भुत-प्रेत और मृतात्माओं से संपर्क(सत्य घटना)
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मृत्यु के उपरान्त आत्मा शरीर का त्याग कर देती है किन्तु इसके बाद भी यह पूर्ण मृत्यु नहीं होती।आत्मा के शरीर से निकलने के बाद भी आत्मीय ऊर्जा के अणु तिन दिन तक शरीर से लगातार निकलते रहते है ये उसी प्रकार होता है जैसे किसी वृक्ष को काटने पर उसकी तत्काल मृत्यु नहीं होती,वृक्ष के कटने के बाद उसे मरने में ,सूखने में कुछ समय लगता है।
मृत्यु से स्थूल शरीर जैसे का तैसा ही रहता है केवल इन्द्रियों का स्वामी जीवात्मा शरीर से बाहर चला जाता है।
हृदय की स्पंदन गति रुक जाने पर चिकित्सक मृत घोषित कर देते है किन्तु ये मृत्यु की पूर्णावस्था नहीं होती ये "क्लीनिकल डैथ"(शारीरिक मृत्यु) होती है इसके साथ-साथ जब शरीर की सम्पूर्ण ऊर्जा बाहर निकल जाती है उसे "बायोलॉजिकल डैथ"(जैविक मृत्यु) कहा जाता है इस मृत्यु को होने में 3 या 4 दिन लग जाता है।जैविक मृत्यु के पहले यदि किसी विशेष विधि से आत्मा का आह्वाहन कीया जाए तो ,आत्मा शरीर में वापस आ सकता है या कोई भी आत्मा जिसकी कामना प्रबल हो वो अपनी कामनानुसार पुनः शरीर के भीतर प्रवेश कर सकता है।ये ठीक उस प्रकार होता है जैसे पौधे को जमीन से उखाड़ देने के बाद भी थोड़े समय बाद ही पुनः लगा कर ,सही देख रेख करने पर वह पौधा पुनः जीवित हो जाता है।
यहां समझने की बात है की मृत्यु किस प्रकार हुई है यदि मृत्यु से शरीर जीर्ण हो जुका है,दुर्घटना में ग्रसित हो कर ,शरीर नष्ट हो चुका है किन्तु आत्मा की कामनाये पूर्ण नहीं हुई है तो वो भटकता रहता है और किसी शरीर की खोज में रहता है।इसके विपरीत जिसकी मृत्यु के समय शरीर स्वस्थ रहे,सभी अंग काम कर रहे हो ,हृदय घात से मृत्यु,जहर से मृत्यु,सर्प दंश से मृत्यु,जल में जिसकी मृत्यु हो गई हो वह पुनः शरीर में प्रवेश कर सकता है।ऐसी अवस्था में शरीर में वो आत्मा भी प्रवेश कर सकती है जो उसमे पहले से विद्यमान थी या कोई अन्य आत्मा भी।
इसी कारण वष हिन्दू मुक्त कर्म विधि में शरीर को मृत्यु के तुरंत बाद संस्कार करने का नियम होता है ऐसी अवस्था में शरीर की जैविक मृत्यु नहीं होती और उसे संस्कार कर दिया जाता है क्योकि आत्मा का शरीर से निकलना ही मृत्यु तो है किन्तु मृत्यु के बाद आत्मा की वो अनुभूतिया जो उसने शरीर से बाहर रह कर की है वे सामान्य मानव से बिलकुल परे होती,ये आवश्यक नहीं की पुनः शरीर ग्रहण करने के बाद आत्मा के कर्म,संस्कार,वाणी-व्यवहार और स्मृति पहले ही जैसे हो।क्योकि आत्मा के शरीर से निकलने के बाद लगातार शरीर मरता रहता है ऐसे में दिमाग एवं स्मृति का लगातार क्षरण होता रहता है।आत्मा के वापस आते ही जीतनी स्मृतियाँ शेष बचती है आत्मा उसी के अनुसार भविष्य में कर्म करता है।
अभी तक हमने आत्मा के शरीर पुनः धारण करने के विषय में बात लिखी है अब हम आत्मा के अस्तित्व एवं आह्वान के विषय में बात करते है।
भारतीय तंत्रानुसार ऐसी बहुत सी विधियां है जिससे आत्माओ से संपर्क किया जा सकता है आत्मा के अस्तित्व को गीताजी ने भी स्वीकार किया है और बहुत सी देश विदेश में सत्य घटना देखि गई है जहा आत्मा ने अपनी उपस्थिति जताई है।अशरीर आत्माए ,जो हमेशा कामना को पूर्ण करने हेतु शरीर की तलाश में रहती है अशरीर आत्माओ के अपने रहने के स्थान लोक होते है और वे अपने लोक के अनुसार व्यवहार करती है।शरीर नहीं होने के कारण इन आत्माओ को गर्मी अधिक लगती है जिसके कारण ये दिन में विचरण नहीं करते ,दिन में ये वृक्ष पे,तालाब या नदी के किनारे ये वास करते है और जैसे जैसे रात्रि में ठंडक बढति है ये अपनी कामना पूर्ति हेतु प्रवास करते रहते है।
इन आत्माओ को बुलाने की बहुत सी विधियां है जैसे:-प्लेंचिट,माध्यम,सम्मोहन,स्पिरियो स्कोप,हाजरात, इत्यादि।
इन सभी विधियों में माध्यम की विधि बहुत ही चमत्कारी है।इसमें किसी व्यक्ति को माध्यम बनाया जाता है इसमें माध्यम के रूप में स्त्री द्वरा सफलता जल्दी प्राप्त होती है।
इसमें अपने समक्ष माध्यम को बिठा कर,अगरबत्ती द्वारा आह्वाहन मंत्रो या आदेशो द्वारा किया जाता है,इस आह्वाहन के समक्ष साधक को अपने पास सभी प्रकार की खाद्य सामग्री ,पेय एवं वस्त्र रखने होते है आह्वाहन के बाद आत्मा के आने पर उसकी इच्छाओ को प्रथम पूर्ण करना होता है वो जो मांगे उसे देना होता है ऐसा ना करने से साधक एवं माध्यम दोनों को आत्मा द्वारा कष्ट की प्राप्ति होती है।इस समय कामनानुसार आत्मा शाकाहारी,माँसाहारी, मदिरा,चाय,तम्बाकू,बीड़ी-सिगरेट,निम्बू,लौंग-इलायची,गंगा जल,फल,पान-फूल,कुंकु-चन्दन आदि किसी की भी मांग कर सकती है।आत्मा को भोग प्रदान कर उसके जाने के पहले वरदान के रूप में आप उनसे जायज इच्छाओ को मांग सकते है।ये विधि पूर्ण रूप से प्रेत पूजा है ।और यहाँ यह भी समझने का प्रयास करे की जिसने भी कभी जन्म लिया होगा वो अपने कर्मो के आधार पर भुत-प्रेत,पितर, जिन्न,छलावा,कलुआ,अंगारक,इत्यादि की योनि ग्रहण करेगा।यहा आत्माओ को बुलाने की प्रार्थनाएं एवं मंत्र नहीं दिए जाने का मूल कारण वे साधक एवं पाठक गण है जो बहुत उत्सुक एवं जुझारू प्रवित्ति के है और वे बिना कुछ सोचे समझ उत्सुकता वष प्रयोग प्रारम्भ कर अपना एवं समाज का अहित ही करते है
जिस प्रेत के संस्कार अच्छे होंगे वो अच्छा और जिसके बुरे होंगे वो बुरा प्रेत होगा।हिन्दू-मुस्लिम एवं अन्य बहुत से धर्मो में प्रेत पूजा होते रही है,आप किसी समाधि पे जाए या कब्र पर ,स्मरण रखने की बात ये है की वो अच्छा होगा या बुरा,होगा ईश्वर नहीं।
मित्रों इस विषय पे मैं आपका थोड़ा सा समय और लेना चाहूँगा जिससे की इस विषय स्थिति को समझा जा सके।वो मालिक का खेल निराला है वो काँटे से काँटे को निकाल कर दोनों काँटो को फेक देता है।इन विधियों को सीखना इतना सरल नहीं है बहुत बिरले ही होते है जो इसे समझ सकते है अनुभूत कर सकते है।
तंत्र-मन्त्र,पूजा -पाठ के रहस्यों को समझने का प्रयास मैं 1992 से कर रहा था जहा मेरे गुरु श्री शंकर नाथजी एसीसी वाले,की कृपा दृष्टि मुझ पे बनी रही और उन्होंने बहुत से देवी-देवताओ,भुत-प्रेत के दर्शन माध्यम के द्वारा कराये ,इक घटना का उल्लेख 25 नवम्बर 1992 के आस-पास की तारीख में यहाँ भिलाई के स्थानीय समाचार पत्रो में भी किया गया था।किन्तु उस समय मैंने आह्वाहन करना नहीं सीखा था गुरुदेव सिखाया करते थे किन्तु मैं उनकी बातो को मजाक में ही लिया करता था खैर।
मित्रों मेरे जीवन में ये अनुभूतिया प्रारम्भ हुई 12 अप्रैल 2004 से।भिलाई के पास नगपुरा नाम का एक जैन तीर्थ है वहा से 10 किलोमीटर दूर एक गाँव में मुझे रात्रि 12 बजे तक किसी कारण वष रुकना पड़ा।रात्रि को जब मैं वापस अपने घर आ रहा था तो वहा के स्थानीय लोगो ने सलाह दी की मैं रात्रि को ना जाउ उनके अनुसार वहाँ के रास्ते में कुछ ऐसी जगह है जो वायवीय तन ,भुत-प्रेत से भरी हुई है और यहाँ हादसा हो सकता है।किन्तु मैंने उनकी बात नहीं मानी और मैं ये कह कर निकल पड़ा की देख लेंगे उन प्रेतो को।
अभी कुछ 5 किलोमीटर ही जल पाया था की अचानक मेरे दोपहिया वाहन के सामने एक काली परछाई दिखाई दी और मेरे वाहन का संतुलन बिगड़ गया जिससे मैं रोड से निचे पत्थरो-बोल्डरों के समूह से जा टकराया।उस दुर्घटना में सर फट गया और चहरे और कंधे पे भी काफी चोट आई ।
इस दुर्घटना के बाद की घटना मुझे वहा के स्थानीय लोगो ने दूसरे दिन सुनाई।मेरे अनुसार इस दुर्घटना के बाद मैं बेहोश हो गया था।किन्तु स्थानीय लोगो के अनुसार जब रात्रि में 4 बजे डॉक्टर को बुलाया गया तब उस डाक्टर सीताराम जी के अनुसार मेरी मृत्यु हो चुकी थी और गाँव वाले आपस में सलाह कर रहे थे की आगे क्या करना हैं।करीब 5 बजे मुझे पुनः होश आ गया और मुझे डाक्टर सीताराम ने अपने निवास पे मेरी चिकत्सा कर मुझे नव जीवन प्रदान किया।दुर्घटना के बाद होश आने पे मुझे दिशाओ का ज्ञान नहीं हो पा रहा और खुशबु भी आनी बंद हो गई थी।
मित्रो इस घटना के बाद ही मुझे ये अनुभूतियाँ होने लगी और मरे लोग मुझसे संपर्क करने लगे।मुझे इस विषय पे विशवास तब हुआ जब एक मृतात्मा ने मुझे अपने घर का पता,माता-पीता का नाम बताया और उनसे मिल कर भोजन देने की बात की ।उस मृतात्मा के बताये पते के अनुसार मैं अपने मित्र जे साथ उस जगह पहुचा और मैने उस मृतात्मा के माता-पिता से बात की और उस मृतात्मा की फोटो भी मैंने देखि,ये बिलकुल सत्य रहा जो उस आत्मा ने बताया था।उस आत्मा को भोजन प्रदान करने के बाद वो संतुष्ट हुई और आशीर्वाद स्वरूप उसने मुझे एक प्रार्थना प्रदान की जो उर्दू में थी।
मित्रों इस घटना में विचारणीय विषय यह है की ये शक्तिया मेरे अनुसार काम नहीं करती वे अपनी इच्छानुसार आती जाती रहती है।बहुत बार ऐसा भी हुआ की मैंने बुलाया किसी को और कोई और ही आ जाती थी।इस दौरान मैंने ये अनुभव किया की बहुत सी आत्माये झूठ बोलती है और अपने आपको काली या दुर्गा बताती है।बल्कि काली हो या दुर्गा या अन्य देवी देवता ये शरीर नहीं होते बल्कि ऊर्जा होते है सिर्फ ऊर्जा जिसने कभी गर्भ धारण नहीं किया होता।इसी प्रकार एक आत्मा का आह्वाहन करने पे उसने अपना नाम दुर्गा बताया,जिसका नाम सुन कर उस आत्मा के घर वाले उस आत्मा की आरती पूजा करने लगे ,बाद में अधिक पूछ ताछ करने पे उस मृतात्मा ने बताया की वो कोई देवी नहीं है जब वह जीवित थी तब उसका नाम माता-पिता ने दुर्गा भक्त होने के कारण दुर्गा रखा था।अब मैं अपनी कलम को विराम देता हु एवं आपका धन्यवाद करता हु जो आपने अपना कीमती समय मेरी पोस्ट को पढने में दिया।
इस पोस्ट को लिखने के लिए मैंने मेरे मित्र चिकित्सको से एवं कुछ मृतात्माओं से सहयोग प्राप्त कर अनुभव किया है।उन सभी शरीर धारी एवं अशरीर धारी आत्माओ को नमन एवं सः ह्रदय धन्यवाद।।
चेतावनी:-हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे। अन्यथा मानसिक हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।
।।राहुलनाथ।।
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
+919827374074
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मैं ने कई बार सपनों मे आत्माओं से संपर्क किया है मेरी सास 19फरवरी को मृत्यु को प्राप्त हुई. मैं जानना चाहती हूँ कि वह किस लोक व स्थिति मे हैं पर संपर्क नहीं हो रहा है
जवाब देंहटाएंक्या मैं आप को कॉल कर सकता हूं।
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