रहस्यमयी स्मशान और शव साधना
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स्मशान का नाम सुनते ही साधारण व्यक्ति का शरीर भय ग्रस्त हो जाता है वहा के जलते शवो का भान होने लगता है उन जलते शवो की दुर्गंध का एहसास होने लगता है और रात में तो ये स्थान और भी ज्यादा भयावह प्रतीत होता है।फिर साधना सिद्धि के लिए इस स्थान का चुनाव क्यो???
आपने पढ़ा होगा या सुना होगा कि बहुत से मंत्रो को स्मशान में सिद्ध करना होता है जैसे काली,भैरव आदि के मंत्रो को।किन्तु स्मशान में ही क्यो?क्योकि स्मशान में आप जब भी जाये तो आप महसूस करेंगे एक अलग प्रकार का भाव,शांति ,कुछ भी नही होने का भाव, स्मशान में किसी भी प्रकार का दुनियादारी का भाव पैदा नही होता और ना ही वहां भूख लगती है।और आप ये समझ ले कि मंत्र साधना में भाव का ही मूल महत्व होता है खास कर साबर मंत्रो में, साबर मंत्रो की सिद्धि में जहां भाव की आवश्यकता होती है वही वैदिक मंत्रों में नाद की आवश्यकता होती है।ये भाव स्मशान में आसानी से पैदा हो जाता है क्योंकि स्मशान में प्रवेश करते ही ,चिता के दर्शन करते ही ,जली चिता के भस्म को देखते ही नश्वरता का अहसास होता है और बाकी सभी भाव यहां समाप्त हो जाते है।ऐसी अवस्था मे यदि सही भाव के साथ मंत्र पढ़े जाए तो मंत्र जल्दी सिद्ध हो जाते है।यही स्मशान साधना या शव साधना का मूल है।ये तो हो गई साधारण सी बात ,किन्तु इसका मूल रहस्य जो पूर्णतः गोपनीय रहा है यदि आप समझना चाहेगे तो ये इससे सर्वथा भिन्न है।स्मशान की मूल अवस्था के अनुसार मन मस्तिष्क को स्मशान के समान शांत व विचार हीन करने से होता है यह अवस्था कभी भी कही भी की जा सकती है इसमे स्मशान में बैठकर साधना सिद्धि करना आवश्यक नही होता है।इस अवस्था मे मन -मस्तिष्क को दुनियादारी के सभी भावों से विरक्त कर दिया जाता है ये अवस्था जब जहाँ पैदा हो जाये वो स्मशान की वही अवस्था होती है।इस समय और इस अवस्था मे शव आपका ही शरीर होता है जिस पे बैठ कर आप साधना करते है।किसी अन्य शव पे बैठकर साधना नही करनी होती।इस अवस्था के अभाव में स्मशान में बैठकर साधना करने का कोई अर्थ नही होता है।बहुत से साधक शास्त्रो ग्रंथो की भाषा को ना समझते हुए स्मशान में बैठ कर साधना करते है और भय का व्यपार चलाते रहते है ।सामान्य सांसारिक प्राणी जो कि स्मशान से भयभीत होता है क्योंकि उसे मालूम होता है कि यही वो स्थान है जहां जाने के बाद कोई वापस नही आता ,यही उसके भय का मूल कारण होता है।स्मशान की भस्म से भी आशय है कि अपने मनोविकारों,कुसंस्कारों को भस्म करना एवं उससे निर्मित भस्म तक को अपने शरीर या माथे पे स्मृति स्वरूप स्थान देना ,भस्म लगाने का उद्देश्य यह है कि इस साधक ने अपने मन-मस्तिष्क के विकारों को भस्म कर लिया है एवं जिस प्रकार सोना-चांदी,जीव-जंतु,वृक्ष-पौधे सब कुछ जल कर एक प्रकार ही हो जाते है उसी प्रकार भस्मी साधक अपने विकारों को भस्म कर एकीकार हो गया है।
जो लोग इस प्रकार से धर्म ग्रंथो को समझते है उनके लिए सिद्धि का मार्ग प्रशस्त हो जाता है और जो नही समझते वे अपने भय के कारण,अपने मोह के कारण पाखंडियो-ढोंगियों के जाल में फस जाते है।क्योकि एक सामान्य व्यक्ति स्मशान में जाना नही चाहता और इसका ही फायदा कुछ पाखंडी साधक स्मशान और स्मशान पूजा सामग्री के नाम से एक बड़ी रकम वसूल कर लेते है।ये बात अलग है कि आप कही भी किसी से मिलने जाए तो कुछ सामग्री ले जाना चाहिए ,खाली हाथ नही जाना चाहिए ।ऐसे में वो सामग्री कितने की होती है महज 100 या 150 रु की ,या अच्छी से अच्छी मिठाई भी ली तो 500 रु की बस।ये सामग्री भी मन को समझाने के लिए हीं होती है क्योंकि हमने बचपन से सुन रखा होता है कि कोई वहां होता है यदि हा, तो कोई फर्क नही पड़ता साधक को इस अवस्था को प्राप्त करने हेतु 500 रु खर्च भी हो जाये।
लेकिन मैं कहु की मैं आपके वैराग्य की प्राप्ति के लिए साधना करूँगा तो ये सरासर मूर्खता ही होगी क्योंकि जिसको भूख लगती है उसको ही भोजन खाने से तृप्ति मिलती है आपके बदले यदि मैने भोजन ग्रहण कर भी लिया तो आपको तृप्ति नही मिलेगी।
हा इसमे ये बात अलग से विचारणीय है कि यदि आप किसी की अंतिम यात्रा में गए ही नही है तो आप इस अवस्था को समझ ही नही पाएंगे इसीकारण कुछ साधक गण अनुभूति की प्राप्ति के लिए स्मशान में जाकर उस अवस्था को आत्म साध करने का प्रयास करते है जिससे कि आवश्यकता पड़ने पे वे किसी भी स्थान पे आंखे बंद कर मानसिक रूप से उस अवस्था को प्राप्त कर सकते है।इस अवस्था की प्राप्ति के लिए अच्छा होगा कि आप अपने परिचय में मृत्यु होने से उनकी अंतिम यात्रा में अवश्य जाए एवम उस वैराग्य को महसूस करे,उस परिजन के मानसिक व आत्मिक दुःख को समझते हुए भीतर के वैराग्य को जन्म लेने दे।उस मृत आत्मा की सद्गति के लिए प्रार्थना करे क्योकि वो आज कही गया है यह सत्य है और वो फिर कभी नही आएगा ये भी सत्य है और इन दोनों सत्य के ऊपर ये जानना है कि हमे भी एक दिन वही जाना है।बस ये समझते ही साधक वैराग का जनक बन जाता है।
लेख में दिखाए गए भगवान शिव के छाया चित्र का संकलन गुगुल द्वारा किया गया है।
व्यक्तिगत अनुभूति एवं।विचार©₂₀₁₇
।। राहुलनाथ।।™
भिलाई,छत्तीसगढ़,भारत
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चेतावनी:-इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए,एवं तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है जिसे मानने के लिए आप बाध्य नहीं है।अतः हमारी मौलिक संपत्ति है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये इस रूप में उपलब्ध नहीं है|लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे । तंत्र-मंत्रादि की जटिल एवं पूर्ण विश्वास से साधना-सिद्धि गुरु मार्गदर्शन में होती है अतः बिना गुरु के निर्देशन के साधनाए ना करे।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़(©कॉपी राइट एक्ट 1957)
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