स्वप्नानुभूतियो में आत्मा का गमन
24 घंटे में आत्मा को एक बार शरीर का त्याग कर के ,शरीर से बाहर आना ही होता है ये आत्मा का परमात्मा से मिलने का समय होता है।आत्मा का शरीर से बाहर निकलने के बाद वापस आने का समय कोई निश्चित नहीं होता ।शरिर में आत्मा क्षण भर में वापस आ सकता है।जब तक आत्मा का शरीर अचेत अवस्था में रहता है तब तक आत्मा निश्चिन्त रूप से आध्यात्मिक जगत में विचरण कर सकता है ।आत्मा के विचरण में किसी कारण वश ,आत्मा का शरीर यदि जागृत या चेतन हो जाए तो आत्मा को अपनी यात्रा को छोड़ कर वापीस शरिर में आना ही पढता है।
यहाँ समझने वाली बात है कि शरीर का नियंत्रण पंचेन्द्रियों के द्वारा होता है पंचेन्द्रिया जो भी महसूस करती है वो दिमाग को बता देती है,और दिमाग शरीर को सन्देश भेज कर उसे सक्रिय कर देता है।आत्मा के विचरण काल में यदि शरीर के किसी भी अंग को हानि बहुचने की अवस्था में इंद्रिया जैसे:-तीव्र ध्वनि,तीव्र सुगंध,वार्तालाप या मच्छर के काटने मात्र से ,इंद्रिया शरीर को सक्रीय कर देती है और आत्मा को वापस आना ही पढता है।
इंद्रियों के मरण की अवस्था ही समाधि की अवस्था होती है।
जब भी हम सोते है तो उस समय क्या होता है हमारे साथ?
पहले हम बिस्तर पर लेटते है जिससे धीरे धीरे शरीर निष्क्रिय होना सुरु होता उसके बाद क्रमशः अन्य इंद्रिया,मन ,बुद्धि ।
इस अवस्था में हमारी आत्मा कुछ क्षणों के लिए शरीर को त्यागती है किंतु एक सफ़ेद चमकीली डोर से आत्मा शरीर से जुडी होती है और जैसे ही शरिर को खतरा महसूस होता है तो वो आत्मा को सीधे सन्देश भेजती है जिससे अचानक सफ़ेद और चमकीली डोर सुकुड़ जाती है और आत्मा तत्काल शरिर में वापस आ जाती है।
आत्मा के इस विचरण काल में हम जो भी देखते है वो स्वप्न के रूप में हमें दिखाई देते है,हमको लगता है कि हमने जो देखा वो मात्र एक सपना था,तो यह सही नहीं होता।उस काल में आत्मा हकीकत में उस स्थान में रहती है जो आपको स्वप्न में दिखी हो।उदाहरण के लिए यदि आने स्वपन देखा की आप उड़ रहे है इससे आशय यह है कि रात्रि में आपकी आत्मा विचरण कर रही थी उड़ रही थी और हलकी हो गई थी।
ये सारी अनुभूतियां जो स्वप्न में होती है वो आत्मीय अनुभूतियां है इनका शरीर से कोई लेना देना नहीं होता,शरिर और इंद्रिया रुकावट मात्र है।
इस स्वप्निय अनुभूतियों में आत्मा अपने शरीर से निकलकर अपने माता-पिता,गुरु,मित्र,साधू-संतो के दर्शन एवं अन्य रिश्तेदारों से मिलन करती है।इस समय आत्मा अपनी इच्छा शक्ति से देवलोक,पितरलोक,पृथ्वीलोक या अन्य रहस्यमयी दुनिया से संपर्क साध लेती है।
दिव्य साधक गण बिना सोये ध्यान की एकाग्रता से इस आयाम में अपने आपको पहुचाने में सक्षम होते है इस अवस्था को पाने के लिए साधको को वर्षो साधना करना होता है प्रशिक्षित होना होता है।इसके विपरीत सामान्य जीवो के लिए जो कड़ी साधना नहीं करते उनके लिए प्रकृति ने अपने आप इस गमन की व्यवस्था बनाई हुई है।
क्रमशः
*****जयश्री महाकाल****
******स्वामी राहुलनाथ********
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