शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

कुण्डलिनी शक्ति एवं बीज मंत्र की चाल


।।कुण्डलिनी शक्ति एवं बीज मंत्र की चाल ।।
अवश्य पढ़े आशा करता हु की ये लेख "कुण्डलिनी साधको" का मार्ग प्रशस्त करने में सक्षम होगा...

साधना तंत्र से ,मंत्र से और यन्त्र से की जाती है किन्तु याद रखने वाली बात ये है की पहले मंत्र (मन का विचार),तंत्र (तन का विचार)और यन्त्र का मतलब मन एवम् तन को जोडने का विचार,यहाँ यन्त्र आपका शरीर होता है।
आप कुछ भी विचार करे ,सोचे या दोहराये सब मंत्र है किन्तु सही मायने में इसे प्रार्थना कहना उचित होगा।।।
पिछले कुछ दिनों से मैंने पाया की भगत बीज मंत्रो का लगातार जाप कर रहे है जो की भक्तो के लिए घातक साबित हो सकता है ,बीज मंत्र एक प्रकार की विशेष ऊर्जा को निर्माण करते है जो की प्रार्थानो को सही दिशा में भेजने के लिए चालाक का कार्य करते है।जैसे ह्रीं बीज इस बीज मंत्र को जपने से "ह" विशुद्ध,"र"मणिपुर "ई"शक्ति बिज विशुद्ध चक्र का चौथा अक्षर एवं "अं" विशुद्ध चक्र का प्रथम अक्षर ।मतलब ये बिज विशुद्ध से प्रारम्भ होता हुआ निचे मणिपुर में पहुचकर रफ़्तार से विशुद्ध के "ई" अक्षर तक पहुच कर ,अपनी पूर्ण गति से विशुद्ध के प्रथम अक्षर अं से होता हुआ ब्रह्मांड में पहुच जाता है।इस बिज के साथ पीछे जो भी अक्षर या प्रार्थना लगी हो वो भी पीछे-पीछे उसी प्रकार चलते है जैसे रेल इंगजन के पीछे डिब्बे।अब इसी "ह्रीं" मंत्र में यदि अंतिम सबद के बदले आपने "अँग" सबद लगा दिया तो यह मंत्र "ह्रींग" हो जाएगा और स्मरण रहे की परिणाम बिलकुल विपरीत होंगे।क्योकि "अँग" सबद अनहद चक्र का है इसका मतलब यह हुआ की ये मंत्र अब अंतिम में अनहद से हो कर ब्रह्मांड में पहुचेगा।ऊपर जो "ह" विशुद्ध ,"र"मणिपुर सबद लिखे गए है वे विशुद्ध एवं मणिपुर के मूल बीज मंत्र है जो की इन चक्रों के मूल बीजाक्षर है जो इन चक्रों के मध्य में रहते है एवं बाकी सब्द इन चक्रों के बाहर होते है।जैसे अनहद चक्र के बिच में शक्ति "य"एवं चारो तरफ क से लेकर ठ तक के अक्षर होते है।
यहाँ स्मरण रखने की बात है की जब भी सबद ऊपर की ओर के चक्रों के होंगे तब ऊर्जा ऊपरी ब्रह्माण्ड की और जायेगी और जब सबद निचे के होंगे तो ऊर्जा निचे के ब्रह्मांड(पाताल) में जायेगे,इसी प्रकार मध्य ब्रह्मांड भी है।
जिस प्रकार आपको "ह्रीं" की चाल समझाई गई है इसी प्रकार अन्य बिज काम करते है जैसे क्लीं,ह्लीं,स्रीं इत्यादि।
इन मंत्रो की चाल को कागज़ में चित्र के माध्यम से समझने से ये कुछ उसी प्रकार दिखेगे जैसे ई सी जी मशीन से ग्राफिक निकलता है

इन बीज मंत्रो का जाप मात्र आवश्यकता पड़ने से ही और सही मार्ग दर्शन में करना ही उचित होता है,मैंने पाया की किसी भी बीज मंत्र का जाप दिन भर में 54 बार से ज्यादा करने से लाभ की जगह हानि होने लगति है... यह पोस्ट मात्र मंत्र साधना को ध्यान में रख कर लिखी गई है इस विधि के अलावा श्वासों की गिनती के द्वारा ऊर्जा को ऊपर निचे पहुचाना एक अलग विषय है जो योग के अंतर्गत आता है जहा श्वासों को हर अक्षर पर स्थिर किया जाता है ।
किन्तु आज कल बीज मंत्र को देना एक फैशन सा बन गया है बीज मंत्र न्यूक्लियर बम से भी ज्यादा खतरनाक है जो भी पूर्ण जानकारी के बिना इनका जाप करेगा उसके बुद्धि का स्तंभन हो जाता है या फिर जो मंत्र देने वाला होता है उसके प्रति आकर्षण होने लगता है कुल मिलाकर जो जाप कर रहा है उसे लाभ नहीं होता....
इन मंत्रो की प्रतिक्रिया होने से मन में बहुत से नकारात्मक भाव पैदा होते है जैसे:-
मै कौन हूँ?
जीवन में सब धोखा है?
मौत ही सत्य है??
सब व्यर्थ है?
क्या लाया है और क्या ले जाना है?
धन एक धोखा है..
सुख एक छलावा है...
आज बीज मंत्र की दीक्षा देने का फैशन चल रहा है,जैसे बीज मंत्र दीक्षा,शाम्भवी दीक्षा,त्रिकाल दीक्षा
महादेव के दिए गए इस ज्ञान को बेचने वाले ये सब कौन होते है...
ट्रिंग ट्रिंग की ध्वनि पे ध्यान दीजिये ,सायकिल की घंटी में अक्सर ये ध्वनि निकलती है और आपके कानो के पास बार बार इस ध्वनि का यदि उपयोग किया जाए तो आपको कैसा लगेगा ,अनुभूत कीजिये ..
बस ऐसी ही अवस्था ह्रींग, क्लींग.......... 
इत्यादि बीज मंत्रो के अधिक उपयोग करने से आपके भीतर होगी और वहा कोई आपको समझाने वाला भी ना होगा।
क्योकि जाप करने वाला हमेशा एकाँकी ही होता है?
बहुत से गृहस्त के जीवन से दामपत्य सुख छीन गया है,
मन में वैराग्य का प्रारम्भ हो गया है,
क्या इससे ईश्वर को पाया जा सकता है???
इस विधि को पूर्ण रूप से लिख के नहीं समझाया जा सकता है और ना ही इसको शब्दों के माध्यम से समझाया जा सकता है इनको गुरु जो इस विषय को जानते है वे आपको इशारो से,लिख के,बोला के एवं चित्र के माध्यम से ही समझा सकते है।सिर्फ पढने से इसे पूर्ण रूप से नहीं समझा जा सकता है।
आशा करता हु की ये लेख कुण्डलिनी साधको का मार्ग प्रशस्त करने में सक्षम होगा।

*****जयश्री महाकाल****
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
******राहुलनाथ********
भिलाई,छत्तीसगढ़+919827374074(whatsapp)
फेसबुक परिचय:-
https://m.facebook.com/kawleyrahulnathosgy/

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बीज मन्त्र और शरीर पर प्रभाव .....

मन्त्र के शुद्ध उच्चारण में सस्वर पाठ भेद के उदात्त तथा अनुदात्त अंतर को स्पष्ट किये बिना शुद्ध जाप असंभव है और इस अशुद्धि के कारण ही मंत्र का सुप्रभाव नहीं मिल पाता |इसलिए सर्व प्रथम किसी बौद्धिक व्यक्ति से अपने अनुकूल मन्त्र को समझ-परख कर उसका विशुद्ध उच्चारण अवश्य जान लें |
अपने अनुकूल चुना गया बीज मंत्र जप अपनी सुविधा और समयानुसार चलते फिरते ,उठाते बैठते अर्थात किसी भी अवस्था में किया जा सकता है |इसका उद्देश्य केवल शुद्ध उच्चारण ,एक निश्चित ताल और लय से नाड़ियों में स्पंदन करके स्फोट उत्पन्न करना है |
कां -पेट सम्बन्धी कोई भी विकार और विशेष रूप से आँतों की सूजन में लाभकारी |
गुं- मलाशय और मूत्र सम्बन्धी रोगों में उपयोगी |
शं - वाणी दोष ,स्वप्न दोष ,महिलाओं में गर्भाशय सम्बन्धी विकार और हार्निया आदि रोगों में उपयोगी |
घं - काम वासना को नियंत्रित करने वाला और मारण-मोहन और उच्चाटन आदि के दुष्प्रभाव के कारण जनित रोग विकार को शांत करने में सहायक |
ढं - मानसिक शांति देने में सहायक |आभिचारिक कृत्यों जैसे मारण-मोहन-स्तम्भन आदि प्रयोगों से उत्पन्न हुए विकारों में उपयोगी |
पं - फेफड़ों के रोग जैसे टी वी ,अस्थमा ,श्वास रोग आदि के लिए गुणकारी |
बं - शुगर ,वामन ,कफ विकार ,जोड़ों के दर्द आदि में सहायक |
यं - बच्चों के चंचल मन को एकाग्र करने में अंत्यंत सहायक |
रं - उदर विकार ,शरीर में पित्त जनित रोग ,ज्वर आदि में उपयोगी |
लं - महिलाओं के अनियमित मासिक धर्म ,उनके अनेक गुप्त रोग तथा विशेष रूप से आलस्य को दूर करने में उपयोगी |
मं - महिलाओं में स्तन सम्बन्धी विकारों में सहायक |
धं - तनाव से मुक्ति के लिए ,मानसिक संत्रास दूर करने में उपयोगी |
ऐं - वात नाशक ,रक्त चाप ,रक्त में कोलेस्ट्रोल ,मूर्छा आदि असाध्य रोगों में सहायक |
द्वां - कान के समस्त रोगों में सहायक |
ह्रीं - कफ विकार जनित रोगों में सहायक |
ऐं - पित्त जनित रोगों में उपयोगी |
वं - वात जनित रोगों में उपयोगी |
शुं - आँतों के विकार तथा पेट सम्बन्धी अनेक रोगों में सहायक |
हुं - यह बीज एक प्रबल एंटीबायोटिक सिद्ध होता है |गाल ब्लैडर ,अपच ,लिकोरिया आदि रोगों में उपयोगी |
अं - पथरी ,बच्चों के कमजोर मसाने ,पेट की जलन ,मानसिक शान्ति आदि में सहायक इस बीज का सतत जाप करने से शरीर में शक्ति का संचार उत्पन्न होता है |संकलित ग्रंथो से
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।। मेरी भक्ति गुरु की शक्ति।।
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चेतावनी-हमारे लेखो में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है। लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले।बिना लेखक की लिखितअनुमति के लेख के किसी भी अंश का कॉपी-पेस्ट ,या कही भी प्रकाषित करना वर्जित है।न्यायलय क्षेत्र दुर्ग छत्तीसगढ़
(©कॉपी राइट एक्ट 1957)

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