।।आठवी गाँठ ।।आत्मा की मुक्ति
मैं हिंदू हूँ,मैं मुसलमान हूँ ,मैं सिख हूँ ,ईसाई हूँ ,यहूदी हूँ ,फ़ारसी हूँ दलित हूँ ,चमार हूँ ,ब्राह्मण हूँ ,वैश्य हूँ ये सब बंधनो का ही नाम है।
आत्मा पाँच तत्वों से बना शरीर है,अंतिम संस्कार के बाद चार तत्वों को खो कर आत्मा मात्र आकाश तत्व में परिवर्तित हो जाता है ।आकाश तत्व का गुण वाणी है आवाज है इसी कारण ,प्रेत या आत्मा लोग में विचरण करता आत्मा,मात्र सुन सकता है किन्तु अग्नि तत्व से बनी आँखे नहीं होने के कारण वो आपकी बातो को पढ़ नहीं सकता।शायद यही कारण है की मृत्यु के बाद आत्मा की शान्ति के लिए गरुड़ पुराण या अन्य जानकारियां आत्मा को मरने के बाद सुनाई जाती है क्योकि जीते जी आत्मा के पास इतना समय ही नहीं होता की वो मुक्ति के मार्ग का ज्ञान प्राप्त कर सके और मृत्यु के बाद समय ही समय होता है इस ज्ञान की प्राप्ति के लिए।अतः आपके द्वारा इस सम्बन्ध में बाते सुन कर वो आपके ऊपर प्रतिक्रिया करता है ।उसकी बुराई करने से बुरा एवं उसकी स्तुति करने से अच्छा फल देता है और इस आत्मा की दुनिया में वो मनुष्यो या रिश्तेदारो पे निर्भर रहता है।
इसीकारण आप इस विषय पे जितना अध्ययन करेगे उतना लाभ ही होगा किन्तु इस समबन्ध में वाद-विवाद आपको पाताल की गहराइयो में ले जा सकता है।इस आकाश तत्व का भी,विलीन हो जाना ही मुक्ति है।योनि या शरीर क्या है? मात्र एक ऐसी जल की बूँद जो कुछ समय के लिए सागर से अलग हो जाती है और कुछ समय बाद वो फिर उस सागर में समा जाती है। लेकिन आत्मा का सफ़र इससे भी आगे है हमें सागर भी नहीं बनना ,सागर भी तो ईश्वर ने ही बनाया ,सागर बनना भी मुक्ति नहीं ,सागर बनना भी कामना मात्र है।कुछ और ही मार्ग है आत्मा का,कोई और ही मंजिल है।जहाँ मैं और तु का भाव नहीं होता।जहाँ कोई बंधन नहीं होता कोई गाँठ नहीं होती।
किन्तु मैंने देखा यहाँ लोगो को मुर्दो की पूजा और इनका गुण गान ही परोसा जा रहा है ये आपको मुर्दो तक पहुचा रहे है ,उनके बारे में बात करने के लिए प्रेरित कर रहे है ।उनके अनुयायी अपने मुर्दा गुरुओ की स्तुति बढा चढ़ा कर ,चमत्कारी कहानियो के रूप में बता रहे है और गुरु के शांत होने के बाद उनकी गद्दियों से लगातार व्यवसाय कर रहे है।यहाँ व्यवसाय भी करे तो अच्छी बात है किन्तु समस्या इस बात की है की वे अपने मुर्दे को महान और दूसरे के मुर्दो को शैतान बताने की कोशिश कर रहे है।जीते जी तो मानव एक साथ एक भावना से नहीं रहता और मरने के बाद भी उनके अनुयायी उन्हें एक नहीं होने देते।
मुर्दा तो मुर्दा ही होगा ,फिर वो चाहे हिन्दू का हो मुस्लिम का या किसी भी अन्य धर्म का।मित्रों स्मरण रहे कोई कितना बड़ा ही सिद्ध हो,संत हो,फ़क़ीर हो या बाबा मरने के बाद मुर्दा ही बनेगा ।
भगवान श्री कृष्ण ने गीताजी में मुर्दो की पूजा या साधना करने के लिए मना किया है।उन्होंने कहा है जो जिसकी पूजा करता है वो उसी के लोक में जाता है।
आप जिस बाबाजी से ,संत से ,मौलवी से या पादरी से आशीर्वाद की इच्छा रखते है विश्वास रखते है उतना विश्वास आप उस मालिक पे क्यों नहीं रखते जो ,इन बाबाजी ,संत ,मौलवी या पादरी को भी आशीर्वाद देने की शक्ति देता है।
आप ईश्वर,अल्लाह,गॉड की शरण क्यों नहीं लेते ।स्वयं के लिए स्वयं प्रार्थना क्यों नहीं करते।किसी के आशीर्वाद पे निर्भर होना भी तो सम्पूर्णता नहीं है ,वो मालिक आपको जब भी आशीर्वाद देगा तब पूरा मिलेगा।
आप किसी जाती-धर्म से ,सम्प्रदाय से ना जुड़े ,किसी भी रिश्ते में बंधना तो एक गाँठ ही है क्योकि बिना गाँठ के रस्सी में जोड़ संभव नहीं है जब तक ये बंधन नहीं खुलेंगे आपकी मुक्ति नहीं होगी ।
मैं हिंदू हूँ,मैं मुसलमान हूँ ,मैं सिख हूँ ,ईसाई हूँ ,यहूदी हूँ ,फ़ारसी हूँ दलित हूँ ,चमार हूँ ,ब्राह्मण हूँ ,वैश्य हूँ ये सब बंधनो का ही नाम है।
मुक्त हो जाइए।इन बंधनो से ।खोल दीजिये हर भीतर के बंधन को हर गाँठ को।इन गाँठों को खोलते ही आपको आपके भीतर ही गुरु की प्राप्रि होगी।एक ऐसा गुरु जो कोई हाड मॉस का पुतला नहीं ,मात्र एक तत्व स्वरूप है।
जब आप साधना के मार्ग पे चलतेे है तो गुरु आपके साथ सातवे चक्र तक ही चलते है या फिर ऐसा कहे की, गुरु सात गाँठ ही खोलते है आगे का सफ़र साधक को स्वयं ही काटना होता है।इस आखरी "आठवी गाँठ "को साधक को स्वयं ही खोलना होता है।
*****जयश्री महाकाल****
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
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।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
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