!!!!!!!शिवसूत्र!!!!!!
हमारे भीतर दो मस्तिष्क हैं।
एक बायां मस्तिष्क है, और एक दायां मस्तिष्क अलग है। हम एक करवट में सोते है, तो एक मस्तिष्क काम करता है। जब हम दूसरी करवट पे होते है तो,
दूसरा मस्तिष्क काम करता है।
दोनोंकी अनुभूतियाँ अलग है दोनों के सपने अलग— अलग है दोनों की भावनाये अलग अलग है।एक में स्त्री तत्व की प्रधानता है और दूसरे में पौरुष तत्त्व की! जब एक नाक से श्वास चलती है, तो एक मस्तिष्क काम करता है। और जब दूसरी नाक से श्वास चलने लगती है तो दूसरा मस्तिष्क काम करने लगता है। इसलिए हमारे भीतर विचारों के बड़े, भावों के रूपांतरण होते रहते हैं।
जरा सी देर में हम प्रसन्न दिखाई पड़ते हो, तो जरा से समय हम क्रुद्ध हो जाते है क्योकि हमारे मस्तिष्क की अवस्था लगातार बदलती रहती है
स्थिरता नहीं रहती है भीतर!
लगभग हर चालीस मिनट के करीब जब हमारी श्वास बदलती है,
एक नासापुट से दूसरे नासापुट में, इस समय जरा खयाल करना, हमारी
भाव—दशा भी बदल जाती है। यह चौबीस घंटे होता रहता है। रात में भी तुम करवट बदलते हो, बस भाव—दशा बदल जाता है।
स्वप्नों की अवस्था बदल जाती है।
ये दोनों मस्तिष्क का साधना में अलग अलग उपयोग किया जाता है इसे ही शिव एवम् गौरा कहा जाता हैये ही हमेशा भीतर बात करते रहते है
किन्तु अध्यात्म में अर्धनारीश्वर का महत्त्व अधिक है!
मतलब वो अवस्था जब दोनों नासापुट साथ चलते हो।!
इस काल को ही सही मायने में संध्या कहा जाता है!
यही "शिव सूत्र "है!
यही वह समय है जब साधक परम के समीप होता है!यही वह अवस्था है जब दृष्टी अनंत में स्थिर हो जाती हैऔर पलकें आँखों के मध्य में स्थिर हो जाती है!
यही वह समय है जब भीतर का हिरण्यकश्यपु मरता है!
जब ना दिन हो ना रात,ना ऊपर न निचे,......क्रमश:
।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।
(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
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