मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

साक्षी रहो स्वतंत्र रहो ,मुस्कुराते रहो

साक्षी रहो स्वतंत्र रहो ,मुस्कुराते रहो
खुल के जियो और जैसे हो वैसे ही रहो,तुम जैसे हो ईश्वर ने तुम्हे वैसे ही बनाया है किसी का प्रतिरूप ना बनो,नियम संस्कार इंसानी भेजे की पैदाइश है।जिस दिन आपके भीतर की ग्रंथियां बिखर जायेगी उस दिन ध्यान उपलब्ध हो जाएगा,सत्य से परिचय हो जाएगा।तुम उस परमेश्वर से पुनः मिल जाओगे।एक बूंद पुनः सागर से मिल जायेगी।किसी से ना बंधो ना धर्म से ना कर्म से ,जैसे हो वैसे रहो मात्र साक्षी रहो बहती सरिता और लहरों के सामान।ईश्वर ने तुम्हे कुछ सीखा के नहीं भेजा यदि भेजा है तो उसे संसार में आकर तुमने ही भुला दिया है,याद करो माता के गर्भ में तुम क्या थे क्या धर्म था तुम्हारा क्या संस्कार था?
वो मालिक भावनाओ को समझता है संवेदनाओं को समझता है जैसे गर्भस्त शिशु माता को और माता अपने शिशु की धड़कन और हलचल को समझती है।स्वतंत्र हो जाओ ,स्वतन्त्र हो जाओ

*****जयश्री महाकाल****
******स्वामी राहुलनाथ********
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
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