#मन_की_शक्ति_से_अपना_उद्धार_स्वयं_करे।
【आध्यात्मिक एवं तांत्रिक विश्लेषण】
#मन_एव_मनुष्याणां_कारणं_बंधमोक्षयोः_।।
हमारे शास्त्रों के अनुसार हमारा मन ही समस्त बंधनों एवं मोक्ष का मूल कारण है।हमारे अमन होते ही ये दुःख दाई बंधनो से हमे मुक्ति प्राप्त हो जाती है।यहां समझने वाली बात है कि जहाँ मन को इन्द्रियों का राजा कहा गया है जहां बिना मन के सहयोग के हमारी कोई भी इंद्रिया कार्य नही कर सकती।वही इस मन को बंधन कहा गया है कारण यह है मोक्ष या अध्यात जो विषय है वो इन्द्रियों के परे है और इन पाँच इन्द्रियों का संबंध शरीर से है इन इंद्रियों से बुद्धि का विकास होता है और ये बुद्धि भी बंधन ही है क्योंकि इसका विकास भी इंद्रियों द्वारा ही होता है यदि ये इंद्रिया दिमाग को गलत संकेत देने लगे तो बुद्धि की दिशा और व्यवहार भी बदल जाता है।मन एवं बुद्धि प्रश्न वाचक है वही अध्यात्म या मोक्ष सहजता का विषय है ।अध्यात्म या भक्ति का मूल मंत्र है जो जैसा है उसे उसी अवस्था मे ग्रहण कर लो,सहजता के साथ,फिर उसमें प्रश्न ना करो।
इस मन को वश में करना मुश्किल है किंतु नामुमकिन नही।
श्रीगीताजी में अर्जुन ने कृष्ण से इस विषय मे कठिनाई बताते हुए कहा।
#चञ्चल_हि_मनः_कृष्ण_प्रमाथि_बलवद_दृढम।
हे कृष्ण,ये मन बड़ा चञ्चल, क्षोभकारक,बलावान एवं दृढ़ है अतः उसे वश में करना मैं वायु को रोकने जैसा दुष्कर समझता हूँ।
अर्जुन की इस बात को मानते हुए श्रीकृष्ण कहते है कि,
#असंशय_महाबाहो_मनो_दुर्निग्रहं_चलं||
इसमे संशय नही की मन चञ्चल एवं कठिनाई से वश में आने वाला है किंतु उसे वश में करने का उपाय बताते हुए श्रीकृष्ण कहते है।
#अभ्यासेन_तु_कौन्तेय_वैराग्येण_च_गृह्यते||
अर्थात हे कुंतीपुत्र,अभ्यास एवं वैराग्य से इसे वश में किया जा सकता है।
इस प्रकार से मन को वश में करके उसे इन्द्रियों के विषयों में आसक्त होने से रोकना उसका निषेधात्मक पक्ष है एवं देखा जाए तो भगवान के कार्य मे दखल देने जैसा है जैसा कि हठ योग।
जो जैसा है उसके स्वरूप को बदलने का प्रयास करना । फिर यदि समझा जाये तो इसका दूसरा महत्वपूर्ण एवं सृजनात्मक पक्ष भी है जिससे हम इस बलवान मन की दिशा बदलकर,अपने इसी बलवान मन की शक्ति का स्वयं अपना उत्थान करने से भी सदुपयोग कर सकते है।
मन का मूल विचार होते है और ये विचार सकारात्मक एवं नाकारात्मक दोनो है देखा जाए तो ये दोनों मात्र एक भ्रम ही है सकारात्मक-नाकारात्मक,सुख-दुःख, पाप-पुण्य ये सब मात्र मन की अवस्था ही है आप के लिए जो दुःख होगा हो सकता है वो किसी अन्य के लिए सुखकारक हो,जो आपके लिए पाप हो वो दूसरे के लिए पुण्य भी हो सकता है।
अतः यह वैज्ञानिक सिद्धांत भी है कि मन के सकारात्मक एवं नकारात्मक विचार का हमारे शरीर एवं मस्तिष्क पर सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो यदि इन विचारों को अच्छे/सकारात्म दिशा में ले जाया जाए निसंदेह हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होगा।
जहाँ भक्ति सकारात्मक एवं स्वस्थ विचारो के द्वारा प्राप्त की जाती है वही यदि सकारात्मक विचारों को किसी प्रकार बदल दिया जाए तो ये भक्ति के विरुद्ध शक्ति का रूप ले लेती है जिससे कि अनेक विद्याओ का जन्म होता है जैसे कालाजादु,नकारात्मक तांत्रिक कर्म,नकारात्मक अघोर कर्म,ना ना प्रकार की अमोक्ष कारक सिद्धिया जो कि मात्र एक मृगतृष्णा है,जब तक इनसे दूर नही हुआ जाता तब तक मुक्ति प्राप्त नही होती यही शिव-शक्ति का मूल भेद है जहाँ शिव शाँत अवस्था मे दिखाई देते है वही शक्ति उग्र अवस्था मे।जहाँ शिव के वाहन को बैल के वाहन में देखा जाता है वही शक्ति को सिंह के वाहन में,यहां आप ही सोचे कि बैल के नाक में रस्सी तो डाली जा सकती किन्तु सिंह के???
अतः सकारात्मक विचारों के साथ अपना उद्धार स्वयं करे।क्योकि मात्र मनुष्य में ही विचारो की एक ऐसी शक्ति है जिसका सही उपयोग कर वह अपना एवं समाज का उद्धार कर सकता है।
#उद्धरेदात्मनात्मानं_नात्मानमवसादयेत_||
#आत्मैव_ह्यात्मनो_बंधुरात्मैव_रिपुरात्मनः_||
मनुष्य को चाहिए कि वह अपना उद्धार स्वयं करे।
अपना पतन न करे,क्योकि मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु भी।
#_क्रमशः
व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार©2018
।। राहुलनाथ।।™
***🚩JAISHRRE MAHAKAL OSGY🚩***
**** #मेरी_भक्ति_अघोर_महाकाल_की_शक्ति ****
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