शनिवार, 23 जुलाई 2016

||करवट शिव की ||तंत्र विश्लेषण

||करवट शिव की ||तंत्र विश्लेषण ..….
जय श्री महाकाल,आदेश नमो नमः
तंत्र कोई जादू टोना या छू मंत्र नहीं है।जादू -टोना ,या छु मनतर ये सब बाबागिरी के हथियार है !सावधान ये तंत्र नहीं मायाजाल है।बाबागिरी है..
तंत्र जीवन जीने की एक नियमित शैली है।।जिसके नियम अकाट्य एवम् अपरिवर्तन शील है।।कालान्तर में गलत लोगो द्वारा गलत प्रचार करने के कारण तंत्र की प्रतिष्ठा को क्षति पहुचि है।चमत्कार कुछ भी नहीं है ।संसार का सबसे बड़ा चमत्कार जो ईश्वर करते है वो है शिशु रूप में मानव का जन्म ...और उस चमत्कार को दिखाने में ईश्वर को भी 9 माह का समय लगता है।किसी भी चमत्कार की आशा न रखे।खुद में परिवर्तन करे प्रकॄति स्वयं चमत्कार कर दिखाएगी।।
इस ब्रह्माण्ड के पदार्थ का कभी भी नाश नहीं होता मात्र इसका स्वरूप बदल जाता है जैसे जल को जलाने से उसका अंत नहीं होता मात्र वह अपना रूप बदल कर भाप बन जाता है।इन पदार्थो के मूल में मात्र एक ही तत्व होता है जो लगातार अपना स्वरूप बदलता रहता है।इस इस मूल तत्व का सर्वेक्षण लगातार किया जा रहा है ।विज्ञान ने पहले तत्वों की संख्या 108 बताई ,फिर शोध के दौरान ये पाया की इनकी संख्या 7 है फिर और लगातार शोध होते रहे ,फिर कहा गया इनकी संख्या 3 है किन्तु अभी भी यह नहीं जाना गया की इन तत्वों के मूल में क्या है।अभी कुछ दिनों पहले विज्ञान ने गॉड पार्टिकल की खोज सम्पूर्ण की है किन्तु अभी भी शोध चल रहे है।वैज्ञानिक किन्तु इस बात को स्वीकार करते है की संसार का निर्माण कुछ मूल मौलिक सूक्ष्म कणो से हुआ है जो कई रंगो के है और सब अपने अपने निजी गुणों की विशेषता रखते है।
तंत्र भी यही कहता है की ये जगत एक ही तत्व का परिवर्तित रूप है।जो बहुत ही तेज है,शक्तिशाली,गतिमान,सर्वचैतन्य,स्वयम्भू एवम् सर्व ज्ञाता है।इस तत्व से ही सृस्टि का जन्म हुआ है।ये तत्त्व बहुत सूक्षम है नैनो कणों से भी करोडो गुना सूक्षम ।
इस तत्व को "शिव"कहा जाता है इसे ईथर भी कहा जाता है।ये तत्त्व सर्वव्यापी है ऐसा कोई स्थान नहीं जहा ये न हो।सारा संसार ,जल,वायु,धरती,आकाशगंगा सब इसी तत्त्व में है।इस तत्व को कोई रोक नहीं सकता,क्योकि सब का जन्म दाता यही तत्व है यह वायु में भी भ्रमण कर सकता है अग्नि में भी ,जल में भी!
ये दीवाल के पार भी जा सकता है,ये शरिर में भी प्रवेश कर सकता है।लकड़ी में ,पत्थर में सब में सब जगह ये प्रवेश कर सकता है।ये स्वयम्भू है इसको कोई नहीं मार सकता क्योकि मौत भी यही निर्माण करता है।यही महाकाल भी है।
जब इस संसार की रचना हुई तो प्रारम्भ में सब तरफ मात्र यह तत्व ही विराजमान था।और कुछ भी नहीं था,ना चाँद ना सूरज ,ना धरती ना आकाश।न जल न थल ना बल कुछ भी नहीं था मात्र ये ही था।
इस समय शक्ति का जन्म भी नहीं हुआ था मतलब "गौरा"का भी जन्म नहीं हुआ था।मात्र शिव ही थे।ये सारा संसार जंघम था,जंघम का मतलब होता है जो ना हिल सकता हो।सब तरफ मात्र मौन था जैसे भगवान शिव समाधि में हो।इस भाव को दर्शाने के लिए भगवान शिव को ध्यान मुद्रा में दिखाया जाता है!
इस जंघम "शिव"में इक हलचल हुई।किन्तु ये हलचल कैसे हुई,इस विषय में वैज्ञानिक भी नहीं जानते,और तंत्र इस अवस्था में "नेति-नेति"कहता है मतलब की वे नहीं जानते।
इस हलचल को मैं"शिव"के करवट बदलने का असर कहता हु।इस हलचल को ही "शक्ति" कहा जाता है यही "गौरा"है।जिसका जन्म सीधी दृष्टी से देखे तो "शिव"से ही होटा है किन्तु सूक्षमता से देखने से पता चलता है की "शिवा"निश्चित ही "शिव"के भीतर विश्राम कर रही थी और "शिव"के भीतर विश्राम कर रही थी।मतलब स्पस्ट है की यदि "शिव"ही शांत हो जाए तो "शक्ति" विलीन हो जाती है।और जब "शक्ति"जाग जाए तो "शिव"का अस्तित्व समाप्त हो जाता है इस भाव को महाकाली के चित्र में ,भगवान शिव को देवी के चरणों में निष्क्रिय रूप से दर्शाया जाता है और चूँकि उस समय जब कुछ भी नहीं था और हलचल हुई इसे दर्शाने के लिए "महाकाली"को "स्मशान" में दर्शाया जाता है।
इस हलचल से "शिव"में जो झटका लगा उससे एक रेखा का निर्माण हुआ जो की एक बिंदु मात्र का फैलाव होता है।रेखा की परिभाषा ही बिंदु का फैकाव ही रेखा कहलाती होटी है।इस रेखा में कुछ "चक्रों"का निर्माण हुआ।जो की जल में उत्पन्न भवरो के सामान होते है।ये रेखा ऊपर से स्थूल होते हुए अंतर में सूक्षम होते हुये विलीन हो जाती है।इसे ही साधना या समझना "कुण्डलिनी साधना" कहलाती है।
इस रेखा के प्रथम से अंतिम तक 7 भवरो का निर्माण हुआ जिसे क्रमश सहस्त्रार से मूलाधार का नाम दिया गया।आप ना कोई भी दे सकते है या नाम की जगह नंबर भी दे सकते है या फिर इनको  देवताओ का नाम भी दे सकते है।तंत्र में इसे सहस्त्रार में गुरु एवम् मूलाधार को काली कहा जाता है।नाम कोई भी दे कोई फर्क नहीं पड़ता है।इस प्रथम हलचल को सृष्टि का प्रथम "मैथुन"कहा जाता है इस मैथुन से जिस ऊर्जा का निर्माण हुआ,जो की एक सूत्र के रूप में है और इस सूत्र को "शिवलिंग" के रूप में दर्शाया जता है।इस सूत्र को सर्वप्रथम समझने वाले ऋषि का नाम कश्यप ऋषि है,इसे कश्यप सूत्र भी कहा जाता है।इस सम्भोग से एक सर्वप्रथम एक ऊर्जा धारा का निर्माण हुआ ।जिसके दो किनारे थे।यही दो किनारे ,जिनका नाम ऋषि कश्यप
की दो पत्नियो के नाम से रखा गया ।प्रथम दीती:-जिससे देवताओ का जन्म हुआ और द्वितीय अदिति जिससे राक्षसो का जन्म हुआ.....
ये दिति और अदिति कोई मानवीय संरचना नहीं है ये मात्र एक ऊर्जा बिंदु है एक ऊर्जा चक्र है।इन ऊर्जा चक्रों से लगातार अन्य ऊर्जा  चक्रों का निर्माण होते चला गया किन्तु तंत्र में इन चक्रों की संख्या 7 बताई गई है।
आप इसे ऐसे समझे की शक्ति से 7 बिंदु का जन्म हुआ और हर बिंदु से 7 बिंदु का जन्म हुआ और उन बिन्दुओ से भी 7-7चक्रों का निर्माण होता चला गया यही सृष्टि का जन्म है।
चूँकि इन "चक्रों"का निर्माण शिव-शिवा से हुआ है इसी कारण इन "चक्रों"में दोनों के गुण उपलब्ध है इसी कारण यह बहुत शक्ति शाली है।
इन "चक्रों"में पहला "चक्र"सफ़ेद एवम् अंतिम "चक्र"काले रंग का है और बिच में सभी चक्रों के रंग भिन्न भिन्न है जिसे आप इंद्रधनुष के 7 रंगो में देख सकते है।इन "चक्रों"को दो तरिके से पूजा कर सकते है जिन्हें तंत्र में मार्ग की संज्ञा दी गई है।प्रथम दक्षिण मार्गीय साधाना एवम् द्वितीय वाम मार्गी साधना।ये "चक्र"धनात्मक से ऋनात्मकता की और अग्रसर है जैसे प्रथम "चक्र"सहस्त्रार पूर्ण धनात्मक है जिसे तंत्र में ब्रह्मा ,एवम् दूसरा बिंदु पूर्ण ऋनात्मक है जिसे "महेश"कहते है ।ये दोनों बिंदु जहा मध्य में मिलते है इस बिंदु(न्यूटल) को विष्णु  कहा जाता है।यही तंत्र की तिन साधनाए भी है।
1.सात्विक प्रथम बिंदु ब्रह्मा  -जो बुद्धि एवम् ज्ञान का प्रतिक है जिनके साथ सरस्वती इनकी शक्ति है।ब्राह्मण इनकी संतान है और ब्रह्म विद्या के ज्ञाता है।
2 राजसिक द्वितीय बिंदु विष्णु-जो पूर्ण भोगी है जिनकी शक्ति लक्षमी है वैष्णव इनकी संतान है जो हमेशा धन की आपूर्ति एवम् साज सज्जा के लिए प्रयास रत तहते है।आप इन्हें क्षत्रिय कह सकते है।
3.तामसिक तृतीय बिंदु महेश-जो इन सब से पर मू त्यु के देवता है गौरा इनकी शक्ति है।।शैव इनकी संतान है एव ये हमेशा सब से परे अवघड अबधुत रूप में जीवन यापन करते है इनको ऊपर के दोनों देवता से कोई लेना देना नहीं होता।उलटा जब ये "कामनृत्य" (मैथ्यून)करते हैतब ऊपर के दोनों देवता  भी  शक्तिविहीन हो कर इनकी सेवा करते है।क्योकि जब कामशक्ति जागती है तब बुद्धि,ज्ञान ,विवेक और धन मान नाम सम्मान सब इसमें समा जाता है।

विशेष:-मित्रो ऊपर आपको बताया गया की शिव के करवट लेने से ये शक्ति का जन्म हुआ और आप सोचे की वो कौन सी शक्ति होगी या वो कौन होगा जिसने शिव को करवट लेने मजबूर किया होगा..
(व्यक्तिगत अनुभूति एवम् अंतर्ध्वनि)

क्रमश:
मित्रों यदि यह विश्लेषण आपको पसंद आया है तो भविष्य में इस विषय पे मैं लिखते रहूंगा।जितने भी तंत्र मंत्र यन्त्र है वे सब इसी सूत्र से जन्मते है शास्त्रो में इस विषय में लिखा गया है किन्तु समझाया नहीं गया है और जो इस सूत्र को जानते है वे इसे गुरु शिष्य परम्परा में आज भी सम्हाल के रखते है।
मैंने आज तक इस विषय पे जितना समझा,जाना मैं आपको बताना अपना फर्ज समझता हु।ये मेरी छोटी से बुद्धि से किया गया विश्लेषण है ।इसे समझने और समझाने के लिए शास्त्रो का सहारा ले कर उत्कीलन करने का मैंने प्रयास किया है।यदि कही किसी प्रकार से मैंने समझने या समझाने में कोई गलती की हो तो क्षमा करे।भविष्य में इस सूत्र से किस प्रकार "दशमहाविद्या"का जन्म हुआ ,मैं यहाँ समझाने का प्रयास करूँगा।।

।। श्री गुरुचरणेभ्यो नमः।।
मच्छिन्द्र गोरक्ष गहिनी जालंदर कानिफा।
भर्तरी रेवण वटसिद्ध चरपटी नाथा ।।
वंदन नवनाथ को,सिद्ध करो मेरे लेखो को।
गुरु दो आशिष,हरे भक्तों के संकट को।।

(व्यक्तिगत अनुभूति एवं विचार )
"राहुलनाथ "
{आपका मित्र,सालाहकार एवम् ज्योतिष}
भिलाई,छत्तीसगढ़+917489716795,+919827374074(whatsapp)
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🚩🚩🚩जयश्री महाँकाल 🚩🚩🚩
इस लेख में लिखे गए सभी नियम,सूत्र,तथ्य हमारी निजी अनुभूतियो के स्तर पर है।विश्व में कही भी,किसी भी भाषा में ये सभी इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अत:इस लेख में वर्णित सभी नियम ,सूत्र एवं व्याख्याए हमारी मौलिक संपत्ति है।हमारे लेखो को पढने के बाद पाठक उसे माने ,इसके लिए वे बाध्य नहीं है।इसकी किसी भी प्रकार से चोरी,कॉप़ी-पेस्टिंग आदि में शोध का अतिलंघन समझा जाएगा और उस पर (कॉपी राइट एक्ट 1957)के तहत दोषी पाये जाने की स्थिति में तिन वर्ष की सजा एवं ढ़ाई लाख रूपये तक का जुर्माना हो सकता है।अतः आपसे निवेदन है पोस्ट पसंद आने से शेयर करे ना की पोस्ट की चोरी।

चेतावनी-हमारे हर लेख का उद्देश्य केवल प्रस्तुत विषय से संबंधित जानकारी प्रदान करना है लेख को पढ़कर कोई भी प्रयोग बिना मार्ग दर्शन के न करे ।क्योकि हमारा उद्देश्य केवल विषय से परिचित कराना है। किसी गंभीर रोग अथवा उसके निदान की दशा में अपने योग्य विशेषज्ञ से अवश्य परामर्श ले। साधको को चेतावनी दी जाती है की वे बिना किसी योग्य व सफ़ल गुरु के निर्देशन के बिना साधनाए ना करे। अन्यथा प्राण हानि भी संभव है। यह केवल सुचना ही नहीं चेतावनी भी है।

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