#शाबर_मंत्र_महिमा-02
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जब प्राचीन काल के ग्रंथों में उल्लेखित शास्त्रोक्त मंत्रों का दुरूपयोग होने लगा तब महर्षि विश्वामित्र के द्वारा शास्त्रोक्त मंत्रों को श्रापित तथा किलीत कर दिया गया तब से शास्त्रोक्त मंत्र की साधना तथा प्रयोग से सामान्य जन वंचित होने लगे तथा विशेष गुरू कृपा से प्राप्त मंत्र ही साधकों के लिए फलदायी होते थे। तथा अनेकों प्रकार के कठिनाईयों के बावजूद सिद्धीयाँ प्राप्त होती थी तथा सामान्य साधक शास्त्रोक्त मंत्रों के प्रभाव से वंचित रह जाते थे। यह देखकर भगवान शंकर द्वारा कलयुग के साधकों के हित को ध्यान में रखते हुए शाबर मंत्रों का निर्माण किया गया। उसके बाद नवनाथ संप्रदायों के द्वारा शाबर मंत्र के प्रचलन को आगे बढ़ाया गया।
शाबर मंत्रों की उत्पत्ति और रचना के बारे में पुराणों में वर्णन मिलता है कि भगवान शंकर और माता पार्वती ने जिस समय अजुर्न के साथ किरत वेश में युद्ध किया था उसी समय आगम चर्चा के दौरान माता पार्वती जी के प्रश्नों के उत्तर शिवजी ने दिये थे उन्ही भिन्न प्रदत मंत्रों को बाद में शाबर मंत्र कहा गया।
सबसे अच्छी बात है कि शाबर साधनाओ में न तो विशेश विधि विधान की आवश्यकता है और नही किसी कर्मकांड की, इन साधना कि विधि सरल होने के साथ शीघ्र फलदायी भीहै..... अतः किसी भी वर्ग के व्यक्ति कर सकते हैं..... गुरु की आज्ञा, गुरु की कृपा के बिना कोई भी मन्त्र या तंत्र या सिद्धि संभव नहीं अतः प्रथम गुरु पूजन, और मानसिक रूप से आशीर्वाद लेकर ही किसी भी साधना में प्रवर्त होना चाहिए, यही शिष्य या साधक का कर्म और धर्म होना चाहिए.
शाबर मंत्र सरल तथा तीव्र प्रभावी होता है। शाबर मंत्रों की खासियत यह है कि मंत्रों के आखिर में मंत्र से संबंधित देवी देवताओं के आन अथवा कसम दी जाती है। जिससे देवी-देवताओं को कसम की मर्यादा रखने के लिए साधक के इच्छित कार्यां को पूरा करना पड़ता है।
भक्तों को साधना काल में निम्न नियमों का पालन अनिवार्य है:-
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१. सर्वश्रेष्ट तो यह है की आप गुरु खोजें और उससे मंत्र प्राप्त करें.
२. साधना काल में वाणी का असंतुलन, कटु-भाषण, प्रलाप, मिथ्या वचन आदि का त्याग करें। मौन रहने की कोशिश करें।
३.निरंतर मंत्र जप अथवा इष्ट देवता का स्मरण-चिंतन करना जरूरी होता है।
४.जिसकी साधना की जा रही हो, उसके प्रति मन में पूर्ण आस्था रखें।
५.मंत्र-साधना के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति धारण करें।
६.साधना-स्थल के प्रति दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ साधना का स्थान, सामाजिक और पारिवारिक संपर्क से अलग होना जरूरी है।
७.उपवास में दूध-फल आदि का सात्विक भोजन लिया जाए।
८.श्रृंगारप्रसाधन और कर्म व विलासिता का त्याग अतिआवश्यक है।
९.साधना काल में भूमि शयन ही करना चाहिये।
शाबर मंत्र साधना में गुरु की आवश्यकता
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१.शाबर मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
२.गुरु साधना से उठनेवाली उर्जा को नियंत्रित और संतुलित करता है जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
३. वैसे ये साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
४.शाबर साधना गुरु के आभाव में करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरस्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.
५.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक हो
सभी शाबर मंत्रों को सिद्ध करने से पहले शाबर मंत्र विधान द्वारा गुरू और गणेश की पूजा आराधना करनी चाहिए। तत्पश्चात् शरीर रक्षा मंत्रों के द्वारा शरीर की सुरक्षा कर लेनी चाहिए।
विशेष:-इस पोस्ट को लिखने में कुछ व्हाट्सएप पोस्ट का सहयोग लिया गया है।
🙏🏻🚩जयश्री महाकाल🚩🙏🏻
।। राहुलनाथ।।™
#शिवशक्ति_ज्योतिष_एवं_अनुष्ठान
भिलाई,छत्तीसगढ़, भारत
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चेतावनी:-
इस लेख में वर्णित नियम ,सूत्र,व्याख्याए,तथ्य गुरू एवं साधु-संतों के कथन,ज्योतिष-तांत्रिक-आध्यात्मिक-साबरी ग्रंथो एवं स्वयं के अभ्यास अनुभव के आधार पर मात्र शैक्षणिक उद्देश्यों हेतु दी जाती है।इसे मानने के लिए आप बाध्य नही है।अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए या प्रयोग ना करे।विवाद या किसी भी स्थिती में लेखक जिम्मेदार नही होगा।विवाद की स्थिति में न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़,भारत,
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