बुधवार, 9 नवंबर 2016

तारा साबर सिद्धि ...तार तार ताँबे की तार

तारा साबर सिद्धि ...तार तार ताँबे की तार
श्री गणेशाय नमः अक्षोभ्य भैरवाय नमः
।।श्री गुरु ध्यान ।।
ओम गुरुजी।ओमकार आदिनाथ ज्योति स्वरूप बोलियेे। उदयनाथ पार्वती धरती स्वरूप बोलियेे। सत्यनाथ ब्रहमाजी जल स्वरूप बोलियेे। सन्तोषनाथ विष्णुजी खडगखाण्डा तेज स्वरूप बोलियेे। अचल अचम्भेनाथ शेष वायु स्वरूप बोलियेे। गजबलि गजकंथडानाथ गणेषजी गज हसित स्वरूप बोलियेे। ज्ञानपारखी सिद्ध चौरंगीनाथ चन्द्रमा अठारह हजार वनस्पति स्वरूप बोलियेे। मायास्वरूपी रूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ   माया मत्स्यस्वरूपी बोलियेे। घटे पिण्डे नवनिरन्तरे रक्षा करन्ते श्री शम्भुजति गुरु गोरक्षनाथ बाल स्वरूप बोलियेे। इतना नवनाथ स्वरूप मंत्र सम्पूर्ण भया, अनन्त कोटि सिद्धों मेंं नाथजी ने कथ पढ़ सुनाया। नाथजी गुरुजी को आदेष! आदेष!!

।।आसन ।।
‘सुखपूर्वक स्थिरता से बहुत काल तक बैठने का नाम आसन है।‘

आसन अनेको प्रकार के होते है। अनमे से आत्मसंयम चा‍हने वाले पुरूष के लिए सिद्धासन, पद्मासन, और स्वास्तिकासन – ये तीन उपयोगी माने गये है। इनमे से कोई सा भी आसन हो, परंतु मेरूदण्ड, मस्तक और ग्रीवा को सीधा अवश्ये रखना चाहिये और दृष्टि नासिकाग्र पर अथवा भृकुटी में रखनी चाहिये। आलस्य न सतावे तो आंखे मुंद कर भी बैठ सकते ‍है। जिस आसन से जो पुरूष सुखपूर्वक दीर्घकाल तक बैठ सके, वही उसके लिए उत्तम आसन है।

शरीर की स्वाभाविक चेष्टा के शिथिल करने पर अर्थात् इनसे उपराम होने पर अथवा अनन्त परमात्मा में मन के तन्मय होने पर आसन की सिद्धि होती है। कम से कम एक पहर यानी तीन घंटे तक एक आसन से सुखपूर्वक स्थिर और अचल भाव से बैठने को आसनासिद्धि कहते है।

।।आसन मंत्र।।
सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश। ऊँ गुरूजी।
ऊँ गुरूजी मन मारू मैदा करू, करू चकनाचूर। पांच महेश्वर आज्ञा करे तो बेठू आसन पूर।
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।

।।धूप लगाने का मन्त्र।।

सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश। ऊँ गुरूजी। धूप कीजे, धूपीया कीजे वासना कीजे।
जहां धूप तहां वास जहां वास तहां देव जहां देव तहां गुरूदेव जहां गुरूदेव तहां पूजा।
अलख निरंजन ओर नही दूजा निरंजन धूप भया प्रकाशा। प्रात: धूप-संध्या धूप त्रिकाल धूप भया संजोग।
गौ घृत गुग्गल वास, तृप्त हो श्री शम्भुजती गुरू गोरक्षनाथ।
इतना धूप मन्त्र सम्पूर्ण भया नाथजी गुरू जी को आदेश।

।।ज्योति जगाने का मन्त्र।।

सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश।
ऊँ गुरूजी। जोत जोत महाजोत, सकल जोत जगाय, तूमको पूजे सकल संसार ज्योत माता ईश्वरी।
तू मेरी धर्म की माता मैं तेरा धर्म का पूत ऊँ ज्योति पुरूषाय विद्येह महाज्योति पुरूषाय धीमहि तन्नो ज्योति निरंजन प्रचोदयात्॥
अत: धूप प्रज्वलित करें।

।।रक्षा मन्त्र।।
ॐ सीस राखे साइंया श्रवण सिरजन हार ।
नैन राखे नरहरी नासा अपरग पार ।
मुख रक्षा माधवे कंठ रखा करतार।
हृदये हरी रक्षा करे नाभी त्रिभुवन सार ।
जंघा रक्षा जगदीश करे पिंडी पालनहार।
सीर रक्षा गोविन्द की पगतली परम उदार
आगे रखे राम जी पीछे रावण हार।
वाम दाहिणे राखिले कर गृही करतार ।
जम डंक लागे नाही विघन काल ते दूर।
राम रक्षा जन की करे बजे अनहद तुर ।
कलेजो रखे केसवा जिभ्या कू जगदीश ।
आतम कं अलख रखे जीव को जोतिश ।
राख रख सरनागति जीव को एके बार ।।
संतो की रक्षा करे शिव गुरु गोरख़ सत गुरु सृजनहार ।।
।।श्री तारा साधना ।।

।।ध्यान।।
माँ तारा
शव के हृदय पर
बायें पैर को आगे
दायें पैर को पीछे
वीरासन मुद्रा में
करती भयानक अट्टहास
भव सागर पार करानेवाली
माँ तारा
जय जय माँ तारा
स्वयं भयंकरी, चतुर्भुजी, त्रिनयना
हाथों में  कटार, कपाल, कमल और तलवार
उच्च महाशक्ति, महाविद्या
हुंकार बीज उत्पकन्न कुबेर स्वरूपा
विशाल स्वरूपा ,नील शरीरा
सर्प जटा, बाघम्बरा
भाल पर चंद्रमा
दुश्मनों को दंडित करने वाली
साधक को सब कुछ देने वाली
करते हेँ हम उन्हें प्रणाम
निशि दिन लें तारा का नाम

(तारा मंत्र )

(01)
ॐ आदि योग अनादि माया जहां पर ब्रह्माण्ड उत्पन्न भया | ब्रह्माण्ड समाया आकाश मण्डल तारा त्रिकुटा तोतला माता तीनों बसै ब्रह्म कपालि, जहां पर ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पत्ति, सूरज मुख तपे चंद्र मुख अमिरस पीवे, अग्नि मुख जले, आद कुंवारी हाथ खङग गल मुण्ड माल, मुर्दा मार ऊपर खड़ी देवी तारा | नीली काया पीली जटा, काली दन्त जिह्वा दबाया | घोर तारा अघोर तारा, दूध पूत का भण्डार भरा | पंच मुख करे हा हा ऽ:ऽ:कारा, डांकनी शाकिनी भूत पलिता सौ सौ कोस दूर भगाया | चंडी तारा फिरे ब्रह्मांडी तुम तो हों तीन लोक की जननी |

ॐ ह्रीं श्रीं फट्, ओं ऐं ह्रीं श्रीं हूं फट् |

(02)
ॐ तारा तारा महातारा, ब्रह्म-विष्णु-महेश उधारा, चौदह भुवन आपद हारा, जहाँ भेजों तहां जाहि, बुद्धि-रिद्धि ल्याव, तीनो लोक उखाल डार-डार, न उखाले तो अक्षोभ्य की आन, सब सौ कोस चहूँ ओर, मेरा शत्रु तेरा बलि, खः फट फुरो मंत्र, इश्वरो वाचा.

(03)
उगत तारे भय भुन्सारे ! जहा अघोरी आन विराजे ! लकड़ी जले मुर्दा चिल्लाय ! तह अघोरी वीर किरकिराय मेरी भक्ति गुरु कि शक्ति देख देख रे अघोरी तेरे मंत्र कि दुहाई !

(04)देवी तारा मंत्र-ॐ ह्रीं स्त्रीं हुं फट

(05)देवी एक्जता मंत्र-ह्रीं त्री हुं फट

(06)नील सरस्वती मंत्र-ह्रीं त्री हुं

सभी मन्त्रों के जाप से पहले अक्षोभ्य ऋषि का नाम लेना चाहिए तथा उनका ध्यान करना चाहिए,अक्षोभ्य भगवान शिव का ही नाम है

तारा साधना में सबसे अधिक महत्पूरण होता है देवी तारा का महायंत्र जिसके बिना साधना कभी पूरण नहीं होती इसलिए देवी तारा के यन्त्र को स्थापित करे व पंचोपचार पूजन करें-धूप,दीप,फल,पुष्प,जल आदि चढ़ाएं

मंत्र:-ॐ अक्षोभ्य ऋषये नम: मम यंत्रोद्दारय-द्दारय

कहते हुये पानी के 27बार छीटे दें व पुष्प-अक्षत धूप अर्पित करें एवं देवी का आह्वाहन करना चाहिए।

विशेष:-मंत्र सिद्ध या कंठस्त होने के बाद स्मशान में देवी तारा की साधना का उपाय किया जाता है जिसमे साधक को देवी तारा की मुद्रा में शव पे खड़े हो कर मंत्र जाप करने का नियम है शव नहीं होने की अवस्था में शव के बराबर मोटी एवं चौड़ी लकड़ी जो की करीब 80 किलो के बराबर हो उसपे साधना की जाती है।इसकी विशेष पूर्ण विधि गुप्त एवं गुरु गम्य होने के कारण यहाँ नहीं दी जा रही है।

*****जयश्री महाकाल****
******राहुलनाथ********
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
फेसबुक पेज:-https://www.facebook.com/rahulnathosgybhilai/
***********************************************
                   ।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
***********************************************
चेतावनी-हमारे  लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें