||भुत से हनुमंत मिले,हनुमंत से मिले श्रीराम ||
हर दिन ,हर पल हम स्वपनों ने खोये रहते है कभी बीते हुए दिनों के स्वप्न तो कभी भविष्य में कैसे रहना चाहते है उसके स्वप्न ।स्वप्नों का जन्म वर्त्तमान में होता रहता है।भूतकालीन स्वप्न से आप सिख हासिल कर सकते है अनुभव हासिल कर सकते ।किन्तु नकारात्मक बिता हुआ भुत काल वर्त्तमान में "भय "की स्थिति का निर्माण करता है।यदि इस भय में व्यर्थ जाती हुई ऊर्जा को सुन्दर भविष्य की कामना में लगा दिया जाए तो ,परिणाम सकारात्मक प्राप्त होते हैं।बिता हुआ समय भुत बनके हमारा शोषण करता रहता है।इसे ही भूतकाल कहा जाता है।इस भुत को साधना होता है अपने नियंत्रण में रखना होता है।इस भुत को अपने नियंत्रण में रखने का सबसे सुंदर मार्ग प्रार्थना का है।जब भी आपको आपका भुत परेशान करे आप सकारात्मक प्रार्थना,चालीसा,स्तोत्र या कवच को दोहराना चाहिए।
ऐसी अवस्था के लिए जरुरी है की प्रार्थना या स्त्रोत्र आपको याद रहे।प्रार्थनाओ का चयन अपनी कामना के अनुरूप रखना चाहिए।वेद्-शास्त्रो एवम् धार्मिक ग्रंथो में इच्छाके अनुसार प्रार्थना या स्तोत्रो का निर्माण पहले से ही कर रखा ।जैसे :-कर्ज निवृत्ति के लिए-ऋणमोचन मंगल स्तोत्र,बंधनमुक्ति हेतु-गजयेंद्र मोक्ष,दरिद्रता निवारण हेतु-शिव दारिद्र्य दहन स्तोत्र,हनुमान चालीसा या अन्य देवताओ के चालीसे,ध्यान स्तोत्र इत्यादि।
बार-बार दोहराने से आपकी प्रार्थनाएं आपके अवचेतन मन तक पहुच जाती है।और अवचेतन ही अच्छे एवम् बुरे भविष्य का निर्माण करता है।अवचेतन तक पहुचने में आपके शब्दों को 21 दिनों का समय लगता है 21 दिन की दुरी पे अवचेतन रहता है।इसी प्रकार 7 मनो की दुरी भिन्न-भिन्न होती है जैसे चेतन मन,अवचेतन मन और अतिचेतन मन ।21 दिनों बाद पहली बार आपकी प्रार्थना अवचेतन मन तक पहुचती है। उसके बाद अतिचेतन से होते हुए प्रथम मन तक पहुचती है यही प्रथम।मन परमेश्वर से जुड़ा हुआ होता है।इन सतो मनो को साधना ही सच्ची साधना है।
प्रार्थनाओं की शक्ति या सुंदर भविष्य प्राप्त करने का कार्य वही कर सकता है जिसमे धैर्य हो और जिसे स्वयं पे पूर्ण विशवास ही।क्योकि विशवास की शक्ति से ही श्रीराम की प्राप्ति होती है।।
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
""जयश्री महाकाल""
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
******राहुलनाथ********
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