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गुरुवार, 14 जुलाई 2016

||अघोरी ||साधना का सच्चा मार्ग

||अघोरी ||साधना का सच्चा मार्ग
"ॐ गुरूजी शिवगोरख सरकार"
अघोरी को समझने के पूर्व घोर को समझना होगा।घोर घनघोर तो महादेव है जो शुन्य है ।उनका शिष्य या भगत ही अघोरी कहलाता है।एवं देवी आदिशक्ति का शिष्य या भगत "तांत्रिक"कहलाता है ये सामान्य से परिभाषा है।बहुत सी किताबो में ,बहुत सी पोस्टो में अघोर एवं अघोरियों के घृणित एवम् भयकर मानसिकता के व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जो की गलत है।
उदाहरण स्वरूप समझे जिनका विवाह नहीं होता उन्हें "कुँवारा" कहा जाता है।इसका मतलब ये तो नहीं की उसके सर पे अलग से सिंग निकल आया हो।।कुँवारा एक सबद मात्र है जो उस व्यक्ति की वर्तमान अवस्था को दर्शाता है।उसी प्रकार "अघोरी"एक वर्त्तमान अवस्था होती है।
अघोरी के पद के बाद ,अन्य अवस्थाये भी होती है।अघोरियों की साधना के विषय में,उनकी दिनचर्या में ,उनका शव साधन करना,शव भक्षण करना,शवो के साथ सहवास करना,मदिरा का सेवन करना इत्यादि पढ़ने को मिलता है।किन्तु ऐसा नहीं होता।
अपने जीवन काल में अघोरी रोज शव साधन नहीं करते,दिन रात मुर्दे पे बैठे नहीं
रहते,दिन भर शराब पि कर नहीं विचरण करते,दिन भर मल-मूत्र नहीं खाते रहते।
किन्तु प्रारम्भिक स्तर में तो भय ,घृणा,ममता इत्यादि भावो को दूर करने हेतु इस कृत्रिम अवस्था एवं स्मशान की और अग्रसर अवश्य होते है।शव भक्षण इसी के अंतर्गत है एक बार शव भक्षण करने से भय दूर हो जाता है आवश्यकता अनुसार एक या दो बार और भक्षण भी किया जा सकता है।इस भय को दूर करने हेतु चिता भस्म का उपयोग भी किया जाता है।बार बार इस क्रिया को नहीं किया जाता।
जिस प्रकार सरिताओं को पार करने हेतु उसमे उतरना ही पढता है उसी प्रकार पंचमकार की साधना में इन मकारों को साधना ही होता है।
इसके विपरीत अघिक गहराई में उतर कर देखा जाए तो आप अघोरी के सही मायने को समझ पायेगे।अघोरी वो जिसका स्वयं का शरिर ही शव रूप हो जाता है।और अघोरी वो,जो अपने ही शव के साथ सह वास करता रहता है।एक तो अघोरी स्वयं।होता है और वो अपने ही शरीर के साथ वास करता रहता है।
अघोरी वो जो साधना के अंतर्गत अपने ही शरिर के मांस का भक्षण करता रहता है।क्योकि साधना के अंतर्गत जब वो महान ऊर्जा जागती है तब वह सर्वप्रथम अपने ही शरीर के मांस का भक्षण करती है।इस अवस्था में अघोरी मल-मूत्र से भी दूर हो जाता है।वो अपने मल-मूत्र को भी आंतरिक भोग कर ऊर्जा में परिवर्तित कर लेता है।इसे ही मल-मूत्र का एवं मांस भक्षण कहा जाता है।साधना काल में जब भीतर मंथन होता है तब उसमे से "मद"का निर्माण भी होता है किन्तु इसे शराब नहीं कहा जा सकता है।यह एक दिव्य रस(हार्मोन्स) होता है जो सहस्त्रार(ग्लैंड)से इसका रिसाव होता रहता है जो आनंद दायक एवं मदहोश करने वाला होता है।इसी प्रकार अन्य क्रियाएँ भी वे करते है ।खेचरी भी इस की एक विशेष मुद्रा है।
किन्तु सिर्फ अघोरी ही इन क्रियाओ को करे ये आवश्यक नहीं।सामान्य व्यक्ति भी जब साधना के मार्ग में गुरु आशीर्वाद से प्रशस्त होता है तो वो भी इस "अघोर अवस्था"में पहुच ही जाता है।
साधक अघोर रूपी अवस्था को पार कर ही शिव बन पाता है शिव स्वरूप बन पाता है।यहाँ समझने का विषय यह है की शिव भी एक अवस्था ही है।एक ऐसी अवस्था जहा नाम-सम्मान,मोह माया,या अन्य 9 भावो का कोई अस्तित्व नहीं होता है।शिव हो जाना मतलब शव हो जाना है।भावनाओ से विहीन एक ऐसा व्यक्तित्व जो क्षण में आवश्यकता नुसार भाव बदल सकता हो।कभी क्रोधी,कभी भोला,कभी भोगी तो कभी योगी की अवस्था ।बस इस अवस्था में सामान्य व्यक्ति में एक अंतर है।की सामान्य व्यक्ति के भीतर ये अवस्थाएँ बिना अंकुश एवम् ज्ञान के होती है वही महादेव में उनके स्वयं के निर्देश पे ,स्वयं के भीतर ,पूर्ण होश में।।।मतलब पूर्ण यांत्रिक अवस्था जैसे रोबोट होते है।भावना विहीन !वे मात्र निर्देशो का पालन करते है उनपे विचार नहीं करते।।
इस पोस्ट को पढ़ने के बाद इसमें कुछ त्रुटि होने से,सही मार्ग दर्शन का प्रयास करे।इस पोस्ट को पढ़ने के बाद यदि यहाँ उपलब्ध अघोरी भाइयो को कोई कष्ट पहुचा हो तो क्षमा करे।पोस्ट को लिखने का उद्देश् किसी का अपमान करना नहीं है।

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।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
https://m.facebook.com/yogirahulnathosgy/
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सूचना:-कृपया इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें,शायद यह पोस्ट किसी के काम आ सके।
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझा जाएगा और उस पर (कॉपी राइट एक्ट 1957)के तहत दोषी पाये जाने की स्थिति में तिन वर्ष की सजा एवं ढ़ाई लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।अतः आपसे निवेदन है पोस्ट पसंद आने से शेयर करे ना की पोस्ट की चोरी।

चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।

!!खुल जा सिम सिम!!

!!खुल जा सिम सिम!!
( यह लेख आपके जिवन को बदल सकता है कृ्प्या एक बार पढे) !
क्या 24 घंटे कवच धारण करके रखा जाता है ?
कवच मतलब सुरक्षा उपकरण!!
!जै श्री महाकाल!!
!!भेख को,लेख को,नाथ को,सिद्ध को,नागा को,निर्वाणी को,ज्ञानी को,ध्यानी को,गुप्त को,प्रकट को,चार सौ संप्रदाय को,
बावन द्वारा अनंत कोटि शैव- वैष्णव सब संत महंतों को बंदगी ,साहब को प्रणाम!!
क्या कोई योद्धा कवच धारण करके सोता है?
क्या 24 घंटे कवच धारण करके रखा जाता है ?कव्च मतलब सुरक्षा उपकरण!!
जो पुर्व काल मे लोहे-ताँबे-ईस्पात आदि से बनाये जाते थे,जिनका वजन 90 किलो से 150 किलो के बिच हुआ करता था!इन कवचो को सभि देवता-दानव एवं मानव
उपयोग किया करते थे !
इसि प्रकार का एक कवच प्रसिद्ध है कर्ण का कवच !
कहते है कि कर्ण को कवच और कुंडल जन्म से हि प्राप्त थे !! जो भी हो आपको क्या लगता है इन कवचो को 24 घंटे 24x7 x365 दिनो तक लगातार धारण किया जा सकता है?नहि ना??
इनका धारण आवश्यक्तानुसार धारण किया जाता है एवं कार्य पुर्ण होने के बाद उतार दिया जाता है!!यदि इनको नहि उतारा गया तो धारक का जीवन नरक के समान हो जाता है ,हमेशा एक प्रकार का बोझ,दैनिक क्रियाओं मे बाधा,अन्न जल ग्रहण करने मे बाधा,सन्तान को बुद्धि भ्रम होना,पत्नि के साथ संबंध खराब होना,काम शक्ति का हनन होना इत्यादि और भि अनेक प्रकार के कष्ट ये पैदा करता है !!
इसि प्रकार के कुछ कवच मन्त्रों के माध्यम से ग्रहण किये जाते !! इनका प्रभाव धातु के कवचो कि अपेक्षा 1000 गुना अधिक होता है,किन्तु इनको भी 24 घंटे 24x7 x365 दिनो तक धारण नही किया जा सकता यदि आप इन कवचो को धारण करने की विधि जानते है जो की अकसर किताबो में,फेसबुक में,या यदा कदा कोई बाबा जि महात्मा जि प्रेम वश दे देते है और साधक इनको सिद्धकर धारण करना होता है किन्तु इन कवचो को उतारने कि विधि नहि जानते या बताना नही चाहते! ऎसी अवस्था मे यह कवच मृ्त्यु कारक हो जाते है !!आप इस कवच मे बंध कर स्वयं बंध जाते है !! सब कुछ खत्म हो जाता है,न काम-काज चलता है,परिवार मे परेशानिया शुरु हो जाति है,स्वास्थ खराब होने लगता है,जिस कार्य में भि हाथ डालो वो पुर्ण नहि होता !! यह सब आपके हि कारण होता है क्योकि अग्यान्ता वश आपने हि मुशकिलो को गले लगाया है!!
अब इसमे सब से बडि परेशानि ये है कि आप्को ठिक भी नहि किया जा सकता क्योकि आप्ने कवच धारण कर रखा है !!! इस धारण किये कवच के कारण आपपे किसि भि प्रकार कि मान्त्रिक क्रिया कि जाये तो वो निश्फल होगी,आप स्वयं भि अपना इलाज नहि कर पायेगे और ना हि कोइ सिद्ध भी!!
तो उपाय क्या है??
उपाय मात्र है उस कवच कि खोलने कि विधि का ग्यान होना !! या उस कवच के खोलने के मन्त्र का ग्यान होना !! किन्तु इस प्रकार के कवचो को धारन करने कि हजारो विधियाँ मैने पढी है! फेस बुक पे भी आये दिन इन कवचों को पोस्ट किया जाता रहा है जैसे भैरव कवच,कालि कवच या अन्य प्रकार के कवच !किन्तु आज तक इन कवचो से मुक्ति का मन्त्र आज तक किसि किताब में या फेस बुक पे कभि पोस्ट नही हुआ!
कारण क्या है???
या तो ये विधि गुरु गम्य होति है या फिर धरति से पलायन कर गई है जो भि हो मृ्त्यु तो मात्र धारण करने वाले की होती है और उसी के धारण किये कवच के साथ उसकि अंतिम क्रिया भि कर दि जाति है किन्तु कवच उतरता नहि !!
साधको ,भक्तों एवं मित्रों
मै अपने जिवन का एक अनुभव आपसे बाटना चाहता हु शायद आपके कार्य आ सके !
2006 की बात हैएक सज्जन मेरे पास आये बहुत परेशान थे 10-11 वर्षो से परेशान थे !कोई मार्ग नही मिल रहा था! और परेशानि इस बात कि थि की वे परेशान क्यो है वो भी उनहे ग्यात नही था !!उनहोने बताया वे जिस किसि भी कार्य मे हाथ डालते है वो बिगड जाता है,व्यव्साय तकरिबन खत्म हो चुका है !! परिवार के लोग उनका सम्मान नहि करते !!हर समय मन पे बोझ लगता है,वो जो भि पुजा पाठ करते है तो उलटा ही होता है!! वे बिमारी से परेशान है इस छोटे से समय मे चर्म रोगो ने उनहे आ घेरा है,शरिर से दुर्गंध आने लगि है!! और सबसे जरुरु बात स्नान के बाद भि उन्हे नहि महसुस होता की उनहोने स्नान किया है !! कुल मिला के पुर्ण सत्यानाश...
मैने उनकी जन्म पत्रिका देखि! कोई बडा दोष नही दिखाई दिया किन्तु पत्रिका मे चन्द्र,राहु एवं मंगल कि युक्ति लग्न स्थान पर चिन्ता का विष्य थी !! फिर भि इनका दोष पकड पाना मुम्किन नहि था !!उनके लिये कुछ प्रार्थनाओ का प्रयोग किया मैने तो उलटा मुझ पे हि काम भारि पडने लगता था !!15-20 दिन उनपे श्रम करने के बाद मैने मना कर दिया और कहा कि मान्यवर लगता है पिछले जन्मो के कर्मों के कारण आप शायद कोई कष्ट भोग रहे है !!मुझे क्षमा करे ! और क्या कहता यह तो पहले से हि चला आ रहा है की कुछ समझ में न आये तो ये कहदो कि पिछले जन्म के कारण हो रहा है! न रहेगा बाँस न बजेगी बासुरि!!
मुझे नहि लगता आपको कोई ठिक कर सकता है क्योकि जो भि आपको ठिक करेगा बिचारा खुद ही बिगड जाये गा!! तो आप क्षमा करे !! किन्तु वे सज्जन नहि माने हर दो दिन चार दिन बाद मेरे निवास पर पहुच जाते !! कभि सुबह कभि शाम और रहि-सही कसर मोबाईल लगा कर पुरा कर देते थे!!
परेशानि उन्की और बेवजह भुगत मै रहा था !!इस प्रकार 5 महिने मै स्व्यं उन्से परेशान हो ग्या था !!एक दिन वो शाम को मेरे पास आये और मेरे पास शान्ति से बैठे रहे! मैने पुछा महाराज आप मुझे परेशान क्यो करते है तो उनहोने कहा कि मुझे स्व्पन मे निर्देश मिले है कि उनहे मै ही ठिक कर सकता हुँ,इसि कारण वे मेरा पिछा नहि छोड रहे है!! मैने पुछा क्या आपको मुझपे पुर्ण विष्वास है तो उनहोने हा कहा और कहा कोई रास्ता भी नही है !!
“मित्रों हर समस्या का समाधान समस्या मे ही छुपा रहता है” मेरि भि समस्या का समाधान भि समस्या मे हि छुपा था ! उन सज्जन ने हि मुझे समस्या का समाधान बता दिया था !! उनहोने हि कहा कि उनहे स्वपन मे निर्देश मिले है कि उनकी समस्या का समाधान मुझ से होगा !! तो मैने भि वही विधी प्रयोग कु जिसे “स्वप्न सिद्धि” कहते है !!
मै रोज रात को सोने से पहले गुरु गोरखनाथ जी के नाम से दो अगरबत्ति एवं एक दिया लगा कर सोया करता और उन सज्जन कि समस्या का समाधान गुरु गोरखनाथजी से रोज मांगता था !!42 दिन बित गये किन्तु कुछ भि नहि हुआ किन्तु मैने प्रयोग प्रारंभ रखा !!
“कहते है जहाँ चाह हो वहा राह भी होती है”
43 वे दिन श्री नाथ जी मेरे स्वप्न मे आये और उनहोने अपना नाम “दयानाथजी” बताया,(ग्यात हो की श्री दयानाथ जी 84 सिद्धों मे से एक है)
उनहोने कुछ अजब-गजब से कानों मे कुंडल धारण किये हुये थे,90-95 किलो का हष्ट-पुष्ट शरिर था,बडि हुई दाडि थी,वे भगवा धारण किये हुये थे !! उन्के जो वचन थे जैसा उनहोने कहा मे लिखने का प्रयास करता हुँ !!उन्होने कहा:-
राहुलनाथ इस व्यक्ति ने एक कवच धारण कर रखा है जो कामाख्या देवि का है जिसे धारन तो किया है इसने किन्तु आज तक उतारा नहि !उस्से कहो की उस कवच को उतार दे एवं मुक्ति पाये !!
मैने पुछा नाथ जी कवच मुक्ति का उपाय तो मुझे भी नहि पता तो उसे कैसे पता होगा! आपहि बताये तो अच्छा होगा ?
उन्होने कहा जब यहा तक पता चल गया है तो आगे भि पता चल हि जायेगा !!उनसे कवच कौन सा है पुछना और ध्यान से पढ्ना उपाय भि नाथ जि की कृ्पा से तुमहे प्राप्त हो जायेगा !!और फिर अलख निरंजन कह कर मेरे हाथ मे भभुति प्रदान कर वे चले गये!!
प्रात: 4 बजे कि बात है ये !! 8 बजे मैने उन सज्जन को फोन लगाया और वे दौडे दौडे आ गये !! मैने पुछा क्या आपने 10 साल पहले कोई कवच सिद्ध किया था जो कामाख्या देवि का कवच मन्त्र था??
वे सज्जन अचंभित हो गये और स्तभित भी ,और क्यो न हो कोई भी हो जाता !!
उन्होने कहा हाँ,हाँ .....किया था आपको कैसे पता चला ??
मैने कहा उसि कवच के कारन आपको बाधा हो रहि है कृ्प्या वो कवच बताये ?
उन्होने कहा वो कवच याद नहि है 1999 मे दिल्लि से वापस आते समय अमरकंटक के पास एक साधु महाराज ने प्रसन्न हो कर यह कवच मन्त्र प्रदान किया था जिसे मैने डायरी मे लिखा था अभी भुल चुका हु आप मुझे थोडा समय प्रदान करे मै अभि वो डायरि ले कर आता हुँ! और वे घर कि ओर दौडै पुरि रफ़तार से ,किन्तु दो दिन बाद वापस आये !उन्के अनुसार डायरी नहि मिल रही थी!!
सहि भी है”समय से पहले और किस्मत से ज्यादा मिलता नहि है”
मन्त्र पढा गया मन्त्र कुछ इस प्रकार था;
तन बाँधो,मन बाँधो,बाँधो संपुर्ण काया
न बाँधोतो ..................की आन...इस प्रकार यह 14 लाईन का साबर मन्त्र था!!
मैने पुछा कितने मन्त्र से सिद्ध किया था इस कवच को तो उन्होने कहा 1100 मन्त्र से...
बस मिल गया समस्या का समाधान 43 दिनों बाद!!
मैने मात्र गुरु देव के आदेश से उस मन्त्र मे जहाँ जहाँ “बाँधो- बाँधो” शब्द लिखा था वहा मात्र
“खोलो-खोलो” शब्द का उच्चारण करवाया !! 1100 बार
आप यकिन नहि मानेंगे ,1100 मन्त्र पुरे होते तक वे स्वस्थ हो गये !!उनका परिवार आज कुशल मंगल है एवं कालांतर मे उनहोने गुरु गोरक्ष नाथ जि से दिक्षा लेकर अपना जिवन परिवार सहित गुरु गोरक्षनाथ जि को समर्पित कर दिया...!
यह पुरा विवरण उन भक्तो के लिये है जो साधना के पथ पर अग्रसर है !उनहे ये बताने के लिये है कि बिना गुरु के किसि भि प्रकार की साधना ना करे !!और कम से कम साबर मंत्रो के साथ प्रयोग ना करे !! ये स्व्यं सिद्ध है किन्तु इन मन्त्रो की सही कार्य प्रणाली कोई विरला ही जानता है !!ये कवच कुछ खुद को बाँधने के लिये होते है कुछ दुसरो को बाँधने के लिये !! यदि दुसरो को बाँधा गया है और फीर उसे खोला नहि गया है तो ये पाप कर्म है क्योकि भगवान आशुतोष महादेव महाकाल ने मन्त्रो कि रचना समाज के कल्याणार्थ की है !!
हर कवच,मन्त्र तन्त्र का किलन और उत्किलन दोनो होता है!जब तक दोनो विधियों का ग्यान न हो जाये प्रयोग प्रारंभ नहि करना चाहिये !यदि आप किसि भि देवता का घर पे आहवाह्न करते है और फीर विसर्जन नहि करते तो भि ये बाधाये होने लगति है!जब भि कोई विधि या पुजा करनि हो तो मास्टर से स्लाह ले या उनसे ही करवा ले !! जिवन मे कभी भि किसी भि प्रकार की गिरह(गाँठ) न बान्धे !!
आप सभि मित्रो से निवेदन है कि इस विष्य पे ईस पोस्ट पर अपने विचार व्यक्त करे एवं ज्यादा से ज्यादा इस पोस्ट को शेयर करे ताकी समाज मे फैले कुसाहित्य का दमन हो सके एवं सुसाहित्य एवं सच्चे अध्यात्म का प्रचार हो सके!

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।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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बुधवार, 13 जुलाई 2016

||कस्ट का कारण ।।

||कस्ट का कारण ।।
एक बार अवश्य पढ़े शायद आपकी मैं सहायता कर सकु?
शब्द साँचा,पिण्ड कांचा,फुरो मंत्र ईश्वरो वाँ चा!!
किसी भी प्रकार यदि आप कष्ट भोग रहे है तो यह निश्चित है की यह कष्ट भी आपको परमपिता ने प्रदान किया है आपके द्वारा किये गए गलत कार्यो के कारण जैसे ब्याज पे पैसा देना,बद्दुआ देना,किसी का अपमान करना,किसी का ह्रदय दुखाना,क्षल करना,कोसना,इसी प्रकार के अन्य कर्म !!इस कष्ट के निवारण हेतु आप जितना प्रयास करेगे उतना ही इस दल दल में फसते जायेगे!क्योकि यदि आप कष्ट निवारण हेतु तथा कथित जो परेशानियो को चमत्कार से ठीक करने का दावा करते है या किसी के पास भी जायेगे तो वो भी आपके कष्टो को और बढ़ाएगा और ये भी आप ईश्वरीय प्रेरणा से ही करेंगे और आप कष्ट भोगते रहेगे।
क्योकि कोई कितना भी बड़ा जानकार क्यों ना हो महादेव से बड़ कर नहीं है।ऐसी अवस्था में आपको चाहिए की स्थिर बुद्धि से परमेश्वर की शरण में जाए।कष्ट से मुक्ति वही दे सकता है जो कष्ट प्रदान करता है।बस एक बार प्रयास तो करे ।आपको क्षमा अवश्य मिलेगी।
प्रेम से मात्र "जय श्री महाकाल"कहे
दिन में तिन बार रोज कहे एवम् एक बार में 27 बार दोहराये!नित्य महाकाल सहित महाकाली कह कर 2 अगरबत्ती लगाए।कुछ ही दिनों में लाभ दिखने लगेगा।
और जो धन आप तथाकथित लोगो में व्यय करते है उस धन से गरीबो एवम् जरुरत मंदो की सहायता करे।।।
किसी के द्वारा प्रदान लिया यन्त्र,तंत्र ,प्रसाद ग्रहण ना करे।मंदिर मस्जिद,गुरूद्वारे जाए वहीपूजा करे।आपकी सुरक्षा होगी।!कुछ दिनों पूर्व एक परिवार ने मुझे अपने कष्टो के बारे में बताया कहा उनके परिवार में अचानक सब कार्य स्तंभित हो गया है और कोर्ट कचहरी में समय व्यय हो रहा है।
मैंने व्हाट्स अप पे उनके निवास के पूजा स्थान की छवि मंगवाई और देखा वहा स्तंभन की देवी का यन्त्र स्थापित है।बस उस यन्त्र को पानी में विसर्जन करते ही उस परिवार के कष्टो का अंत हुआ।।उस परिवार के मुखिया से पूछने पर उन्होने बताया की कुछ दिन पहले एक बाबा जी ने कल्याणार्थ यह यन्त्र भेट स्वरूप दिया था।और जब से यह यन्त्र जीवन में उनके आया था।सब कार्य रुक गया था!अब प्रश्न ये उठता है की उस तथा कथित बाबा जी ने ये यन्त्र क्यों दिया!कारण साफ़ है ।जब आपके शत्रु बड़ जाये,कोर्ट कचहरी या वाद विवाद की अवस्था में ही इस देवी की आपको आराधना करनी चाहिए।यदि आपको कोई रोग नहीं है तो फिर उस रोग के निदान की औषधि आप क्यों लेना चाहेंगे।इस विद्या का आविष्कार महादेव ने संसार के कल्याणार्थ किया है।भगवान शिव की पत्नी देवी गौरा ने दस रूप आवश्यकता के अनुसार लिए थे।और इनमे से कुछ देवियो की पूजा तो घर पे करनी भी नहीं चाहिए।हर देवी का अपना एक भैरव होता है और पूजन के समय उनका मान न करने से भगत को हानी ही होती है।

विशेष-:ये यन्त्र देने वालो की इच्छा से कार्य करते है लेने वालो की इच्छा से नहीं!!
!!जय श्री महाकाल!!
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।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

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इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझा जाएगा और उस पर (कॉपी राइट एक्ट 1957)के तहत दोषी पाये जाने की स्थिति में तिन वर्ष की सजा एवं ढ़ाई लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।अतः आपसे निवेदन है पोस्ट पसंद आने से शेयर करे ना की पोस्ट की चोरी।

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