साधना -पूजा के मूल सूत्र-भाग 2
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जगतगुरु एवं समर्पित शिष्य
एक कहावत है कि
"मानव गुरु शिष्य के कान में मंत्र उच्चारण करता है,जबकी जगद्गुरु भक्त के हृ्दय में बोलता है!"
साधक में अध्यात्म चेतना का द्वार जागरण होने पर सच्ची दीक्षा होती है! सच्चा गुरु सर्वव्यापी भगवान,अन्तर्यामी परमात्मा है।जो संसार की गती,भर्ता,प्रभू,साक्षी,निवास,शरण,सुहृ्द,प्रभव और प्रलय,अधार,समस्त ज्ञान का निदान और अव्यक्त बीज है!
"गतिर्भर्ता प्रभु: सा़ई निवास: शरणं सुहृ्त!
प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम्!!"
साधारण गुरु और शिष्य परस्पर मिलने पर एक-दूसरे में भगवान को देखने का प्रयास करते है! शिष्य गुरु को गुरुओं के गुरु परमात्मा का एक विग्रह समझता है,जिसके माध्यम से भगवत्कृ्पा प्रवाहित होती है! वह इसी रुप में उनकी सेवा तथा उपासना करता है,तथा उनकी आग्या का पालन करता है! भारत में हजारों लोगों द्वारा पाठ किये जाने वाले प्रसिद्ध श्लोकों मेंयह बात व्यक्त हुई है!!
अग्यानतिमिरान्ध्स्य ग्यामांजनशलाकया!
"चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नम:!!
अनेकजन्मसम्पाप्तकर्मबन्धविदाहिने!
आत्मग्यानप्रदानेन तस्मै श्री ग्गुरुवे नम:!!"
अर्थात:-"अग्यानान्धकार से अन्ध व्यक्ति के नेत्रों कौ ग्यानरुपी अंजन की शलाका से उन्मीलित करने वाले श्री गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ! अनेक जन्मों के कर्म बन्धनों कों आत्मग्यान प्रदान करके भस्म करने वाले श्री गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ!!
🕉️🙏🏻🚩आदेश-जयश्री माहाँकाल 🚩🙏🏻🕉️
👉व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©२०१६
☯️।।राहुलनाथ।।™🖋️।....भिलाई,३६गढ़,भारत
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