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मंगलवार, 9 अगस्त 2022
दस महाविद्या स्तोत्र | *******************दुर्ल्लभं मारिणींमार्ग दुर्ल्लभं तारिणींपदम्।मन्त्रार्थ मंत्रचैतन्यं दुर्ल्लभं शवसाधनम्।।श्मशानसाधनं योनिसाधनं ब्रह्मसाधनम्।क्रियासाधनमं भक्तिसाधनं मुक्तिसाधनम्।।तव प्रसादाद्देवेशि सर्व्वाः सिध्यन्ति सिद्धयः।।शिव ने कहा- तारिणी की उपासना मार्ग अत्यन्त दुर्लभ है। उनके पद की प्राप्ति भी अति कठिन है। इनके मंत्रार्थ ज्ञान, मंत्र चैतन्य, शव साधन, श्मशान साधन, योनि साधन, ब्रह्म साधन, क्रिया साधन, भक्ति साधन और मुक्ति साधन, यह सब भी दुर्लभ हैं। किन्तु हे देवेशि! तुम जिसके ऊपर प्रसन्न होती हो, उनको सब विषय में सिद्धि प्राप्त होती है।नमस्ते चण्डिके चण्डि चण्डमुण्डविनाशिनी।नमस्ते कालिके कालमहाभयविनाशिनी।।हे चण्डिके! तुम प्रचण्ड स्वरूपिणी हो। तुमने ही चण्ड-मुण्ड का विनाश किया है। तुम्हीं काल का नाश करने वाली हो। तुमको नमस्कार है।शिवे रक्ष जगद्धात्रि प्रसीद हरवल्लभे। प्रणमामि जगद्धात्रीं जगत्पालनकारिणीम्।।जगत्क्षोभकरीं विद्यां जगत्सृष्टिविधायिनीम्।करालां विकटां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।।हरार्च्चितां हराराध्यां नमामि हरवल्लभाम्।गौरीं गुरुप्रियां गौरवर्णालंकार भूषिताम्।।हरिप्रियां महामायां नमामि ब्रह्मपूजिताम्।हे शिवे जगद्धात्रि हरवल्लभे! मेरी संसार से रक्षा करो। तुम्हीं जगत की माता हो और तुम्हीं अनन्त जगत की रक्षा करती हो। तुम्हीं जगत का संहार करने वाली हो और तुम्हीं जगत को उत्पन्न करने वाली हो। तुम्हारी मूर्ति महाभयंकर है।तुम मुण्डमाला से अलंकृत हो। तुम हर से सेवित हो। हर से पूजित हो और तुम ही हरिप्रिया हो। तुम्हारा वर्ण गौर है। तुम्हीं गुरुप्रिया हो और श्वेत आभूषणों से अलंकृत रहती हो। तुम्हीं विष्णु प्रिया हो। तुम ही महामाया हो। सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी तुम्हारी पूजा करते हैं। तुमको नमस्कार है।सिद्धां सिद्धेश्वरीं सिद्धविद्याधरगणैर्युताम्।मंत्रसिद्धिप्रदां योनिसिद्धिदां लिंगशोभिताम्।।प्रणमामि महामायां दुर्गा दुर्गतिनाशिनीम्।।तुम्हीं सिद्ध और सिद्धेश्वरी हो। तुम्हीं सिद्ध एवं विद्याधरों से युक्त हो। तुम मंत्र सिद्धि दायिनी हो। तुम योनि सिद्धि देने वाली हो। तुम ही लिंगशोभिता महामाया हो। दुर्गा और दुर्गति नाशिनी हो। तुमको बारम्बार नमस्कार है।उग्रामुग्रमयीमुग्रतारामुग्रगणैर्युताम्।नीलां नीलघनाश्यामां नमामि नीलसुंदरीम्।।तुम्हीं उग्रमूर्ति हो, उग्रगणों से युक्त हो, उग्रतारा हो, नीलमूर्ति हो, नीले मेघ के समान श्यामवर्णा हो और नील सुन्दरी हो। तुमको नमस्कार है।श्यामांगी श्यामघटितांश्यामवर्णविभूषिताम्।प्रणमामि जगद्धात्रीं गौरीं सर्व्वार्थसाधिनीम्।।तुम्हीं श्याम अंग वाली हो एवं तुम श्याम वर्ण से सुशोभित जगद्धात्री हो, सब कार्य का साधन करने वाली हो, तुम्हीं गौरी हो। तुमको नमस्कार है।विश्वेश्वरीं महाघोरां विकटां घोरनादिनीम्।आद्यमाद्यगुरोराद्यमाद्यनाथप्रपूजिताम्।।श्रीदुर्गां धनदामन्नपूर्णां पद्मा सुरेश्वरीम्।प्रणमामि जगद्धात्रीं चन्द्रशेखरवल्लभाम्।।तुम्हीं विश्वेश्वरी हो, महाभीमाकार हो, विकट मूर्ति हो। तुम्हारा शब्द उच्चारण महाभयंकर है। तुम्हीं सबकी आद्या हो, आदि गुरु महेश्वर की भी आदि माता हो। आद्यनाथ महादेव सदा तुम्हारी पूजा करते रहते हैं।तुम्हीं धन देने वाली अन्नपूर्णा और पद्मस्वरूपीणी हो। तुम्हीं देवताओं की ईश्वरी हो, जगत की माता हो, हरवल्लभा हो। तुमको नमस्कार है।त्रिपुरासुंदरी बालमबलागणभूषिताम्।शिवदूतीं शिवाराध्यां शिवध्येयां सनातनीम्।।सुंदरीं तारिणीं सर्व्वशिवागणविभूषिताम्।नारायणी विष्णुपूज्यां ब्रह्माविष्णुहरप्रियाम्।।हे देवी! तुम्हीं त्रिपुरसुंदरी हो। बाला हो। अबला गणों से मंडित हो। तुम शिव दूती हो, शिव आराध्या हो, शिव से ध्यान की हुई, सनातनी हो, सुन्दरी तारिणी हो, शिवा गणों से अलंकृत हो, नारायणी हो, विष्णु से पूजनीय हो। तुम ही केवल ब्रह्मा, विष्णु तथा हर की प्रिया हो।सर्वसिद्धिप्रदां नित्यामनित्यगुणवर्जिताम्।सगुणां निर्गुणां ध्येयामर्च्चितां सर्व्वसिद्धिदाम्।।दिव्यां सिद्धि प्रदां विद्यां महाविद्यां महेश्वरीम्।महेशभक्तां माहेशीं महाकालप्रपूजिताम्।।प्रणमामि जगद्धात्रीं शुम्भासुरविमर्दिनीम्।।तुम्हीं सब सिद्धियों की दायिनी हो, तुम नित्या हो, तुम अनित्य गुणों से रहित हो। तुम सगुणा हो, ध्यान के योग्य हो, पूजिता हो, सर्व सिद्धियां देने वाली हो, दिव्या हो, सिद्धिदाता हो, विद्या हो, महाविद्या हो, महेश्वरी हो, महेश की परम भक्ति वाली माहेशी हो, महाकाल से पूजित जगद्धात्री हो और शुम्भासुर की नाशिनी हो। तुमको नमस्कार है।रक्तप्रियां रक्तवर्णां रक्तबीजविमर्दिनीम्।भैरवीं भुवनां देवी लोलजीह्वां सुरेश्वरीम्।।चतुर्भुजां दशभुजामष्टादशभुजां शुभाम्।त्रिपुरेशी विश्वनाथप्रियां विश्वेश्वरीं शिवाम्।।अट्टहासामट्टहासप्रियां धूम्रविनाशीनीम्।कमलां छिन्नभालांच मातंगीं सुरसंदरीम्।।षोडशीं विजयां भीमां धूम्रांच बगलामुखीम्।सर्व्वसिद्धिप्रदां सर्व्वविद्यामंत्रविशोधिनीम्।।प्रणमामि जगत्तारां सारांच मंत्रसिद्धये।।तुम्हीं रक्त से प्रेम करने वाली रक्तवर्णा हो। रक्त बीज का विनाश करने वाली, भैरवी, भुवना देवी, चलायमान जीभ वाली, सुरेश्वरी हो। तुम चतुर्भजा हो, कभी दश भुजा हो, कभी अठ्ठारह भुजा हो, त्रिपुरेशी हो, विश्वनाथ की प्रिया हो, ब्रह्मांड की ईश्वरी हो, कल्याणमयी हो, अट्टहास से युक्त हो, ऊँचे हास्य से प्रिति करने वाली हो, धूम्रासुर की नाशिनी हो, कमला हो, छिन्नमस्ता हो, मातंगी हो, त्रिपुर सुन्दरी हो, षोडशी हो, विजया हो, भीमा हो, धूम्रा हो, बगलामुखी हो, सर्व सिद्धिदायिनी हो, सर्वविद्या और सब मंत्रों की विशुद्धि करने वाली हो। तुम सारभूता और जगत्तारिणी हो। मैं मंत्र सिद्धि के लिए तुमको नमस्कार करता हूं।इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।इत्येवंच वरारोहे स्तोत्रं सिद्धिकरं परम्।पठित्वा मोक्षमाप्नोति सत्यं वै गिरिनन्दिनी।।हे वरारोहे! यह स्तव परम सिद्धि देने वाला है। इसका पाठ करने से सत्य ही मोक्ष प्राप्त होता है।कुजवारे चतुर्द्दश्याममायां जीववासरे।शुक्रे निशिगते स्तोत्रं पठित्वा मोक्षमाप्नुयात्।त्रिपक्षे मंत्रसिद्धिः स्यात्स्तोत्रपाठाद्धि शंकरि।।मंगलवार की चतुर्दशी तिथि में, बृहस्पतिवार की अमावस्या तिथि में और शुक्रवार निशा काल में यह स्तुति पढ़ने से मोक्ष प्राप्त होता है। हे शंकरि! तीन पक्ष तक इस स्तव के पढ़ने से मंत्र सिद्धि होती है। इसमें सन्देह नहीं करना चाहिए।चतुर्द्दश्यां निशाभागे शनिभौमदिने तथा।निशामुखे पठेत्स्तोत्रं मंत्रसिद्धिमवाप्नुयात्।।चौदश की रात में तथा शनि और मंगलवार की संध्या के समय इस स्तव का पाठ करने से मंत्र सिद्धि होती है।केवलं स्तोत्रपाठाद्धि मंत्रसिद्धिरनुत्तमा।जागर्तिं सततं चण्डी स्तोत्रपाठाद्भुजंगिनी।।जो पुरुष केवल इस स्तोत्र को पढ़ता है, वह अनुत्तमा सिद्धि को प्राप्त करता है। इस स्तव के फल से चण्डिका कुल-कुण्डलिनी नाड़ी का जागरण होता है।(संकलितं पोस्ट)🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🔱*🅹🆂🅼 🅾🆂🅶🆈*#राहुलनाथ ™ भिलाई 🖋️📱➕9⃣1⃣9⃣8⃣2⃣7⃣3⃣7⃣4⃣0⃣7⃣4⃣(w)#चेतावनी:-इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य स्वयं के अभ्यास-अनुभव के आधार पर एवं गुरू-साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-वास्तु-वैदिक-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो,मान्यताओं और जानकारियों के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।हम इनकी पुष्टी नही करते,अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे। किसी भी विवाद की स्थिति न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत।
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