रेषित की जाएगी जो पूर्णतः शास्त्रोक्त होगी।'क्या करें,क्या ना करें?'१३८१आचार-संहिता, गीताप्रेस,गोरखपुर
🕉️🙏🏻🚩जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️

लेखन-सम्पादन-संकलन
☯️राहुलनाथ™ 🖋️....
ज्योतिषाचार्य,भिलाई'३६गढ़,भारत

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