बुधवार, 19 अप्रैल 2017

आदिशक्ति

आदिशक्ति
देवी का स्वरूप का जो वर्णन देवी भागवत या अन्य पौराणिक अथवा तंत्र शास्त्र के ग्रंथों में पाया जाता है वह बड़ा अद्भुत है उसमें कई तो उसका स्वरूप ऐसा वीभत्स जाना पड़ता है कि उसे पढ़कर एक सामान्य व्यक्ति भयभीत हो सकता है एक जगह काली देवी का ध्यान करने के लिए उसका वर्णन इस प्रकार किया है

मेघांगी  शशिशेखरां त्रिनयनां रक्तांबरां विभ्रतीम् ।
पाणिभ्यामभयं वरं च विकसितरक्तारविंद।।
नृत्यन्तं पुरतो निपीय मधुरं माध्वीकमद्यं महाकालं
वीक्ष्य प्रकाशितानन परामाद्यां भजे कालिकाम।।

" जिसका वर्ण मेघ के समान श्यामल है ललाट में चंद्रलेखा प्रकाशमान है जिसके तीन नेत्र हैं शरीर पर रक्त-धारण किए हैं इनके दोनों हाथों में वर और अभय है जो खिले हुए लाल कमल के ऊपर खड़ी है जिनके सम्मुख पुष्पो का मधुर रस(मद्य) पीकर महाकाल नृत्य कर रहा है और उसकी ऐसी अवस्था देखकर देवी हंस रही है उसी आदिशक्ति कालिका का मैं भजन करता हूं उनके इस स्वरूप की विशेषता की व्याख्या करते हुए काली ध्यान में कहा गया है कालिका देवी का मुख भयंकर और दर्शनीय है चार भुजाएं है सिर के बाल कटे और बिखरे हुए हैं मुंड माला धारण करने से देवी अत्यंत शोभा पा रही है उनके दोनों बाये हाथों में तुरंत के तुरंत काटे दो मस्तक हैं वे ही उन के खड़ग रूप है दाई तरफ के दो हाथों में अभय और वरदान है यह देवी प्रचंड मेघ के समान श्याम रंग की ओर दिगंबर है कंठ में पहनी हुई मुंडमाला से गिरते हुए रक्त से उसका समस्त शरीर सना हुआ है उनके मुख और दाढ़ अत्यंत भयंकर जान पड़ते हैं और बड़े स्तन हैं। दोनों में नर कपालो के आभूषण धारण करने से उनकी शोभा बढ़ गई है उसका मुख हास्य युक्त है और मुख से गिरती हुई रक्त धारा के कारण मुख-कमल कंपायमान होता जान पड़ता है उनकी ध्वनि  गोर मेघ गर्जना के समान महाभयंकर है वह शमशान में निवास करने वाली है उनके तीन नेत्र सूर्य के समान तेजस्वी,दांत बड़े बड़े और लंबे हैं वे विश्व स्वरूपी महादेव के ह्रदय पर  पैर रखकर खड़ी है महाकाल के साथ विलक्षण क्रीड़ा करने में वह निमग्न है काल कामदेव के समान प्रफुल्लित और प्रसन्न मुख है यह मनोरथ को सिद्ध करने वाली है इस प्रकार देवी कालिका का ध्यान करना चाहिए ।।
केवल शब्दार्थ पर ध्यान देने से तो यह वर्णन बड़ा विभत्स जान पड़ता है पर इसके गुण अर्थ पर विचार किया जाता है तो इसमें अनेक ज्ञान के तथ्य समाविष्ट प्रतीत होते हैं एक देवी भक्तों ने इस प्रकाश डालते हुए लिखा हैजिस तरह श्वेत,पीत्त आदि सब रंग काले रंग में विलीन हो जाते हैं उसी प्रकार समस्त भूतों (पञ्च तत्वों)का विलीनीकरण प्रकृति में हो जाता है इसलिए योगी जनों की उपास्य निर्गुण निराकरण परा शक्ति कृष्ण वर्ण की वर्णन की गई है अविनाशी काल स्वरूप अव्यय महाकाली के ललाट में जो चंद्रकला का चिन्ह बतलाया गया है उसका आशय यही है कि वह चंद्र सूर्य और अग्निरूपी नेत्रों से समस्त जगत का निरीक्षण कर रही है इसीलिए उसके तीन नेत्र कहे गए हैं वह समस्त प्राणियों को ग्रास करती है और अपने काल रुपी दांतो से चबा डालती है इसी से उसके वस्त्र रक्तवर्ण के कहे गए हैं विपत्ति काल में वह सज्जनों की रक्षा भी करती है इस लिए उनके हाथ में वर और अभय मुद्रा बतलाएं गए हैं वह देवी रजोगुण जनित विश्व में व्याप्त है इसलिए लाल कमल पर विराजमान बतलाया है वह काल रूप और समस्त जीवात्माओं की साक्षी-स्वरूप  देवी मोह रूपी मदिरा पीकर नृत्य करने वाले काल को देख कर हंस रही है।।
देवी भागवतानुसार
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