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जैसे स्वर्ण जलकर,तपकर ही कुंदन बनता है उसी प्रकार बार बार जन्म की पीड़ा सहके,बार-बार मरके,अंत में एक बार जीव, गुरु शरण में हमेशा के लिए मर जाता है। फिर ना पैदा होने के लिए।।। जयश्री महाँकाल व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार© ||राहुलनाथ ||
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