हनुमान चालीसा पढ़ने की गुप्त एव्म रहस्यमय विधि!!
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यदि हनुमान चालीसा पाठ करने से पूर्ण लाभ ना होने से एक बार ये विधि अवश्य पढ़े ये विधि आपकी इच्छाओ को पूरा कर सकती है!
मुझसे बहुत मित्रो और भक्तों ने कहा की वे लगातार हनुमान चालिसा पड़ते आ रहे है किन्तु उन्हें पूर्ण लाभ नजर नही आता कारण क्या है??
कोई भी चालिसा हो उसके पड़ने का एक मुख्य नियम है जो गुप्त है।किन्तु समाज के कल्याणार्थ ,भक्तों के कल्याणार्थ मैं इस रहस्य को प्रगट करता हूँ!!
रहस्य मात्र इतना है की जब भी आप किसी चालीसा को पढ़ते हैं तो उस चालीसा में कही न कही भक्त का नाम का उल्लेख होता है !जैसे श्री हनुमान चालिसा के अंतिम जो दोहा है !
।।दोहा।।
"तुलसीदास"सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
इस श्लोको में "तुलसीदास "जो नाम लिखा वो आपका नहीं है इस स्थान पे आप अपने नाम का उच्चारण करे!और चालिसा के पन्नों में भी व्हाइटनर लगा के ऊपर अपना नाम लिखे एवं तुलसीदासजी को प्रणाम कर दो अगरबत्ती लगा कर इस चालीसा को प्रदान करने हेतु,धन्यवाद कर पाठ प्रारम्भ करे।
जैसे यदि मैं पाठ करता हूँ तो-
।।दोहा।।
"राहुलनाथ"सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
बस इतना सा परिवर्तन आपको हनुमान चालीसा से चमत्कारी लाभ प्रदान करेगा एवम् आपको हनुमानजी की कृपा पूर्ण रूप से प्राप्त होगी!!
विशेष:-किसी भी चालिसा का पाठ करने से पहले अपने गुरुदेव से,ज्योतिष्य से,या किसी इस विषय के मर्मज्ञ से जानकारी प्राप्त कर लेना चाहिए की किसी चालीसा के पाठ करने से आपको लाभ होगा!अपनी इच्छा से किसी भी देवता की चालिसा पढ़ने से लाभ के स्थान पर हानि हो सकती है!इसी प्रकार से सभी मंत्रो के रहस्य होते है चाँबी होती है!!इसी प्रकार से भगवान शिव ने सारे मंत्रो तंत्रो का किलन किया हुआ है!जो गुरु शिष्य परम्परा में प्रदान करना मान्य हैं!
आदेश यह पोस्ट मेरे निजी अनुभव के अनुसार है !! ये मेरी अपनी अनुभुतियों का स्तर है !! यदी आपको ये पोस्ट सही लगे तो कमेंट में लिखे ! इसके आगे कि जानकारी क्रमश : मै आपको देने का प्रयास करुगा !! मेरा संकल्प समाज से धर्म के नाम पे आडम्बर फैलाने वालो का सफ़ाया कर धर्म एवं पूजा-साधना विधिकी सही जानकारी का प्रचार करना रहा है !
क्रमश:
तो आओ भक्तो 43 दिन हनुमान चालीसा का पाठ करे.......
।।॥दोहा॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुधि बिद्या देहु मोहिं हरहु कलेस बिकार ॥
॥चौपाई॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर ।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा ।
अञ्जनि-पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महाबीर बिक्रम बजरङ्गी ।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी ॥३॥
कञ्चन बरन बिराज सुबेसा ।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा ॥४॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै ।
काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
सङ्कर सुवन केसरीनन्दन ।
तेज प्रताप महा जग बन्दन ॥६॥
बिद्यावान गुनी अति चातुर ।
राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया ।
राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा ।
बिकट रूप धरि लङ्क जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे ।
रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सञ्जीवन लखन जियाये ।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीह्नी बहुत बड़ाई ।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा ।
नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते ।
कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना ।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं ।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते ।
सुगम अनुग्रह तुह्मरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे ।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुह्मारी सरना ।
तुम रच्छक काहू को डर ना ॥२२॥
आपन तेज सह्मारो आपै ।
तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥२३॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै ।
महाबीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरन्तर हनुमत बीरा ॥२५॥
सङ्कट तें हनुमान छुड़ावै ।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा ।
तिन के काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै ।
सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुह्मारा ।
है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे ।
असुर निकन्दन राम दुलारे ॥३०॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता ।
अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुह्मरे पासा ।
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुह्मरे भजन राम को पावै ।
जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई ।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त न धरई ।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥३५॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा ।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं ।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो सत बार पाठ कर कोई ।
छूटहि बन्दि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा ।
होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा ।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा ॥४०॥
॥दोहा॥
पवनतनय सङ्कट हरन मङ्गल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप ॥
*****जयश्री महाकाल****
******स्वामी राहुलनाथ********
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चेतावनी-इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।
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(©कॉपी राइट एक्ट 1957)
Bohot bohot shukriya,aapne ye bataya.... God bless you...
जवाब देंहटाएंAapka tark sahi laga, par phir ek prashan uthata hai. Jaise ki hum jante hai ye chaupai hai aur har chaupai me 4 charan aur har charan me 16 matraye hoti hai. jo ki yaha tulsidas ke sath thik baithti hai. Par agar aap apna naam lagayoge to ye matraye kam ya jyada ho sakti hai. jiski wajah se ye charan karab ho jayega aur ye sahi chaupai nahi rahegi. finally iska asar bhi khatam ho jayega jiska asar puri chalisha me padega. kya kahte hai aap?
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा
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