सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

।।खोपड़ी और तंत्र।।एक भ्रम...?

।।खोपड़ी और तंत्र।।एक भ्रम...?
एक बात आप समझने का प्रयास करे
खोपड़ी की साधना मतलब सहस्त्रार की साधना होती है इसमें किसी इंसान की खोपड़ी की आवश्यकता नहीं होती।खोपड़ी में सहस्त्रार,सहस्त्रार में गुरु स्थान और गुरु में परमात्मा का वास होता है ,इस खोपड़ी को सिद्ध करना मतलब अपनी खोपड़ी मतलब अपना दिमाग अपने अहंकार को गुरु चरण में समर्पित करना मात्र है।
इंसान की खोपड़ी का सामान्यतः प्रयोग साधक डराने मात्र के लिए ही है।क्योकि डर से मूलाधार सक्रीय होता है और सक्रीय मूलाधार,भयभीत मूलाधार सामने वाले व्यक्ति की बातो को जल्दी स्वीकार कर ,उसके नियंत्रण में हो जाता है।हड्डी नुमा खोपड़ी में इतनी शक्ति होती तो वैज्ञानिक शोध संस्थानों में लाखो साल पुरानी ख़ोपड़िया रखी हुई है वे उसपे शोध क्यों करते,सीधा खोपड़ी के मालिक को बुला कर पूछ नहीं लेते,की भाई तू कब मरा?तेरा नाम क्या है?
*****जयश्री महाकाल****
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
******राहुलनाथ********
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                   ।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
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