गुरुवार, 13 जनवरी 2022

श्रीविन्ध्येश्वरी_स्तोत्र_चालीसा_एवं_मंत्रसंग्रह

#श्रीविन्ध्येश्वरी_स्तोत्र_चालीसा_एवं_मंत्रसंग्रह

#श्रीविन्ध्येश्वरी_स्तोत्र
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निशुम्भशुम्भमर्दिनीं प्रचण्डमुण्डखण्डिनीम्।
वने  रणे  प्रकाशिनीं   भजामि   विन्ध्यवासिनीम्।।1।
त्रिशूलरत्नधारिणीं             धराविघातहारिणीम्।
गृहे  गृहे  निवासिनीं  भजामि  विन्ध्यवासिनीम।।2।।
दरिद्रदु:खहारिणीं     सतां      विभूतिकारिणीम्।
वियोगशोकहारिणीं   भजामि   विन्ध्यवासिनीम्।।3।।
लसत्सुलोलचनां          लतां         सदावरप्रदाम्।
कपालशूलधारिणीं     भजामि   विन्ध्यवासिनीम्।।4।।
करे    मुदा    गदाधरां    शिवां    शिवप्रदायिनीम्।
वरावराननां   शुभां    भजामि   विन्ध्यवासिनीम्।।5।।
ऋषीन्द्रजामिनप्रदां त्रिधास्यरूपधारिणिम्।
जले स्थले निवासिनीं  भजामि   विन्ध्यवासिनीम्।।6।।
विशिष्टसृष्टिकारिणीं          विशालरूपधारिणीम्।
महोदरां  विशालिनीं   भजामि   विन्ध्यवासिनीम्।।7।।
प्रन्दरादिसेवितां              मुरादिवंशखण्डिनीम्।
विशुद्धबुद्धिकारिणीं    भजामि    विन्ध्यवासिनीम्।।8।।
*****।।इति श्रीविन्ध्येश्वरीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।********

#श्रीविन्ध्येश्वरी_स्तोत्र_का_हिंदी_में_अर्थ
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अर्थ – शुम्भ तथा निशुम्भ का संहार करने वाली, चण्ड तथा मुण्ड का विनाश करने वाली, वन में तथा युद्ध स्थल में पराक्रम प्रदर्शित करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ.।।1।।

अर्थ – त्रिशूल तथा रत्न धारण करने वाली, पृथ्वी का संकट हरने वाली और घर-घर में निवास करने वाली भगवती विन्धवासिनी की मैं आराधना करता हूँ।।2।।.

अर्थ – दरिद्रजनों का दु:ख दूर करने वाली, सज्जनों का कल्याण करने वाली और वियोगजनित शोक का हरण करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ.।।3।।

अर्थ – सुन्दर तथा चंचल नेत्रों से सुशोभित होने वाली, सुकुमार नारी विग्रह से शोभा पाने वाली, सदा वर प्रदान करने वाली और कपाल तथा शूल धारण करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ.।।4।।

अर्थ – प्रसन्नतापूर्वक हाथ में गदा धारण करने वाली, कल्याणमयी, सर्वविध मंगल प्रदान करने वाली तथा सुरुप-कुरुप सभी में व्याप्त परम शुभ स्वरुपा भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ.।।5।।

अर्थ – ऋषि श्रेष्ठ के यहाँ पुत्री रुप से प्रकट होने वाली, ज्ञानलोक प्रदन करने वाली, महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती रूप से तीन स्वरुपों धारण करने वाली और जल तथा स्थल में निवास करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ.।।6।।

अर्थ – विशिष्टता की सृष्टि करने वाली, विशाल स्वरुप धारण करने वाली, महान उदर से सम्पन्न तथा व्यापक विग्रह वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ.।।7।।

अर्थ – इन्द्र आदि देवताओं से सेवित, मुर आदि राक्षसों के वंश का नाश करने वाली तथा अत्यन्त निर्मल बुद्धि प्रदान करने वाली भगवती विन्ध्यवासिनी की मैं आराधना करता हूँ.।।8।।
विशेष:-जो भी व्यक्ति श्रद्धा तथा विश्वास के साथ नियमित रुप से 9 दिन तक इस स्तोत्र का जाप करता है उसे जीवन में अपार सफलता प्राप्त होती है. धन-धान्य, सुख-समृद्धि, वैभव, पराक्रम तथा सौभाग्य में वृद्धि होती है.
माँ विन्ध्येश्वरी देवी का ये स्तोत्र गीताप्रेस,गोरखपुर से प्रकाशित ग्रंथ "देवी स्तोत्र रत्नाकर" पर आधारित है।यह एक संकलित स्तोत्र है अतः इस स्तोत्र के रचयिता के नाम का ज्ञान नही है।माँ विन्ध्यासिनी त्रिकोण यन्त्र पर स्थित तीन रूपों को धारण करती हैं जहां स्वयं माँ आदिशक्ति महालक्ष्मी विंध्यवासिनी के रूप में, अष्टभुजी अर्थात महासरस्वती और कालीखोह स्थित महाकाली के रूप में विराजमान हैं। मान्यता अनुसार सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता।

************।।इति श्रीविन्ध्येश्वरीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।******************
#श्रीविन्ध्येश्वरी_चालीसा
दोहा
नमो नमो विन्ध्येश्वरी नमो नमो जगदंबे ।
संतजनो कर काज में,मां करती नही विलंब।।

संतजनो के काज में मां करती नहीं विलंभ ॥
जय जय जय विन्ध्याचल रानी । आदि शक्ति जग विदित भवानी ॥
सिंहवाहिनी जै जग माता । जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता ॥
कष्ट निवारिनी जय जग देवी । जय जय जय जय असुरासुर सेवी ॥
महिमा अमित अपार तुम्हारी । शेष सहस मुख वर्णत हारी ॥
दीनन के दुःख हरत भवानी । नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी ॥
सब कर मनसा पुरवत माता । महिमा अमित जगत विख्याता ॥
जो जन ध्यान तुम्हारो लावै । सो तुरतहि वांछित फल पावै ॥
तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी । तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी ॥
रमा राधिका शामा काली । तू ही मात सन्तन प्रतिपाली ॥
उमा माधवी चण्डी ज्वाला । बेगि मोहि पर होहु दयाला ॥
तू ही हिंगलाज महारानी । तू ही शीतला अरु विज्ञानी ॥
दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता । तू ही लक्श्मी जग सुखदाता ॥
तू ही जान्हवी अरु उत्रानी । हेमावती अम्बे निर्वानी ॥
अष्टभुजी वाराहिनी देवी । करत विष्णु शिव जाकर सेवी ॥
चोंसट्ठी देवी कल्यानी । गौरी मंगला सब गुण खानी ॥
पाटन मुम्बा दन्त कुमारी । भद्रकाली सुन विनय हमारी ॥
वज्रधारिणी शोक नाशिनी । आयु रक्शिणी विन्ध्यवासिनी ॥
जया और विजया बैताली । मातु सुगन्धा अरु विकराली ।
नाम अनन्त तुम्हार भवानी । बरनैं किमि मानुष अज्ञानी ॥
जा पर कृपा मातु तव होई । तो वह करै चहै मन जोई ॥
कृपा करहु मो पर महारानी । सिद्धि करिय अम्बे मम बानी ॥
जो नर धरै मातु कर ध्याना । ताकर सदा होय कल्याना ॥
विपत्ति ताहि सपनेहु नहिं आवै । जो देवी कर जाप करावै ॥
जो नर कहं ऋण होय अपारा । सो नर पाठ करै शत बारा ॥
निश्चय ऋण मोचन होई जाई । जो नर पाठ करै मन लाई ॥
अस्तुति जो नर पढ़े पढ़ावे । या जग में सो बहु सुख पावै ॥
जाको व्याधि सतावै भाई । जाप करत सब दूरि पराई ॥
जो  नर अति बन्दी महं होई । बार हजार पाठ कर सोई ॥
निश्चय बन्दी ते छुटि जाई । सत्य बचन मम मानहु भाई ॥
जा पर जो कछु संकट होई । निश्चय देबिहि सुमिरै सोई ॥
जो नर पुत्र होय नहिं भाई । सो नर या विधि करे उपाई ॥
पांच वर्ष सो पाठ करावै । नौरातर में विप्र जिमावै ॥
निश्चय होय प्रसन्न भवानी । पुत्र देहि ताकहं गुण खानी ।
ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै । विधि समेत पूजन करवावै ॥
नित प्रति पाठ करै मन लाई । प्रेम सहित नहिं आन उपाई ॥
यह श्री विन्ध्याचल चालीसा । रंक पढ़त होवे अवनीसा ॥
यह जनि अचरज मानहु भाई । कृपा दृष्टि तापर होई जाई ॥
जय जय जय जगमातु भवानी । कृपा करहु मो पर जन जानी ॥
**********श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा संपूर्ण*************
             
#आरती_श्रीविन्ध्येश्वरीजी_की
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सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी तेरा पार न पाया ॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तरी भेंट चढ़ाया । सुन.।
सुवा चोली तेरे अंग विराजे केसर तिलक लगाया । सुन.।
नंगे पग अकबर आया सोने का छत्र चढ़ाया । सुन.।
उँचे उँचे पर्वत भयो दिवालो नीचे शहर बसाया । सुन.।
कलियुग द्वापर त्रेता मध्ये कलियुग राज सबाया । सुन.।
धूप दीप नैवेद्य आरती मोहन भोग लगाया । सुन.।
ध्यानू भगत मैया तेरे गुण गावैं मनवांछित फल पाया । सुन.।
*********आरती श्री विन्ध्येश्वरी जी की सम्पूर्ण*********

#देवी_का_शक्तिशाली_आत्मरक्षामंत्र
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ॐ क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं क्षीं फट्'

#देवी_का_स्त्री_सौभाग्यवर्धक_मंत्र
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ॐ ह्रीं कपालिनि कुल कुण्डलिनि मे सिद्धि देहि भाग्यं देहि देहि स्वाहा।।

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🙏🏻🚩जयश्री महाकाल🚩🙏🏻
लेखक एवं संकलनकर्ता
।। #राहुलनाथ ।।™ (ज्योतिष एवं वास्तुशास्त्री)
शिवशक्ति_ज्योतिष_एवं_अनुष्ठान,भिलाई,छत्तीसगढ़, भारत
📞+ 917999870013,+919827374074 (w)
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#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य गुरू एवं साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसे मानने के लिए आप बाध्य नही है।अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।विवाद या किसी भी स्थिती में लेखक जिम्मेदार नही होगा।विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।
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#विशेष:-इस पोस्ट को लिखने के लिए स्व अनुभव के साथ साथ आवश्यकता अनुसार कुछ पोस्ट एवं फोट, व्हाट्सएप /फेसबुक/गुगल एवं अलग-अलग पौराणिक साहित्यों  द्वारा ली जाती है। जो किसी मित्र की पोस्ट/फ़ोटो हो सकती,अतः जिनकी पोस्ट है वे संपर्क कर सकते है।ऐसे अवस्था  में त्रुटि होने की संभावना हो सकती है कृपया गुरुजन,मित्रगण मुझे क्षमा करते हुए मेरा  मार्ग प्रशस्त कर साहित्य की त्रुटियों से अवगत कराएं जिससे कि लेख में भविष्य में सुधार किया जा सके।
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