बुधवार, 23 नवंबर 2016

त्रिपुर सुंदरी साधना

त्रिपुर सुंदरी साधना****
मुख्य नाम : महा त्रिपुरसुंदरी।
अन्य नाम : श्री विद्या, त्रिपुरा, श्री सुंदरी, राजराजेश्वरी, ललित, षोडशी, कामेश्वरी, मीनाक्षी।भैरव : कामेश्वर।
तिथि : मार्गशीर्ष पूर्णिमा।भगवान विष्णु के २४ अवतारों से सम्बद्ध :          भगवान परशुराम।
कुल : श्री कुल ( इन्हीं के नाम से संबंधित )।
दिशा : नैऋत्य कोण।
स्वभाव : सौम्य।
सम्बंधित तीर्थ स्थान या मंदिर : कामाख्या मंदिर, ५१ शक्ति पीठों में सर्वश्रेष्ठ, योनि पीठ गुवहाटी, आसाम।
कार्य : सम्पूर्ण या सभी प्रकार के कामनाओं को पूर्ण करने वाली।शारीरिक वर्ण : उगते हुए सूर्य के समान।संकलित

।।साधना विधि।।
श्री गणेशाय नमः कामेश्वर भैरवाय नमः
।।श्री गुरु ध्यान ।।
ओम गुरुजी।ओमकार आदिनाथ ज्योति स्वरूप बोलियेे। उदयनाथ पार्वती धरती स्वरूप बोलियेे। सत्यनाथ ब्रहमाजी जल स्वरूप बोलियेे। सन्तोषनाथ विष्णुजी खडगखाण्डा तेज स्वरूप बोलियेे। अचल अचम्भेनाथ शेष वायु स्वरूप बोलियेे। गजबलि गजकंथडानाथ गणेषजी गज हसित स्वरूप बोलियेे। ज्ञानपारखी सिद्ध चौरंगीनाथ चन्द्रमा अठारह हजार वनस्पति स्वरूप बोलियेे। मायास्वरूपी रूपी दादा मत्स्येन्द्रनाथ   माया मत्स्यस्वरूपी बोलियेे। घटे पिण्डे नवनिरन्तरे रक्षा करन्ते श्री शम्भुजति गुरु गोरक्षनाथ बाल स्वरूप बोलियेे। इतना नवनाथ स्वरूप मंत्र सम्पूर्ण भया, अनन्त कोटि सिद्धों मेंं नाथजी ने कथ पढ़ सुनाया। नाथजी गुरुजी को आदेष! आदेष!!

।।आसन ।।
‘सुखपूर्वक स्थिरता से बहुत काल तक बैठने का नाम आसन है।‘

आसन अनेको प्रकार के होते है। अनमे से आत्मसंयम चा‍हने वाले पुरूष के लिए सिद्धासन, पद्मासन, और स्वास्तिकासन – ये तीन उपयोगी माने गये है। इनमे से कोई सा भी आसन हो, परंतु मेरूदण्ड, मस्तक और ग्रीवा को सीधा अवश्ये रखना चाहिये और दृष्टि नासिकाग्र पर अथवा भृकुटी में रखनी चाहिये। आलस्य न सतावे तो आंखे मुंद कर भी बैठ सकते ‍है। जिस आसन से जो पुरूष सुखपूर्वक दीर्घकाल तक बैठ सके, वही उसके लिए उत्तम आसन है।

शरीर की स्वाभाविक चेष्टा के शिथिल करने पर अर्थात् इनसे उपराम होने पर अथवा अनन्त परमात्मा में मन के तन्मय होने पर आसन की सिद्धि होती है। कम से कम एक पहर यानी तीन घंटे तक एक आसन से सुखपूर्वक स्थिर और अचल भाव से बैठने को आसनासिद्धि कहते है।

।।आसन मंत्र।।
सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश। ऊँ गुरूजी।
ऊँ गुरूजी मन मारू मैदा करू, करू चकनाचूर। पांच महेश्वर आज्ञा करे तो बेठू आसन पूर।
श्री नाथजी गुरूजी को आदेश।

।।धूप लगाने का मन्त्र।।

सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश। ऊँ गुरूजी। धूप कीजे, धूपीया कीजे वासना कीजे।
जहां धूप तहां वास जहां वास तहां देव जहां देव तहां गुरूदेव जहां गुरूदेव तहां पूजा।
अलख निरंजन ओर नही दूजा निरंजन धूप भया प्रकाशा। प्रात: धूप-संध्या धूप त्रिकाल धूप भया संजोग।
गौ घृत गुग्गल वास, तृप्त हो श्री शम्भुजती गुरू गोरक्षनाथ।
इतना धूप मन्त्र सम्पूर्ण भया नाथजी गुरू जी को आदेश।

।।ज्योति जगाने का मन्त्र।।

सत नमो आदेश। गुरूजी को आदेश।
ऊँ गुरूजी। जोत जोत महाजोत, सकल जोत जगाय, तूमको पूजे सकल संसार ज्योत माता ईश्वरी।
तू मेरी धर्म की माता मैं तेरा धर्म का पूत ऊँ ज्योति पुरूषाय विद्येह महाज्योति पुरूषाय धीमहि तन्नो ज्योति निरंजन प्रचोदयात्॥
अत: धूप प्रज्वलित करें।

।।रक्षा मन्त्र।।
ॐ सीस राखे साइंया श्रवण सिरजन हार ।
नैन राखे नरहरी नासा अपरग पार ।
मुख रक्षा माधवे कंठ रखा करतार।
हृदये हरी रक्षा करे नाभी त्रिभुवन सार ।
जंघा रक्षा जगदीश करे पिंडी पालनहार।
सीर रक्षा गोविन्द की पगतली परम उदार
आगे रखे राम जी पीछे रावण हार।
वाम दाहिणे राखिले कर गृही करतार ।
जम डंक लागे नाही विघन काल ते दूर।
राम रक्षा जन की करे बजे अनहद तुर ।
कलेजो रखे केसवा जिभ्या कू जगदीश ।
आतम कं अलख रखे जीव को जोतिश ।
राख रख सरनागति जीव को एके बार ।।
संतो की रक्षा करे शिव गुरु गोरख़ सत गुरु सृजनहार ।।

।।त्रिपुर सुंदरी ध्यान मंत्र।।

बालार्कायुंत तेजसं त्रिनयना रक्ताम्ब रोल्लासिनों।

नानालंक ति राजमानवपुशं बोलडुराट शेखराम्।।

हस्तैरिक्षुधनु: सृणिं सुमशरं पाशं मुदा विभृती।

श्रीचक्र स्थित सुंदरीं त्रिजगता माधारभूता स्मरेत्।।

।।त्रिपुर सुंदरीआवाहन मंत्र।।

ऊं त्रिपुर सुंदरी पार्वती देवी मम गृहे आगच्छ आवहयामि स्थापयामि।

इसके बाद देवी को सुपारी में प्रतिष्ठित कर दें। इसे तिलक करें और धूप-दीप आदि पूजन सामग्रियों के साथ पंचोपचार विधि से पूजन पूर्ण करें अब कमल गट्टे की माला लेकर करीब 108 बार नीचे लिखे मंत्र का जप करें

(षोडशी – त्रिपुर सुन्दरी)

ऊं ह्रीं क ऐ ई ल ह्रीं ह स क ल ह्रीं स क ह ल ह्रीं।

।।विसर्जन मंत्रं।।
पूजकन के अंत में अपने हाथ में चावल,फूल लेकर देवी भगवतीत्रिपुर सुंदरी  का इस मंत्र को पढ़ कर  विसर्जन करना चाहिए-

गच्छ गच्छ सुरश्रेष्ठे स्वस्थानं परमेश्वरि त्रिपुर सुंदरी।
पूजाराधनकाले च पुनरागमनाय च।।

(षोडशी – त्रिपुर सुन्दरी साबर मंत्रं)

ॐ निरन्जन निराकार अवधू मूल द्वार में बन्ध लगाई पवन पलटे गगन समाई, ज्योति मध्ये ज्योत ले स्थिर हो भई ॐ मध्या: उत्पन्न भई उग्र त्रिपुरा सुन्दरी शक्ति आवो शिवघर बैठो, मन उनमन, बुध सिद्ध चित्त में भया नाद | तीनों एक त्रिपुर सुन्दरी भया प्रकाश | हाथ चाप शर धर एक हाथ अंकुश | त्रिनेत्रा अभय मुद्रा योग भोग की मोक्षदायिनी | इडा पिंगला सुषुम्ना देवी नागन जोगन त्रिपुर सुन्दरी | उग्र बाला, रुद्र बाला तीनों ब्रह्मपुरी में भया उजियाला |
योगी के घर जोगन बाला, ब्रह्मा विष्णु शिव की माता |

श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौं ह्रीं श्रीं कं एईल
ह्रीं हंस कहल ह्रीं सकल ह्रीं सो:
ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं

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