रविवार, 21 मई 2017

प्रेम,स्त्री-पुरुष एवं आत्मरति

प्रेम,स्त्री-पुरुष एवं आत्मरति
यदि कोई स्त्री या पुरुष ,किसी साधारण से साथी के भी प्रेम के  प्रति पूर्ण रुप से समर्पित हो जाये तो समझो कि उसके कुंडलिनी के चारो चक्र खुल चुके है और अब वो पांचवे के द्वार पे है।अब ये प्रेम पति/पत्नी के प्रति भी हो सकता है या किसी अन्य के प्रति भी।किन्तु पति/पत्नी में ये हुआ तो ये देश ,धर्म और संस्कार के अनुसार होगा एवं अस्वाद का सामना कर पतन का ग्रास नही होना पड़ेगा क्योंकि काम,क्रोध,मोह एवं अस्वाद आपका पतन कर धरातल में पहुचा देता है वही ,पति/पत्नी का प्रेम संबंध योग की उस शिखर तक ले जाता है जहां सामान्य साधको को पहुचने में वर्षो लग जाते है।इसी लिए भारतीय शास्त्रो में स्त्री को देवी का स्थान प्राप्त है क्योंकि वो पुरुष को अपने प्रेम से सीधे परमात्मा मान कर  के स्वयं को उस महान परामात्मा के समक्ष प्रस्तुत कर देती है।यही कारण है कि हिन्दू शास्त्रो के अनुसार पति को परमेश्वर या परमात्मा का स्थान प्राप्त होता है।तंत्र में इसका विस्तृत विधान है किंतु वे समझदार लोग जो इस विद्या को समझ नही पाए उन्होंने इसका कुछ और ही मतलब निकाला।ये पूर्ण रूप से भीतर की आध्यात्मिक रति है।बाहर का शरीर मील-मील के एक दिन तक जाता है और उस दिन शुरू होती है प्रेम में आध्यात्मिक रति जहां ,पुरुष को भीतर की स्त्री एवं स्त्री को उसके भीतर का पुरुष मिल जाता है यही है भगवान शिव की अर्द्ध नारीश्वर की दिव्य अवस्था।।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©
।।राहुलनाथ।।

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